Kataasraj.. The Silent Witness - 57 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 57

भाग 57

अमन ने बड़े ही चाव से उर्मिला का दिया खाना पेट भर के खाया। वहीं पुरवा को तीखा-तीखा मसाले दार छोला और खस्ता पूड़ी भा रही थी। वो अपनी अम्मा के हाथ का बाटी चोखा खा-खा कर ऊब गई थी।

सभी के खा लेने के बाद उर्मिला ने पुरवा से कहा कि वो जाए सारे बरतन नल पर जा कर धो डाले।

पर सलमा ने ये कह कर रोक दिया कि वो बच्ची है उर्मिला..! उसे सफर का लुत्फ लेने दो। चलो.. हम और तुम मिल कर साफ कर लेते हैं।

फिर वो दोनों सारी झूठी थालियां ले कर नल पर चली गई। उसे साफ का के झोले में रक्खा। फिर आस-पास की जगह का मुआयना करने को टहलने लगीं। उनको खाने में कुछ ज्यादा वक्त लगा था। पर साजिद और अशोक खाने के तुरंत बाद ही लेटे और दो मिनट के अंदर उनकी नाक बजने लगी थी। उनके खर्राटे सुन कर सलमा और उर्मिला एक दूसरे को देख कर हंस पड़ीं। सलमा बोली,

"जितने दिन यहां शमशाद के घर रहे चैन से सोने को मिला। अब आज भर और सो लें। घर पहुंचते ही फिर भाग दौड़ शुरू हो जाएगी फिर मौका नहीं मिलेगा।"

उर्मिला बोली,

"सही कह रही हो सलमा बहन..! घर-गृहस्ती, खेती -बारी में पुरवा के बाऊ जी भी पिसे रहते हैं। चैन की नींद तो नसीब ही नही होती। रात को भी कई बार जानवरों के बाड़े में देखने जातें हैं कि कोई जंगली जानवर सियार,लकड़बग्घा ना घुस जाए। आज देखो कितनी जल्दी सो गए।"

पुरवा और अमन को दोनों ने सहेज दिया कि तुम लोग सामान का ख्याल रखना, आवारा कुत्ते भी आस-पास घूम रहे थे, उनको सामान के पास मत आने देना। इस हिदायत के साथ दोनो प्लेटफार्म के इस और से उस और घूम कर देखने कहीं।

कोई दूसरी गाड़ी आने वाली थी हलचल तेज हो गई। कुली और यात्री इधर उधर भागने लगे। पुरवा जो सामान का टेक लगा कर अधलेटी सी हुई थी। इस आपा-धापी को ठीक से देखने के लिए उठ कर बैठ गई। अमन को उसकी ये उत्सुकता बड़ी ही बे-मतलब लगी। आराम में खलल डाल कर क्या उसे देखना था। क्या नया था जिसे उठ कर देखा जाए।

उसने पुरवा की ओर देखा और पूछा,

"तुम पहली बार सफर कर रही हो ट्रेन से..?"

पर पुरवा ने कोई जवाब नही दिया। अमन के सवाल को उसने अनसुना कर दिया।

अमन को लगा शायद वो सुन नहीं पाई होगी। इस लिए फिर से पूछा।

पर पुरवा ने फिर से ऐसा जाहिर किया कि उसने सुना ही नहीं। कटी कटी बैठी रही। -

अमन अपने सवाल पर पुरवा की बेरुखी से थोड़ा आहत हो गया। और उठ कर वो बिल्कुल सामने बैठ गया और पूछा,

"हेलो..! यहां और कोई है जो मैं उससे कुछ पूछ रहा हूं। तुम बता नही सकती हो.…! मैं कोई गुंडा-मवाली हूं जो मुझसे बात करने से तुम्हारी ये जो बित्ती सी नाक है और बित्ति हो जायेगी।"

अब पुरवा का खुद को रोकना मुश्किल हो गया। पूरा गांव उसके नाक की ही तो तारीफ करता था कि जब वो दुल्हन बनेगी गांव की औरते उसका घूंघट उठाएंगी तो पहली नजर नाक पर ही जा कर ठहरेगी। इतनी सुतवा नाक है उसकी। और…. और .. ये अमन.…. क्या समझता है खुद को.…! जो उसकी नाक को बित्ति सी कह रहा है। उसे बिलकुल पसंद नहीं था कि कोई उसकी नाक का मजाक उड़ाए।

