Kataasraj.. The Silent Witness - 63 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 63

भाग 63

अशोक ने गुड़िया से कहा,

"ठीक है बिटिया…. हम अभी सब को साथ ले कर आ रहे हैं।"

गुड़िया के वापस जाते ही अशोक मुड़ा और उर्मिला और पुरवा से बोला,

"चलो उठो भाई तुम दोनों..! अब बाकी का आराम वापस आ कर कर लेना। गुड़िया बिटिया को सलमा बहन ने हमको खाने के लिए बुलाने भेजा था। उठ बिटिया..! वो हमारा ही इंतजार कर रहे हैं।"

उर्मिला और पुरवा उठ कर बैठ गई। उर्मिला ने अपनी लेटने से अस्त व्यस्त हुई साड़ी को ठीक किया और सिर पर कायदे से पल्ला रक्खा और पुरवा को भी अपनी ओढ़नी को ठीक से रखने को बोला। फिर तीनों साथ में बाहर खाना खाने के लिए जहां पर मेज़ लगी हुई थी चल पड़े।

सलमा और साजिद भी बस आकार बैठे ही थे अभी। चमन अमन भी बैठे हुए थे। अमन अभी भी मुन्ना को गोद में लिए उसी में उलझा हुआ था। जैसे इस बच्चे में ही उसकी सारी दुनिया सिमटी हुई हो।

मुन्ना था भी वैसा ही गुलथुला गुलथुला। काजल लगा होने से बड़ी आंखें और भी बड़ी लग रही थी। अमन सलाद की तश्तरी से खीरे का टुकड़ा उठा कर उसके मुंह तक लाता..। और फिर जैसे ही मुन्ना खाने को अपना मुंह खोलता… अमन उसे पीछे खींच लेता। खीरे का टुकड़ा पीछे खींचते ही मुन्ना खिलखिला कर हंस पड़ता।

ऐसा कई बार अमन ने किया। मुन्ना को ना जाने कितना मजा आ रहा था इस खेल में कि उसकी हंसी ही नही बंद हो रही थी। जब कई बार अमन ने किया तो सलमा ने उसे ये कहते हुए मना किया कि अमन .! अब रहने दो बेटा..! ज्यादा हंसाने से बच्चे का पेट फूल जायेगा।

अमन ने जी अम्मी कह कर खीरे का टुकड़ा सच में मुन्ने को खिला दिया।

पर अब मुन्ना खुश नहीं था वो बार बार फिर से वही सब चाह रहा था। अपनी तोतली आवाज में अमन का चेहरा अपने नन्हे नन्हें हाथों से पकड़ कर बोला,

"चाचू…! ऑल…। चाचू..! ऑल।"

अमन उसे बहलाते हुए बोला,

"नही मुन्ना…! अब बस। अब हम खाना खायेंगे।"

अब तक सभी की थाली में खाना परोसा जा चुका था। अमन रोटी का छोटा सा टुकड़ा तोड़ कर उसे दही में डूबा कर मुन्ना को खिलाने लगा। मीठी दही से रोटी मुन्ने को रास आ गई। वो अपने दो चार दातों की सहायता से मुंह में घुला घुला कर उसे खाने की कोशिश करने लगा।

उसे इस तरह खाते देख सभी हंस पड़े।

सलमा हंसी करते हुए बोली,

"इन बुढ़ऊ का खाना तो देखो। अपनी पूरी ताकत लगा दे रहे हैं ये.. जनाब।"

एक बार फिर से सब सलमा की बात पर मुस्कुरा उठे।

चमन खाते हुए सलमा की ओर देखा और मुस्कुरा कर बोला,

"सच में अम्मी जान..! आज ही तो घर घर लग रहा है। वरना रोज तो चुप चाप खामोशी से खाओ और उठ जाओ। बड़ा सूना था घर ., आप सब के बिना।"

सलमा और साजिद बेटे का अपने लिए प्यार देख कर मुस्कुरा दिए।

खाना खत्म होने पर बात चीत करने की बजाय सभी को थकान दूर करने की ज्यादा इच्छा हो रही थी। इस लिए साजिद ने उर्मिला और अशोक को निः संकोच अपने कमरे में जा कर आराम करने के हिसाब से बोले,

