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मैं मेरा बॉयफ्रेंड,बॉस और........

मैं,मेरा बॉयफ्रेंड,बॉस और......

पल्लवी इस साल नौवीं कक्षा में जा चुकी थी। चौदह बर्ष की अवस्था में उसके विन्यास में तो परिवर्तन आया ही था, साथ-साथ उसका मानसिक स्तर भी काफी समृद्ध हो रहा था।पल्लवी के दो और बहनें थीं और उनकी शादी बहुत पहले हो चुकी थी। उसके घर पर माँ-बाप और उसकी दादी थीं। अपने पापा से पल्लवी का अगाध लगाव था। लेकिन माँ से पल्लवी उतनी घुली-मिली नहीं थी। हाँ,दादी उसकी काफी अच्छी सहेली थी। दादी के साथ बैठकर ही वो टीवी सीरियल वगैरह देखा करती थी। अगर कोई एपिसोड छूट जाए तो दादी ही उस एपिसोड का पूरा ब्योरा उसके सामने परोसा करती थीं। दादी की अवस्था थी तो पल्लवी की पांच गुनी लेकिन वो उसकी सहेली से कम न थीं। बहुत सारी बातें पल्लवी दादी के साथ साझा किया करती थी।

दादी को इस इस उम्र के लचीलेपन का सम्पूर्ण अनुभव था। वो इस अनुभव को पल्लवी के साथ बाँटने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी। जबसे पल्लवी रजस्वला हुई थी,तब से ही दादी ने उसे सारे अच्छे-बुरे का ज्ञान देना शुरू कर दिया था। हालाँकि,जब दादी पल्लवी की उम्र में थीं तब ज़माना इतना मॉडर्न नहीं था। तब न तो लडकियां ज्यादा घरों से बाहर निकलती थीं और ना ही इस तरह की वेशभूषा धारण करने की उन्हें स्वतंत्रता थी। या यूँ कहें,उन्हें इस तरह के कपड़े मयस्सर ही नहीं थे। दादी को पता था कि ये उम्र पिघले हुए सोने की तरह होती है,हम इसे जैसी आकृति देना चाहे दे सकते हैं। जैसा साँचा हमें मिल जाएगा हम वैसे ही हो जाएंगे। बिगड़ने या बनने की सबसे ज्यादा संभावना इसी उम्र में होती है।

बचपन से ही पल्लवी के पापा उसे काफी प्यार करते थे। पल्लवी अपनी तीनों बहनों में सबसे ज्यादा मेधावी , मेहनती और खूबसूरत भी थी। हर वर्ष वार्षिक परिक्षा में वो पहला या दूसरा स्थान पाती थी। परिक्षा-फल प्रकाशन के दिन वो अपने पापा की उपस्थिति पर काफी जोर देती थी। उसके पिता भी उस दिन विद्यालय जरूर जाते थे। आखिर,कोई भी आभूषणधारी अपने रत्न को सबके सामने चमकते देखना चाहता है। और लोगों द्वारा देखे जाने पर वह गौरवान्वित भी होता है। नौवीं कक्षा में आते ही पल्लवी पूरी तरह से किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकी थी। उसकी देह ने पूर्ण आकार लेना शुरू कर दिया था। उसके चेहरे की आभा में दिनानुदिन वृद्धि हो रही थी । रंग एकदम खुल गया था। वह पूरी तरह से उज्जवलवर्णा हो चुकी थी। उसे और उसकी प्रतिभा का मूल्यांकन करने पर यह प्रतीत होता था मानो भगवान् ने उसमें कोई कमी न छोड़ी हो ।खूबसूरत तन के साथ-साथ एकदम दक्ष दिमाग का मेल ......।

बढ़ती उम्र के साथ पल्लवी की भावनाओं और इच्छाओं में भी वृद्धि हो रही थी। उसे अब लड़कों में रूचि होने लगी थी। किसी भी सुन्दर डील-डॉल वाले या आकर्षक लड़के को देखकर अब उस पर उसकी नजरें पल भर को आराम करने लगी थीं। कुछेक भावनाएं उसके मानस-तंतुओं में हलचल पैदा करने लगी थीं । उसे अब अन्य लड़कियों की भांति ही लड़कों से बात करने में आनंदानुभूति होने लगी थी। पल्लवी भी अब रात में सोने से पहले किसी बात को याद कर खुश या दुखी होने लगी थी। अब पल्लवी का आकर्षणकेंद्र लड़कों का समूह नहीं ,बल्कि उसका राजकुमार था। हाँ,आर्यन ......,यही नाम था उसके राजकुमार का। आर्यन पल्लवी को काफी अच्छा लगने लगा था। उससे बातें करने में पल्लवी को किसी अलौकिक सुख की प्राप्ति होती थी। वो चाहती थी कि वो हमेशा आर्यन के साथ रहे और बस उससे बातें करती रहे। आर्यन से बातें करना अब पल्लवी की आदत हो चुकी थी। किसी और लड़की से अगर आर्यन बात भी करता था तो पल्लवी को काफी जलन होती थी। अगर किसी वजह से आर्यन किसी दिन स्कूल नहीं आता ,तो पल्लवी पूरे दिन उदास रहती थी। स्कूल-टाइम से काफी पहले आकर आर्यन के इंतज़ार में स्कूल के गेट को निहारते रहने की भी पल्लवी आदी हो चुकी थी। जैसे ही आर्यन का आगमन विद्यालय परिसर में होता पल्लवी का चेहरा किसी श्वेत कमल की भाँति खिल उठता था। उसके बंजर ह्रदय में मानसून की फुहार पड़ने लगती थी। शायद मन-ही-मन वो अब आर्यन को चाहने लगी थी............।

