छुट-पुट अफसाने

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वक़्त की ग़र्द में लिपटा काफ़ी कुछ छूट जाता है, अगर उसे याद का जामा पहना के बांध न लिया जाए। पिछली सदी में चालीस के दशक की बातें हैं, जब मैं कुछ महीनों की थी । पापा लाहौर में उस वक्त Glamour-World से जुड़े हुए थे । शायद तभी से वे बीज-तत्व मस्तिष्क में घर कर गए थे, जो मैंने आरम्भ से ही रंगमंच से नाता जोड़ लिया था । विभाजन की त्रासदी तो नहीं झेली थी, लेकिन सब कुछ पीछे छूट गया था, जिसे नियति वहां रहने पर रच रही थी ।

Full Novel

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छुट-पुट अफसाने - 1

एपिसोड--१ वक़्त की ग़र्द में लिपटा काफ़ी कुछ छूट जाता है, अगर उसे याद का जामा पहना के बांध लिया जाए। पिछली सदी में चालीस के दशक की बातें हैं, जब मैं कुछ महीनों की थी । पापा लाहौर में उस वक्त Glamour-World से जुड़े हुए थे । शायद तभी से वे बीज-तत्व मस्तिष्क में घर कर गए थे, जो मैंने आरम्भ से ही रंगमंच से नाता जोड़ लिया था । विभाजन की त्रासदी तो नहीं झेली थी, लेकिन सब कुछ पीछे छूट गया था, जिसे नियति वहां रहने पर रच रही थी । वह जमाना स्टेज- शो का ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 2

एपिसोड 2 अतीत से मुठभेड़ किए बिना, उन लम्हों की तलाश कहां हो सकती है - जो लम्हे ढेर अफसानों की जागीर छिपाए हुए हैं। आज जानें.... बीसवीं सदी के शुरुआती दिनों की बातें हैं। जिला झेलम, तहसील चकवाल के शहर "करियाला" में भगतराम जौली थानेदार थे। गबरू जवान ऊपर से बड़ी पोस्ट, बीवी की मौत हो गई थी बुखार से । फिर भी चकवाल के डिप्टी कमिश्नर रायबहादुर रामलाल जौहर ने अपनी इकलौती औलाद "विद्या" का विवाह भगतराम से कर दिया । एक शर्त रखकर, कि विद्या की दूसरी औलाद हमें देनी होगी । विद्या के पहला बेटा ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 3

एपिसोड ३ एक दिन झेलम से खबर आई कि इन्दर (I.S.Johar) बहुत बीमार है। बच्चों को लेकर भगतराम जी लख्ते जिगर को मिलने गए। लेकिन वो अपने बेटे को एक बार छाती से लगाकर प्यार नहीं कर सके। क्योंकि वो अपने वचन से बंधे जो थे। अब वो जौहर साब के दामाद थे केवल । हमारी मां बताती थीं कि उनके इस दर्द को बयां करना मुश्किल है। ये दर्द वहीं समझ सकते हैं, जिन्होंने अपनी औलाद किसी को गोद दी हो, और जग-ज़ाहिर की मनाही हो । बम्बई में मम्मी ने जब इंदर भाई से पूछा कि आप ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 4

एपिसोड ४ जीवन के फुर्सत के पलों में जब हृदय अतीत को निमंत्रण देता है तो प्रकृति घटित हादसों घटनाओं को भावी सृजन से नूतन अंशों में परिणत कर पुनर्जीवित करने का यत्न करती है और अनदेखा दृष्टव्य हो सम्मुख आ जाता है। पढ़ें यह अफसाना... अभी मेरा शुमार बच्चों में ही था कि एक दिन रोशनलाल मामा जी की telegram यानि कि 'तार' कलकत्ता सेआई।(तब फोन नहीं तार से संदेश भेजते थे ) " Naxal attack daughter murdered. Wife serious" मम्मी रोने लगीं । हम सब घबरा गए । पापा ने मम्मी को कोडू भापे के साथ कलकत्ते ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 5

एपिसोड ५ टकटकी लगाए पूनम के चांद को निहार रही थी कि हठात चौंक गई । बादलों का एक आया और चांद का मुंह पोंछ गया । फिर भी उसके चेहरे पे वही चमक बरकरार रही लगा चांद अधिक चमक उठा था और मैं ख्यालों में बह गई हूं, दू ऽऽ र तक..... इसी पूनम के चांद की दीवानी थी गुजरी (मेरी दादी )अपनी जवानी से । चांद के बढ़ते स्वरूप को हर रात बेसब्री से तकती थी वो और पूर्ण रूप देखते ही उसकी उमंगे नाच उठती थीं । पांव थिरक उठते थे और अन्तस से मधुर स्वर ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 6

एपिसोड -६ ज़िन्दगी की खाली स्लेट पर जो इबारत सबसे पहली लिखी गई यानि कि "तबूला रासा" (लेटिन में स्लेट) पर अंकित मेरे इस जीवन की पहली याद जबलपुर से है। पापा के लाहौर के जिगरी दोस्त लेखराज मल्होत्रा की बहन "सुरक्षा" की शादी किसी कर्नल ओबेरॉय के साथ जबलपुर म.प्र. में थी । शादी में पहुंचना जरूरी था । पापा १९४७ के जुलाई में ही अपनी स्टेशन वैगन में ड्राइवर "जीवन ", मम्मी और हम दो बहनों ( ऊषा और मुझे )और हमारी नैनी यानि कि आया' द्रौपदी' को साथ लेकर निकल पड़े थे। पहले अमृतसर रुके कुछ ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 7

