Kataasraj.. The Silent Witness - 40 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 40

भाग 40

पुरवा अशोक की खटिया से उठ कर उर्मिला की खटिया पर आ गई और बोली,

"अम्मा..! देखो भाई….सोना तो मेरे हाथ में है, पर जागना नही। वैसे भी आज हम तुम्हारे चक्कर में इतनी दूर पैदल आ जा कर बहुत थक गए हैं। फिर घर में घुसते ही चाय बनवाने लगी हो। अब मेरे पैरों में जोरों का दर्द हो रहा है। इसलिए हमको सुबह जगाना मत, आराम से सोने देना।"

उर्मिला अशोक से बोली,

"अब देख लो… अपनी लाडली के नखरे.। सुबह जल्दी नही उठेंगी महारानी जी। बड़ा बखान, बड़ी तारीफे की है हमने गुलाब बुआ से इसकी। अब ऐसे ही रहा था वहां जाकर हमारी नाक करवाएगी कि हमने झूठ बोला था। ऐसा करना आप भी साथ चले जाना इसके। वहां पर इसे जगाने के लिए।"

अम्मा की ताने भरी बातें सुन कर पुरवा का मुंह फूल गया और पैंताने से चादर ले कर सिर से पैर तक खुद को ढक लिया और उर्मिला की ओर पीठ घुमा कर सो गई।

अशोक और उर्मिला दोनो उसके इस अंदाज पर मुस्कुरा उठे। अशोक बोले,

"बच्ची है…. सब समझ जायेगी। जब जो सिर पर पड़ेगा सब कर लेगी।"

उर्मिला बोली,

"ईश्वर करें ऐसा ही हो।"

और वो भी आंखे बंद कर सो गई।

सुबह हल्का उजाला होते ही उर्मिला झाड़ू ले कर लगाने लगी। अशोक हल्के होने खेतों में चले गए।

झाड़ू की खर्र खर्र सुन कर पुरवा की नींद में खलल पड़ा। वो उठी और चादर ले कर आंखे आधी बंद किए, आधी खोले अंदर कमरे में चली गई और चुप चाप सो गई।

उर्मिला ने पुरवा को अंदर जाते देख लिया था। अब वो आठ बजे के पहले नही उठने वाली थी। ये उसे पता था। कुछ कहती तो सामने ही चाची के घर लोग भी साफ सफाई में लगे थे। वो भी सुन लेते। फिर बात गुलाब बुआ तक भी पहुंचने का डर था। इस लिए उर्मिला खामोश रह गई। अपने को कुछ बोलने से संभाल लिया।

खामोशी से उसने झाड़ू लगाने के बाद रात के झूठे बरतन मांजे। फिर चूल्हा पोता।

अशोक मैदान से हो कर आए तो खुद हाथ मुंह धो कर कुएं से बाल्टी भर अंदर आंगन में रख दिया।

सब साफ सफाई का काम निपट गया था। अब बस नहाना था।

पानी अशोक ले ही आए थे। उर्मिला ने फटाफट नहा लिया। नहा का पूजा किया और बाहर तुलसी माता और सूर्य भगवान को जल दे कर वापस लौटी तो पुरवा को आवाज लगाई,

"ओ… पुरवा अब तो उठ जा। देख दिन चढ़ आया है। मैंने सारा काम निपटा लिया और अब तो पूजा भी हो गई है। चाय बनाने जा रही हूं। जल्दी उठ कर दतुअन कर ले। वरना फिर कहेगी कि चाय ठंडी है। चल उठ जा… बहुत सो ली।"

पुरवा कसमसा कर बोली,

"अम्मा सोने दो ना मुझे। बहुत नींद आ रही है। तुम बनाओ चाय हम आ रहे हैं।"

पुरवा समझ रही थी कि भले अम्मा अभी उसे उठने को कह रही है। पर अभी कम से कम आधा घंटा लगेगा उनको चाय बनाने में। पहले चूल्हा जलाएंगी तब तो चाय बनायेंगी। तब तक तो हम उठ जायेंगे।