गुस्से को काबू में करने की पूरी कोशिश करते हुए अपनी उंगली उठा कर बोली,

"देखिए..…! आप चाहे जितना भी अम्मा और बाऊ जी के खास हो। पर मेरी नाक पर तो भूल कर भी मत जाइएगा। (अपनी पहली उंगली से नाक के नीचे सीधा घुमाते हुए बोली) हमको बिलकुल भी पसंद नही है। हां… .! निकले है पहली बार घर से.. हम। पहली बार ही गाड़ी में भी बैठे हैं। हम थोड़ा गरीब हैं, हमारे पास रुपए नही हैं ना इसलिए। तो क्या… उससे आपको मेरा मजाक उड़ाने का अधिकार मिल गया।"

पुरवा के इस अंदाज से अमन घबरा गया। अगर कहीं अम्मी से शिकायत कर देगी ये तो फिर अम्मी बहुत ज्यादा गुस्सा होगी। ये जरा सी बात अमीरी-गरीबी की लाइन खींच देगी उसका जरा सा भी अनुमान नही था अमन को। इस लिए बात संभालना बहुत जरूरी था। वो पुरवा का समझाने का प्रयास करते हुए बोला,

"नही .. नही.. पुरवा..! तुम मेरी बात समझी नहीं हो इस लिए गुस्सा हो रही है। मेरा वो मतलब नहीं था। मैं तो बस तुम्हारी हर चीज के लिए जिज्ञासा देख कर पूछ रहा था। (फिर अपनी हथेली पर हाथ मारते हुए बोला) सही बात है.. बिलकुल सही बात है.. कोई रोज रोज थोड़ी ना ट्रेन से आता जाता है। मैं भी बस कुछ बार ही आया गया हूं। वो जब कोई मेरी बात का जवाब नही देता ना तो मुझे बहुत बुरा लगता है। बस.. इसी कारण से कुछ मुंह से निकल गया। मुझे माफ कर दो।"

पुरवा को हंसी आ गई अमन के इस तरह घबराने से। पर उसे अंदर ही दबाते हुए बोली,

"चलिए.. कोई बात नही…पर आगे से ध्यान रखिएगा कि मेरी नाक के बारे में मुझे कुछ मत कहिएगा। (फिर उंगली पर गिनाते हुए बोली) मुझे अंधी, कानी, लंगड़ी लूली, चाहे जो कहिए पर …किस पर ना जाइए…?"

अमन जल्दी से बोला,

"नाक पर… नाक पर..। तौबा-तौबा..(अमन अपने दोनो कानों को हाथ लगाते हुए बोला) जो फिर मेरी जुबान से आपने नाक शब्द सुना।"

"अच्छा..! अब तो ठीक है ना।"

अमन ने पुरवा से पूछा।

पुरवा ने मुस्कुरा कर सिर हिला दिया। बस इतना काफी था इन जनाब के पर कतरे के लिए। कुछ ज्यादा ही होशियार बन रहे थे। उसने मन ही मन सोचा।

अमन बोला,

"तो अब हम दोस्त हो सकते हैं…?"

पुरवा को सोचते देख कर फिर बोला,

"वो …गहरे वाले नही…। बस थोड़े थोड़े से।"

उंगलियों से थोड़ा का इशारा कर के पूछा।

पुरवा को इस तरह अमन का थोड़ा थोड़ा पूछना हंसा गया। अभी तक रोक हुए थी बड़ी कोशिश से।

"हां" से सिर हिला कर वो उसी तरह उंगली दिखा कर बोली,

"पर.. थोड़ी-थोड़ी ही।"

पुरवा की इजाजत मिलते ही अमन ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया और बोला,

"तो .. फिर आज से हम दोस्त हैं, पर थोड़े-थोड़े वाले।"

कुछ पल पुरवा झिझकी एक पराए लड़के का हाथ कैसे छुए..! पर अगर नही हाथ मिलाएगी तो ये उसे गंवार समझेगा। इस कारण धीरे से पुरवा ने हाथ झिझकते हुए आगे कर दिया।