एपिसोड ७ कुछ घटनाएं स्मृतियों में अंकित तो होती हैं। लेकिन वक्त़ की ग़र्द पड़ने से ज़हन में ही दफ्न पड़ी होती हैं, पर मिटती नहीं हैं । ख़ास कर बचपन की यादें...तब "तबूला-रासा" पर नई लिखावट थी शायद, इसीलिए ! ‌ १३अगस्त १९४७ को शादी की रौनक धीरे-धीरे ख़त्म होने की तैयारी में थी कि अगले दिन १४ अगस्त को रेडियो के आसपास सब भीड़ जमा कर के बैठ गए। ख़बरों का बाजार गर्म था । लेकिन भारत के मध्य में तो वैसे भी राजनैतिक हलचल ठंडी थी । उत्तर भारत के लोग जिन मुसीबतों से जूझ रहे ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 8

एपिसोड--८ कुछ यादें टीस की तरह रह-रह कर ताउम्र दर्द देती रहती हैं पर जान बख्श देती हैं बल्कि के एहसास को हर पल चुनौती देती रहती हैं------ ‌इन हालात में काफी दौड़-धूप की जा रही थी कि अब क्या किया जाए । लाहौर में glamour world से जुड़े थे, उसका तो यहां दूर-दूर तक कोई नामोनिशान ही नहीं था।तो फिर अब--? मल्होत्रा अंकल वकील थे। वकालत की प्रैक्टिस करते थे। बातों-बातों में उन्हें किसी मुवक्किल से पता चला कि जबलपुर से ६४ मील उत्तर की ओर "कटनी " शहर में अॉर्डिनेन्स फैक्टरी के आर्मी - केंटीन के ठेके ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 9

एपिसोड--9 एक-एक कर सब साथ चलते गए और कारवां बनता गया। यह भाईयों - बहनों और उनके बच्चों का जब कटनी के स्टेशन पर पहुंचा तो सब विस्फारित नेत्रों से वहां की बेरौनकी देख रहे थे कि किस उजाड़ में आ पहुंचे हैं।स्टेशन पर एक-दो औरतें दिखीं जिन्होंने बदन पर केवल एक ओढ़नी सी लपेटी हुईं थीं। न ब्लाऊज़ न पेटीकोट। हां आधे घूंघट में अवश्य थीं । मर्दों ने कमर में धोती को लंगोट जैसे पहना हुआ था । पंजाबियों के लिए यह अजूबा था।( ये ही वहां के गांवों में मूल निवासियों का पहनावा है ।) खैर, ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 10

एपिसोड--10 जाने-अनजाने झोली में ढेरों यादें, लम्हे, एहसास, मुस्कुराहटें, खिलखिलाहटें बटोरते रहते हैं हम सब । जब कभी उनमें किसी भी एहसास के साथ वक्त बिताने को दिल करे तो सब एक से एक बढ़कर आगे मुंह निकालते हैं-- मैं-, पहले मैं-, नहीं पहले मैं ! चलो, आज यही सही... असल में हम पुराने समय में वास्तविकता के धरातल पर नहीं, अपितु काल्पनिकता की उड़ानें भरते थे। कारण, एकदम साफ है। हमें काल्पनिक कहानियां सुनाई जातीं थी । परियों, राजा-रानी, राजकुमार- राजकुमारियां, राक्षस- चुड़ैल या भूतों की बनावटी कहानियां । अभी भी ज़हन में हैं। सुनते-सुनते कभी हम सपनों ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 11

एपिसोड - - 11 गहरी नींद में जब भजन की सुरीली आवाज आकर कान से टकराती तो मैं तकिये कान से भींच लेती। क्योंकि मुझे अभी और नींद लेनी होती थी। रात देर तक जागकर पढ़ने की आदत मेरी तभी से आज तक है। मम्मी प्रातःकाल पांच बजे नहा - धोकर चौड़ी लेस लगा दुपट्टा सिर पर ओढ़, सिंदूर की बड़ी बिंदी लगाकर हवन करती थीं। फिर भजन गाती थीं। ये भजन की गूंज हमारे मोहल्ले के लोगों के लिए अलार्म-घड़ी थी। पर मैं जानती थी कि अभी तो भगवान भास्कर अपनी यात्रा प्रारंभ करने हेतु रथ पर आरूढ़ ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 12

एपिसोड 12 वक्त की करवट की रफ्तार ने जो स्पीड पकड़ी है हर फील्ड में..उसकी हमने और आपने कभी भी नहीं की थी --यह एक कटु सत्य तो है, भयावह भी है कई अर्थों में । संस्कारों की बात करें या धर्म की, सामाजिक ढांचे का स्वरूप देखें या राजनैतिक होड़ में सत्ता की लोलुपता के लिए आस्थाओं की आहुतियां डलते देखें । कहीं भी मन को शांति नहीं मिलती। संस्कार तो माता -पिता व परिवार से विरासत में मिलते हैं । मां या दादी घर में जिस ढंग से पूजा करतीं हैं और रीति-रिवाज निभातीं हैं, हम लोगों ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 13

