Kataasraj.. The Silent Witness - 64 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 64

भाग 64

अमन ”जी अम्मी.. जान..! अभी जा कर बोलता हूं मैं…।"

कह कर अमन चाय का कप लिए वापस अंदर लौट गया।

अमन बावर्ची खाने में गया और महाराज जी से एक कप चाय और देने को बोला।

आस पास देखा तो गुड़िया कहीं नजर नहीं आई। दो बार जोर से "गुड़िया…! गुड़िया..!" आवाज भी लगाई पर गुड़िया जाने कहां व्यस्त थी कि उसकी आवाज नहीं सुन रही थी।

अब अमन कप थामें असमंजस में खड़ा रहा कि इसका क्या करे..? गुड़िया तो कहीं नजर नहीं आ रही। क्या फिर से वापस बगीचे में जा कर अम्मी को बताए..! फिर उसने सोचा एक कप चाय ही तो देनी है, इसमें कौन सी बहुत बड़ी बात है। ये तो मैं भी दे सकता हूं। आखिर रास्ते में ही तो कमरा पड़ता है।

ऐसा सोच कर वो बावर्ची खाने से चाय का कप थामें निकाला और उस कमरे की ओर चल पड़ा, जिसमे पुरवा थी।

अमन ने ये नही सुना था कि वो अभी सो रही है।

अमन ने धीरे से दरवाजा एक हाथ से थपथपाया। पर आने की कोई आहट नही हुई। फिर से थाप दिया दरवाजे पर। पर इस बार भी कोई आहट नही आई उठ कर आने की।

अब अमन "पुरवा..! " आवाज लगाते हुए धक्का दे कर दरवाजा खोला और अंदर आ गया।

पलंग पर नजर गई तो देखा पुरवा पेट के बल लेटी तकिए में मुंह धंसाए हुए। उसके लंबे स्याह बाल पूरी तकिया पर फैले हुए थे। आधा चेहरा ही नजर आ रहा था। अमन पुरवा को देखते ही ठगा सा रह गया। ऐसा लग रहा था जैसे दुग्ध धवल आधा चांद स्याह बादलों के बीच से झांक रहा हो।

अमन सम्मोहित सा उसकी ओर देखता ही रह गया। वो बिलकुल ही भूल गया कि वो किस काम से आया था यहां पर।

उसका खुद पर कोई काबू नही रहा। चाय का कप एक हाथ में थामें वो पलंग पर किनारे बैठ गया और पुरवा के चेहरे से बिखरे बालों को हटाने लगा।

पुरवा गहरी नींद में थी। पर उसे अमन के छूने से नींद में भी महसूस हो गया कि ये उंगलियां, ये छुअन अम्मा या बाऊ जी की नही हैं।

उसने अलसाये हुए ही आंखे खोली कि कहीं सलमा मौसी तो नही…!

पर जैसे ही पलकें कुलीन सामने अमन को देख जैसे उसे बिजली का झटका लगा।

वो तुरंत ही उठ कर बैठ गई और हैरानी से बोली,

"तुम…! यहां क्या कर रहे हो…?"

अमन अपनी चोरी पकड़ी जाने पर झेंप गया और चाय का कप आगे कर के बोला,

"वो तुम सो रही थी ना। तो अम्मी ने बोला कि गुड़िया से बोल दूं वो तुमको चाय दे आए। पर गुड़िया कहीं दिखी ही नही। इस लिए मैं ही ले कर आ गया। लो पकड़ो अपनी चाय।"

चाय थामते हुए पुरवा का ध्यान अपनी कमीज पर गया। वो बिना ओढ़नी के इस कमीज में अमन के सामने शर्म से झुका जा रही थी। अपने एक हाथ से बालों को आगे कर अपने बदन को ढकने की नाकाम कोशिश की।

अमन बोला,

"कैसा लग रहा है यहां पुरवा..? चाय कैसी बनी है..?"

