Holiday Officers - 44 books and stories free download online pdf in Hindi

छुट-पुट अफसाने - 44

एपिसोड---44

अमेरिका

‌‌ सन्1992 दिसंबर---  ‌न्यूयॉर्क में John F Kennedy airport पर मेरी सहेली मंजू गुप्ता का बेटा तरुण आया हुआ था हमें रिसीव करने। वह हमें टैक्सी में Manhattan लेकर गया क्योंकि वहीं उसका फ्लैट था। वहां कार पार्किंग की जगह नहीं है अगर है तो बहुत ही महंगी है। सो, वह लोग कार नहीं रखते थे। यह बात हमारे लिए नई थी कि अमेरिका में कार के बिना भी लोग रहते हैं। सोचा, अभी तो बहुत कुछ नया पता चलेगा।

‌‌  हम इंडियन लोग जब विदेश जाते हैं तो वहां की करेंसी में कुछ भी खर्चा करने पर उसे रुपयों में कन्वर्ट करके देखते हैं। जिससे महंगाई का एहसास हो जाता है। हमारा भी यही हाल हो रहा था। तरुण ने टैक्सी के पैसे दिए और मैं उसे रुपए में कन्वर्ट कर रही थी। कि 3000 रुपए तो टैक्सी के ही लग गए।

ख़ैर, लिफ्ट से ऊपर जाकर राधिका से मिले ।वह अब सादे कपड़ों में और प्यारी लग रही थी। मुंबई में तो उसे दुल्हन बने ही देखा था। खाना बेहद स्वादिष्ट था राजमा चावल मटर पनीर रोटियां... उसने बताया कि नानी ने Houston से parcel भेजा है खाना बनाकर। बात गले से उतर नहीं रही थी । कि ऐसे कैसे--? चलो बता रही है तो ठीक ही होगा। यहां यह भी होता होगा !

यह लोग मैनहट्टन में चौथी मंज़िल पर रहते थे। रात गए पैसेज में जाकर वह एक मोरी में मैले कपड़े डाल रही थी। मेरे पूछने पर बोली", मासी यह सब नीचे चले जाएंगे धोबी के पास और वह कल धोकर प्रेस कर के ले आएगा!"यहां घरों में वॉशिंग अलाउड नहीं है। मन में सोचा, महंगे- महंगे फ्लैट और रहने का स्टाइल और भी महंगा !

रात में घर से बाहर सैर करने निकले तो देखते हैं कि सड़क पर मेनहोल से धुंआ बाहर आ रहा है। हैरानगी हुई। इस पर तरुण ने बताया कि नीचे सबवे चल रही हैं। अर्थात लोकल ट्रेंस चल रही हैं। यह उनका ही धुआं है। दिमाग में एकदम लंदन का रेलवे सिस्टम घूम गया । और बात समझ आ गई थी। दुकानों के शो-केसेस Christmas tree decoration से बहुत सुंदर सजे हुए थे। वैसे सब कुछ बंद था, क्योंकि रात के 11:00 बज रहे थे।

अगले दिन वे दोनों काम पर गए और हम दोनों रवि जी की मासी की लड़की मधु दीदी को मिलने Queens area में उनके Madhu Gift- Store पहुंचे। वे प्यार से बार-बार गले लगा रही थीं। Lunch time होने पर मधु दीदी ने Pizza ऑर्डर कर दिया। हम ने जीवन में पहली बार pizza ‌खाया और पहली बार देखा भी। रवि जी ने तो किनारे का crest ही तोड़कर खाया था। लेकिन चीज़ के कारण मुझे पिज़्ज़ा पसंद आया था। शाम को ट्रेन से वह हमें घर लेकर गईं । पहली बार इतनी बढ़िया ट्रेन में बैठे थे। यह sub way नहीं थी ।‌ ओपन एरिया में जा रही थी Long Island .यह 1992 की बातें हैं। अब तो भारत में भी सब कुछ है।

1992 में पाश्चात्य सभ्यता और रहन-सहन हमारे जीवन से बहुत ही भिन्न था। जो बातें आज आम हो गई हैं वह बातें तब बहुत ही नई थीं हमारे लिए। हर नई बात हमें आश्चर्य मिश्रित सुख दे रही थी। अब तो ग्लोबलाइजेशन का जमाना है। हम बेहद उत्साहित थे हर आने वाली घटना, आने वाले कदम और अगले दिन के लिए।