एपिसोड --13 किसी शायर ने क्या खूब इश्क के फितूर की बात कही है ... " फितूर होता है उम्र में जुदा-जुदा चढ़ती है जब इश्क की खुमारी ख़ुदा-खुदा । हंसता-खेलता बचपन दहलीज से पांव बाहर निकालने को होता है कि अल्हड़़ जवानी पीछे से आकर उसे पाश में बांध लेती है । ऐसा जादू चलता है उसका कि बचपन कब नन्हे पदचाप लिए किस ओर भाग जाता है, उसका पता ही नहीं चल पाता है । इसकी गवाही में स्कूल और आसपास का वातावरण सार्थक मूक-दर्शक होता है । यहां मैं इश्क-हकीक़ी या इश्क-हबीबी की बात नहीं करूंगी। ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 14

एपिसोड--14 चटख चांदनी रात में बर्फ के दरिया पर चांदनी को फिसलते देख कर भाव विभोर हो रही थी ...सामने टी वी चल रहा था और मैं चांद की जगमग में सराबोर सन् 1963 में पहुंच गई थी। उस रात हम सब, घर की बेटियां और बहुएं खुली जीप में मैहर की सड़कों पर गेड़ियां मार रहीं थीं गाने गाते हुए। जीप चला रहा था कमला (मेरी cousin) का देवर, जो इलाहाबाद के hostel से आया था। शर्त थी कि सब चांद पर गाने गायेंगे। और जीप घूमती रहेगी। और वो गाने थे... " ये रात ये चांदनी फिर ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 15

एपिसोड - 15 एक खूबसूरत इमारत को देखकर अनायास ही उसके निर्माण करने वाले के लिए दिल से "वाह! निकलती है। वहीं जिसने उसकी एक-एक ईंट को दूसरी ईंट से जुड़ कर उसे शानदार रूप लेते देखा हो, वह अपनी उपलब्धि पर संतुष्ट होने का गर्व तो कर ही सकता है न ! कुछ ऐसी ही भावनाएं उठती हैं, हमारी पीढ़ीगत लोगों को आज के युग की तस्वीर देखकर। हमारा ताल्लुक उस युग के लोगों से है, जो समाज, उसकी संस्कृति के, प्रौद्योगिकी के बदलते स्वरूप के चश्मदीद गवाह हैं। याद है न, हमारे समय में घर में गेहूं ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 16

एपिसोड---16 पुराने लोग जी जान से रिश्ते -नाते निभाते थे। नाराज़ भी वही लोग होते थे, जिन्हें यह गुमां था कि मुझे मनाने वाले लोग हैं। और अधिकतर घर के दामादों को विरासत में यह अधिकार दहेज के साथ मुफ़्त में ही मिल जाता था । वैसे तो हर कोई किसी न किसी घर का दामाद होता ही है, लेकिन अपनी पारी आने पर ही वो भी ये जलवे दिखाते थे। क्योंकि जो मर्जी हो जाए, जनवासे से बारात तो सब रिश्तेदारों को साथ लेकर ही चलती थी तब। गुलाबी पगड़ी बांधे सब रिश्तेदार शान से एकजुट हो आगे ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 17

एपिसोड---17 गीत-संगीत, शेरों-शायरी, ग़ज़ल-नज़्म में अभिरुचि होने से मन का पंछी ऐसे ठौर ढूंढता रहता है, जहां उसकी प्यास सके। फिर चाहे वो"हरवल्लभ संगीत सम्मेलन"हो, "मदन मोहन नाईट"हो या " शाम-ए-फ़ाक़िर लो"हो। इन अज़ीम हस्तियों का गीत, संगीत या कलाम किसी भी रूप में हो रूह की ख़ुराक़ बन जाता है। पिछले ग्यारह सालों से इन दिनों का इंतजार रहता है क्योंकि फ़ाकिर साहब की पुण्यतिथि 18 फरवरी है और इसके आसपास जो शनिवार आता है, उनके बेटे मानव उस शाम को "शाम-ए-फ़ाकिर" कहलाने का सौभाग्य प्रदान कर देते हैं। इस वर्ष इस शाम का कुछ बेसब्री से इंतजार ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 18

एपिसोड---18 ‌ पिछली सदी का छठा दशक समाप्त होने से पूर्व ही मेरी झोली में ढेरों रंग बिखेर में NCERT की ओर से मुझे " पी एच डी" करने का बुलावा आया ₹ 300/-स्कालरशिप के साथ। (विश्वविद्यालीय स्वर्ण पदक विजेताओं को यह सम्मान दिया जाता था तब । ) उस जमाने में यह अच्छी खासी रकम होती थी, फिर मुझे आगे पढ़ते रहने की प्रबल इच्छा भी थी। सो, मैं दिल्ली जाने के लिए झट तैयार हो गई। लेकिन, कैसे... कहते हैं न कि 'जहां चाह वहां राह' मिल ही जाती है।। हुआ यूं कि अचानक, दिल्ली से ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 19

