Kataasraj.. The Silent Witness - 66 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 66

भाग 66

करीब चालीस किलोमीटर के सफर के बाद वो अपनी मंजिल के करीब थे। शाम का धुंधलका फैल रहा था।

जब मोटर साजिद मियां के नानी के घर के करीब पहुंची।

मोटर एक छोटी पहाड़ी की शुरुआत में दोनो ओर कटे संकरे रास्ते से हो कर आगे बढ़ने लगी। पुरवा अशोक और उर्मिला हैरान थे कि ये कैसा घर है..! एक छोटी पहाड़ी को ही काट कर उसमे एक आलीशान घर बनाया गया था। जो बाहर से ही बेहद आलीशान नजर आ रहा था।

पहाड़ी की शुरुआत में बगीचा था। जैसे जैसे उसकी ऊंचाई बढ़ने लगी वैसे वैसे उसकी गढ़न भी बदलती गई। पहले शुरुआत में आगे ही छोटे छोटे घर पालतू जानवरों के रहने के लिए बने थे। इसके बाद कम ऊंचाई वाली छोटी छोटी कोठरियां बनी थीं नौकर और कामगारों के लिए। उसके बाद बरामदा और सबसे पीछे कमरे बने हुए थे।

बरामदे में पहुंच कर साजिद मोटर का हॉर्न तेजी से बजाने लगे। आस पास मौजूद लोग उसकी आवाज से भागे हुए आए। वो हॉर्न से ही समझ गए थे कि मालिक आए हैं।

पास आ कर अभिवादन कर दरवाजा खोला और साजिद के साथ ही सब लोग नीचे उतर गए। साजिद ने उनमें से एक से पूछा,

"नानी कहां है…? होश में है या अफीम की खुराक ले ली है..?"

नानी को गठिया की जबरदस्त दर्द उठता था। वो किसी भी तेल की कितनी भी मालिश क्यों ना करा लें राहत नहीं मिलता था।

दिन में कई बार मालिश से परेशान हो कर उनकी सेवा करने वाली भूंजी ने अपनी बुद्धि को इस्तेमाल कर एक नया तरीका निकाल लिया अपनी मेहनत को बचाने का। उनके खाने पीने की चीज में बहुत थोड़ा सा अफीम मिला देती। जिससे वो सोती रहती। जब सो जाती तो दर्द से राहत मिल जाता था।

धीरे धीरे वो पूरी तरह भूंजी पर ही मुनहसिर हो गईं। उसी के हाथों का बना खाना उनको भाता था। जैसे जैसे वो इसकी लती होती गईं भूंजी इसकी रकम बढ़ाती गई। आज के दिन ये हालत जी गई है उनकी कि बिना अफीम के दिन शुरू करना भी मुश्किल होता था उनका। घर में सबको बहुत देर में पता लगा। अब इस उम्र में लत का छूटना बहुत मुश्किल क्या असंभव ही था। उनके गुस्से और चीखने चिल्लाने से बचने के लिए खुराक दे देना ही एक मात्र उपाय था।

वो आदमी बोला,

"साहब..! अभी तो थोड़ी देर पहले जागी हैं। आज तो भूंजी से दोपहर में भी मांग लिया था।"

साजिद ने पूछा,

"अपने कमरे में ही हैं ना..!"

वो बोला,

"हां.. साहब..! वहीं हैं।"

साजिद बोले,

"सामान गाड़ी से उतार लो और कमरे में रखवा दो।"

सलमा, अमन, अशोक पुरवा और उर्मिला को साथ ले कर साजिद नानी के कमरे की ओर बढ़ चले।

नानी का कमरा बाहर से पहला ही था।

उन्होंने भी साजिद के गाड़ी की आवाज पहचान लिया था। वो लगातार भूंजी से चिल्ला चिल्ला कर पूछ रही थीं कि कौन आया है रे…! साजिद लाला आया है क्या… और कौन कौन आया है साथ में..?

भूंजी भी नानी से जरा भी नहीं दबती थी, वो अच्छे से इस बात को समझती थी कि नानी उसके बिना नहीं रह सकती..!