यह सब कुछ पल्लवी के लिए बिलकुल नया था। पल्लवी के लिए तो ये सारी बातें बिलकुल नयी थीं ,लेकिन इस उम्र में लगभग सभी के साथ ऐसा ही होता है। कोई ना कोई हमें बहुत ज्यादा पसंद आता है और हम बस उसी के बारे में दिन-रात सोचा करते हैं । चूँकि स्कूल के बाद घर पर दादी ही पल्लवी की एकमात्र सच्ची सहेली थीं,इसलिए यदा-कदा वो दादी से आर्यन की चर्चा कर दिया करती थी। दादी के पके बाल और कपोलों तथा ललाट पर पड़ी झुर्रियों के अनुभव को तनिक भी देर ना लगी इस बात को भांपते हुए कि पल्लवी के दिल में आर्यन नाम का पुष्प खिल आया है। दादी के सामने पल्लवी की प्रेम कहानी पूरी की पूरी आकृति ले चुकी थी।जैसा उथल-पुथल और उतार-चढ़ाव पल्लवी के दिलो-दिमाग में हो रहा था ,उसका ग्राफ दादी के मानसपटल पर खिंच जाता था। दादी का दिमाग किसी ई.सी.जी. मशीन से कम नहीं था.......।

कुछ और दिन बीते......।और स्कूल में पल्लवी और आर्यन के बीच कुछ चल रहा है,ऐसी चर्चा होने लगी थी।दादी की चिंता भी साथ-साथ बढ़ गयी। आखिर दादी ने एक दिन पल्लवी से पूछ ही दिया,"क्या तुम आर्यन को पसंद करती हो?"

"न...नहीं दादी वो......." पल्लवी ने रुकते हुए कहा ।उसके स्वर बोलते वक़्त अटक रहे थे। पल्लवी सहम सी गयी थी। और उसके होंठ काँप रहे थे।

"वो कुछ नहीं,सच-सच बता दे मेरी बच्ची ...। मुझसे तो कुछ मत छुपा। मुझे तू अपनी सहेली नहीं समझती जो मुझसे छुपा रही हो ? "

दादी नए बड़े ही कुशलता पूर्वक पल्लवी से सबकुछ बताने का आग्रह किया।

"हाँ दादी मुझे आर्यन बहुत पसंद है....।" पल्लवी अब दादी की बातों पर विश्वास कर सब कुछ बता रही थी। साथ-साथ आर्यन की बराई भी किये जा रही थी।

"पता है दादी आर्यन पढ़ने में भी बहुत तेज़ है। अकेला वही तो है जो मुझे क्लास में टक्कर दे पाता है।"

"तुमने ये बात आर्यन को बताई है कि तू उसे पसंद करती है?"

"नहीं दादी , मेरी हिम्मत नहीं होती उससे ये सब बोलने की। हम अच्छे दोस्त हैं बस...।"

"क्या वो भी तुम्हें पसंद करता है.....?"

"पता नहीं दादी!" पल्लवी ने थोड़ा मुँह लटकाकर निराशाभव से उत्तर दिया।

"देख बेटी ......,एक बात बताती हूँ। इस उम्र में ऐसा होता ही है,लेकिन तुम उसपे से अपना ध्यान हटाकर पढ़ाई पर ध्यान दो। "

"पढ़ाई तो मैं करती हूँ ना दादी...। पढ़ाई तो मैं उतने ही मन से कर रही हूँ ना.........।पर वो मुझे बहुत पसंद है ...।"

"ठीक है ,ठीक है ,मैंने कब कहा की तू पढ़ाई नहीं करती ।पर इस उम्र में थोड़ा संभल के रहा कर ।लड़कों पे ज्यादा ध्यान मत दे....।"

"क्या दादी आप भी ना क्या बोल रही हो.....!"

"हाँ बेटी, इस उम्र को संभालना बहुत बड़ी बात होती है। मान लिया जाए वो भी तुम्हें पसंद करता हो । तुम दोनों ज्यादा समय साथ बिताने लगो और भगवान ना करे कोई ऊँच-नीच हो जाए तो............?"

"दादी ये आप क्या कह रही हो,आपको अपनी पल्लवी पर इतना भी भरोसा नहीं है ?"

"है बेटी, भरोसा है तभी तो तुम्हे समझा रही हूँ। देख ,हमारे पास अपने संस्कार और चरित्र ही ऐसी चीजें हैं जिनको हम खुद सुरक्षित रख सकते हैं। अन्य चीजों पर हमारा जोर कहाँ चलता .....। हमारा चरित्र ही तो हमारी पूँजी होता है। "

दादी भागवद गीता का ज्ञान अपनी पोती को दे रही थीं। जिसमें श्रीकृष्ण ने कहा है,"हम अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के बारे में सोचते हैं,लेकिन यदि हम उन्हें सुसंस्कृत एवं चरित्रवान बना दें तो हमें उनके भविष्य की चिंता करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। वो स्वयं ही अपनी जिंदगी के लिए सुयोग्य मार्ग बना लेंगे। "

हालाँकि,पल्लवी जिस उम्र में थी ,उस उम्र की लड़कियों को ये सारी बातें बोरिंग प्रतीत होतीं। लेकिन पल्लवी चूँकि बचपन से ही दादी के सानिध्य में रही थी,इसलिए दादी की सारी बातों को उसने आत्मसात कर लिया।

