Kataasraj.. The Silent Witness - 73 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 73

भाग 73

पुरवा के पीछे अमन भी आ कर अशोक के करीब लेटा और तुरंत ही सो गया।

लगभग पूरी ही रात जागी होने की वजह से पुरवा को बहुत गहरी नींद आई।

उनके आने के थोड़ी ही देर बाद धर्मशाला में सब जाग गए और उनकी आहट और बाहर हुई रौशनी से उर्मिला अशोक और सलमा भी जाग गए।

रोज की तरह उर्मिला पुरवा को आवाज देने लगी,

" पुरवा..! उठ जा बिटिया..! सुबह हो गई है। आज हवन भी तो है इसके बाद वापस भी लौटना है। रोज तो खुद से ही जाग जाती है। आज क्या हो गया है..? आज ज्यादा काम है तो ये जाग ही नही रही।"

सलमा जो अभी अभी नहा कर वापस लौटी थी। अपने गीले बालों को तौलिए से पोछते हुए बोली,

"तुम रहने दो उर्मिला मैं जगा देती हूं।"

सलमा पुरवा के पास आ कर उसके हाथों को आहिस्ता से हिलाते हुए बोली,

"उठो बिटिया..! तुम्हारी अम्मा कब से आवाज लगा कर जगा रही है।"

पर पुरवा हाथ छूते ही सलमा को महसूस हुआ कि ये तो गरम है। शायद बुखार चढ़ गया है। उसने माथा छुआ तो पता लगा सच में ही तेज बुखार है उसे।

वो बोली,

"उर्मिला..! इधर आओ…। देखो जरा, बच्ची को तो तेज बुखार चढ़ आया है। तभी तो उठ नही रही।"

बुखार का सुन कर उर्मिला भी पुरवा के पास आ कर माथा छुआ। वाकई तेज बुखार था। उसके माथे पर चिंता की लकीर उभार आई कि अब यहां पर क्या करें..?

अशोक जी नहाने गए हुए थे, वो भी वापस आ गए। पुरवा अभी तक सोया देख वो बालों में कंघी फिराते हुए उर्मिला से पूछा,

"उर्मिला..! ये बबुनी अभी तक सो क्यों रही है..? जगाओ उसे।"

उर्मिला करीब आ कर चिंतित स्वर में बोली,

" क्या बताऊं… पुरवा के बाऊ जी..! उसे तो तेज ताप चढ़ आया है। मेरी तो समझ में नहीं आ रहा क्या करूं..! कैसे करूं..!"

अशोक बोले,

"अरे..! ये कैसे हो गया..! लगता है कल ज्यादा देर पानी वाला काम की होगी। फिर उसे बहुत काम भी तो करना पड़ रहा है आज कल।"

उर्मिला को कंघी और गमछा पकड़ाते हुए बोले,

"तुम चिंता मत करो..। ठंडे पानी की पट्टियां रक्खो। मैं अभी पुरोहित जी से पूछ कर आता हूं।"

अमन भी ये सब बात चीत सुन कर जाग गया था।

लेटा लेटा सब सुन रहा था।

उर्मिला कटोरी में पानी ले कर रुमाल गीला कर के उसके माथे पर रख कर हवन का सामान इकट्ठा करने लगी।

अशोक पुरोहित जी के पास गए और पुरवा के तबियत के बारे में बताया।

पुरोहित जी बोले,

"चिंता मत करो बेटा..! यहां के मौसम में और नीचे के मौसम में फर्क है ना इसलिए किसी किसी को ताप चढ़ जाता है। मेरे पास कुछ जड़ी बूटी वाली औषधि है। उसे तुम्हे देता हूं।"

फिर अंदर जा कर कुछ देर में वापस आए तो हाथ में कुछ जड़ी बूटी एक अख़बार के टुकड़े में लिए हुए थे। उसे अशोक को दे कर समझाते हुए बोले,

"इसे तुलसी दल और अदरक के साथ खूब उबाल कर हर तीन घंटे में चार चार घूंट पिलाना है। और इसे पत्थर पर घिस कर पिलाना है।"

"जी पुरोहित जी..! आपका बहुत बहुत धन्यवाद..!"