पुरवा ने एक घूंट पिया और बोली,

"अच्छा लग रहा है, चाय भी अच्छी है।"

अमन पुरवा को बार बार बालों को आगे करते देख समझ गया कि वो बिना ओढ़नी के उसके सामने बैठी है, उसे अटपटा लग रहा है, इसीलिए शरमा रही है। वो सामने अरगनी पर पड़े उसके दुपट्टे को उठाया और खोल कर उसे पुरवा के दोनो कंधे पर कायदे से फैला दिया। और बोला,

"ओह..! तुम इतना मत शरमाओ पुरवा..! अपने इस थोड़े थोड़े दोस्त से। आराम से चाय पिओ और चाहो तो फिर से एक नींद ले लो। क्योंकि अभी फिलहाल कोई इधर नही आयेगा। सब बातों में व्यस्त हैं।"

फिर उठ खड़ा हुआ जाने को और बोला,

"अच्छा मैं चलता हूं। तुम आराम करो।"

अमन ये कहते हुए कमरे से बाहर निकल गया।

अमन के जाते ही पुरवा ने चाय खत्म कर के कप को पलंग के माथे पर रक्खा और खुद अमन की नेक सलाह को अमल कर के फिर से सोने के लिए लेट गई।

आंखे बंद करते ही अमन का मुस्कुराता हुआ चेहरा उसके उसकी मुंदी पलकों में उभरने लगा। उसने मुस्कुरा कर तकिए को भींचा और सोने लगी।

मस्त मौला अमन वापस बगीचे में आ गया। यहां सब का अपना अपना गुट बन गया था। अब्बू जान अशोक चच्चा के साथ व्यस्त थे तो अम्मी उर्मिला मौसी को अपने लगाए पौधे घुमा-घुमा कर दिखा रही थीं। उसने मन में सोचा… काश,.. वो भी..!

आज का पूरा दिन ऐसे ही हल्की-फुल्की बातों से निकल गया। अब्बू को अपना कारोबार देखना भी जरूरी था। उन्होंने कल का कार्यक्रम चोवा सैदान शाह का बना लिया। जब से इस्माइल पुर गए थे। कोई भी वहां नही गया था। चमन यहां का ही संभाल ले यही उसके लिए बहुत था।

पर जब सलमा के आगे अपनी कल चोवा सैदान शाह जाने की बात रक्खी तो सलमा ने उसे तुरंत ही सिरे से खारिज कर दिया। उसके खारिज करने की वजह थी कि अभी कल ही तो आए है हम सब और कल ही जाने को बोल रहे है ये। अब कटास राज वहीं तो है। इतनी जल्दी जब दर्शन हो जायेगा तो अशोक और उर्मिला फिर हफ्ते भर में वापस भी चले जायेंगे। इस लिए साजिद का कार्यक्रम निरस्त करते हुए बोली,

"आप भी ना अमन के अब्बू..! हड़बड़ाहट में कार्यक्रम बना लेते हैं। अभी दो चार दिन यहां का आप कारोबार देख भाल लीजिए। मैं भी उर्मिला को अपने खानदान वालों से मिलवा दूं। यहां जो गणेश जी का मंदिर है उसके दर्शन इन्हें करवा दूं। फिर इत्मीनान से सब चलेंगे चोवा सौदान शाह। क्या हड़बड़ी है। वहां आराम से अपने बंगले में रुकेंगे हम। आप अपना काम देखना, हम घूमेंगे फिरेगे। कुछ दिन रुक के फिर वापस आयेंगे।

मुन्ना भी बहुत अकेला हो गया था हमारे नही रहने से। अभी फिर चले गए तो वो बहुत रोएगा।"

साजिद बोले,

"ठीक है बेगम.. ठीक है..! आपका हुक्म सिर आंखों पर। वो तो मैंने इस लिए कहा कि एक जगह निपट जायेगा तो फिर इन्हें हिंगलाज माता के दर्शन भी करवा देता।"