पल्लवी ने आर्यन से अपना ध्यान बिल्कुल ही हटा लिया और फिर से पढ़ाई पर अपना सारा ध्यान केंद्रित करने में जुट गयी। ऐसा करना पल्लवी के लिए कम पीड़ादायक नहीं था। वो आर्यन को भूल नहीं पा रही थी। जब भी पल्लवी अकेली होती उसे आर्यन की बहुत याद आने लगती। उसने इसके उपचार के लिए गेम्स में अपनी रूचि बढ़ाई,नए ट्यूशन ज्वाइन किये और अपने आप को व्यस्त रखने लगी । अब कक्षा नौ ख़त्म होते-होते आर्यन फिर से उसका केवल एक दोस्त था। पल्लवी के मन के घोड़े की लगाम पूरी तरह पल्लवी के हाथों में थी और वो इसे अपने मनोनुरूप हाँकती रहती थी।

अच्छे अंकों के साथ पल्लवी ने क्लास नौ और क्लास दस पास कर ली। इसके बाद ग्यारहवीं कक्षा में आर्यन किसी दूसरी जगह अपनी पढ़ाई के लिए चला गया। इस बात को लेकर पल्लवी पूरी तरह उदासीन थी। आर्यन के जाने का थोड़ा सा भी असर पल्लवी पर नहीं पड़ा । उसके मन में किसी तरह का विकार पैदा नहीं हुआ। पल्लवी ने ग्यारहवीं में साइंस सब्जेक्ट लिया था और पूरे मनोयोग से वो अध्ययन में जुट गई। पल्लवी ने काफी अच्छे नम्बरों से बारहवीं पास की और उसी वर्ष भोपाल के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन भी ले लिया।

पल्लवी पहली बार बिहार से बाहर गयी थी। अभी तक उसे कहीं और जाने की जरुरत ही नहीं पड़ी थी।पूरा का पूरा वातावरण पल्लवी के लिए एकदम नया था। मोकामा जो कि पटना जिले की पूर्वी सीमा था,और इस जिले का एक अच्छा औद्योगिक शहर भी था। मोकामा शहरी और ग्रामीण दोनों तरह के माहौल का एक मिला-जुला स्थल था। मोकामा शहर तो था, लेकिन एक छोटा सा शहर था। वहां से सीधे एक बड़े शहर के बड़े कॉलेज के माहौल में ढाल पाना पल्लवी के लिए कदाचित सहज नहीं था। अब ना तो पुराने दोस्त उसके साथ थे और ना ही दादी थीं जिनसे वो अपनी बातें शेयर कर सके.....। अब तो पल्लवी के पास बस एक नोकिया का मोबाइल ही ऐसी चीज था जो उसको दादी और अपने पूरे परिवार से जोड़ के रखे हुए था। अभी हफ्ते भर भी नहीं हुआ था उसके पापा को गए हुए और वो हमेशा फोन पर या अकेली बैठ कर भी रोया करती थी।

"पापा ,मेरा यहां बिलकुल भी मन नहीं लगता....मुझे इंजीनियरिंग नहीं करना है........!"

पापा और दादी उसे खूब समझाते कि देखो बस कुछ दिन वहाँ किसी तरह मन लगाकर रह लो ,फिर देखना तुम्हारा इतना मन लगने लगेगा कि तुम घर आना नहीं चाहोगी। लेकिन पल्लवी कुछ समझने को तैयार नहीं थी। पल्लवी की हालत बिना पानी के मछली की तरह हो गयी थी।उसका भोपाल में साँस लेना भी दूभर हो गया था। वो तुरंत वहाँ से चली जाना चाहती थी । उसे लग रहा था ,जल्दी से उसके पापा आ जाएँ और उसे लेकर घर चले जाएँ ।लेकिन ऐसा हुआ नहीं......।

समय के साथ पल्लवी कॉलेज और हॉस्टल के माहौल में ढल गयी। अब हॉस्टल में लड़कियों द्वारा किये गए गन्दे मजाक पर पल्लवी चिढ़ती नहीं थी। बल्कि वो भी उल्टे मुँह कोई जवाब दे देती थी या वो भी कोई मजाक कर बैठती थी। अपने क्लास में भी पल्लवी काफी बोल्ड हो गयी थी। पल्लवी अब जवान हो चुकी थी। वह किशोरावस्था की दहलीज़ पार कर युवाकाश में उड़ान भरने लगी थी......।पल्लवी के व्यक्तित्व में अमूलचूल परिवर्तन आ चुका था। उसे भी अब स्लीवलेस टॉप पहनने में हिचक नहीं होती थी।थाई और घुटनों के पास फटी जीन्स भी अब उसे भद्दी नहीं लगती थी।पल्लवी भी आज के फैशन के दौड़ में शामिल हो चुकी थी। उसके कदम आज की युवा पीढ़ी से तनिक भी पीछे नहीं थे। कभी-कभी तो उसको भी विश्वास नहीं होता था कि वो वही पल्लवी है जो साल भर पहले अपने पापा द्वारा यहाँ छोड़ के जाने के समय उनका हाथ पकड़ के रोने लगी थी। इतना ही नहीं फोन पर भी तो वो हमेशा रोते ही रहती थी। लेकिन आज..............,आज घर जाने पर उसे घर में मन नहीं लगता। उसे लगता है जल्दी से जल्दी वो वापस अपने कॉलेज चली जाए। घर का माहौल अब उसे देहाती भी लगने लग गया है।