अशोक हाथ जोड़ कर बोले।

पुरोहित जी बोले,

"कोई बात नही बेटा..! यहां आया हर व्यक्ति कटास राज के बुलावे पर आया है। और मैं यहां का पुजारी हूं। इस नाते वो मेरा मेहमान हुआ। हर तरह से उनका सहयोग करना, उनके काम आना मेरा परम धर्म है। बिटिया शाम तक ठीक हो जानी चाहिए। आज पूर्णाहुति भी है। तुम सब जल्दी आ जाओ। मैं तैयारियां प्रारंभ करता हूं।"

अशोक औषधि ले कर वापस आ गया। उसे उर्मिला को दे कर उसे देने का तरीका और खुराक सब कुछ समझा दिया।

पर जब पुरवा के पास आकर उसके माथे की पट्टी छू कर देखी तो वो पूरी गर्म हो गई थी।

अशोक उर्मिला पर नाराज होते हुए बोला,

"ये क्या उर्मिला..! देखो पट्टी कितनी गरम हो गई है। तुम्हे कहा था ना बार बार बदलते रहने को।"

फिर खुद ही कटोरी में फिर से पट्टी गीली करके रख दिया।

उर्मिला भी ताव खाते हुए बोली,

"अब मेरे चार हाथ पैर तो है नही कि इधर पट्टी भी बार बार बदलूं उधर हवन की तैयारी भी कर लूं। इसे भी मौका देख कर ही बीमार पड़ना रहता है। अब आज वापस भी जाना है। कैसे इस हालत में इसे लेकर जा पाएंगे..!"

भले ही उर्मिला सलमा की सहेली थी, पर उसे इस तरह पुरवा को बिगड़ना बिलकुल अच्छा नही लगा। इस लिए वो बोली,

"ये क्या उर्मिला…! एक तो बच्ची तकलीफ में है, उस पर तुम उस पर नाराज हो रही हो। क्या ये अपने हाथ में होता कि आदमी कब बीमार पड़े और कब नही..! तुमसे नही होता तो रहने दो मैं इसकी देख भाल कर लूंगी। तुम आराम से हवन पूजन पर ध्यान दो।"

सलमा आ कर पुरवा के करीब बैठ गई। और अशोक से पूछा,

"अशोक जी..! आप हमको बताइए. .. इसे कैसे पिलाना है..? पुरवा को मैं पिला दूंगी समय समय से।"

अशोक ने सलमा को सब जड़ी बूटी को कैसे देना है बता समझा दिया।

अमन भी इतनी देर में तरो ताज़ा हो कर आ गया था।

उर्मिला को काम के दबाव में झुंझलाया देख कर बोला,

"मौसी.. आप मुझे बताएं जो कुछ करना हो। (फिर अपने दोनो हाथो को ऊपर कर के मोड़ कर ताकत दिखाते हुए मुस्कुरा कर बोला) मैं हूं ना सब निपटा दूंगा.. आप बिलकुल परेशान ना हो। बस आप मुझे बताती जाइए।"

उर्मिला ने मुस्कुरा कर आशीर्वाद के रूप में अमन के सिर पर हाथ फेरा और मुस्कुरा कर बोली,

"मेरा राजा बेटा..! जब तू है तो सब ठीक हो ही जायेगा। चल.. मौसी और बेटा मिल कर सब बड़े आराम से निपटा लेंगे।"

इसके बाद अमन उर्मिला के बताए अनुसार उसकी मदद करने लगा।

सलमा बरामदे में कुछ लकड़ियां जला कर एक बरतन में जड़ी बूटी उबलने को रख दिया और खुद वापस आ कर फिर से पट्टी बदलने लगी।

पुरवा का पूरा बदन टूट रहा था। थोड़ी थोड़ी देर में वो दबी आवाज में कराह रही थी। आंखे बंद थी फिर भी आंखों से पानी निकल रहा था।