एपिसोड---19 ज़िन्दगी के किसी काल की घटनाएं और प्रसंग जब स्मृति पटल पर छा अठखेलियां करते हैं, तो दिल धड़क उठता है। कितना कुछ सामने होता है बयां करने को अलबत्ता कोई सुनने वाला हो। चलिए चलते हैं कश्मीर की हसीन वादियों में बसे पहलगाम में, जहां "रोटी " फिल्म की शूटिंग चल रही थी 1974 में। मुमताज़ हिरोइन का ढाबे का shot था। ढाबे के पीछे टैंट लगाया गया था, जिसमें एक मंजा (खाट)बिछा रखा था। उस पर मैं तीन वर्ष के मोहित को लिए बैठी थी। फिल्म में मुमताज़ ढाबेवाली थी।वो एक ही shot बार-बार देकर आती ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 20

एपिसोड--20 ना अंधेरी गलियों में गुम होती हैं ना पूर्णचंद्र के प्रकाश में स्नान कर धवल रूप धरती हैं कृष्ण पक्ष हो या शुक्ल पक्ष विचारधाराएं तो चलती ही रहती हैं। घटनाएं या अफसाने घटते ही रहते हैं। अफसाने अतीत की कोठरियां हैं, जो दरीचों में से भी बाहर आने को अकुलाते रहते हैं। ‌सन् 1970 की बात है। 12मार्च को हमारी शादी हुई तो हम हनीमून पर न जाकर ससुराल परिवार में सबसे मेरी घनिष्ठता बढ़ाने निकल पड़े। मैं "कटनी " एम .पी से थी। मुझे तो पंजाब के बाकि किसी शहर का नाम भी नहीं मालूम था ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 21

एपिसोड--21 ढेरों एपिसोड्स उमड़-घुमड़ कर बाहर निकलने की जद्दोजहद कर रहे हैं। लेकिन मैंने तो पंजाब-दर्शन आरम्भ किया है बार, तो हम पहले अमृतसर का चक्कर लगा लें, लगते हाथ । अगले दिन हम अमृतसर पहुंच गए थे। सर्व प्रथम लाज़मी था " हरमन्दर साहब " के दर्शन करना। वो लोग महसूस नहीं कर सकते उस उतावलेपन, उस दर्शन की तड़प को जो पंजाब में रहते हैं, या जो लोग गुरु की नगरी में रहने का सौभाग्य लेकर पैदा हुए हैं। ज़रा पूछो उनसे जो दूर-दराज इलाकों में रहते हैैं, और जिनके पास पंजाब आने का कोई सबब ही ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 22

एपिसोड---22 दूसरी ओर रवि जी की बुआ जी का परिवार और उनके ज्येष्ठ दामाद श्री गोपाल देव कपूर जी( नाम से सांईदास स्कूल के साथ वाले मोहल्ले का नाम गोपाल नगर है)भी स्वतंत्र भारत में, जेल में काफ़ी लम्बे अरसे तक बंद रहे। वहीं उनका स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ, वे R S S में थे। बुआ जी की दूसरी बेटी श्री मती विमला कोहली भी जनसंघ की लीडर एवम् कुशल प्रवक्ता थीं। उनके पति श्री सत्यदेव कोहली जी बाद में "गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय " हरिद्वार के चांसलर थे। विभाजन के पश्चात् ये सारा परिवार भी जालंधर आ गया ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 23

एपिसोड---23 अभी कल की ही बात है तो, कभी बरसों निकल गए।आपकी सोच और मनोवृत्तियां आपको दिशाएं दिखाती रहतीं उन की ओर बढ़ने हेतु मन को स्वस्थ तन का भी साथ मिल जाए तो ढलती सांझ में भी ताजगी बनी रहती है और ढलती उम्र का बोझलपन हल्का हो जाता है । तभी वहां पहुंचकर लगता है कि स्मरण से नहा लिए हैं। स्मरण की रफ्तार चल पड़ती है, यादों को टटोलने... ‌ शादी के बाद कटनी यानि कि मायके जाने का अभी कोई दृश्य माहौल में सांस नहीं ले रहा था। पंजाब-दर्शन थोड़ा-बहुत करके हम जालंधर, अपने घर ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 24

एपिसोड---24 आत्मविभोर कर देता है कुछ घटनाओं का याद आना। हमारे पंजाब भ्रमण का अगला पड़ाव " लुधियाना" था। पहली बार लुधियाना जाना मुझे रोमांचित कर रहा था । जब मैं बी.एड कर रही थी जबलपुर के "हवाबाग कॉलेज" में तब मेरे साथ उषा सिब्बल पढ़ती थी। हमारी गूढ़ मित्रता के कारण वह भी मेरी लोकल गार्जियन बन गई थी बाद में।मैं होस्टलर थी, इसलिए एक दिन मेरा लंच बॉक्स उसके घर से आता था और दूसरे दिन " शिरीन" एक पारसी फ्रेंड थी मेरी उसके घर से आता था। हम तीनों की अच्छी दोस्ती थी। मैं वहीं आगे ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 25