पल्लवी के कॉलेज-जीवन में अब बस एक चीज की कमी रह गयी थी। बॉयफ्रेंड की.....। हाँ...., एक साल में पल्लवी का कोई बॉयफ्रेंड नहीं बन पाया था। इतनी सुन्दर और टैलेंटेड होने के बावजूद पल्लवी सिंगल थी। हाँ ,आजकल तो जरुरी नहीं है ना कि आप अगर शादीशुदा हैं तब ही आप सिंगल कहलवाने का हक़ खोते हैं। आजकल तो शादी से पहले लोग बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड बना कर 'कमिटेड' या 'इन ए रिलेशनशिप' बताते हैं। तो आज के इस तरह के स्टेटस के दौड़ में पल्लवी का स्टेटस था 'सिंगल'.......।पल्लवी ने भी बहुत कुछ सोचा था ,कि काश उसका भी कोई बॉयफ्रेंड होता,वो भी किसी के साथ मूवी जाती,आइसक्रीम शेयर करती,पार्क में घूमती और..........।और भी बहुत कुछ। लेकिन इतना सोचते ही उसके कर्णपटल और मानसपटल पर एक पंक्ति आघात करती,"हमारा चरित्र ही हमारी पूँजी है।"

हाँ,दादी द्वारा दी गयी शिक्षा ।पांच साल पहले दादी ने जो पंक्ति कही थी आज भी वो उसी रूप में बिना किसी परिवर्तन के पल्लवी के दिमाग पर अंकित थी। उसे हमेशा यह डर सताता रहता कि कहीं कोई ऊँच-नीच ना हो जाए। और कॉलेज में एक साल के अंदर ही हुई कुछ घटनाओं ने तो मानो उसके डर को और भी विकराल रूप दे दिया था। उसकी एक क्लासमेट को गर्भपात कराना पड़ा था। हालाँकि निशि से उसकी ज्यादा करीब की दोस्ती नहीं थी,फिर भी जब पल्लवी को पता चला था कि शेखर उसका बॉयफ्रेंड है तो उसने निशि से पूछ ही दिया था।

"तुम दोनों बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड हो ना!"

"हाँ ,क्यों?"

"एक बात पूछूँ बुरा तो नहीं मानोगी ना?"

"नहीं ,पूछो क्या पूछना चाहती हो?"

"तुमदोनों के बीच कहीं कुछ गलत तो नहीं होता है ना?"

"नहीं यार....., बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड का ये मतलब थोड़े ही ना होता है कि दोनों के बीच फिजिकल रिलेशनशिप हो। हमदोनों एक-दूसरे से बहुत क्लोज हैं। हरेक बात एक-दूसरे से शेयर करते हैं। और ज्यादा कुछ नहीं है हमारे बीच...।"

निशि ने एकदम तपाक से उत्तर दिया था।लेकिन कुछ महीने बाद ही वो प्रेग्नेंट हो गयी थी और ये बात पूरे गर्ल्स और बॉयज हॉस्टल में फ़ैल गयी थी। और आखिरकार निशि को गर्भपात कराना पड़ा था। इसके कुछ ही दिन बाद एक और घटना घटी,जिसने पल्लवी के डर को और बढ़ा दिया। उसकी रूममेट पूजा जिसे पल्लवी बिल्कुल ही शरीफ समझती थी के बैग से 'आई-पिल' की गोली मिली ।इसके बाद तो जैसे पल्लवी को विश्वास हो गया कि अगर उसका कोई बॉयफ्रेंड बना तो उससे भी कोई न कोई गलती हो ही जायेगी और वो अपनी पूँजी खो देगी।अब उसे अपनी दादी की बात का पूरा यकीन हो गया था कि इस उम्र में किसी से भी ऊँच-नीच हो सकती है।

........पल्लवी इस दौड़ के सारे फैशन करती,अलग-अलग ढंग में फेसबुक पर फोटो भी अपलोड करती, लेकिन जैसे ही वो बॉयफ्रेंड के बारे में सोचती थी कि उसके अंतर में एक बिजली सी कौंध जाती.....। एक प्रकार का डर उसके अंदर आकर अपना साम्राज्य स्थापित कर जाता था। डर ,कि कहीं वो अपनी पूँजी ना खो दे। अगर ऐसा कुछ हो गया तो वो दादी और अपने आप को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहेगी। कुछ दिनों तक तो वो इस अंतर्द्वंद्व से लड़ती रही। लेकिन साथ-साथ वो अकेलेपन का भी अनुभव करती थी। शायद इस उम्र की जरुरत थी कि कोई ना कोई हो ,जिससे कि वो अपनी बातें शेयर कर सके।जिसका हाथ पकड़ के चलने पर वो खुद को सुरक्षित महसूस कर सके। अब इस तरह की सोच पल्लवी के दिमाग पर हावी होने लगी थी। एकदिन खुद से लड़ते-लड़ते उसने खुद से ही पूछा ,"क्या वो इतनी कमजोर है कि अपनी पूँजी,अपने संस्कार, अपना चरित्र बचा के नहीं रख सकती?बॉयफ्रेंड होना तो कोई गलत बात नहीं है। हाँ,उसके साथ फिजिकल होना भले ही गलत है। तो क्या उसको खुद पे इतना भी कंट्रोल नहीं है....?"

आखिर मन के घोड़े को रथ की दिशा मोड़ने का आदेश मिल गया। जो केवल पढ़ाई और एकांतवास कि दिशा में अग्रसर था,उसे अब अनुमति थी कि वो मैत्री और साहचर्य वाले रास्ते पर भी रथ को ले जा सकता है । उसका पड़ाव किसी लड़के की मित्रता भी हो सकता है। और फिर मन का घोड़ा किसी उपयुक्त मित्र की तलाश में आगे बढ़ने लगा...........।

