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पांच कथाएँ

आदमखोर

भगीरथ

आखिर तंग आकर लोग उस कलंकिनी को अपने मुहल्ले से खदेड़ते -खदेड़ते जंगल की ओर ले गए । वह हांफते -हाफंते जमीन पर पसर गर्इ । भीड़ के नायक ने उसे पेड़ से बांधने का आदेश दिया ताकि जंगली जानवर उसे नोंच - नोंच कर खा सके ।

जब उसे होश आया तो चिल्लायी - बचाओ ! बचाओ ! उसकी आवाज सुनकर भेडि़या ] तेंदुआ ] चीता आदि हिंसक पशु दौड़ कर आये । वे खुश थे कि एक सुन्दरी उनका भोज्य बनने जा रही है । बहुत ही कोमल मांस होगा ]मक्खन की तरह और रक्त जमीं से निकलते सोते - सा गर्म ] उनकी लार टपक रही थी ] वे गुर्रा रहे थे । और झपटने की तैयारी कर रहे थे । वह और जोर से चीखी ] वे झपटना ही चाहते थे कि तभी एक धमाका हुआ और भेडि़या धूल में लोट गया बाकी जानवर भाग खड़े हुए ।

तभी एक राजपुरूष कंधे पर राइफल थामे उस ओर आया वह अति सुन्दर कोमलांगी को देखकर दंग रह गया विश्व सुन्दरी का यह हाल उसने अपने सेवकों को रस्सी काटने का आदेश दिया । रस्सी काटते हुए एक सेवक बोला - हजूर गुस्ताखी माफ हो जरूर यह कोर्इ कुल्टा स्त्री होगी इसे अपनी सजा भुगतने दीजिए ।

-तुम अपना काम करो ] कड़क आवाज में राजपुरूष बोला . वह उसके पास गया, उसके माथे को सहलाया. वह नीम बेहोशी की हालत में थी ।

भेडि़या अब भी छटपटा रहा था

राजपुरूष ने कोमलांगी को अपनी गोद में लिटाकर पानी छिटका, मुंह खोल कर दो - चार घूंट हलक में डाली वह होश में आखें खोल देख रही है कि कोर्इ उसे सहला रहा है । वह सुरक्षित महसूस कर उसकी छाती से चिपक गर्इ । राजपुरूष धन्य हो गया ।

अब तुम हमारे महल की शान बनोगी हमारे हृदय के सिंहासन पर बैठोगी अब कोर्इ आदमखोर तुम्हें नौंच नहीं सकेगा ।

भेडि़या अंतिम सांसे गिन रहा था । राजपुरुष के शब्द सुनकर बोला अरे हम तो एक ही बार में नौंच डालते लेकिन तुम तो इसे रोज - रोज नौंचेंगे।

राजपुरूष का अटटहास गूंजा - अगर ऐसा है तो हर पुरूष हिंसक पशु है लेकिन र्इश्वर की कृपा है ऐसा नहीं है ] यह प्रेम है - प्रकृति की अनुपम देन और राजपुरूष ने कोमलांगी को चूम लिया ।

अतिथि

भगीरथ

हाँ मैं पराया धन हूँ मुझे अपने घर से युवावस्था में विदा कर दिया अब उस घर से मेरा रिश्ता महज रस्मों-रिवाज का रह गया है।

पिया का घर ही मेरा वास्तविक घर है. यह तो ठीक वैसे ही हुआ कि नर्सरी में पौध तैयार की और खेत में रोप दी लेकिन वहां किसान पौध का कितना ख्याल रखता है समय पर खाद पानी और अपने हाथों का ताप और दिल का प्यार देता है । तब जाकर पौध फलती -फूलती है और किसान को देखकर लहलहाने लगती है।

पिया का घर प्यारा लगे अगर वहाँ प्यार अपनापन थोड़ा सम्मान और थोड़ी स्वतंत्रता मिले। यही नहीं कि दिनभर दूसरों के इशारे पर नाचते रहो और जली-कटी सुनते रहो।

मेरा सौभाग्य था कि मेरे पिया की सर्विस चैन्नई में थी और ससुराल भोपाल में । पिया ने खाने -पीने की दिक्कत बताकर माँ से हाँ भरवाली कि वह मुझे चैन्नई ले जायेगा। इस मामले में पिया के साहस की प्रशंसा करनी पडेगी । नहीं तो ऐसे मामलों में लड़के मां -बाप के सामने गूंगे हो जाते है। अब मेरे मन का डर मुझ पर हावी होने लगा कि कहीं सास साथ न चली आए क्योंकि वे बार - बार आग्रह कर रहे थे कि माँ तुम भी साथ चलो । लेकिन उन्होंने आग्रह टालते हुए कहा कि बाद में आउंगी हफ्ते भर के लिए।

