Jo lout ke fir n aaye books and stories free download online pdf in Hindi

जो लौट के फिर न आए

जो लौट के फिर न आये ।

जहान्वी सुमन

पृथ्वी पर चेतन प्राणियों की असंख्य जातियां हैं. जिनमें से सबसे सभ्य जाती मानव की समझी जाती है. लेकिन ये ही मानव दूसरे की ज़मीन जायज़ाद, राज पाट हड़पने के लिए सभ्यता के मायने ही भूल जाता है।

युद्ध की साजिश युगों से करता आ रहा।

किसी एक मस्तिष्क में उपजी इस विकृत मानसिकता का खामियाज़ा न जाने कितने लोगों को भुगतना पड़ता है।

इतिहास गवाह है, कि कभी किसी एक व्यक्ति के कारण बड़े -बड़े राज पाट लूट गए हैं, तो कहीं कोई एक बहादुर दुश्मन के सामने ऐसे चट्टान बन कर खड़ा हो गया कि बस्तियों की बस्तियों को उजड़ने से बचा लिया।

ऐसे वीर और वीरांगनाओं ने अपना सब कुछ न्योछावर दिया। जिनके बलिदान को पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

१९४७ को भारत -पाकिस्तान विभाजन के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर लगातार विवाद की स्थिति बनी हुए है। भारत ने बहुत बार शान्ति बनाये रखने की चेष्टा की है, लेकिन पाकिस्तान अक्सर धोखा दे जाता है और चुपचाप अपने सैनिक भारत की सीमा में घुसाने की कोशिश करता रहता है।

१९६५ में भारत पाकिस्तान के युद्ध को करीब से देखने वाले मेजर लखन पाल रिटायरमेन्ट के बाद दिल्ली में सेटल हो गए थे ।

मुकेश और वरुण उनके दो बेटे थे।

वरुण का जन्म 10 अक्टूबर 1950 में दिल्ली में हुआ था। मुकेश उनसे दो साल बड़े थे।

जब वरुण तीन वर्ष के थे, तभी से उन में देशभक्ति का रंग चढ़ने लगा था। वह पिता से अक्सर युद्ध के किस्से सुनते रहते थे और अपनी खिलोने की बंदूक लेकर दुश्मन को ललकारते फिरते थे ।

एक दिन वरुण और मुकेश की स्कूल की छुट्टी हुई और वो रोज़ की तरह अपनी गाडी में सवार होने के लिए सड़क पर आये, तो उन्होंने पाया की आज उनकी गाड़ी नहीं आई। बड़े भाई मुकेश रोने लगे तो सात वर्ष के वरुण पाल ने अपने भाई को दिलासा देते हुए कहा, :रो मत भैया मुझे घर का रास्ता पता है. वरुण ने अपने बड़े भाई का बस्ता भी अपने कंधे पर उठाया और दोनों भाई मंडी हाउस से गुल डाकखाने तक पैदल चलते हुए घर पहुंचे तो माँ का रो रोकर बुरा हाल था।

माँ ने वरुण को गले लगाते हुए कहा, "अगर तुम्हे कुछ हो जाता, तो मैं कैसे ज़िंदा रहती ?"

इस पर मुकेश ने नाराज़ होते हुए कहा,"आप छोटे से ज्यादा प्यार करती हो। "

माँ ने कहा, "नहीं पगले" और रोते हुए दोनों को अपनी छाती से लगा लिया।

बचपन हंसी ख़ुशी से बीत गया। मुकेश ने डाक्टरी में एडमिशन ले लिया।

वरुण का मन तो देश की सरहदों की रक्षा करने को ललायित था। वह मिलिट्री की टट्रेनिंग के लिए देहरादून चले गये ।

माँ ने ट्रेनिंग पर जाते हुए वरुण से कहा, "बेटा पत्र लिखते रहना मुझें, तुम्हारी बहुत चिंता रहती है। "

वरुण माता -पिता का आशीर्वाद लेकर, ट्रेनिंग के लिए देहरादून रवाना हो गए।

१९७१ का वर्ष और दिसंबर का महीना था। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के बादल मंडरा रहे थे।

कश्मीर के शक्गड इलाके में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ हो चुकी थी। युद्ध के पूरे आसार नज़र आ रहे थे।

दिल्ली की एक सुबह वरुण के माता पिता और भाई मुकेश नाश्ते की मेज पर बैठे ही थे की एक ओटो रिक्शा उनके घर के पास आकर रुका। जिसमें से एक लम्बा चौड़ा गोरे रंग वाला युवक बाहर निकला मां की ऑंखों ने झट वरुण को पहचान लिया।

