Kataasraj.. The Silent Witness - 74 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 74

भाग 74

सलमा के पुरवा के देख-भाल की जिम्मेदारी ले लेने से उर्मिला पुरवा की तरफ से निश्चिंत हो गई और अमन की मदद से हवन के पूर्णाहुति कि तैयारी करने में जुट गई।

थोड़ी ही देर में अपने पैरों में महावार लगा कर, मांग भर कर, नई साड़ी पहन कर उर्मिला तैयार हो गई।

हाथ में पूजा का थाल ले कर साथ में अमन और अशोक को साथ ले कर उर्मिला कटास-राज के मुख्य मंदिर जहां पर शिवलिंग स्थापित था, चल दिए।

दूध का कलश और जल का कलश अमन और अशोक थामें हुए थे।

पुरोहित जी भी पूरी तैयारी करवा कर के आसान पर बैठ चुके थे और इन्ही के आने का इंतजार कर रहे थे।

उर्मिला और अशोक को देख कर बोले,

"आओ पुत्र..आओ..! अब बच्ची की तबियत कैसी है..?"

उर्मिला बोली,

"महाराज..! अभी तो आराम नही हुआ है।"

पुरोहित जी बोले,

"दो तीन खुराक देने के बाद आराम दिखने लगेगा। आफ परेशान मत होइए। आइए हम पूजा प्रारंभ करें।"

इसके बाद पुरोहित जी ने पूजा प्रारंभ कर दी।

पहले जल, फिर दूध, फिर दही, फिर शहद, उसके बाद घी, फिर जल से शिव लिंग का अभिषेक करवाया गया।

फिर गोमुखी शिरिंगी से मंत्रोच्चार के साथ शिव-लिंग के मस्तक पर दूध की पतली धारा अशोक से डलवाने लगे। उर्मिला ने अशोक का हाथ स्पर्श किया हुआ था।

अमन के लिए ये सब कुछ बहुत हैरत भरा और रोमांचक था। इतना विधि-विधान होता है, इसके लिए कितनी मेहनत लगती है, सच में त्याग, समर्पण और तपस्या से ही ईश्वर की अनुभूति होती है। इसका उसको आज अनुभव हो रहा था।

पुरोहित जी वास्तव में इंसानियत और भाईचारा के आदर्श थे। वो जाति धर्म से बहुत ऊपर थे। उनको अशोक और अमन में कोई अंतर अभी तक नजर नही आया था। उन्होंने अमन के मन के भाव को परखा और शिव लिंग को इंगित करते हुए पूछा,

"पुत्र..! क्या तुम भी इनका अभिषेक करना चाहोगे..?"

अमन बिना किसी झिझक के तुरंत बोला,

"हां पुरोहित जी..! मैं भी करना चाहता हूं अभिषेक। क्या कर सकता हूं..?"

पुरोहित जी बोले,

"पुत्र..! ये कटास-राज का दरबार है। ये औघड़-दानी हैं। इनकी नजर में सब बराबर हैं। तुम भला क्यों नहीं कर सकते..? आओ तुम भी शामिल हो जाओ।"

अमन भी थोड़ी देर शिरिंगी थाम कर दूध की धारा मस्तक पर डालता रहा।

पुरोहित जी ने उर्मिला से पूछा,

"वो जो रोज आपके साथ यहां मौजूद रहती हैं, आज ही वो नही आई..! कहां है वो..?"

उर्मिला बोली,

"पुरोहित जी..! वो बिटिया की तबियत ठीक नहीं है ना। इसलिए वो उसकी देख भाल के लिए रुक गई।"

पुरोहित जी बोले,

"वो रोज ही शामिल हुई हैं। आज भी शामिल हो जाती तो अच्छा रहता।"

उर्मिला कुछ बोलती उससे पहले अमन जो सब कुछ सुन रहा था बोला,

" मैं जाऊं बुला लाऊं अम्मी को..?"

उर्मिला बोली,

"हां बेटा..! जा… तुम पुरवा के पास रुक जाना और सलमा बहन को भेज देना।"

अमन "जी मौसी..!"

