Kataasraj.. The Silent Witness - 39 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 39

भाग 39

वापसी में अमन के होठ ना चाहते हुए भी गुनगुनाने लगे। पूरे रास्ते उसके जेहन में बार बार पुरवा की डेहरी पकड़े खड़ी, आंखे झुकाए तस्वीर उभरती रही।

अशोक अमन को कुछ दूर तक छोड़ कर वापस लौटे तो बड़े खुश थे। बाहर खटिया पर लेट कर आराम करने लगे। लेट कर मन ही मन सोचने लगे, कितना सभ्य शालीन लड़का है अमन। घमंड तो छू भी नहीं गया।

कुछ देर बाद खाना तैयार हो गया तो पुरवा ने आवाज लगाई, "बाऊ जी..! आइए अम्मा ने खाना परोस दिया है।"

"अच्छा बिटिया .! आता हूं।"

कह कर कुएं से एक बाल्टी ताजा पानी खींच कर निकाला और उसे ले कर अंदर आ गए। सुबह शाम रोज का ये उनका नियम था ये। घर में दिन भर पानी का काम लगा ही रहता था। नहाना धोना, खाना पकाना, साफ सफाई सब में पानी की ही जरूरत पड़ती थी। कितना पुरवा और उर्मिला ढोती..! इसलिए अशोक भी जब भी मौका लगता कुएं से पानी खींच कर अंदर पहुंचा कर मदद करने की कोशिश किया करता।

पुरवा ने पीढ़ा पानी रख दिया था। फिर अशोक के बैठते ही पुरवा ने खाने की थाली ला कर सामने रख दी।

दाल, रोटी और चोखा बनाया था उर्मिला ने। अशोक को भुने हुए आलू का चोखा बहुत पसंद था। इसलिए उर्मिला अक्सर ही बनाती थी।

अशोक बोले,

"मेरा बस हो गया है, अब और कुछ नही चाहिए। तुम दोनो भी ले आओ खाओ।"

उर्मिला और पुरवा भी वही पास बैठ कर खाने लगी।

अशोक खाते खाते बोले,

"अमन कितना अच्छा लड़का है ना। बेहद संस्कारी,तहजीब वाला। इतने रईस खानदान से इसका वास्ता है लेकिन फिर भी जरा सा भी घमंड, दिखावा नही है इसके अंदर।"

उर्मिला बोली,

"हां…! ये तो आप सच कह रहे हैं। फिर बेटा किसका है ये भी तो देखिए। सलमा और साजिद भी तो ऐसे ही हैं। कोई गुमान नही है उन्हे भी तो अपने धन दौलत का। कितने सीधे और सरल हैं। फिर अमन पर भी उनकी ही परवरिश का असर है।"

कुछ रुक कर उर्मिला फिर बोली,

"अब उनका अपनापन ही तो है जो जबरदस्ती हमें ले जाने को तैयार कर लिया। खर्चा पानी का भी चिंता नही करने को बोला है। अब कौन दूसरे के लिए इतना करता है…! "

अशोक का खाना अब खत्म हो गया था। उन्होंने उठ कर हाथ धोया और बाहर आ गए।

रोज ही रात में उर्मिला खाना पकाने के बाद बची हुई आंच पर दूध रख देती थी। खाने के थोड़ी देर बाद जब दूध गरम हो जाता तो पुरवा उसे गिलास में डाल कर ले आती और अम्मा बाऊ जी के साथ ही खुद भी पीती थी।

आज भी उर्मिला और अशोक बरांडे में बिछी अपनी अपनी खटिया पर लेटे हुए थे। तब थोड़ी देर बाद पुरवा दूध ले कर आई और अम्मा, बाऊ जी को थमा दिया। साथ ही अशोक के बगल में बैठ कर खुद भी पीने लगी। दूध पीते हुए अशोक उर्मिला से बोले,