सिद्धार्थ नाम का एक लड़का उसके रथ पर उसका सहयात्री बनने वाला था। हाँ,पल्लवी की पलकों पर सिद्धार्थ का चेहरा आया करता था। सिद्धार्थ बिहार का नहीं था, वो एमपी का रहने वाला था। सिद्धार्थ छह फुट लंबा ,एकदम गोरा और बड़े-बड़े बालों वाला लड़का था। उसकी क्लास में शायद ही कोई लड़का सिद्धार्थ जैसा हैण्डसम था। क्लास की अधिकांश लडकियाँ ये चाहती थीं कि सिद्धार्थ उसका बॉयफ्रेंड बने। लेकिन सिद्धार्थ भी पल्लवी के अलावा किसी और को देखता तक नहीं था। वो भी पल्लवी की सुंदरता का आसक्त हो गया था। वो हमेशा उसके सामने और पीछे भी पल्लवी की तारीफों के पुल बाँधा करता था। पल्लवी भी उसे बहुत प्यार करती थी लेकिन उसको बस एक बात का ही डर लगा रहता था......।

धीरे-धीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगीं...। नजदीकियों के साथ-साथ सिधार्थ का फोनबिल भी बढ़ने लगा था।लेकिन पल्लवी का कुछ कम गया था और वो था उसके सोने का समय।हाँ,पल्लवी अब पहले से बहुत कम सोने लगी थी। दोनों अब साथ में मूवी देखने के लिए जाने लगे थे.....वीकेंड्स पर घूमना अब उनके रूटीन में आ चुका था। अगर किसी कारणवश रात को बातें नहीं हो पाती थी ,तो करवटों में ही उनकी रात बीतती थी। दोनों के बारे में चर्चे भी अब आम हो गए थे। कुछ लडकियां जो कि सिद्धार्थ को अपना बॉयफ्रेंड बनाना चाहती थीं,पल्लवी के साथ उसको घूमते देख काफी जलने लगी थीं। कुछ ने तो पल्लवी को सुनाकर यह भी कह दिया कि बड़ी सती-सावित्री बनती थी आज सबकुछ कर लिया ना सिद्धार्थ के साथ.........।लेकिन पल्लवी उनकी बातों पर रत्ती भर भी ध्यान नहीं देती थी। पल्लवी अब पहले से काफी ज्यादा खुश रहने लग गयी थी ।क्योंकि अब उसके भी बॉयफ्रेंड था जिसके साथ वो घूम सकती थी ,कोई भी बात शेयर कर सकती थी...।

एक बार दोनों मूवी देखने गए थे। सिद्धार्थ के दोस्त अपनी गर्लफ्रेंड के साथ मूवी हॉल में क्या-क्या करते थे ये बताया करते थे। उन सब की बातें सुन-सुन कर सिद्धार्थ के मन में एक असंतोष पैदा होने लगा था। कभी-कभी तो उसे काफी पछतावा भी होता था कि वो पल्लवी के साथ कुछ भी नहीं करता बस फ़िल्म देखता है और आ जाता है। आखिर था तो वो भी एक मर्द ही.....उसके मन में कुछ हासिल नहीं कर पाने के कारण एक टीस सी उठ गयी। तो,उस दिन सिद्धार्थ का थोड़ा सा भी ध्यान फ़िल्म देखने पर नहीं था। वह किसी और ही सोंच में डूबा हुआ था। उसे लग रहा था वो भी पल्लवी के साथ वो सब करे जो उसके दोस्त अपनी-अपनी गर्लफ्रेंड के साथ करते हैं। वो पल्लवी के बगल में बैठे कभी पल्लवी को निहारता तो कभी आगे-पीछे बैठे युवा जोड़ों की करामात को देख रहा था। आखिर उससे भी रहा नहीं गया.....। उसने डरते-डरते अपने काँपते हाथ को पल्लवी के हाथ पर रख दिया और थोड़ा गंभीर दिखने की चेष्टा करने लगा। सिद्धार्थ के दिल की धड़कन काफी बढ़ गयी थी लेकिन चेहरा उसने बिलकुल ही धीर सा बनाया हुआ था और वो पल्लवी की तरफ एक नजर भी नहीं देखा रहा था। पल्लवी उसकी इस हरकत पर बिना कोई प्रतिक्रया दिए मूवी देखने में तल्लीन रही। सिद्धार्थ थोड़ा डरा हुआ था।लेकिन पल्लवी की निष्क्रियता ने उसकी हिम्मत थोड़ी बढ़ा दी। उसने अपना दूसरा हाथ धीरे से उसकी जाँघ पर रख दिया। पल्लवी ने गुस्से से उसकी तरफ देखा और उसका हाथ वहाँ से हटा दिया।पल्लवी ने सिद्धार्थ को कुछ कहा नहीं और फिर से सिनेमा देखने में लग गयी। लेकिन सिद्धार्थ तो आज पूरा मन बना के आया था। थोड़ी देर चुप बैठने के बाद उसने फिर से अपना एक हाथ पल्लवी के कंधे पर और दूसरा हाथ उसकी जाँघ पर रख दिया। इस बार पल्लवी ने काफी गुस्से से उसका हाथ तेज़ी से झटक दिया और थिएटर से बाहर निकल के आ गयी। पल्लवी के पीछे-पीछे सिद्धार्थ भी बाहर आ गया और उसने पल्लवी से पूछा,"व्हाट्स रॉंग विद यू?"

"व्हाट्स रॉंग विद यू सिद्धार्थ..........?"

"यार देखो आज की डेट में ये सब नॉर्मल बातें हैं । सभी तो करते ही हैं।और मैं कौन सा तुम्हे सेक्स करने को कह रहा हूँ.......!"

"शट अप! हाउ चीप यू आर सिधार्थ.......?मैं तुम्हें ऐसा बिल्कुल भी नहीं समझती थी........!"