मधु दीदी के पति फाइव स्टार होटल में chef थे। बहुत high profile or American style से dining table पर खाना लगा हुआ था। मैं उनको कॉपी कर रही थी। क्रोकरी और कटलरी भी उनको देखकर उठा रही थी। भारत में restaurants, hotels मैं खाना खाते थे, लेकिन इतना high profile नहीं होता था। मधु दीदी के दो जवान बेटे और एक बेटी थी। तीनों हमसे खूब हिल- मिल गए थे।

मधु दीदी से छोटा भाई कुकू भी वहीं रहता था उनके साथ ही । उसने अपने एक दोस्त की मौत के बाद उसकी विधवा जो बेसहारा थी और उम्र में बड़ी थी। उसकी 10 साल की बेटी और उसे अपनाया हुआ था। बहुत अच्छा लगा जानकर। कुकू हमें अपनी बेकरी शॉप दिखाने लेकर गया। दुकान बंद करते हुए उसने बेकरी में जितना सामान बचा था सारा का सारा दुकान के बाहर रख दिया। बताया कि यहां का यही कानून है।

आप अगले दिन बासा सामान नहीं बेच सकते हैं। उसी समय कुछ गरीब अंग्रेज और बूढ़े गरीब चाइनीस आकर सारा सामान उठाकर ले गए। बहुत बढ़िया बात लगी कि गरीबों का पेट भर जाता है और दान भी हो जाता है इसी बहाने।

अगले दिन हम तरुण के घर वापस आ गए थे। राधिका हमको Macy Store लेकर गई क्योंकि वह वहां पर काम करती थी। ना मालूम क्यों मुझे वह दोनों बच्चे आपस में खुश नहीं लग रहे थे। मैं उनकी आंखों के रीतेपन और उनके भावहीन चेहरों को पढ़ने का यत्न रही थी। क्योंकि नए ब्याहता जोड़े जैसा वहां कुछ भी नहीं लग रहा था। इसे अपने मन का वहम जान मैं चुप ही रही। (कुछ समय पश्चात् ज्ञात हुआ कि मेरा वहम बेवजह नहीं था)

मेरी बहन ऊषा और सुरेंद्रजी हमें मिलने को इतने उतावले थे कि वह दोनों 5 घंटों का सफर तय करके North up state Aplanchin से न्यूयॉर्क हमें मिलने आ गए थे। वहां कार पार्किंग बहुत महंगी थी $30 per hour. इसलिए वह लोग 2 घंटे ठहर कर वापस चले गए थे। यहां बहन का उतावलापन और पांच वर्ष के बाद थोड़ी देर का मिलना, एक असीम सुख का अनुभव करा गया था।

अगले दिन हम लोग Jackson heights area में घूमने गए। बस में जाने के लिए तरुण ने हमें coins दिए। यह पीतल के डिफरेंट स्टाइल के बने होते हैं। हमने वहां एक Indian shopkeeper जो Ludhiana से थे, उनकी दुकान से गिफ्ट करने के लिए कुछ साड़ियां ख़रीदीं।

वे लोग बहुत परेशान दिखे और बार-बार खिड़की से नीचे, सामने की ओर देख रहे थे--- जहां एक गोरा एक देसी लड़की जो पेट से थी उसे लिए बैठा था। रवि जी ने पूछ लिया कोई परेशानी है क्या? तो उस लेडी ने कहा, " यह हमारी बेटी है जो हमारी बात बिल्कुल नहीं सुनती और इस लड़के के साथ रहती है ! यहां का कानून है कि आप अपने बालिग बच्चों को कुछ नहीं कह सकते हैं । इसलिए हम चुप बैठे हैं। और यहां आकर पछता रहे हैं। यह सुनकर हमें धक्का लगा कि यह भी क्या जिंदगी हुई कि अपनी औलाद आपके सामने ढीट बनी बैठी है और आपके हाथ बंधे हैं !

वहां एक तमाशा और देखा--- हमारे सामने ही एक काला अमेरिकी लड़का किसी की जेब काट कर भाग रहा था। उसी पल वहां पर पुलिस की गाड़ियों के सायरन बजने लगे । चार - पांच पुलिस गाड़ियों ने उस लड़के को घेर लिया। और हथकड़ी डाल कर उसे कार में भर लिया। क्या ग़ज़ब की फुर्ती दिखाई थी पुलिस ने !!

ऐसी घटनाएं देखकर हमें नए अनुभव हो रहे थे और मिले-जुले विचारों का ताना-बाना बुनते हम वॉशिंगटन की फ्लाइट ले रहे थे, जहां पांच बहनों के परिवारों को पहली बार मिलना था। मैं सबसे बड़ी हूं वह छोटी बहने हैं, इसलिए दिल बल्लियों उछल रहा था उन सब को उनके परिवारों में देखने के लिए...

 

वीणा विज'उदित'

20/8/2020