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wo ladki

वो लड़की

कमलेश की आवाज इतनी पतली एवं मधुर थी कि कार्यालय में लोग उससे लता मंगेशकर के गाने गवाते थे और वह भी लता जी के गाने गा कर बहुत प्रसन्न हुआ करता था। फोन पर जब किसी से बात करता तो सामने वाले को यही भ्रम होता था कि कोई लड़की बात कर रही है, ऐसी लड़की जिसकी आवाज इतनी मधुर कि जैसे किसी ने कानों मे मिस्री घोल दी हो। इस वक़्त जिस व्यक्ति से कमलेश फोन पर बात कर रहा था, वह प्रश्न कर बैठा कि क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ और उसने अपना नाम भी साथ मे बताया कि मैं दीना नाथ बोल रहा हूँ। आपसे प्रतिदिन बात होती है, आपकी मधुर मिश्री जैसी आवाज सुनने की चाहत सी मन में जगी रहती है और सोचता रहता हूँ कि कब आपका फोन आएगा और मेरे कान आनंदित हो सकेंगे। कमलेश समझ गया कि सामने वाले को मेरे बारे मे कुछ गलतफहमी हो गयी है, लेकिन फिर उसने सोचा कि चलो कुछ दिन इस गलतफहमी को बरकरार रखते है एवं उसने अपना नाम बता दिया “कमलेश”। कमलेश नाम सुनते ही दीनानाथ के चेहरे पर खुशी की लाली छा गयी एवं कहने लगा कि बहुत सुंदर नाम है आपका, आपकी आवाज भी सुंदर आपका नाम भी सुंदर और आप भी बहुत खूबसूरत होंगी। कमलेश कुछ बोला नहीं बस चुपचाप दीनानाथ कि उपमाएँ सुन रहा था जैसे आपका चेहरा तो चाँद से भी सुंदर होगा, आपकी आँखें झील से गहरी होंगी, जब आप अपनी जुल्फें झटककर चेहरे पर गिरातीं होंगी तो लगता होगा जैसे काली घटाओं ने चाँद को ढक लिया हो और बालों की पतली झिर्री से चमकता चेहरा ऐसे लगता होगा जैसे बादलों के बीच मे से थोड़ा-थोड़ा चाँद चमकता रहता है। कमलेश ने फोन का रिसीवर उठा कर अलग रख दिया था, उसे इन अतिशयोक्तियों से कोई लगाव नहीं था अतः थोड़ी देर बाद जब उसने रिसीवर उठा कर कान से लगाया तो दीनानाथ जी अभी भी अपने उपमा व अतिशयोक्ति अलंकार के भरपूर उदाहरण दिये जा रहे थे। कमलेश ने बीच मे टोक कर कहा कि कुछ कल के लिए भी बचा कर रख लीजिये क्या सारी तारीफ आज ही कर डालेंगे एवं फोन काट दिया। जिस कार्यालय मे दीनानाथ कार्यरत था, कमलेश को वहाँ से प्रतिदिन रिपोर्ट लेनी होती थी। दीनानाथ इस कार्यालय मे अभी स्थानांतरित होकर आया था, वह तो पुराने कार्यालय से आना ही नहीं चाह रहा था और अपना स्थानांतरण रुकवाने के लिए उसने भरसक प्रयास भी किया था लेकिन दीनानाथ को पुराना कार्यालय छोडकर नए कार्यालय मे आना ही पड़ा। जब प्रतिदिन उसकी कमलेश से बात होने लगी तो उसको लगने लगा कि शायद इसी कारण मेरा स्थानांतरण इस कार्यालय मे हुआ होगा। दीनानाथ आँखें बंद करके भविष्य का ताना बाना बुनने लगा एवं कमलेश की शक्ल दुनिया की सबसे सुंदर सुन्दरियों से मिलाने की कोशिश करने लगा। कभी दीनानाथ उसकी शक्ल कैलंडर पर छपी खूबसूरत युवती से मिलाता और कभी फिल्म की खूबसूरत नायिका जैसी सोचता। पूरा दिन यही सोचने मे निकल गया, जाने कब कार्यालय की छुट्टी हो गयी दीनानाथ को पता भी नहीं चला। घर पर भी दीनानाथ के सामने कमलेश का अनदेखा चेहरा घूमता रहा, पत्नी व बच्चों कि बातें भी आज उसे अच्छी नहीं लग रही थी। रात मे खाना खाने के बाद पत्नी ने पूछा कि कैसा है ये आपका नया कार्यालय तो दीनानाथ ने कहा कि बहुत अच्छा है, अति सुंदर, सुमधुर एवं सर्वगुण सम्पन्न है। पत्नी बोली कि