उसके बाद पल्लवी रोती हुई हॉस्टल चली गयी। इस बार सिद्धार्थ उसके पीछे-पीछे नहीं आया। सिद्धार्थ निरुत्तर था। उसके पास अब कोई भी शब्द नहीं था सिवा "सॉरी" के।लेकिन उस समय वो वह भी नहीं बोल पाया ।क्योंकि उसे नहीं लग रहा था की उसको सॉरी बोलने की कोई जरुरत है............।

पल्लवी अपने कमरे में जाके रोये जा रही थी। रोते-रोते मन-मन बोल रही थी कि सही कहा है किसी ने "ऑल मेन आर डॉग्स"...........। अगर दादी की बातें पल्लवी के खून में नहीं बसी होतीं तो उसके लिए भी ये सबकुछ करना आम ही होता। लेकिन,......................।

कुछ दिन बीते,दोनों में कोई बातचीत नहीं होती थी। शुरुआत में तो पल्लवी सिद्धार्थ को देखकर मुँह फेर लेती थी। वो ये सोचती थी कि वो उससे सॉरी बोलने आएगा। पल्लवी सिद्धार्थ को बहुत चाहती थी और उससे दूरी पल्लवी को बहुत सालती थी। बहुत दिनों तक पल्लवी सोचती रही थी कि सिद्धार्थ देर ना सवेर उससे बात जरूर करेगा। लेकिन तीन महीने बीतने के बावजूद भी जब सिद्धार्थ पल्लवी के प्रति उदासीन ही रहा ,तो पल्लवी ने ही एक दिन सिद्धार्थ को टोका।

"सिद्धार्थ बात नहीं करोगे मुझसे.......?"

"मुझे कोई बात-वात नहीं करनी है.....!"

सिद्धार्थ ने उपेक्षाभाव से मुँह फेरते हुए जवाब दिया था।

"देखो सिद्धार्थ मैं ये सब नहीं कर सकती,मेरी कुछ प्रतिबद्धता है यार......।"

"हाँ तो मैं कहाँ कुछ बोल रहा हूँ।मैं कहाँ बोल रहा हूँ कि तुम कुछ करो मैंने तो तुमसे बात तक करना बंद कर दिया। अब तुम क्यों मेरे पीछे पड़ी हुई हो...........?"

इतना कहने के बाद सिद्धार्थ गुस्से में वहां से चला गया। वो शायद इस सोच में वहाँ से निकला था कि पल्लवी फिर से उसके पीछे आएगी उसको मनाने के लिए...। उसे लग रहा था कि पल्लवी उससे बातें किये बगैर नहीं रह सकती और अगर वह इसी तरह उससे गुस्सा रहा तो पल्लवी वो सबकुछ करने को राजी हो जायेगी जो सिद्धार्थ चाहता था।लेकिन पल्लवी भी एक दृढ़निश्चयी लड़की थी।उसने ऐसा कुछ नहीं किया।वो सिद्धार्थ के पीछे नहीं गयी। उसने तय कर लिया कि अब वो कभी भी सिद्धार्थ से बात करने नहीं जायेगी।और अगर अब सिद्धार्थ उससे बात करने आया भी तो उससे बात नहीं करेगी। सिद्धार्थ के प्रति उसका सारा प्यार अब उतनी ही मात्रा में गुस्से में तब्दील हो गया था। पल्लवी ने अपना बॉयफ्रेंड खो दिया था लेकिन दादी की दी हुई सीख कि "अपनी पूँजी सुरक्षित रखना",ये उसके दिमाग में था और उसने अपनी पूँजी बचा ली थी। इंजीनियरिंग में दो साल पूरा होते-होते पल्लवी का बॉयफ्रेंड भी बना और उसका ब्रेकअप भी हुआ और अब पल्लवी ने ठान लिया था कि वो केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान देगी ।अब उसे किसी के साथ की जरुरत नहीं.......। वो अकेली ही भली है......।

देखते-देखते समय अपनी रफ़्तार से बढ़ता रहा ।पल्लवी ने बी-टेक पूरा कर लिया।लेकिन पल्लवी थोड़ी दुर्भाग्यशाली रही और उसका कैंपस सेलेक्शन नहीं हो पाया। दरअसल कैंपस के समय पल्लवी थोड़ी बीमार पड़ गयी थी। और पल्लवी किसी भी कैंपस सेलेक्शन में बैठ ही नहीं पायी थी। पल्लवी ये मौका चूक गयी थी। उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने पर नौकरी ढूँढने में काफी मसक्कत करनी पड़ी।नौकरी ना मिल पाने की वजह से पल्लवी काफी गमजदा रहने लगी थी। वो अब अपने एक रिश्तेदार के पास दिल्ली में रहने लगी थी। वहीँ रहकर वो अपने लिए नौकरी की तलाश कर रही थी,पर उसे नौकरी मिलने में काफी दिक्कतें आ रही थी। कोई भी कंपनी काफी कम सैलरी पर जॉब देने को तैयार होती थी।काफी ढूंढने के बाद पल्लवी ने आखिरकार एक कंपनी ज्वाइन कर ली।आखिर कब तक वो किसी रिश्तेदार पर बोझ बनकर बैठी रहती। सैलरी थोड़ी कम थी, फिर भी पल्लवी को थोड़ा संतोष था क्योंकि उसकी सैलरी उसकी उम्मीद से तो कम थी लेकिन कैंपस नहीं होने पर उसके बाकी दोस्त और भी कम सैलरी पर नौकरी कर रहे थे।पल्लवी को कंपनी की तरफ से रहने के लिए एक रूम का एक फ्लैट भी मिला था ।फ्लैट उसकी कंपनी से थोड़ी ही दूर एक अपार्टमेंट के छठे तल्ले पर था। फ्लैट मिलते ही पल्लवी ने अपने रिश्तेदार के यहाँ से अपना सारा सामन बाँध लिया और अपने फ्लैट में शिफ्ट हो गयी.......।

