Kataasraj.. The Silent Witness - 67 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 67

भाग 67

सलमा जितनी नरमी से बोल सकती थी, पूरी कोशिश करके नानी को समझाते हुए बोली,

"हां.. नानी जान..! मैने आपसे कहा था। पर वो तो निकाह मेरी बहन के बेटे का था। हम वहां गए थे। बहुत दूर है ना इसलिए इतने दिनो तक आपसे आ कर मिल नही सके।"

नानी ने सलमा को खुद से परे धकेल दिया और बिगड़ते हुए बोली,

"अब और क्या बोलूं मैं.. साजिद.. लाला..! देख रहा है अपनी दुल्हन को…! ये आज कल की बहुएं अपने घर की बूढ़ी बुजुर्गों को निरा पागल ही समझती हैं। हां दुलहन..! बूढ़ी जरूर हुई हूं पर पागल नही हूं। जो ये भी ना समझ सकूं कि तुम हमको उल्टा सीधा पढ़ा रही हों।"

साजिद को बड़ा आनंद आ रहा था इन सब में। सब की बोलती घर में बंद करने वाली सलमा की आज बोलती नानी ने बंद कर दी थी।

सलमा बोली,

"नानी .. जान…! आपको कैसे समझाऊं मैं..! मेरा यकीन करिए नही हुआ है अमन का निकाह।"

नानी बिफरते हुए बोली,

"अच्छा..! नही हुआ निकाह…! तो फिर ये कौन खड़ी है..? सिर पर दुपट्टा डाले..? कोई बताए या ना बताए… मेरा दिल सब जान लेता है। ये मेरे छोटे लाला की दुल्हन ही तो है। मुझे सब मिल के छका रहे हो ना..। सब समझती हूं मैं।"

फिर पुरवा को अपने पास आने का इशारा करते हुए बोली,

"इधर आ.. मेरे छोटे लाला की दुल्हन..! तू भी सब से मिल गई है। अभी आए चार दिन नही हुए होंगे तुझे और तू भी मुझे पागल बना रही है।"

जो नानी की बातें अभी तक सबको गुदगुदा रही थीं। ये सुनते ही सब का चेहरा सफेद पड़ गया।

अशोक, उर्मिला और पुरवा की स्थिति बड़ी ही अजीब हो गई। वो कैसे… क्या.. करें कुछ समझ नही आ रहा था। साथ ही सलमा और साजिद भी इस विचित्र हालात से विचलित हो गए।

सलमा को लगा बस … अब बहुत ही गया नानी का इस तरह बौराना। अब उसको प्रतिरोध करना ही होगा।

वो नाराजगी दिखाते हुए बोली,

"नानी.. जान…! ये क्या हरकत है आपकी…? बिना सोचे समझे आप कुछ भी बोले जा रही हो…! बस.. कुछ भी..? जब बोल रही हूं कि नही हुआ अमन का निकाह तो आपको मेरी बात का भरोसा ही नहीं। और ये अमन.. आपके छोटे लाला की दुल्हन नही है। ये मेरी मायके की सहेली उर्मिला की बेटी पुरवा है। ये मेरी सहेली है और ये उसके शौहर अशोक भाई हैं।"

नानी को अफीम की पिनक कुछ ज्यादा ही चढ़ गई थी। वो चिल्ला कर बोलीं,

"तो इस बार मायके से इन्हें सौगात के रूप में ले कर आई है क्या सलमा दुल्हन..? मैं तो गाड़ी की आवाज सुन कर खुश हो गई थी कि मेरे नवासे को आज आखिर कर फुरसत मिल ही गई इस बुढ़िया से मिलने की। पर इसकी दुल्हन के मिजाज के तो क्या ही कहने..! और ये नासपीटा भी चुप चाप इसकी झूठ को शाह दे रहा है। जा… मैं किसी से बात नही करती..। भूंजी…! ओ.. भूंजी..! कहां मर गई..! निकाल सब को मेरे कमरे से। नही देखनी मुझे इन झूठों की शक्ल..। निकालो इन्हें बाहर..। जब ये मान ले कि मेरे छोटे लाला का निकाह हो गया है और ये इसकी दुल्हन है तभी इन्हें कमरे में आने देना।"