मैंने कार्यालय के बारे मे पूछा है आप किसकी बात कर रहे हो, क्या कोई लड़की भी काम करती है इस कार्यालय मे। पत्नी कि यह बात सुनकर दीनानाथ एकदम चौंक पड़ा एवं थोड़ा संभल कर बोला, नहीं कोई लड़की नहीं है मेरे इस कार्यालय मे, अच्छा कार्यालय है पहले वाले से अच्छा है। पत्नी मीना कहने लगी कि आप कह रहे थे कि एक दिन जाकर छुट्टी ले लेंगे, अब तो यहाँ आए कई दिन हो गए हैं, आपने छुट्टी ले ली हो तो कल गाँव चलते है, बच्चों की भी दस दिन की सर्दियों की छुट्टियाँ हो गयी है, और माँ भी कई बार बुला चुकी है, चलो कल चलते हैं। पत्नी की बात सुनकर दीनानाथ पत्नी पर झल्लाने लगा कि तुम्हें हर वक़्त छुट्टी लेने की लगी रहती है, मुझे बहुत ही महत्वपूर्ण काम मिल गया है जब तक वह पूरा नहीं होगा मैं छुट्टी नहीं ले सकता। आज दीनानाथ को नींद नहीं आ रही थी वह बार-बार आसमान की तरफ देखता, खिड़की से पूर्णिमा का चाँद उनके कमरे से साफ नजर आ रहा था और चाँद मे दीनानाथ को कमलेश का चेहरा नजर आ रहा था। सुबह दीनानाथ जल्दी ही कार्यालय के लिए तैयार हो गया, पत्नी मीना पूछने लगी कि आज इतनी जल्दी जाओगे, दीनानाथ ने समझाया कि उसको बहुत ही महत्वपूर्ण काम मिला है अतः जल्दी ही जाना पड़ेगा और आने मे भी लेट हो जाऊंगा। कार्यालय पहुँच कर दीनानाथ कमलेश के फोन की प्रतीक्षा मे बैठ गया कि तभी घर से पत्नी का फोन आ गया, पूछने लगी कि आप ठीक से पहुँच गए, नए कार्यालय के रास्ते मे कोई तकलीफ तो नहीं हुई, दीनानाथ को तो कमलेश के फोन की प्रतीक्षा थी अतः उसको पत्नी की आवाज सुनकर गुस्सा आ गया और कहा कि जल्दी फोन रख दो मेरे बॉस का फोन आने वाला है, नहीं मिला तो नाराज हो जाएगा। मीना ने फोन काट दिया, जैसे ही मीना ने फोन काटा तो फोन की घंटी दोबारा घनघना उठी। दीनानाथ के पूरे शरीर मे एक अनदेखी खुशी की लहर दौड़ गयी उसको गुदगुदी सी होने लगी, बड़े प्यार भरे अंदाज़ से उसने फोन उठाया, दूसरी तरफ से कोई कर्कश आवाज वाला पुरुष बोल रहा था। फोन रिपोर्ट लेने के लिए ही आया था, दीनानाथ का तो जैसे दिल ही टूट गया, वह पूछ भी नहीं सका कि कमलेश कहाँ है। वास्तव मे कमलेश ने ही अपने सहकर्मी को सब बातें बता दी थी एवं दोनों ने मिलकर भ्रमित दीनानाथ से मज़ाक करने एवं थोड़ा सा मूर्ख बनाने कि सोच ली थी। आज दीनानाथ का चेहरा मुरझा गया था, पूरे दिन मन बेचैन रहा एवं किसी भी कार्य मे नहीं लगा। अगले दिन फिर दीनानाथ जल्दी आकर कार्यालय मे बैठकर कमलेश के फोन की प्रतीक्षा करने लगा। फोन की घंटी घनघना उठी तो दीनानाथ अपने सभी देवी-देवताओं से मन्नत मांगने लगा कि भगवान यह फोन कमलेश का ही होना चाहिए। फोन उठाकर दीनानाथ ने हैलो किया तो सामने से कमलेश की आवाज आई, दीनानाथ खुशी से पागल हो गया, उसे मुंह मांगी मुराद मिल गयी थी। दीनानाथ कहने लगा कमलेश जी कल आप नहीं आई थी क्या, क्या हो गया था, सब ठीक तो है, तबीयत तो ठीक है आपकी, कमलेश ने कहा कि हाँ सब ठीक है, कल मुझे बॉस ने दूसरा काम दे दिया था अतः फोन पर रिपोर्ट मेरे सहकर्मी ने ले ली थी। दीनानाथ कहने लगा कमलेश जी मेरी तो जान ही निकल गयी थी आप आगे से मेरे साथ ऐसा मत करना, तो कमलेश ने पूछा क्यो क्या हुआ आप इतने परेशान क्यो हो गए तब दीनानाथ बोला कि अगर आपको बुरा न लगे तो मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ, कमलेश