विवाह के सप्ताह भर बाद हम दोनों चैन्नई चले गये । न बाबूल के घर न पराये (ससुराल)घर बल्कि मेरे अपने घर जिसे मैं अपनी पंसद से सजाऊँ -संवारू । क्या खाना बनाऊं ? क्या पहनूं ?कब सोऊं ? कब घूमने जाऊँ? कोई डिक्टेट करने वाला नहीं ।

मुझे जैसे पंख लग गये थे। हम प्रेम में भीगे-भीगे] बौछारो में मस्ती करते सागर के किनारे हाथ में हाथ लिए डूबते सूरज को निहारते] लहरों का संगीत सुनते और फिर किसी रेस्त्रां में डिनर कर घर पहुंच जाते ।

समाज अब भी वही है वे ही मान्यताएँ और मूल्य हैं । फिर भी मुझे जो थोड़ा स्पेस मिला है उसमें मैं खुले में सांस ले सकती हॅू। और अपने फैफड़ों में जीवन की सांसे भर सकती हूँ । पिता या ससुर के घर हफ्ते - दो हफ्ते की आवाजाही रही है। वहाँ अब मेरी हैसियत अतिथि की रह गई है।

बलिदान

भगीरथ

शत्रुऔं की आँखें राज्य पर गड़ी थी। आक्रमण के बादल मंडरा रहे थे।राज पुरोहित का मानना था कि राज्य संकट में हैं 'और इस संकट से देवी माँ ही राज्य को बचा सकती हैं ।

'वह कैसे ?'

'माँ बलि चाहती है' मुनादी करवा दी गई ।

राज्य की रक्षा के लिए बलि का आयोजन रखा गया ,

राज्य के लिए अपनी जान देने वाले युवको को न्यौता गया '

इस पवित्र कार्य के लिए एक ग्रामीण युवक उपस्थित हुआ '

राज पुरोहित ने मुआयना किया' अखंडित था वह युवक, स्वस्थ था ,कोई बीमारी नहीं थी। राज पुरोहित ने पूछा- देवी माँ के पास जाएगा

उसने हां में सिर हिला दिया।

राज्य व राजा के लिये अपने प्राण दे सकता है?

क्यों नहीं?लेकिन ---------?

कहो। राजपुरोहित ने जानना चाहा।

मैं अपनी बात राजा से ही कहूंगा।

ठीक है तुम्हें अवसर मिलेगा।

उबटन लगाकर स्नान कराने के बाद उसे नये वस्त्र पहनाये गये। आरती उतारी गयीं नाना प्रकार के व्यंजन परोसे गये और राजमहल के अतिथिगृह में शाही मेहमान की तरह रखा गया।

कुछ दिनो बाद राजधानी की सड़को पर उसकी शोभायात्रा निकाली गईं।वह राजसी वस्त्र पहने ,रथ पर सवार था उसकी जय -जयकार हो रही थी और उसपर फ़ूल बरसाये जा रहे थे ।वह अति प्रसन्न था। इतना आनन्द उसने अपने जीवन में नहीं भोगा था ।

एक दिन युवक को राजा के सम्मुख पेश किया गया। राजदरबार में राजकुमार ,दीवान ,जागीरदार,सेनापति और उनके युवा वीर पुत्र भी मौजूद थे

'हाँ युवक कहो ,क्या कहना चाहते हो ? जिस राज्य में तुम्हारे जैसे युवक हो वह राज्य धन्य है कहो क्या बात है? राजा ने युवक को संबोधित किया।

'राज्य पर बलिदान होने के बाद मेरे परिवार को चार एकड़ जमीन दे दी जाय , तो मेरा बलिदान मेरे परिवार के लिए भी सार्थक हो जायेगा '

'तुम्हारी इच्छा पूरी होगी और अभी। दरबार में कोई पूछ्ने वाला नहीं था कि माँ अपने बेटे की बलि से कैसे खुश होगी? सभी दरबारी राहत की सांस ले रहे थे कि उनके युवा पुत्र बच गये।

बंदी जीवन

भगीरथ

विवाह पश्चात पत्नी ने पति से कहा ,”अब हम पति –पत्नी है .”

‘क्या ऐसा नहीं हों सकता कि हम अविवाहित प्रेमी –प्रेमिका बन जाय .”

‘हम प्रेमी –प्रेमिका तो बन सकते है ,लेकिन अविवाहित नहीं ,क्योंकि हमारा विवाह हो चुका है ”

“भूल जाओ कि हमारा विवाह हुआ है .ऐसे रहो जैसे प्रेमी –प्रेमिका रहते है .”

“वो छुप छुप कर मिलना,वो चौकन्ना होकर घर से निकलना,कोई देख न ले इसका हर वक्त डर. रात भर आहें भरना ,तारे गिनना ,एक दिन न मिलो तो विरह वेदना भोगना ,विवाह के बाद ये सब कैसे संभव है ? फिर रहना भी तो तुम्हारे घर-परिवार के साथ है .”