अब पल्लवी विद्यार्थी जीवन की परिधि से बाहर थी। जिम्मेदारियों की शक्ल में नए दोस्त उसके साथ थे। उसकी दिनचर्या अब काफी बदल चुकी थी। पल्लवी धीरे-धीरे और परिपक्व होते जा रही थी।बढ़ती उम्र के साथ पल्लवी के अनुभव में भी इज़ाफ़ा होते जा रहा था। उसकी जिंदगी में कुछ बातें अब नयी थीं,जो उसे बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी थीं। पहली बात कि उसके पाप बार-बार उसकी शादी की बात किया करते थे। पल्लवी अभी शादी नहीं करना चाहती थी। वो अभी और ज्यादा खिलना चाहती थी। उसका मानना था कि उसका कैरिअर अभी अधखिले पुष्प की तरह है, जब तक यह पूर्णाकार नहीं लेगा तब तक सभी को अपनी ओर आकर्षित और मोहित नहीं कर सकता। इसलिए जब भी उसके पापा शादी की बात छेड़ते वो हमेशा मना कर देती थी। दूसरी बात जो उसे सताती थी वो ये थी कि उसकी दादी आजकल ज्यादा ही बीमार रहने लगी थीं। दादी के इलाज में काफी ज्यादा खर्च हो रहा था । पल्लवी अपनी दादी को बहुत ही ज्यादा प्यार करती थी। वो यहाँ से इलाज के पैसे भेजकर पापा की मदद तो करती ही थी, लेकिन दादी को देखने,उनसे मिलने और बातें करने के लिए पल्लवी का मन बेचैन ही रहता था। तीसरी बात सबसे ज्यादा गंभीर थी और पल्लवी उस बात को सोचकर काफी चिंतित रहती थी। उसके बॉस की कुदृष्टि पल्लवी पर पड़ गयी थी। उसका बॉस हमेशा किसी बहाने से पल्लवी को अपने ऑफिस में बुला लेता और उसे इधर-उधर छूने का प्रयास करता रहता था। वो चाहती थी कि नौकरी छोड़ दे लेकिन घर पर दादी के इलाज के लिए अभी पैसों की शख्त जरुरत थी। इसलिए वो अपना मन मारकर वहाँ नौकरी कर रही थी....................।

उसके बॉस ने कई बार पल्लवी को कहा कि वो उसके साथ मूवी देखने चले।कई बार साथ में डिनर करने के लिए भी इनविटेशन दिया,लेकिन हर बार पल्लवी कोई-न-कोई बहाना बनाकर टाल जाती थी। वो पहले ही बॉस की मंशा जानती थी और रात में उसके साथ बाहर जाना खतरे से खाली नहीं था। इसलिए हरबार पल्लवी कुछ-न-कुछ बहाना बना लेती थी ताकि बॉस के साथ उसे न जाना पड़े......।वो ऑफिस में तो हमेशा ही बॉस की कुत्सित इच्छाओं का शिकार होते रहती थी।चाहते हुए भी वो बॉस के ऑफिस में जाने से मना नहीं कर पाती थी।और ऑफिस में बुलाकर काम के बहाने बॉस कभी उसके कंधे पर हाथ रख देता,कभी कमर पर तो कभी .........।वो जल्दी से काम ख़त्म कर ऑफिस से बाहर आने के लिए व्याकुल रहती थी। मन-ही-मन पल्लवी सोचती कि अगर दादी अभी बीमार नहीं पड़ती तो वो कब की ये नौकरी छोड़ चुकी होती। मगर वो अब करे तो क्या करे.........

उसके बॉस के दिमाग में भी बस पल्लवी ही बस गयी थी। वो पल्लवी से प्यार नहीं करता था। हर वक़्त बस उसे हासिल करने की तमन्ना लिए बैठा रहता था। वो अब कंप्यूटर पर हमेशा पल्लवी का फेसबुक अकाउंट खोलकर उसकी तस्वीर देखा करता था। एकदिन पल्लवी के बॉस ने पल्लवी का रिज्यूम खोल के देखा। बॉस ने रेज़्यूम में देखा तो उसे पता चला कि इसी महीने पल्लवी का जन्मदिन भी है। फिर क्या था बॉस की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। वो तरह-तरह की तरकीबें बनाने लगा। उसे पता था कि अगर जन्मदिन के दिन पल्लवी को कुछ बोला जाए तो बिल्कुल भी मना नहीं करेगी और उस दिन वो.........।

उस दिन वो केक और गिफ्ट लेकर सीधे पल्लवी के फ्लैट पर चला गया।उसने कॉल-बेल बजाई ।पल्लवी ने दरवाजा खोला तो देखा उसका बॉस दरवाजे पर खड़ा था। पल्लवी का मन बहुत जोर से डर चुका था। उसकी धड़कनें उस हैवान को अपने दरवाजे पर देख कर काफी तेज़ हो गयी थीं। वो अपने बॉस के स्वभाव से काफी अच्छी तरह से परिचित थी। उसे डर लग रहा था ।वो फ्लैट पर बिल्कुल अकेली रहती थी।और ऐसे में उसके बॉस का घर पर आना उसे किसी अनिष्ट होने का संकेत लग रहा था।उस दिन रविवार भी था ,इसलिए उस फ्लोर के अधिकाँश लोग उस दिन बाहर गए हुए थे।

"हैप्पी बर्थडे माय डिअर पल्लवी ..........." बोलता हुआ सीधे अंदर घुस गया।ना चाहते हुए भी पल्लवी को उसका स्वागत करना पड़ा।

"सर,आप अकेले यहाँ आ गए?"