एपिसोड---25 अतीत से जो नजरें मिलाईं, तो मुस्कुराहट भी मुस्कुराने लगी है। चलो जानेमन अतीत ! कुछ घड़ियां तुम्हारे में बिताते हैं आज। होता तो यही है कि नासमझ से हम जीवन की डगर पर जिए चले जाते हैं । क्या मालूम कब कौन सा मोड़ हमें अदृश्य होनी के हाथों जीवन की किस राह पर ले जाए। और उस पर सारी कायनात हमें उसे पूरा करने में साथ देने की जिद ही कर ले ! अपना किस्सा कुछ ऐसा ही है... ‌‌हुआ यूं कि दिल्ली से हमारे फैमिली फ्रेंड्स की बेटी शोभा की टेलीग्राम आई। "send Veena, Kashmir ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 26

एपिसोड---26 ‌‌ कि जनवरी की एक सर्द सुबह भैया के साथ कोई सीढ़ियां चढ़कर ऊपर आ रहा था देखा वे आर.के.स्टूडियो पहलगांव वाले थे। आश्चर्यचकित थी, अप्रत्याशित रूप से उन्हें अपने घर, अपने सामने देखकर। उनकी मीठी मुस्कान, बोलती आंखें और आकर्षक व्यक्तित्व जिसकी कैंप में भी चर्चा होती थी, उस को निहारते हुए, पापा ने बड़ी ही गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। बाद में उन्होंने बताया कि वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया जालंधर में कार्यरत हैं। दोस्त के साथ मुंबई अपने चचेरे भाई बलराज विज जो फिल्म " वचन" के हीरो हैं, उनको मिलने और बम्बई घूमने ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 27

एपिसोड---27 यादों के अनवरत सिलसिले अब तो आगे बढ़ रहे हैं। भविष्य की उर्वरा धरती में "होनी" के बीज डल गए थे।क्योंकि जो होने वाला होता है उसकी आधारशिला पहले ही रखी जा चुकी होती है तभी तो परिस्थितियां उसी ओर इंगित करती हैं और इंसान उसे अपना भाग्य मान कर स्वीकार करता है। तिस पर जब पूरी कायनात आपकी दिली ख़्वाहिशों को मंजिल तक पहुंचाने में आपकी हमसफ़र बन, राहों पर निशां लगाती जाए तो फिर क्या कहने! ‌‌ हमारे जमाने में चार साल की B.A. होती थी! कश्मीर से लौटने के बाद मैं थर्ड ईयर के लिए ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 28

एपिसोड---28 एक नव ब्याहता प्रेमी- युगल जब बाकि दुनिया को पीछे छोड़ गगन-चुम्बी धवल पर्वतों की ऊंचाइयों को रहा हो और सामने केवल नील गगन बाहें पसारे खड़ा मंगल कामना कर रहा हो तो होठों से इसी गीत के बोल अपने आप निकलेंगे ना !! "मिलता है जहां धरती से गगन आओ वहां हम जाएं ए ए तूं तूं न रहे, मैं मैं न रहूं इक -दूजे में खो जाएं-२, जीत ही लेंगे बाजी हम-तुम".... हम दोनों शादी के बाद पहली बार 30 अप्रैल'1970 को, भोर की पालकी लेकर आते दिशाओं के कहारो के संग- संग कार ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 29

एपिसोड---29 कब और किसने यह करवा चौथ का व्रत बनाया पति के प्रति असीम प्यार, विश्वास और पूजित भाव भर कर कि आजकल की लाड़- प्यार में पलीं इकलौती बेटियां भी सुहागनें बनने पर दिन भर भूखी- प्यासी रहकर सोलह श्रृंगार करके अपने पति की मानिनी बनी, आसमां को मुट्ठी में भरकर विस्तृत नभ में उड़ने लगती हैं। उन्हीं सुधियों को तराशने लगी, तो लगा सुधाएं आकर बरसने लग गईं हैं। शादी का पहला करवा चौथ करने मैं कश्मीर से जालंधर घर आ गई थी। रिवाज के मुताबिक कटनी से पापा" बया" देने आए थे। उस दिन रवि जी ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 30

एपिसोड---30 देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए... जी हां, यह खुली आंखों के देखे ख्वाब थे। सुनते हैं आंखों के ख्वाब पूरे हो जाते हैं। बंद आंखों के ख्वाब तो आंखें खुलते ही रफूचक्कर हो जाते हैं। ख्वाबों के सिलसिले चल पड़े थे। मायके से तो लड़कियों का कभी मन भरता ही नहीं लेकिन एक दिन जाना ही होता है। सो भीगी आंखों से मन को सींचते हुए चल पड़े थे हम कटनी से औरंगाबाद। मैंने पूछा ही नहीं था कि हम वहां क्यों जा रहे हैं? और यह आदत जीवन पर्यंत चलती रही । "माझी मेरी किस्मत ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 31

एपिसोड---31 आज टहनियों के घर मेहमां हुए हैं फूल ! जी हां ! ! ‌‌ ‌तभी तो अपने तन गोशों में छिपी किलकारियां और अपनी अंतरात्मा में बजते संगीत की धुन सुन कर मैं अपने अन्तस से बहते--- गहन अंतर्भाव ! के जगने की लय को, पहचानने मैं लगी रहती। शास्त्रों के कथनानुसार अपने चित्त को एकाग्र, शांत और प्रसन्न रखने का यत्न करती। अभिमन्यु ने मां के गर्भ में चक्रव्यूह में प्रवेश का पाठ पढ़ लिया था तभी तो अपना व्यवहार अनुकरणीय जानकर मुझे जीवन और सोच में तालमेल बिठाए रखना होता था। सदैव हंसती खिलखिलाती रहती थी ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 32