इसलिए उसका भी सुर नानी के सुर के साथ ताल मेल करते हुए अक्सर ऊंचा ही लगता था। वो बोली,

"जरा दम ले कर चिल्लाओ अम्मा…! कहीं ऐसा ना हो कि कौन आया ये जाने बिना ही दम निकल जाए और अल्ला मियां से मुलाकात करने चली जाओ। जा तो रही हूं…, अभी देख कर आती हूं। पर हां तब तक रुकी रहना।"

इतना कह कर भूंजी अपनी मस्त चाल से कमर लचकाते हुए बाहर चल दी।

नानी को उसकी ये ठठ्ठा जरा सा भी नही भाता था। इस समय तो बिल्कुल भी नही। वो उसकी हंसी सुन कर चिढ़ गई और भद्दी भद्दी गाली से नवाजने लगीं।

उनकी गालियां भूंजी को प्रसाद सामान ही लगती थी। जब तक नानी को छेड़ कर गालियां ना सुन ले। उसका हाजमा गड़बड़ा जाता था।

अक्सर साजिद और सलमा ही आते थे। इन्ही के आने की उम्मीद भूंजी को इस बार भी थी।

पर बाहर आ कर देखा तो पूरी फौज ही खड़ी थी। वो इतने लोगों को देख कर अचकचा गई। और साजिद सलमा का अभिवादन कर अशोक उर्मिला और पुरवा की ओर सवाल भारी नजरों से देखा। सलमा उसके सवाल समझ गई और अंदर नानी के कमरे की ओर जाते हुए बोली,

"बाई… जी..! आप तीन कमरे तैयार करवा दीजिए। ये हमारे मेहमान है। सामान कमरे में लगवा दीजिए। कुछ दिन रुकेंगे हम सब।"

भूंजी ने "जी दुल्हन..!"

कहा और सबके साथ अंदर नानी के कमरे में आ गई।

नानी का आंख, कान सब जवाब दे गया था। सब की ताकत उनके जुबान में आ गई थी।

ऊंची आवाज में भूंजी ने उनके कान के पास मुंह लगा कर उन्हें बताया,

"अम्मा ..! साजिद लाला, दुल्हन और अमन लाला आए है। साथ में तीन मेहमान भी है।"

पुरवा ने अदब की वजह से अपने सिर पर पल्ला ले रक्खा था।

साजिद और सलमा आए और नानी को गले लगा कर प्यार जताया। उन्होंने दुआओं की झड़ी लगा दी। जब वो बगल हुए तो अमन हंसता हुआ नानी के गले लग गया और उनके गालों को सहलाते हुए बोला,

"मेरी प्यारी नानी जान.…! आपके गाल तो पिछली बार से भी मुलायम महसूस हो रहे है..? क्या लगाया आपने..? मस्का या ग्वार पाठा..?"

नानी ने अमन के गालों पर चपत लगाई और बोली,

"शैतान…! निकाह कर लिया और मुझे बताया भी नही। अब मेरे गालों की फिकर छोड़.. उसके गालों की फिकर कर। वरना जीना दुश्वार कर देगी तेरी बेगम..!"

अमन ने हैरानी से अम्मी की ओर देखा कि ये नानी क्या ऊट पटांग बक रही हैं..?

सलमा ने अमन को शांत रहने का इशारा किया और नानी के करीब आ कर समझाते हुए बोली,

" नानी जान…! किसी का निकाह नहीं हुआ है। और अमन का तो बिल्कुल भी नही। क्या बिना आपको बताए हम आपके लाडले छोटे लाला का निकाह पढ़वा देंगे। भला ऐसा हम कर सकते हैं क्या…?"

नानी को सलमा की सफाई जरा भी रास नहीं आई। वो बिगड़ते हुए बोली,

"अब रहने दे तू दुल्हन..! ज्यादा चालाकी मेरे साथ मत दिखा। पिछली बार जब तुम दोनो आए थे तो यही तो बताया था कि निकाह है, अब कुछ समय बाद आयेंगे।"