Kataasraj.. The Silent Witness - 61 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 61

भाग 61

अशोक के समझाने से उर्मिला और पुरवा ने खुद को नियंत्रित किया और थोड़ी सामान्य हुई।

अशोक उन दोनों को समझा कर खुद आगे बढ़ आया साजिद के साथ हो लिया।

चमन घर पर ही था, वो काम से वापस आ गया था। थका हुआ था इस कारण जरा आराम करने मेहमान खाने में ही सोफे पर लेट गया था।

बाहर बागीचे में हलचल और और बोलने की आवाज सुन कर उठ कर बाहर आया ये पता करने कि क्या बात है.।

बाहर आकर अम्मी-अब्बू पर निगाह पड़ी। उन्हें देखते ही चमन खुशी से बोल पड़ा,

"अरे..! अब्बू-अम्मी आप लोग..! वापस आ गए..! बता दिया होता तो मैं लेने आ जाता आपको।"

इतना पूछते हुए उसकी निगाह साथ खड़े हुए एक अजनबी आदमी औरत और लडकी पर पड़ी।

तभी अमन पीछे से आया और चमन के गले लग कर उसे चौंका दिया, तेज आवाज में बोला,

"भाई जान..! देखिए हम सब आ गए।"

चमन ने भी उसे अपने बाहों में कस कर पकड़ लिया।

सलमा हंसते हुए बोली,

"अब दोनों भाइयों का भारत-मिलाप हो गया हो तो हम अंदर चलें।"

चमन ने अमन को खुद से अलग कर सलमा के पास आया और अपनी प्यारी अम्मी को भी गले लगाया। और प्यार जताते बोला,

"कितने दिन लगा दिए अम्मी आपने….! आप तो वहां जा कर जैसे वहीं की हो कर रह गईं थी। आपका वापस आने का दिल ही नही कर रहा था…? अच्छा किया अम्मी जो आप आ गई। हमें आपकी बहुत याद आती थी।"

सलमा ने प्यार से चमन के गालों पर थपकी लगाया और बोली,

"अच्छा .. अच्छा..! बड़ी यद अम्मी की आती थी तुझे..! पर तुझे अकेला थोड़े ही छोड़ कर है थी। थी तो मेरी बहू तेरी देख-भाल को।"

चमन दुलराते हुए बोला,

"अब मेरी अम्मी की तरह कोई थोड़े ना ख्याल रख सकता है।"

सलमा बोली,

"अच्छा..! अच्छा..! अब बस कर…. घर में अंदर तो घुसने दे। बहुत थक गई हैं तेरी अम्मी।"

चमन हैरान था कि अम्मी सब कुछ बोल रही है पर ये किसे साथ ले कर आई है, ये क्यों नही बता रही हैं।

सलमा और साजिद अशोक उर्मिला और पुरवा को साथ ले कर अंदर मेहमान खाने में आ गए।

सलमा ने सभी को अच्छे से आराम से बैठने को कहा और चमन से बोली,

"गुड़िया.. और बहू कहां हैं..? उन्हें बोलो चमन बेटा कि कुछ चाय पानी की इंतजाम करें।"

"जी अम्मी..! अभी बोलता हूं। वो दोनों पीछे के हाते में है। वहीं मुन्ना खेल रहा है ना उसी के पास हैं।"

इतना कह कर चमन अंदर चला गया।

पीछे हाते में आकर उसने बहन गुड़िया और बीवी सीमा से बोला,

"गुड़िया .. सीमा..! मुन्ना को मुझे दो। अम्मी-अब्बू और अमन शमशाद भाई के यहां से वापस लौट आए हैं। उनके साथ एक लड़की और आदमी औरत भी हैं। अम्मी ने कुछ चाय-पानी बना कर अंदर भिजवाने को बोला है।"

चमन ने मुन्ना को गोद में ले लिया और फिर से वापस मेहमान खाने में लौट आया। मुन्ने को ला कर सलमा की गोद में दे दिया।

तभी अमन हाथ मुंह धो कर वापस आ गया। मुन्ना को देखते ही सलमा की गोद से उसे ले लिया और उसे अपने सीने से लगा कर बोला,

