Kataasraj.. The Silent Witness - 51 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 51

भाग 51

इधर उर्मिला और सलमा अपनी अपनी बातें एक दूसरे से बताने में व्यस्त हो चुकी थी। उर्मिला का चाची पुराण शुरू हो चुका था। कैसे कैसे तमाशे वो करती है,सलमा से सब कुछ बता कर अपने दिल का गुबार हल्का कर रही थी। ज्यादा लंबा सफर इस वाली गाड़ी से नहीं करना था। ये लखनऊ तक पहुंचाएगी उसके बाद लखनऊ से सीधा एक्सप्रेस गाड़ी मिल जानी थी। जो सीधा मंडरा तक पहुंचा देगी। फिर वहां से चकवाल बस करीब बीस किलोमीटर ही है। फिर जाने में आराम रहेगा। इस लिए लखनऊ तक का सफर बैठ कर ही करना था। गाड़ी में भीड़ भी थी इस लिए आराम से लेटने के बारे में सोचना भी फिजूल था।

थोड़ी देर बाद बाहर देखते देखते हुए पुरवा की आंखों में नींद तैरने लगी। वो वहीं खिड़की का टेक लगाए लगाए कब सो गई पता ही नही चला।

इस बीच उर्मिला और सलमा का बातों का सिलसिला लगातार चलता ही रहा। वो बिना विराम लिए सफर का लुत्फ उठा रही थीं।

कई खोमचे वाले आ आ कर पुकार लगा लगा कर जा रहे थे। कोई मुलायम खीरा ले कर आता तो कोई ककड़ी। गरमी की शुरुआत होते ही इसकी आवक शुरू हो गई थी। कोई गरमा गरम चाय की पुकार लगता हुआ गुजरता, कोई भूनी मूंगफली तो कोई कच्चा चना ले कर गुहार लगाता मसाले दार चना खा लो मसाले दार चटपटा चना। पर साजिद और अशोक जो किनारे की ओर बैठे हुए थे। उनको तुरंत ही मना कर देते।

तभी एक बहुत छोटे से स्टेशन पर गाड़ी कुछ सेकंड के लिए रुकी। जब चली तो एक करीब पैतालीस अड़तालिस बरस का अधेड़ गले में एक बांस की फैली हुई सी टोकरी टांगे चढ़ा। उसकी उंगली एक करीब छह वर्ष की बच्ची थामे हुए थी।

जब वो अमन के करीब से गुजरा तो उसका पैर अमन के पैर पर पड़ गया। अमन जो आराम की मुद्रा में ऊपर की ओर सिर टिकाए आंखे बंद किए हुए आरिफ के साथ बिताए हुए पल को याद कर रहा था। बार बार वहीं उनके घर की बातें याद आ रही थी। उनके साथ घूमना खाना पीना, सारी मौज मस्ती याद आ रही थी। जब अम्मी के साथ आया था तो वो बेमन से ही आया था। पर उसे यहां इतना अच्छा लगा सबसे मिल कर, इतना मजा आया आरिफ मामू के निकाह में कि इसकी कल्पना भी उसने नही की थी।

तभी अमन के पैर पर उस आदमी के पैर पड़ गया। अमन पैर कुचलते ही दर्द से तिलमिला गया और उसके मुंह से बेसाख्ता आह..! निकल पड़ा। आह..! निकलने के साथ के साथ ही उधर देखा और गुस्से से बोला,

"अंधे हो क्या..? दिखता नही ..! मेरा पैर कुचल दिया।"

फिर अपना पैर सहलाने लगा।

वो व्यक्ति माफी के अंदाज में हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। और लगभग घिघियाते हुए माफी मांगने लगा और बोला,

"ठीक कह रहे हैं आप बाबूजी…! हम अंधे ही हैं। नही तो जान बूझ कर आपका पैर थोड़े ना कचर देते।"

अमन की आह ने साजिद का ध्यान उस और खींचा।

जब उन्होंने उस आदमी की ओर देखा तो उसकी धंसी हुई मुलमुलाती आंखे उसकी बात की सच्चाई की गवाही दे रही थीं। फटी हुई पैबंद लगी कमीज और मैली धोती पहने उस की हालत दयनीय थी। साजिद ने गौर से उसे देखा और अमन को डांटते हुए बोले,