वरुण ऑटो से बाहर निकला उसके दोनों हाथों में सामान था। मुकेश ने जल्दी से दौड़ कर वरुण का सामान अपने कंधे पर उठा लिया। पिता ख़ुशी से वहीं के वहीं खड़े रह गए। माँ बोली, "अंदर आ सबसे पहले तेरी नज़र उतारती हूँ। आर्मी ज्वाइन करने के बाद कितना स्मार्ट लग रहा है।

माँ ने वरुण की नज़र उतारने के बाद सर पर हाथ फेरते हुए पूछा , "ऐसे कैसे आ गया अचानक ?" सरप्राइज़ देना चाहता था मॉ को ?"

वरुण बोले ," सरप्राइज़ ही समझ लो। जैसे अचानक आया हूँ, वैसे अचानक जा भी रहा हूँ आज शाम को। "

"माँ ने हँसते हुए कहा ,:चल हठ, मजाक मत कर मेरे साथ। कितने दिनों बाद देखा है, तुझे ऐसे कैसे चला जाएगा।"

वरुण माँ की गोद में सिर रखते हुए बोले, " मेरी सबसे प्यारी माँ, मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ। सचमुच शाम की गाडी से अखनूर जाना है। '

वरुण के पिता समझ गए भारतीय सेना में फौजियों की ज़बरदस्त ज़रूरत है, तभी तो वरुण को ट्रेनिंग के बीच ही बॉडर पर जाने का आदेश मिल गया है।

माँ ने आश्चर्य से पूछा, " अभी तो तेरी ट्रेनिंग भी पूरी नहीं हुईं। ऐसे कैसे दुश्मन से लड़ेगा?

वरुण बोले मॉ आप चिंता मत करों अपने बेटे पर विश्वास रखो जल्दी ही दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब देकर वापिस आऊँगा। "

माँ बोली, "तूझ पर पूरा विश्वास है लेकिन अभी तेरी उम्र बहुत कम है। "

वरुण बोले। माँ आप जल्दी से आलू के परांठे बनाओं। मैं भईया के साथ जाकर बाज़ार से एक अच्छा सा सूट खरीद कर लाता हूं। माँ ने पूछा, "सूट क्यों खरीदना है क्या किसी की शादी है ?

वरुण हँस कर बोले, "पाकिस्तान को हराने के बाद पार्टी भी तो करेगे ?"

माँ वरुण का मनपसंद खाना बनाने रसोइ घर में चली गईं। पिताजी ने दोस्तों और रिश्तेदारों को वरुण से मिलने के लिए एकत्र कर लिया।

वरुण बाज़ार से खूबसूरत नीले रंग का सूट लेकर घर लौटा तो, उसके वापिस रेलवेस्टेशन जाने का टाइम होने वाला था उसने खाना गाडी में खाने के लिए रखवा लिया।

मुकेश टेक्सी लेने चला गया रिष्तेदारों और मित्रों की आँखें नम थीं लेकिन सब की जुबां पर एक ही बात थी, "वरुण पकिस्तान केछक्के छुड़ा देना।

टेक्सी आ गई वरुण का सामान टेक्सी में जैसे ही रखा वरुण की माँ फूट फूट कर रोने लगी, वरुण से लिपट गईं, "मेरा बच्चा कैसे रहेगा बंदूकों और गोलियों के बीच। पिताजी ने दिल को मज़बूत करते हुए कहा ,"रो मत हिम्मत रख फौज़ी को जंग में हँसते हँसते भेजना चाहिए। "

वरुण की टेक्सी काळा धुआं छोड़ती हुए आँखों से ओझल हो गई, पीछे छूट गया एक परिवार जिसे वरुण के सकुशल लौट आने का इंतज़ार था..

१३ दिसम्बर १९७१

अख़नूर के आर्मी हेड क्वाटर जाकर वरुण ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई।

उन्हें बतौर सेकिंड लैफ्टिनेंट तैनात किया गया। आर्मीकैम्प के लिए भोजन तैयार करने वाले करतार सिंह से उनकी दोस्ती हो गई जो उम्र और तज़ुर्बे में उनसे सीनियर थे..