"क्यों ! मैं अकेले नहीं आ सकता क्या? आखिर मुझे तुम्हें सरप्राइज़ गिफ्ट जो देना था!"

पल्लवी ने फिर से बनावटी मुस्कान के के साथ बॉस की तरफ देखा और चुप रही। अब जब बिन बुलाया मेहमान घर आ ही गया था तो औपचारिकता तो पूरी करनी ही थी।पल्लवी ने कहा,"आप यहीं बैठिये सर ,मैं पानी लेकर आती हूँ।"

"नहीं-नहीं जल्दी से केक काट लो मुझे कहीं जाना है देर हो रही है......।"

इतना सुनते ही पल्लवी को बड़ी तसल्ली मिली। वो तो समझ रही थी, ना जाने कहाँ से आज बॉस से पाला पड़ गया ।लेकिन ज्यों ही बॉस ने कहा कि उसे जल्दी निकलना है पल्लवी की तो जैसे जान में जान वापस आई। पल्लवी का मन अब बिलकुल शांत हो रहा था।

बॉस ने भी किसी तरह की हरकत नहीं की। चुप-चाप केक काटा गया। फोटोग्राफी भी हो गयी। लेकिन बॉस ने तो पहले से ही मन बना रखा था। पल्लवी ने पहले बॉस को केक खिलाया।उसके बाद बॉस ने भी पल्लवी को केक खिलाने के लिए एक हाथ पीछे कमर पे ले जा के उसको जोर से पकड़ लिया फिर केक खिलाया।केक खाने के बाद जैसे ही पल्लवी अपनी कमर से उसका हाथ हटाती ,बॉस ने पल्लवी को किस कर लिया। बॉस ने बहुत ही जोर से अपने होठ पल्लवी के होठ पर रख दिए और तकरीबन एक मिनट तक किस करता रहा।चूँकि उसका एक हाथ पल्लवी की कमर पर था इसलिए पल्लवी कुछ कर नहीं पा रही थी।फिर भी पल्लवी ने काफी मशक्कत के बाद अपने आप को बॉस से अलग कर लिया। जिस अनिष्ट के घटने की चिंता पल्लवी को थी वो अब होने वाला था। पल्लवी उससे अलग होकर जैसे ही दूर जाने लगी कि बॉस ने उसका हाथ पकड़ लिया।

"पल्लवी......,मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ यार। बस एक बार......,देखो किसी को कुछ पता नहीं चलेगा,मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगा। बस एक बार ...........।फिर देखना मैं तुम्हें जल्दी से प्रमोशन भी दे दूँगा।और तुम्हारी तनख्वाह भी बढ़ा दूंगा।बस एक बार पल्लवी ,सिर्फ एक बार......।"

"सर आप मुझे गलत समझ रहे हैं। मैं उस टाइप की लड़की नहीं हूँ सर.......।प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिये सर!"

"पल्लवी आज अच्छा मौक़ा है ।तुम्हारे फायदे की ही बात है ।हमदोनो खुश रह सकते हैं इसमें।बस एक बार हाँ कह दो मैं दुबारा कभी तुम्हें तंग नहीं करूँगा.....................।"

"नहीं सर प्लीज मुझे छोड़ दीजिये.......प्लीज......!"

"देखो,ख़ुशी-ख़ुशी सब कुछ हो जाए तो ठीक है नहीं तो.........।"

बॉस के इतना कहते ही पल्लवी डर के दरिया में डूब सी गयी।वह दरिया पार करने के लिए अपना हाथ पैर मार रही थी। हाथ छुरा रही थी अपने बॉस क हाथ से.......।काश केक काटने वाला चाकू प्लास्टिक का ना होता तो वो कुछ कर पाती।तभी अचानक उसका हाथ बॉस के हाथ से छूट गया।दरवाजा खोलकर वह कमरे से बाहर निकली.....,बॉस उसके पीछे दौड़ा ।पल्लवी ने बिना कुछ सोंचे बालकनी से नीचे छलांग मार दी।जोर से 'धम्म' की आवाज आई और धरती लहूलुहान हो गयी.......।

पल्लवी ने अपनी दादी के कहे का अनुसरण किया।उनकी शिक्षा को वो आत्मसात कर गयी।पल्लवी अपने संस्कार ,अपना चरित्र और अपनी पूँजी बचाने में सफल हो गयी थी। लेकिन इन सब को सुरक्षित रखने के लिए उसे अपना सबसे अनमोल धन देना पड़ा ,उसने इसके लिए अपना जीवन तक दे दिया। लेकिन हमारे समाज के लोग ......,बिना कुछ बोले तो रह ही नहीं सकते।लोग उसके और उसके बॉस के बारे में कई कहानियां बनाने लगे थे।सारी दुनियाँ पल्लवी को चरित्रहीन और कुलटा ही समझ रही थी। कोई ना तो ये जानता था और ना ही ये सोच पा रहा था कि पल्लवी ने अपनी पूँजी बचाने के लिए अपनी जिंदगी तक दे दी....।कई लोग तो इतना तक कह रहे थे कि पल्लवी अपने बॉस के बच्चे की माँ बनने वाली थी और बॉस ने जब मना कर दिया तो उसने अपनी जान दे दी।

लोग तो लोग थे....।बातें करना ही उनका काम था......।अपना चरित्र बचाये रखने के बावजूद आज पल्लवी चरित्रहीन थी।कोई उसकी व्यथा को समझने को तैयार ना था।और पल्लवी भी किसी को समझाने नहीं आ सकती थी.............।क्योंकि वो पल्लवी थी, सीता नहीं कि कोई अग्निपरीक्षा देकर अपने आप को पवित्र साबित कर सके..........।

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