"अमन.. बेटा..! ये क्या है..? खुद पैर बाहर किए हुए बैठे हो और डांट इस बिचारे को रहे हो।"

अमन को भी अपनी गलती का एहसास हुआ। एक छोटी सी बच्ची के सहारे बिचारा चल रहा है, इतनी भरी हुई डलिया ले कर। कोई बड़ी मजबूरी होगी जो बेचारा इस हालत में मूंगफली को गाड़ी में बेचने को मजबूर है।

अमन बोला,

"चचा आपकी गलती नही है, मेरी ही है। आप क्यों इतना खतरे वाला काम कर रहे है। जब दिखता नही है तो ट्रेन में चढ़ना उतरना खरनाक हो सकता है।"

साजिद ने उस आदमी को सहयोग करने की गर्ज से उससे कहा,

"ऐसा करो भाई..! एक एक ठोंगा सब को दे दो। हम भी तुम्हारी मूंगफली का स्वाद चखे।"

वो आदमी तो देख नही सकता था कि कितने लोग हैं..। इस लिए साथ की बच्ची से बोला,

"मुन्नी..! दे दे बिटिया सभी को।"

उस बच्ची ने सभी को एक एक ठोंगा बारी बारी से सभी को थमा दिया। पुरवा सो रही थी। इस कारण उसके लिए सलमा ने ले कर रख लिया।

साजिद बोले,

"अमन बेटा..! इनको पैसे दे दो। चलो भाई खा कर देखते हैं कि इनके मूंगफली में स्वाद है या नही, कुरकुरी है या नही।"

अमन ने पैसा पूछा और अपनी जेब से निकाल कर दे दिया।

अब ट्रेन चल रही थी इस लिए वो आदमी वहीं खड़ा रहा।

अमन ने सामने की खाली सीट पर इशारा किया बच्ची को और बोला,

"मुन्नी तुम भी बैठ जाओ और इन्हे भी बिठा दो। वैसे कौन हैं ये.. तुम्हारे..?"

वो बच्ची शरमाते हुए धीरे से बोली,

"दादा।"

अमन को जिज्ञासा थी उस आदमी की मजबूरी कर बारे में जानने को। आखिर किस लिए वो जान जोखिम में डाल कर एक छोटी बच्ची के सहारे गाड़ी में चढ़ उतर कर सौदा बेच रहा है।

अमन ने मूंगफली छिली और खाते हुए बोला,

"चचा. !आपकी मूंगफली में तो स्वाद है। बहुत ही बढ़िया भूनी हुई है।"

अब वो आदमी खुश हो कर मुस्कुराते हुए बोला,

"बेटा. ! इसकी दादी है ना… वही भून भान कर ठोंगे में बंध कर देती है। बड़ा अंदाज है उसे। ना तो जलती है ना ही कच्ची रहती है उसकी भूनी मूंगफली।"

अब साजिद ने उससे पूछा,

"बड़ा खतरा है भाई इस तरह चढ़ने उतरने में। आप ना किया करो ये काम। आप तो घर बैठो ..आराम करो। ये तो पोती है ना.. इसका बाप कोई काम काज नही करता क्या..?"

अब उस आदमी की कोटर नुमा आंखे छलक उठी। उन्हे पूछते हुए बोला,

"साहब…! जब होगा इस दुनिया में तब मेरी मदद करेगा ना..। जब है ही नही तो मेरा सहारा कैसे बनेगा..?"

साजिद के मुंह से ओह निकाला।

अब अमन ने पूछा,

"क्या हुआ था चचा उनको..?"

वो आदमी बोला,

"क्या बताऊं बेटा..! ये जुल्मी फिरंगी है ना.. इन्होंने ही मेरे बुढ़ापे का सहारा.. इस मासूम बच्ची के सिर से पिता का साया छीन लिया। वो गांधी बाबा के आह्वान पर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गया था।"

फिर वो दो घड़ी रुका।