कह कर उठ गया सलमा को बुलाने को।

सलमा पुरवा को बिठा कर छोटी कटोरी से काढ़ा पिला रही थी। अमन जाते ही बोला,

"देखा अम्मी जान..! इसी लिए मैं डॉक्टर बनना चाहता हूं। अभी अगर मैं डॉक्टर होता तो झट से इनको ठीक कर देता अपनी दवा से। ( चुटकी बजाते हुए अमन बोला)"

सलमा बोली,

"हां तो जा ना.. तुझे तो हमसे दूर जाने का बहाना ही चाहिए। यहां हम सोच रहे की कारोबार जमा कर दोनों बच्चों को दे दें, वो हमारी नज़रों के सामने रहें। पर तेरी तो बात ही निराली है।"

अमन आ कर सलमा के करीब बैठ गया और बोला,

"अम्मी जान..! वो पुरोहित जी आपके लिए पूछ रहे थे तो मौसी ने बोला मुझसे कि मैं जा कर आपको बुला लाऊं। आप जाइए.. मैं यहां रुकता हूं।"

सलमा उसे समझाते हुए बोली,

"देख बेटा..! ये वाली खुराक मैने उबाल कर दे दी है और अब ये कुछ देर बाद देनी है। पर ये वाली जड़ी है इसे (एक पत्थर दिखाते हुए बोली) इस पत्थर पर घिस कर देनी है। तुम दे देना मैं जाती हूं।"

इसके बाद सलमा अमन को पुरवा का खयाल रखने की बोल कर पूजा स्थल पर चली गई।

अमन ने अम्मी के जाते ही पुरवा को सहारा दे कर लिटा दिया और मोटी चादर से अच्छे से ढंक दिया।

इसके बाद अमन अम्मी के दिए जड़ को पत्थर पर घिसने लगा। पर वो बहुत ही कड़ी, सूखी हुई थी। बड़े ही परिश्रम से उसे घिस पाया।

छोटी सी कटोरी में उसे रख कर अमन पुरवा के पास ले कर आया।

वो आंखें बंद किए पड़ी थी।

अमन बड़े ही प्यार से बोला,

"पुरु..! उठो..! इसे पी लो। फिर जल्दी से तुम्हें आराम हो जायेगा।"

सहारा दे कर अमन ने बिठाया और कटोरी उसके मुंह के पास लगा दिया।

पुरवा ने जैसे ही एक घूंट लिया वो पूरी तरह गिन-गिना गई। कटोरी हटाते हुए बोली,

"अमन..! मुझसे नही पिया जायेगा ये। बहुत कसैला है।"

अमन बच्चों के जैसे बहकाते हुए लाड भरे स्वर में बोला,

"अभी पी लो पुरु..! किसी भी तरह, फिर जल्दी ही मैं डॉक्टर बन जाऊंगा तो तुम्हे मीठी-मीठी गोलियां दूंगा। जिसे तुम बड़े आराम से खा लोगी।"

पुरवा के लाख मना करने के बाद भी अमन ने उसे मना मुना कर किसी तरह उस जड़ी को पिला दिया।

फिर पास बैठ उसे एक-टक निहारने लगा।

कुछ घंटों के बुखार में ही पुरवा का मुंह उतर कर जरा सा हो गया था।

वो खुद को इसका दोषी मानते हुए बोला,

"पुरु..! तुम मेरी वजह से ही बीमार हो गई। अगर मैं रात भर तुम्हारे साथ बाहर नहीं रहता तो तुम्हें कुछ भी नही होता। रात में सीढ़ियां ओस से ठंडी हो गई थी ना। वही तुमको नुकसान कर दिया। ये सब मेरे ही कारण हुआ है।"

पुरवा धीरे से बोली,

"नही अमन..! तुम थोड़े ना दोषी हो। अगर मैं नही रुकती तो तुम मुझे जबरदस्ती थोड़े ना रोक लेते।"

फिर धीरे से मुस्कुराते हुए बोली,

"उस पल के लिए तो मुझे इतनी बीमारी सस्ती ही लग रही है।"

अमन ने धीरे से पुरवा के सिर में चपत लगाई और बोला,

"मेरा शैतान पुरु..!"

अमन उठने लगा तो पुरवा ने हाथ पकड़ कर बैठा लिया। बोली,

"कहां जा रहे हो..? बैठो ना। फिर ये पल ये साथ कभी नसीब नही होगा।"

अमन फिर से वापस पुरवा के करीब बैठ गया।