बोला हाँ हाँ बोलो दीनानाथ जी क्या कहना है आपको। दीनानाथ ने कहा कि पहले आप वादा करो कि मेरी बात सुनकर आप नाराज नहीं होंगी, कमलेश बोला कि नहीं हूंगी मैं नाराज आप बोलो क्या कहना चाहते हो। दीनानाथ कहने लगा कमलेश जी मुझे तुमसे प्यार हो गया है, हर वक़्त आपके बारे मे ही सोचता रहता हूँ क्या आप मिलने का समय निकाल सकतीं हैं। आज शाम को कंही किसी रेस्तरां मे मिल लेते है। कमलेश इतनी बात सुन कर चुप हो गया एवं फोन काट दिया, तीन-चार दिन तक दीनानाथ से बात नहीं की। कमलेश ने अपने दोस्त के साथ मिलकर दीनानाथ को मूर्ख बनाने की सोच ही रखी थी अतः तीन दिन बाद स्वयं ही फोन किया रिपोर्ट लेने के लिए। दीनानाथ कहने लगा आप मेरी बात का बुरा मान गईं, मुझे क्षमा कर दो। कमलेश बोला ऐसी कोई बात नहीं, कौन से रेस्तरां मे चलें शाम को। कमलेश की इस स्वीकारोक्ति से दीनानाथ गदगद हो गया और उसने शहर के सबसे महंगे रेस्तरां का नाम बता दिया। कमलेश ने पूछा कि मैं आपको कैसे पहचानुंगी तो दीनानाथ ने अपने कपड़ो का रंग अपनी शक्ल के बारे मे सब बता दिया एवं कहा कि मैं स्वागत कक्ष पर ही आपका इंतज़ार करूंगा, आप स्वागत कक्ष पर आकार मेरे नाम से पूछ लेना, शाम छ्ह बजे का टाइम पक्का रहा। पूरे दिन दीनानाथ बार-बार घड़ी की तरफ देखता रहा कि कब छुट्टी हो और वह आज कमलेश से मिलने जाए। कार्यालय से छुट्टी होने के बाद दीनानाथ सीधा फूल वाले के पास गया, एक बड़ा सा गुलदस्ता बनवाया, उसमे अपने प्यार के इजहार का कार्ड लगवा लिया, एवं सीधा रेस्तरां के स्वागत पर पहुँच गया। स्वागत पर विराजमान युवती ने दीनानाथ जी को अभिवादन किया, तो दीनानाथ ने कहा कि मैं थोड़ी देर बैठ कर किसी का इंतज़ार करना चाहता हूँ एवं बताया कि कोई युवती मेरे बारे में पूछने आए तो बता देना, मेरा नाम दीनानाथ है और साथ मे बिछे सोफ़े पर बैठ गया जिस पर दो व्यक्ति पहले से बैठे थे। दीनानाथ को कमलेश का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार था, कमलेश अभी तक आई क्यो नहीं, आएगी भी या नहीं। लेकिन कमलेश व उसका दोस्त तो सोफ़े पर उसके साथ पहले से ही बैठे थे, बस वह उसके हाव-भाव व चेहरे के उतार-चढ़ाव को देखने मे लगे थे। दीनानाथ को परेशान देखकर कमलेश के दोस्त ने पूछ ही लिया कि आपको किसी खास का इंतज़ार है, इसीलिए आप इतने परेशान लग रहे हो। कहीं आपको कमलेश का तो इंतज़ार नहीं है, अपनी पतली मधुर आवाज़ मे कमलेश ने दीनानाथ के पीछे खड़े हो कर पूछा तो दीनानाथ गद-गद हो गया एवं तुरंत घूम कर कहा कमलेश आप आ गयी। लेकिन यह क्या यह तो एक लड़का है तब दीनानाथ ने पूछा कि आपको कैसे पता कि मैं कमलेश से मिलने आया हूँ, तब कमलेश बोला कि मैं ही वह कमलेश हूँ जिससे आपकी रोज़ प्यार भरी बातें होतीं है, मैं ही हूँ वह जिसके रंग-रूप कि कल्पना आपने पता नहीं किस-किस से कर डाली, कमलेश के मित्र ने भी सहमति मे सिर हिला दिया। अब दीनानाथ को बड़ी शर्म आ रही थी, और वह कमलेश और उसके मित्र से माफी मांगने लगा। कमलेश कहने लगा कि दीनानाथ जी आप जब आ गए हैं तो चलो एक-एक कॉफी तो हो ही जाए और तीनों ने कॉफी पीकर अपने-अपने घर को प्रस्थान किया इस वायदे के साथ कि इस घटना का कभी भी किसी से भी जिक्र नहीं करेंगे।

वेद प्रकाश त्यागी

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