‘कोशिश करके तो देख सकते है .”

‘ये तब संभव होगा जब हम डेटिंग यानि हनीमून पर दो तीन महीने के लिए चल दें .”

‘क्या ख़ूब आइडिया है इसकी तो परमिशन मिल ही जायगी .हो सकता है उस उन्मुक्त माहौल में प्रेम अंकुर फूट ही जाएँ .

‘युवक-युवतियों में देह का आकर्षण तो रहता है क्योंकि देह कि अपनी जरूरते है यह आकर्षण स्वाभाविक है पर यह प्रेम नहीं है’

‘जब हम दिल से एक दूसरे को चाहेंगे तो प्रेम तो होना ही है .प्रेम जीवन को निर्भार कर देता है ,जीवन में पंख लग जाते है समय की उडान आसान हो जाती है .”

बात तुम्हारी ठीक है , विवाह ने हमें लॉक कर दिया. विवाह तो बंधन ही है .अब तो बंदी जीवन को जितना खुश हाल रख सकते हो दोनों मिलकर रखें .

“विवाह में भी प्रेम संभव है “

साथ –साथ रहते हम एक दूसरे की जरूरतें पूरी करते है ,थोड़ी बहुत एक दूसरे की केयर भी करते है .हमें एक दूसरे की आदत हो जाती है बस यही हमारा प्रेम है.

भाग शिल्पा भाग

भगीरथ

अभी मैं बत्तीस वर्ष की हूँ लेकिन देखने में चालीस की लगती हूँ ।जब बाईस वर्ष की उम्र में ,मैं ब्याह करके आई थी तो सपनों का एक संसार साथ लेकर आई थी

लेकिन कुछ ही महीनों में यथार्थ के जलते अंगारों का ताप मेरे पांव महसूस करने लगे। मेरी दुनिया झाडू पौंछा बर्तन कपडे और किचन में सिमट गई।

मुझ से सबको अपेक्षाएं थी जिन्हें पूरा करना मेरा कर्त्तव्य था लेकिन मेरे प्रति किसी का कोई दायित्व नहीं था। खाना-कपडा मिल रहा है,रहने के लिये अच्छा-खासा मकान है, खाता-पीता घर है, क्या कमी है !

जब मैं पहली बार प्रेगनेंट हुई तो पति तव्वजो देने लगे ,सास बलाईयां लेने लगी ,अब इस घर का वारिस आ ही जायगा , मन्नत मांगने मुझे रुहानी बाबा की मजार ले जाया गया वहां मुझसे चादर चढवाई गई,देवी मंदिर में माँ से पोता मांगा और माँ का भंडारा किया । गुरेद्वारे जा कर अरदास भी की और लंगर भी छकाया।

सास कभी किसी बाबा को बुलाकर भभूत दिलवाती,कभी किसी से अभिमंत्रित डोरा बंधवाती किसी मौलाना से ताबिज लाकर मेरी बांह पर बांध दिया जाता

यह सब देखकर मैं बुरी तरह घबरा गई कि अगर मेरे बेटा नहीं हुआ या उनकी भाषा में कहूं तो अगर मैनें उन्हें बेटा नहीं दिया तो ,मेरी क्या गत बनेगी इसका सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है

इन सारे क्रिया-कर्म के बावजूद पति आश्वस्त नहीं थे वे अपने विश्वसनीय डाक्टर के सम्पर्क में थे सोनोग्राफी करवा कर गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग मालूम करना चाहते थे अच्छी खासी रकम देकर डाक्टर ने कहा जै माता दी देवी मां का आशीर्वाद है

अब नयी समस्या आ खडी हुई कि इस देवी से कैसे छुटकारा पाया जाय ? एक बार फिर डाक्टर की जेब भरकर अबोर्शन करवा दिया और इस तरह मेरा पहला गर्भपात हुआ, खूब खून बहा और मैं कमजोर हो गई. मेरा बचा- खुचा आत्मविश्वास भी मेरा साथ छोड गया. बाद के वर्षों में जब ऐसा तीसरी बार हुआ तो डाक्टर ने कहा कि रिस्क है और आगे से अब नहीं होगा

उनका मानना था कि औलाद तो बेटे ही होते है बेटियां तो पराया धन होती है अब घर मे मेरे पति की दूसरी शादी की बात हो रही है तो पति सरोगेट मदर की बात कर रहे है मैं डरी-डरी,सहमी-सहमी जी रही हूं शरीर पूरा निचुड चुका है कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि इस नरक से भाग जाउं। कहां ?कोई भी जगह इससे तो बेहतर होगी, भाग शिल्पा भाग, अब तेरा यहां गुजारा नहीं और अपमानित होकर, और जलील होकर जीना, नहीं अब बस ।भागना ही अन्तिम विकल्प था और मैं भाग आई ।