"ऐसा करो तुम.. ! कल से ही तैयारी शुरू कर दो जाने की। बस चार दिन का ही समय है। चाची के यहां बात कर लेना जानवरों की देख भाल के लिए। हमारे ना रहने पर इनको कोई तकलीफ ना होने पाए। लंबे सफर पर हम जा रहे हैं। काफी समय लगेगा। अपने ही जानवर समझ कर देख भाल करें, पूरा दूध भी इस्तेमाल करें और घर से कोई भी एक आदमी यहीं कोई सो जाया करेगा।"

उर्मिला बोली,

"आप चिंता मत करिए। हम सब बात कर लेंगे चाची के घर जा कर। और फिर करेंगे काहे नहीं…? जब वो लोग नही रहते तब हम लोग भी तो उनका घर, खेत, जानवर सब देखते भालते है। हम तो पहली बार इस तरह छोड़ कर जा रहे हैं।"

अशोक बोले,

"नही पुरवा की मां..! हम नही चाहते कि हम उनके घर, जानवर की देख भाल करते हैं। इस लिए बदले में वो भी हमारे घर,जानवर की देख भाल करें। अगर वो खुशी खुशी राजी हो तो ठीक वरना चंदू नंदू को उनके मामा मामी के साथ बुला लो। जब तक हम वापस लौट कर ना आए यहीं रहें।"

पुरवा अम्मा बाऊ जी की बात सुन कर पिता अशोक के कंधे से सर टिका कर ठुनकते हुए बोली,

"बाऊ जी..! अगर मामी मामी और चंदू नंदू आएंगे यहां तो फिर हम भी नही जायेंगे। हमको तो आप दोनो जबरदस्ती साथ में घसीटे जा रहे हैं।"

अशोक बेटी के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोले,

"ऐसा नहीं कहते बिटिया..! बड़े भाग से मिलता है कटास राज बाबा का दर्शन। बिरले ही किसी किसी को नसीब होता है। चंदू नंदू छोटे हैं और ज्यादा लोगो का दूसरे के भरोसे जाना उचित नहीं है। वरना उनको भी ले जाता।"

उर्मिला बिगड़ते हुए बोली,

"इस पगली को थोड़े ना ये सब पसंद आएगा। इसे तो बस नाज़ के साथ छोड़ दो। सारी दुनिया की खुशी मिल जायेगी इसे। इसे भगवान के दर्शन करना थोड़े ना अच्छा लगेगा।"

अशोक के पास सिमट कर पुरवा ने अम्मा की शिकायत की,

"बाऊ जी..! देख रहे हो ना आप इनको। ऐसे ही हर वक्त हम पर बिना बात के भी खिसियाई खिसियाई रहती हैं। हम कितना उलटा सीधा सहे इनका।"

अशोक ने हंसते हुए बेटी को दुलारा और उर्मिला को बनावटी डांट लगाई,

"ये क्या कह रही है पुरवा ..! तुम इसे बिना बात के डांटती क्यों रहती हो…? देखो भाई ..! अब जितने भी मेरी बबुनी इस घर में है, इसे तुम कुछ भी नही कहोगी। तुम समझ लो।"

बाऊ जी को अपनी तरफदारी करते देखा तो पुरवा खुश हो गई। ढिबरी की रोशनी में मां की ओर देखा तो वो उसी को घूर रही थी। पुरवा ने शरारती मुस्कुराहट से अम्मा को देखा और आंखे घुमा कर ऊपर नीचे कर अम्मा को चिढ़ा कर ये जताना चाहा कि देखो अम्मा .. बाऊ जी मेरी ही बात सुनते हैं। आप कितनी भी नालिश कर लो मेरी पर वो हमको डांटेगे नहीं।

उर्मिला बेटी की इस ढिठाई से चिढ़ गई और डांटते हुए बोली,

"अच्छा.. अच्छा.. अब बस कर अपने बाऊ जी की दुलारी। रात बहुत हो गई है। चल सो जा। वरना सुबह दिन चढ़े तक सोती रहेगी और फिर तब मैं कुछ कहूंगी तो फिर अपने बाऊ जी जा कर के मेरी शिकायत करेगी।"