एक दिन करतार सिंह ने वरुण के कन्धे पर हाथ रखकर पूछा, 'कैसा लगा आर्मी केम्प का खाना। "

वरुण ने मुस्कुराते हुए कहा, "बहुत अच्छा। अपने देश की माटी की खुशबु है इस खाने में, लेकिन मेरी माँ के हाथ के बने आलू पराँठों का जवाब नहीं। "

करतार सिंह ने कहा, 'बस ये जंग जीतने के बाद तेरे घर सबसे पहले चलूँगा, आलू के परांठे खाने। कई सालों से बना बना कर खिला रहा हूँ, मैं भी तो किसी और का बनाया खाना खाऊँ। ' वरुण ने हँसते हुए कहा, 'बेशक। '

वरुण ने अपने घर के लिए एक पत्र लिखा। उन्होंने लिखा कि, वह बहुत खुश हैं। उन्हें सीमा पर लगी चौंकियों में सोने उतना ही आनंद आता है जितना आनंद माँ की गोद में सोने में।

१६ दिसंबर १९७१

शकगढ पर तैनात भारतीय सशक्त सेना की एक टुकड़ी ने आर्मी के रेडिओ सेट पर संदेश भेजा कि बसंतर नदी के पास पाकिस्तान के ११ टैंक घुस चुके हैं और हमें शीघ्र मदद चहिए। वरुण तुरंत अपनी टुकड़ी के साथ शकगढ़ रवाना हो गए।

भारतीय सेना के पास केवल तीन टैंक थे। शकगड़ के कमांडिंग ओफिसर ने वरुण को

रिपोटिंग के लिए हेड क्वाटर बुलाया। वरुण की कम उम्र थी, ६ महीने की ट्रेनिंग शेष थी और युद्ध का अनुभव जीरो था। उन्होने वरुण को युद्ध पर नहीं भेजने का फैसला लिया। वरुण जी जान से कमांडर को मनाने में जुट गए।

आफिसर ने उन्हें डांटते हुए कहा,"ये युद्ध कितना महत्वपूर्ण है क्या तुम्हें इसका ज़रा भी अंदाजा है?"

वरुण बिना कुछ बोले सीधा अपने केम्प में गए और अपने सामन में से अपना नीले रंग का सूट लाकर ऑफिसर की मेज़ पर रखते हुए बोले, "जनाब मैं जीत का जश्न मनाने के लिए अपने साथ ये सूट भी लाया हूँ। "

कमांडर को उनकी आँखों में आत्मविश्वास दिखाई दिया। "

तभी सूबेदार ने हेड क्वाटर को खबर दी, "जनाब हमारे एक टैंक में तकनीकी खराबी आ गई अब हमारे पास केवल दो टैंक बचे हैं।"

भारत की मुश्किलें और बढ़ गई थीं।

कमांडर ने एक वरिष्ठ सूबेदार को वरुण के साथ भेजा। वरुण को सलाह दी गई की कि वह वरिष्ठ सूबेदार के निर्देश अनुसार चले।

इतना वख्त नहीं बचा था, कि यह देखा जाये कि दुश्मन ने बारूदी सुरंग तो नहीं बिछा रखी।

सूबेदार और वरुण ने मिलकर दुश्मन के सात टैंक धराशायी कर दिए, लेकिन सूबेदार के टैंक में आग लग गई।

हेडक्वाटर से वरुण को बार बार निर्देश मिल रहा था, "वरुण वापिस आ जाओ। "

लेकिन वरुण ने कहा, अभी मेरी बंदूक में गोलियाँ बाकी हैं। वरुण ने तीन टैंक और उडा दिए। पाकिस्तान की सेना के पसीने छूट गए उन्होंने वरुण के टैंक को निशाना बनाया जिससे वरुण के टैंक की छत क्षति ग्र्स्त हो गई।

कमांडर ने रेडिओ सेट पर वरुण से कहा। टैंक से नीचे उतर आओ /वरुण ने जान बूझकर अपना रेडिओ सेट बंद कर दिया और पाकिस्तान के एक और टैंक पर गोलियां बरसा दी।

पाकिस्तान की ऒर से एक तोप का गोला दनदनाता हुआ आया और वरुण के टैंक के पास आकर इतनी ज़ोर से फटा कि वरुण की पेट की आंतड़ियाँ बाहर निकल आई।

वरुण ने अपने खून से लथपथ हाथों से एक और टैंक पर गोलियां बरसा दीं, इस टैंक में पाकिस्तान का कमांडर था, वह टैंक छोड़ कर अपनी जान बचा भाग खड़ा हुआ।