एपिसोड---32 घटनाओं के निरंतर घटने से ही जीवन में गतिशीलता होती है और यही घटनाएं यादों में जब अपना ढूंढने लगती हैं तो ठौर मिलते ही अपना कुनबा रच बैठती हैं। फिर आवाज देकर बुलाने से एक-एक कर के बाहर झांकती हैं और अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं। आज तो मैं आपसे रवि जी का एक संस्मरण साझा करूंगी। मेरे पूछने पर उन्होंने मुझसे सांझा किया था कि उनकी और राज कपूर जी की दोस्ती कैसे हुई थी? उन्होंने सुनाया—- “ग्रेजुएशन के पश्चात अपने मित्र महेन्दर को साथ लेकर मैं कश्मीर घूमने गया | वहाँ के नैसर्गिक सौन्दर्य के ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 33

एपिसोड---33 ‌ कभी - कभी कोई घटना या हादसा ऐसा घटा होता है, जिसका जीवन में महत्व न होते भी वो हमारे स्मृति पटल पर अटका रहता है। और कुछ वैसा ही प्रसंग समक्ष पाकर स्मृति- परतें फटी स्वैटर के धागे सी उधड़ने लगती हैं। अभी-अभी टीवी न्यूज़ में एक एक्सीडेंट देखा तो मेरी आंखों के समक्ष पहलगाम में घटे एक एक्सीडेंट के दृश्य आ गए। आज वही संस्मरण सुनाती हूं--- जुलाई के महीने में पहलगाम से अमरनाथ यात्रा प्रारंभ होने से वहां तीर्थ यात्रियों का मेला लगा रहता है। सन् 1975 की बात है। वैसे तो पहाड़ों के ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 34

एपिसोड---34 कई बार जीवन में कुछ घटनाएं केवल इसलिए घटित हो जाती हैं कि वे अपने घटने से केवल संस्मरण बनकर रह जाएं। जैसे:- हेलो-! आप वीना मैनी बोल रही हैं? जी हां, आप कौन? मैं, पुष्पा झा। कुछ याद आया ? इसी एक पल में इतना तो समझ आ गया था कि यह मेरा maiden name कोई स्कूल, कॉलेज की छात्रा ही ले रही होगी। कॉलेज में पुष्पा झा थी एक, हमारी Arts group कक्षा में। उसी पल मैंने उत्तर दिया कि नाम तो पहचाना लग रहा है लेकिन चेहरा याद नहीं आ रहा। उसने उसी रौ में ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 35

एपिसोड---35 अतीत के स्मरण की तरंग मुझे अपने वेग में उलझा कर दूर खींच ले जाने को व्याकुल हो है। मन बहुत भारी है। जाने कितने ही भाव कसक उठे हैं । भीतर दर्द ही दर्द उमड़ने लगा है। वैसे तो सभी अपने हैं लेकिन एक ही मां बाप से जन्म लेकर जिस बंधन में हम गुंथे होते हैं उसमें से एक भी धागा टूट जाए, तो ढील पड़ ही जाती है। अकस्मात ही छोटी बहन का जाना ऐसी ठेस दे गया, मानो ढलते हुए आषाढ़ के सूरज को पीले उदास बादलों की एक झीनी तह ने ढंक लिया ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 36

एपिसोड---36 आज मैं आपको अपने सीधे-साधे जीवन के एक अजीब मोड़ के बारे में बताती हूं, जिसकी स्मृति मुझे वाले के करिश्मों पर हैरान कर देती है--- बात उन दिनों की है जब मेरे बच्चे अभी प्राइमरी स्कूल में थे। एपीजे स्कूल में मैं कभी-कभी अपने terms पर पढ़ाने जाती थी। एपीजे स्कूल में टीचर्स को कोई ना कोई एक एक्टिविटी भी बच्चों को सिखानी होती थी। मैं भारतनाट्यम नृत्य सिखाने की क्लास लेती थी लास्ट पीरियड में। एक दिन मैं स्टेज पर भरतनाट्यम के स्टेप्स करवा रही थी और मेरे सामने हॉल में ढेरों लड़कियां थीं। मेरी सरसरी ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 37

एपिसोड---37 ‌ थोड़ी सैर कर लेते हैं ! आपको दक्षिण भारत की ओर ले चलती हूं। जहां हम श्री स्वामी मंदिर तिरुपति बालाजी तिरुमलाई में भगवान विष्णु के दर्शन करेंगे। और मां पार्वती के सात जन्मों में से एक जन्म मीनाक्षी रूप में दर्शन करके धन्य हो जाएंगे। बच्चे एपीजे स्कूल जालंधर में पढ़ते थे। दिसंबर की छुट्टियां आने पर रवि जी कहीं ना कहीं घूमने का प्रोग्राम बना लेते थे। 1983 में हम लोग ट्रेन से तिरुपति बालाजी की ओर निकल पड़े थे। अपने साथ मट्ठियां, पिन्निया और खाने पीने का काफी सामान रख लिया था क्योंकि बच्चों ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 38