"अम्मी..! आप इसे मुझे दो। सबसे ज्यादा अगर मुझे किसी की कमी खली इस्माइल पुर में तो वो थी मुन्ने की। चल मेरे प्यारे भतीजे..! अब हम तुम अपने कमरे में खेलें।"

मुन्ना भी अमन की गोदी में आ कर खुशी से खिलखिलाने लगा। अमन उसे ले कर अंदर अपने कमरे में चला गया।

पुरवा सहमी सी बैठी आंखें फाड़े हैरत से कमरे की एक एक चीज का मुआयना कर रही थी। मोटी कालीन गद्दे से भी नरम थी, जिस पर पैर रखते ही धंस जा रहे थे। ऊपर झाड़-फानूस से निकलती रंग-बिरंगी रौशनी बेहद लुभावनी लग रही थी। एक ओर नक्काशी-दार मेज पर ग्रामोफोन रक्खा हुआ था। दीवारों पर कई जंगली जानवरों के सिर टंगे हुए थे। जो बेहद सजीव लग रहे थे। सब देख चुकने के बाद वो सोफे के गद्दे को अपनी उंगली धंसा धंसा कर अनुमान लगाने लगी कि इसने कितने नीचे तक रूई भरी हुई है।

तभी गुडिया और बहू सीमा सिर का दुपट्टा संभाले हुए चाय-पानी और कई तरह की खाने-पीने की चीजों को बड़ी सी थाल से सजाए हुए अंदर आई।

उनको मेज पर रक्खा और सीमा तो अपनी अम्मी के गले लग गई। पर सीमा संकोच से सिर्फ आदाब अम्मी जान ही बोल पाई। क्योंकि साथ में कुछ और लोग भी थे जिनसे उसका कोई परिचय नही था।

सलमा ने गुड़िया सीमा और चमन का परिचय अशोक, उर्मिला और पुरवा से करवाते हुए बोलीं,

"बच्चों..! ये मेरी बहुत पुरानी सबसे अजीज सहेली उर्मिला है। ये इनके शौहर अशोक और ये इनकी बेटी पुरवा है। ये हमारे बहुत इसरार पर आए हैं। इन्हें बाबा कटास-राज के दर्शन करना है, इसी लिए आए हैं। इनकी सुख-सुविधा आराम का ध्यान तुम दोनो को मिल के रखना है। इन्हें कोई भी परेशानी नही होने पाए…! ठीक है..?"

दोनों से पूछा।

दोनो ने "जी अम्मी..! हम पूरा ख्याल रखेंगे।"

कह कर सलमा को आश्वस्त किया।

हल्की-फुल्की बात चीत के बीच चाय-पानी समाप्त हुआ।

सलमा ने उर्मिला और अशोक से कहा,

"आइए अशोक जी..! आपको आपका और उर्मिला का कमरा दिखा दूं।"

फिर नौकरानी से समान लाने को बोल उन्हें साथ ले कर अपने कमरे के सामने वाले कमरे में ले आई। वैसे तो गुसलखाना बाहर और पीछे हाते में बना हुआ था। पर इस कमरे में आने जाने वाले मेहमानों की सुविधा के लिए कमरे से लगा हुआ गुसलखाना भी बना हुआ था। एक बड़े पलंग के अलावा एक छोटा पलंग भी लगा हुआ था।

उनको कमरा दिखा कर सलमा ने उर्मिला से कहा,

"तुम सब इस कमरे में आराम से रहो। सामने वाला कमरा मेरा है और बगल वाला कमरा गुड़िया का है। कोई भी जरूरत हो बिना संकोच हमको आवाज लगा देना। पुरवा चाहे तुम्हारे साथ रहे चाहे तो गुड़िया के साथ उसके कमरे में भी रह सकती है।"

नौकरानी से सारा सामान कायदे से रखवा कर सलमा बोली,

"उर्मिला..! तुम लोग भी लंबे सफर से थक गए होगे। ये इंजन का सारा कोयला कानों और नाकों में घुस गया है। अच्छे से हाथ-मुंह धो कर कपड़े बदल लो तुम सब और आराम करो। इसे अपना ही घर समझो। अब खाने के समय मिलते हैं।"

इतना कह कर सलमा कमरे से बाहर चली गई।