अशोक ने दूध की बाल्टी रसोई में रक्खा थी। उर्मिला ने पहले उसमें से दूध निकाल कर चाय बनाई। जैसे चाय गिलास में डालने लगी पुरवा मुंह हाथ धो कर बाहर से आती दिखी। वो चाय बड़े ही चाव से पीती थी। इस लिए समय से मुंह धो कर आ गई थी। रसोई में घुसते ही बोली,

"देखा अम्मा..! हम समय से आ गए ना। अब दो चाय .. बाऊ जी बाहर बैठे हैं इंतजार में।"

पुरवा अपनी और अशोक की चाय ले कर बाहर आ गई और नीम के चबूतरे पर बैठ कर दोनों पिता पुत्री चाय की चुस्की लेने लगे।

दूध चढ़ा कर उर्मिला भी उनका साथ देने बाहर आ गई।

चाय खत्म कर अशोक ने उर्मिला को गिलास पकड़ाया और बोले,

"मैं खेत पर जा रहा हूं। तुम फुरसत मिलते ही चाची के घर जा कर बात कर लेना।"

इतना कह कर वो खेत पर चले गए।

उर्मिला ने अंदर रसोई में आ कर उबलते दूध को उतारा और दाल चढ़ा कर खाना बनाने में जुट गई। पुरवा अम्मा की मदद के लिए सब्जी काटने में जुट गई।

कुछ समय बाद खाना बन कर तैयार हो गया। उर्मिला रसोई से निकल हाथ धोते हुए बोली,

"पुरवा मैं चाची के घर जा रही हूं। तुम रसोई और घर का ध्यान रखना। मैं थोड़ी देर में आ जाऊंगी।"

फिर घर से निकलते निकलते बोली, "बैठी ही मत रहना। नहा धो लेना।"

"हां..! अम्मा..! हम नहा लेंगे। तुम जाओ।"

उर्मिला सर का पल्ला संभालते हुए चाची के घर में घुसी। चाची सामने ही बैठी थी। उनका पैर छू कर वहीं जमीन पर बैठ गई।

चाची ने आशीष दिया और पूछा,

"और बहू कैसी है..? तुम तो आती ही नहीं, आज कैसे आना हुआ।"

उर्मिला बोली,

"क्या करूं चाची समय ही नही मिलता। आज कुछ काम से आई हूं।"

चाची बोली, "बोल.. बहू क्या है..?

उर्मिला ने बताना शुरू किया,

"वो हम सब कटास राज दर्शन को जा रहे हैं। अपने पीछे घर की देख भाल के लिए आपसे सहयोग लेने आए हैं। अगर आप सब देख ले तो बड़ा अच्छा हो। हम निश्चिंत हो कर तीर्थ यात्रा पर जा सके।"

चाची बोली,

"देख बहू अब मुझसे तो कुछ होता नहीं। देखती ही है तू। सारा दिन खटिया पर पड़ी रहती हूं। अब ये तो बेटे बहू ही जानें वही बता पाएंगे। मेरा भी तो सारा काम उन्ही के भरोसे रहता है।"

फिर चाची बोली,

"पर बहू …! वो तो बहुत ही दूर है सुना है। माता वैष्णो देवी से भी दूर है। तुम सब जाओगे कैसे..?"

उर्मिला बोली,

"चाची..! वो मेरी सहेली सलमा और उसके पति शमशाद हुसैन के घर जो आए हुए है। वो वहीं से आए हैं। उन्होंने ही साथ चलने की जिद्द की है। तभी तो जा रही हूं इतनी दूर।"

सलमा का नाम सुनते ही चाची का मुंह कसैला हो गया। वो मुंह बना कर बोली,

"अब तुम लोगों के तो अलग ही रंग ढंग हैं। घर में कोई बड़ा बुजुर्ग तो है नही। बिना सूढ़ के हाथी बने फिरो। कोई नही मिला इतनी बड़ी दुनिया में इनको सखिऔता निभाने को…! यही लोग मिलें हैं।"