38 बच्चों की अगले साल फिर दिसंबर की छुट्टियों में हमने मद्रास और रामेश्वरम जाने का प्रोग्राम बना लिया फिर वही रेलगाड़ी का लंबा सफर ! पर इस बार हम सब हर तरह से तैयार थे। दिल्ली से सीधे हम मद्रास (चेन्नई ) गए । वहां मेरी भाभी की बहन रहती थीं। उनकी बेटी "सपना " दक्षिण भारतीय फिल्मों की और बॉलीवुड की एक्ट्रेस थी। "फरिश्ते" हिंदी फिल्म में भी वह रजनीकांत के ऑपोजिट थी । उसके ब्लैक एंड वाइट आदम कद फोटोस से घर की दीवारें भरी थी । जिससे उनका घर कुछ अलग ही लग रहा था ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 39

एपिसोड---39 विवेकानंद रॉक मेमोरियल कन्याकुमारी में तट से एक छोटे जहाज में, जो लहरों पर खतरनाक तरीके से डोल था और जिस में बीच-बीच में लहरें उछलकर पानी डाल जाती थीं। डरते हुए हम श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य विवेकानंद को समर्पित "विवेकानंद रॉक मेमोरियल" पर पहुंचे! यह समुद्र तल से 17 फीट की ऊंचाई पर एक छोटे से द्वीप के पर्वत की चोटी पर स्थित है। इसके चारों ओर बंगाल की खाड़ी वाले समुद्र की ऊंची- ऊंची लहरें उठ रही थीं। ‌ वहां पर बहुत बड़ा मेडिटेशन सेंटर भी था भीतर की ओर। जब सब लोग भीतर घूम ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 40

एपिसोड---40 पता ही नहीं चला जीवन वृतांत सुनाते - सुनाते आज 40 एपिसोड पर पहुंच गई हूं। अभी तो कुछ है आप सब से सांझा करने को ! आप की लत लग गई है मुझे!! ठहरे जल की भांति मैंने काई नहीं जमाई अपने पर, सब कुछ उड़ेल के रख दिया है आपके समक्ष। निरंतर बह रहा है अब तो यह पानी का चश्मा (झरना)! (आज वृतांत लंबा है। आधा सुनाऊंगी, तो आपका मजा मारा जाएगा। इसलिए पूरा ही सुनिए...) Militancy(उग्रवाद ) सितंबर 1989 की बात है, बच्चों की पढ़ाई के कारण मैं जालंधर में थी कि अचानक रवि ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 41

एपिसोड---41 ‌‌ ‌‌जीवन की वाटिका में विचरता मन पखेरू इन दिनों सदा की तरह कश्मीर में अमरनाथ यात्रा की को खोजता फिर रहा है। यह अनहोनी हुई है कि इस वर्ष इस पवित्र धाम की यात्रा की कोई खबर नहीं है टीवी पर। सुनते हैं कश्मीर में अमरनाथ यात्रा 16 वीं शताब्दी से हो रही है। पुराणों में इसका महत्व है कि शिव जी से विवाह करने के लिए पार्वती को बार- बार जन्म लेना पड़ता था तो उन्होंने शिव भोले से अनुनय विनय करी कि आप अमर हैं तो मुझे भी अमर कथा सुना दीजिए जिससे मैं भी ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 42

एपिसोड--- 42 ‌ यात्राओं का सिलसिला तो खत्म होने का नहीं हम घुमक्कड़ों का। और यादें ! अलग-अलग झरोखों झांकती हुई अतीत के द्वार खटखटाने लगती हैं। जिस धरातल पर यह घटी होती हैं उससे जुड़ी रहती हैं। इनकी प्रविष्टि पर हमारा पूर्ण स्वायत्त अधिकार होता है। फिर चाहे वह मधुर हों या भयावह ! इनमें हम आकंठ डूब सकते हैं फिर चाहे हम आनंदित हों या दुखी हों ! संतुष्ट हों या दर्द में डूब जाएं। यह उन बातों पर निर्भर करता है ।कुछ ऐसी ही बातें सुनाती हूं ... पहलगाम में कुछ न कुछ होता ही रहता ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 43

एपिसोड---43 ‌‌ मेरी यादों के झरोखे अपने देश से निकल कर अब विदेशों की ओर झांकने लगे हैं। कई के फोन आए कि अब बाहर के बारे में भी अपना अनुभव सुनाएं। जब बच्चे छोटे थे तो एक ज्योतिषी ने कहा था कि आप सबके पैरों में विदेश की यात्रा लिखी है। उस समय विदेश जाने के आसार कहीं नजर नहीं आते थे तो हैरानगी हुई थी। तब क्या मालूम था कि technology इतनी विकसित हो जाएगी कि सब दूरियां मिट जाएंगी। अब तक मेरी पांच बहने और देवर देवरानी सब अमेरिका में सेटल हो चुके थे। फिर भी ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 44

एपिसोड---44 अमेरिका ‌‌ सन्1992 दिसंबर--- ‌न्यूयॉर्क में John F Kennedy airport पर मेरी सहेली मंजू गुप्ता का बेटा तरुण हुआ था हमें रिसीव करने। वह हमें टैक्सी में Manhattan लेकर गया क्योंकि वहीं उसका फ्लैट था। वहां कार पार्किंग की जगह नहीं है अगर है तो बहुत ही महंगी है। सो, वह लोग कार नहीं रखते थे। यह बात हमारे लिए नई थी कि अमेरिका में कार के बिना भी लोग रहते हैं। सोचा, अभी तो बहुत कुछ नया पता चलेगा। ‌‌ हम इंडियन लोग जब विदेश जाते हैं तो वहां की करेंसी में कुछ भी खर्चा करने पर ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 45