"अशोक भाई…! आप सब भी बहुत थके हुए हैं और हम भी। चलिए सोने चलते हैं। आप आराम से सोइए। सुबह मुलाकात होगी।"

अशोक उर्मिला भी तो यही चाहते थे।

इस लिए साजिद के कहने पर वो तुरंत ही पुरवा को साथ ले कर उठ गए कमरे में जाने के लिए।

उर्मिला की आदत रोज सुबह तड़के ही जागने की थी। पर ऐसा ना जाने क्या हुआ कि वो अगले दिन सुबह नही जाग पाई। शायद थकान के कारण ही ऐसा हुआ या फिर बंद कमरे में नही सोती थी कभी इस कारण हुआ।

उसकी नींद तब खुली जब गुड़िया फिर से दरवाजे पर दस्तक दिया। वो भी कई बार। अशोक और पुरवा तो फिर भी सोते ही रहे।

उर्मिला दरवाजे पर थपथपाहट सुन कर चौक कर उठी और जल्दी से दरवाजा खोला। गुड़िया को सामने देख कर बोली,

"अरे..! बिटिया..! तुम परेशान हो गई। जाने कैसे मेरी आंख आज इतने देर तक लग गई।"

गुड़िया ने कमरे में एक निगाह डाली, पुरवा बिंदास तरीके से हाथ पैर फैला कर सो रही थी। उसे इस तरह देख कर वो मुस्कुरा उठी और फिर उर्मिला से बोली,

"मौसी .. वो बाहर बगीचे में अम्मी अब्बू चाय पर आप सब का इंतजार कर रहे हैं।"

उर्मिला जल्दी से बोली,

"हां बिटिया..! हम अभी आते हैं।"

गुड़िया वापस लौट गई।

उर्मिला ने अशोक को आवाज लगाई और पुरवा को झिझोड़ कर उठने की कोशिश की।

अशोक तो तुरंत जाग गए और हाथ मुंह धोने चले गए। पर पुरवा पर कोई असर नहीं हुआ।

उर्मिला के ये कहने पर कि सलमा चाय पीने को बाहर बगीचे में बुला रही है तो वो नींद में ही बोली,

"अम्मा ..! सोने दो ना मुझे। नही पीनी चाय वाय हमको।"

गुस्से से बात नहीं बनते देख उर्मिला ने स्वर में नरमी डाल कर बोली,

"उठ जा बिटिया..! वो क्या कहेंगे..? चल बस चाय पी कर चली आना।"

पुरवा ने तकिए में सर घुसते हुए कहा,

"अब ज्यादा हो उनको तो कह देना मेरे लिए यहीं भिजवा दें।"

फिर से पुरवा सो गई।

लाचार उर्मिला बेटी की इस हरकत पर भुनभुनाती हुई तरो ताजा होने चली गई। अशोक निकल आए थे।

वो दोनों बगीचे में आए तो चाय रक्खी हुई थी।

उर्मिला तो बिना नहाए पानी भी नहीं पीती थी। इसलिए जल्दी से उसने दो मग पानी बदन पर डाल लिया था।

सिर्फ अशोक और उर्मिला की देख सलमा ने पूछा,

"उर्मिला..! पुरवा नही आई…? वो कहां हैं..?"

उर्मिला झिझकते हुए बोली,

"सलमा बहन..! वो कुछ ज्यादा ही थकी हुई थी। इस लिए जागी ही नही।"

साजिद बोले,

"तो फिर वो कैसे चाय पी पाएगी मेरी बिटिया..!"

अब उर्मिला कैसे बोले कि उस ढीठ ने कमरे में ही भिजवाने का हुकुम सुनाया है।

सलमा ने इधर उधर देखा तो कोई दिखा नही। चमन चाय की चुस्की के साथ हरिजन दैनिक पढ़ रहा था। तभी अमन एक बड़े से कप में चाय ले कर आता हुआ दिखा। वो तुरंत उससे बोली,

"अमन बेटा..! जाओ जरा गुड़िया से बोल कि महाराज जी से ले कर एक कप चाय पुरवा बिटिया को कमरे में दे आए।"