इतना कह कर नानी बिना किसी की जाने की प्रतीक्षा किए फुर्ती से अपनी चादर खींच कर सिर से पैर तक ओढ़ कर दीवार की ओर मुंह कर के लेट गई।

और लेटते ही उनकी नाक खर्र… खर्र… फूं… फूं… की आवाज निकालने लगी।

भूंजी साजिद और सलमा से बोली,

"बड़े लाला..! सब कमरे ठीक करने को बोल दिया है। सामान भी रक्खा हुआ है। अब आप सब देख लो कौन सा किसका सामान है।"

फिर सलमा से बोली,

"दुलहन ..! आप सब थके होंगे और मेहमान भी। चलिए आप सब आराम करिए। चाय पानी का बंदोबस्त करवा रही हूं। इनका तो रोज का यही तमाशा है। आप सब के लिए नया है। मेरी तो आदत पड़ गई है। कभी किसी में इन्हें बड़े दद्दा दिखते हैं तो किसी में बेटी दामाद दिखते हैं। फिर उनकी खूब आव भगत करवाती हैं मुझसे। जब दिमाग ठिकाने आ जाता है तो जिसे थोड़ी देर पहले अपनी लाडो बना कर दुलारती है उसे ही लात मार कर भगा भी देती हैं।"

नानी को सबको अपने साथ उनके कमरे से लेकर भूंजी बाहर निकल आई। नानी के कमरे का दरवाजा अच्छे से चिपका दिया। जिससे बिना किसी खलल के वो आराम से सो सकें।

गलियारे से निकल कर लाइन से बने कमरों में सबके रहने का इंतजाम भूंजी ने कर दिया था। साजिद सलमा का वही कमरा था जिसमे वो हमेशा आ कर रुकते थे। इसी से लगा हुआ कमरा अशोक, उर्मिला और पुरवा का था। अमन का कमरा सामने वाला था। उसे वही कमरा पसंद था। इसकी खिड़कियां बाहर की ओर खुलती थी। जिससे ठंडी बयार हमेशा आती रहती थी।

सब को कमरे में पहुंचा भूंजी चाय पानी लाने चली गई। बावर्ची का काम माली ही करता था। वो और उसकी बीवी दोनो मिल जुल कर सुबह शाम खाना पका लेते थे और दिन में बगीचे की देख भाल कर लेते थे। नानी खाती ही कितना थी..! उन्हे तो बस नाम मात्र का ही चाहिए होता था। बाकी तो यही सब लोग ही खाते पीते थे।

माली की बीवी ने हरी चाय और नान खताई बड़ी सी थाली में बना कर सजा दिया था।

भूंजी उसे ले कर उल्टे पांव फिर से उनके कमरे में गई। सलमा का दिमाग उड़ा हुआ था नानी की बातों से। वो ये सोच सोच कर परेशान थी कि अशोक और उर्मिला क्या सोचते होंगे..!

भूंजी उनके कमरे में घुसी तो सलमा को परेशान देख कर बोली,

"दुलहन…! लग रहा आप नानी जान की बातों से परेशान हैं।"

सलमा परेशान स्वर में बोली,

"हां.. बाई जी..! मेरी सहेली क्या सोचेगी..!"

भूंजी बोली,

"नही दुलहन ..! आप परेशान ना हो। जब सुबह पिनक उतरेगी अफीम की ना तो सब ठीक हो जायेगा।"

सलमा बोली,

"सच में बाई जी..!"

भूंजी बोली,

"और क्या..।"

सलमा बोली,

"अच्छा..! तो आप चलिए ये सब ले कर उनके कमरे में। आप ये उनके सामने भी कह देना।"

भूंजी बोली,

"चलिए दुल्हन..! अभी बताए दिए देती हूं।"

इतना कह कर तो थाली संभाले अशोक और उर्मिला के कमरे की ओर सब के साथ चल दी।