एपिसोड--- 45 आप जैसे कई लोग अमेरिका में ही रहते हैं और अमेरिका जाते भी रहते हैं पर हर के अपने संस्मरण हैं और अपने अनुभव। पाश्चात्य देशों की ओर पहली बार जाना और अंतर महसूस करना हम भारतीयों के विचारों में झंझावत खड़ा कर देता है। वही मिली जुली प्रतिक्रियाएं ही तो आपके साथ सांझा कर रही हूं। Washington DC John F Kennedy airport पर टोनी (छjठी बहन)और उसके पति बासित हमें लेने आए हुए थे। टोनी के घर पहुंचे तो वहां बहनें एकत्रित थीं।( हम सात बहनें हैं) जो भी मेरे गले लग रही थी खुशी के ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 46

एपिसोड---46 ‌‌ ‌‌ ‌मैंने पिछली बार कहा था कि अगली बार आपको Houston लेकर चलती हूं। अब तो बहुत जा चुकी हूं, लेकिन पहली बार की बात ही कुछ और है। 1993 में हम America explore कर रहे थे। ‌‌मेरी सखी मंजु और हरी शंकर जी ने बहुत गर्मजोशी से Houston में हमारा स्वागत किया। जैसे मनचाही मुराद मिल गई हो। उसने पूरे 10 दिन की छुट्टी ले ली थी ऑफिस से। सहेलियों का प्यार एक आत्मिक संबंध होता है। उसने 10 दिन का पूरा schedule बना कर रखा था। पहले दिन हमको मॉल दिखाने ले गई। वहां आश्चर्य ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 47

एपिसोड---47 San Francisco (California) अब हम अमेरिका के पश्चिमी तट पर आ पहुंचे थे। S FO एयरपोर्ट पर मेरी मंजू गुप्ता के छोटे भाई राजन गुप्ता जी हमें लेने आए हुए थे। Rain forest Restaurant में ले जाकर सर्वप्रथम उन्होंने हमें हरियाली के मध्य बैठा कर नाश्ता करवाया। राजन का ऑफिस वहीं पास में था सो सामान वहां रखकर हम लोग सैन फ्रांसिस्को घूमने निकल गए थे। ऊंची- नीची सड़के थीं, वहां Trams type buses चल रही थीं । कमाल था --हमने लोकल बस की-एक बार टिकट ले ली और उसी टिकट पर हम बस में चढ़ जाते थे ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 48

एपिसोड---48 हमारी जिंदगी के शानदार संस्मरणों में यह एक अनोखा, उत्साहवर्धक और अल्लाहद्कारी संस्मरण था। सन 2002 की बात Won TV Scooty competition हम दोनों पहली बार नाना नानी बने थे। हमारे परिवार में एक नन्ही कली खिली थी "सौम्या" ! एक दिन स्वाति ने अपने घर से बताया कि उसे एक फोन आया है, " आपके मम्मी- पापा टीवी स्कूटी कंपटीशन में दस हजार कपल्स में से बेस्ट चुने गए हैं। आपको बहुत-बहुत बधाई। उनको 15th सितंबर तक free cruise trip के लिए दिल्ली आना होगा। "यह सुनकर हम सब हैरान रह गए। उसके बाद एक रजिस्टर्ड पोस्ट ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 49

एपिसोड ---49 अतीत की स्मृतियों की कुछ ऐसी तरंगे भी हैं जो याद आने पर मेरे वर्तमान में फुर्ती देती हैं जिससे मेरा आत्मविश्वास जाग उठता है। कुछ ऐसी ही अविश्वसनीय घटनाएं आज आपको सुनाती हूं, जिनकी कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी। हुआ यूं कि गर्मी आते ही... रवि जी हमेशा की तरह कश्मीर की वादियों की ओर चल पड़े थे और मैं बच्चों से मिलने अमेरिका की ओर प्रस्थान कर गई थी। सीधे लॉस एंजेलिस रोहित दिशा के पास। हॉलीवुड के सारे स्टूडियोज सी एन एन टीवी चैनल, , डिज्नी चैनल, कोलंबिया पिक्चर्स, स्टार मूवीस, ...Read More

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छुट-पुट अफसाने - 50 - अंतिम भाग

एपिसोड---50 अक्सर बहुत कुछ ऐसा भी घटता है जीवन में, जो शेष रह कर भी अशेष ही रह जाता तब उस अधूरे के साथ ही जीवन लंगड़ी चाल चल पड़ता है। वह यादों में नहीं रह पाता वह तो परछाईं बन साथ लिपटा रहता है। जैसे कि मेरे जीवन की यह घटना हर पल छिन मेरे साथ है। वह अपने होने का मुझे एहसास देती रहती है... हुआ यूं कि 1 नवंबर 2015 को मैंने अपनी कामवाली की 10-12 वर्ष की बेटी सावित्री को मदद के लिए रख लिया। मुझे एक पल भी नहीं देख कर वह फटाक से ...Read More