Holiday Officers - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

छुट-पुट अफसाने - 12

एपिसोड 12

वक्त की करवट की रफ्तार ने जो स्पीड पकड़ी है हर फील्ड में..उसकी हमने और आपने कभी कल्पना भी नहीं की थी --यह एक कटु सत्य तो है, भयावह भी है कई अर्थों में ।

संस्कारों की बात करें या धर्म की, सामाजिक ढांचे का स्वरूप देखें या राजनैतिक होड़ में सत्ता की लोलुपता के लिए आस्थाओं की आहुतियां डलते देखें । कहीं भी मन को शांति नहीं मिलती।

संस्कार तो माता -पिता व परिवार से विरासत में मिलते हैं । मां या दादी घर में जिस ढंग से पूजा करतीं हैं और रीति-रिवाज निभातीं हैं, हम लोगों ने अन्जाने में वही सब सीख लिया था। मम्मी जो मंत्रोच्चारण करतीं थीं, हमारे कान उसी के अभ्यस्त हो जाते थे और हवन करते हुए अपने आप हम भी वही बोलने लगते थे ।जपुजी साहब का पाठ, शिव-स्त्रोतम्, हनुमान- चालीसा या अमृतवाणी का पाठ सभी कुछ हम कैसे बोलने लगे बिना सीखे पता नहीं चला ना ! अब आज की भागम-भाग वाली पीढ़ी के पास न स्वयं के लिए वक्त है कि वो पूजा-पाठ करें, तो बच्चों को संस्कार कैसे मिलेंगे ? परिवार से उनका तात्पर्य होता है -- माता-पिता और उनके बच्चे न कि पूरा परिवार। जिसमें दादा-दादी, , नाना-नानी, बुआ, चाचा, मासी-मामा के परिवार भी शामिल हों ।" ओल्ड एज होम्स " नामक मशरूम जो उग रहे हैं धरती की उपजाऊ मिट्टी में अब । बहुत चलन है आजकल मशरूम का।:)

मम्मी की डिलीवरी होती तो कभी बुआ, तो कभी ताई या जवान भतीजी आ जातीं जच्चा-बच्चा व हमें संभालने।यही था परिवार का सुख । आमतौर पर संध्या के समय गायत्री मंत्र, प्रार्थना व भजन होते थे घर में, आरती भी गाई जाती थी घरों में । मम्मी ने कटनी में किराए का घर लेकर "आर्य-समाज" की स्थापना की । वहां के लिए एक शास्त्री जी भी दिल्ली से बुलवाकर रखे। घर-घर जाकर लोगों को इकट्ठा किया और हर इतवार को वहां हवन करने का चलन आरंभ किया। इतवार को स्कूल की छुट्टी होती थी लेकिन हम अनुशासन में बंधे थे। सुबह सवेरे उठकर, सिर धोकर, (हफ्ते में एक बार सिर धोना होता था) तैयार होकर मम्मी के साथ हवन पर जाना होता था। धीरे-धीरे यह एक उत्सव बनता चला गया क्योंकि अब सभी हवन-प्रेमी बारी बारी अपने घर में हवन करवाने लगे थे। बाद में जोरदार नाश्ते का प्रबंध भी करते थे । संगत बढ़ने लगी गई थी । बाकि शहरों से भी यज्ञ-प्रेमी कभी-कभी आ जाते थे । शास्त्री भी आते थे प्रवचन करने ।

‌‌  एक स्वामी दिव्यानंद सरस्वती आए गुजरात से। वे नमक नहीं खाते थे। देखने में पूज्य स्वामी दयानंद सरस्वती जी

जैसे दिखते थे।

बोले, "तुम्हारी मां, सच्ची आर्या है, मेरी बेटी जैसी है। हम आपके नाना बन गए हैं।।" सुनकर हमें हर्ष हुआ। उनके आगमन से मम्मी में जोश आ गया और कटनी शहर में चारों वेदों के यज्ञ-अनुष्ठान का आयोजन किया गया। लोगों ने खुल कर दान दिया व अनुष्ठान में उत्साह-पूर्वक सहयोग देते हुए भाग लिया। अखबारों की सुर्खियों में यह खबरें दूर-दूर तक फैली थीं । स्वामी नाना जी कभी-कभी आते रहते थे ।

एक बार उनके आने पर पापा बोले, "स्वामीजी आपने कभी कोई फिल्म देखी है?"

बोले, "नहीं कभी नहीं देखी"।

चलिए मेरे साथ !

पापा उनको "दीया और तूफान" दिखाने ले गए। उसमें एक साधु मुसीबत के मारे दो बच्चों को पालता है। वह मुर्गियां भी पालता है उनके लिए ।

वापिस आकर पापा ने पूछा कि आप उनकी जगह होते तो क्या करते?

वो बोले, "मैं भी यही करता । तूफान में घिरे बच्चों की रक्षा करना मेरा पहला कर्त्तव्य होता।"

स्वामीजी का उत्तर उचित लगा पापा को, क्योंकि हमारे घर में भी मुर्गियां थीं। स्वामीजी को उनसे कोई एतराज़ नहीं था। वो छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को ईसाई बनने पर पुनः हिन्दू बनाते थे यज्ञ करके। इसी कार्य में वे जीवन पर्यन्त लगे रहे ।आज के हिन्दू इस बात से बेपरवाह है ।अब तो झुग्गी-झोपड़ी वाले पैसों के लालच में झट ईसाई बन जाते हैं । अमेरिका में भी अच्छे घरों के लोग यानि अमेरिकन आपके घर बैल बजाकर अपना धार्मिक लिटरेचर आप को पकड़ा जाते हैं ।

जालंधर के out skirt पर"खामड़ा" में, मैं अपनी सहेली के साथ "साईं मंदिर" गई एक वीरवार को, तो स्तब्ध रह गई देखकर कि वहां Five star Hotel type Church की building तैयार हो रही है । हमारी *भजन संध्या * में तो मुश्किल से पचास लोग थे और इसके विपरीत "यीशु मसीह" के गीत डी जे पर हो रहे थे । वहां हज़ारों की संख्या में आसपास के गांवों से लोग बसों में भरकर पहुंच रहे थे ।पैसे के बल पर धर्म फैलाया जा रहा है उनमें, जो जानते ही नहीं कि धर्म का क्या अर्थ है।

ओशो ने अमेरिका में कहा था, " तुम लोग अनपढ़, गरीब भारतीयों को ईसाई बना रहे हो, मेरे अनुयाई तो तुम्हारा सबसे पढ़ा-लिखा तबका है। जिनकी जिज्ञासा को मैं शांत कर सका हूं ।"सच ही तो कहा था ।

हैरान हूं, ईश्वर के नाम पर ये सब क्या हो रहा है ! आस्था का संबंध तो विश्वास से है। और मन की शांति तो भले कर्मों के करने से ही मिलती है। बस वही खोजें हम और आप ....आज मन खिन्न है, इस परिवर्तन के तौर-तरीकों पर....

 

वीणा विज'उदित'

17/1/2020