पाकिस्तान ने अपनी सेना को पीछे हटने का आदेश दे दिया।

भारत के फौजी कैम्प में जीत की खबर पहुंच चुकी थी।

वरुण की आँखेँ जीत की ज्योति लेकर हमेशा हमेशा के लिए बंद हो चुकी थीं।

१८ दिसम्बर १९७१

वरुण का परिवार लगातार रेडिओ सेट पर समाचार सुन रहा था। भारत की जीत और युद्ध समाप्ति की खबर सुनकर परिवार ने चैन की सांस ली।

अगले दिन पांच बजे काल बेल बजी, वरुण की माँ ने कहा, वरुण होगा आप जाकर दरवाजा खोलो मैं आरती की थाली सजातीं हूँ।

वरुण के पिता ने दरवाज़ा खोला तो पोस्ट मैन टेलिग्राम लिए खडा था। वरुण के पिता बुदबुदाए वरुण का होगा, कब आ रहा है।

टेलिग्राम देखकर वःह जड़ हो गए, टेलिग्राम में लिखा था

'डीपली रिगरेट टु इनफ़ॉर्म यू यॉर सन आई सी, सेकेंड लेफ़्टिनेंट वरुण पाल रिपोर्टेडली किल्ड इन एक्शन 16 दिसंबर. प्लीज़ एकसेप्ट सिनसियर कंडोलेंसेज़.'

वरुण के पिता वहीं सर पकड़ कर बैठ गए। मुकेश दौड़ा हुआ आया और बोला, "क्या हुआ पापा वरुण ठीक तो है न ?: कब आ रहा है वो घर वापिस ?"

वरुण के पिता बिलख बिलख कऱ रो पड़े, " कभी नहीं लौटेगा वरुण"

मुकेश उदास होलर बोला, "ऐसा मत कहो,पापा। "

वरुण के पिता बोले, " मेरा बेटे। ये सच है. वरुण शहीद हो गया। "

मुकेश बोला, " नहीं, पापा ऐसा मत कहो। हो सकता है ये टेलिग्राम झूठा हो। किसी ने हमारे साथ मज़ाक किया हो। "

वरुण के पापा फ़फ़क फ़फ़क कर रो रहे थे वो रोते हुए बोले, "टेलिग्राम आर्मी हैड क्वार्टर से आया है, झूठा नहीं है। "

ये सुनते ही वरुण की माँ चीख पड़ी, उनके हाथ से आरती का थाल छूट गया, "मेरा बच्चा,हाय मेरा बच्चा कहाँ चला गया।,उसको वापिस बुला लो, वापिस बुला लो । वरुण कहाँ चला गया लाल। " कहते कहते वे बेहोश हो गईं।

अड़ोसी पड़ोसी रिश्तेदार सब इकट्ठे हो गए, सभी की आँखें नम थी।

१९ दिसम्बर १९७१

वरुण को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई देने की तैयारी चल रही थी, करतार सिंह दूर खड़ा सुबक रहा था, वह वरुण की तस्वीर के पास जाकर बोला, 'तुने तो वादा किया था लड़ाई खत्म हो जाए, फिर अपनी माँ के हाथ के आलू के परांठे खिलाएगा। ओये धोखा दे गया। "

वरुण का पार्थिव शरीर जब आर्मी की गाडी से उसके घर पहुंचा तो, वहॉँ खड़े मिडिया के लोग भी रो पड़े, "महज़ २१ वर्ष की आयु में देश के लिए इतना बड़ा बलिदान। "

पिता ने उसके सामान में से नीले रंग का सूट निकाला और वरुण के शव के पास उसे रखते हुए बोले, 'जीत का जश्न तो मना लेता, कितने अरमान थे तेरे इस सूट को पहनकर पार्टी करने के। सब भूल गया तू। '

आर्मी चीफ ने उन्हें संभालते हुए कहा, "शहीदों की शहादत को यूँ रो कर शर्मिंदा न कीजिये। वरुण मरकर भी अमर हो गया है।

वरुण के पिता बोले, " बेटे को खूब कन्धे पर बिठाया है, आज कैसे कन्धा दूँ उसे। जानता हूँ, शहीद कभी नहीं मरते, वो तो हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं.

बाद में इस वीर को राष्ट्रपति द्वारा मरनोप्रांत "परमवीर चक्र " प्रदान किया गया।

कुछ वर्ष बाद पाकिस्तान के एक कमांडर, जिसने १९७१ के युद्ध में पाक़िस्तान की कमान संभाली थी, अपनी एक पुस्तक में उस युद्ध का वर्णन करते हुए लिखा था,

"उस दिन पाक़िस्तान की जीत निश्चित थी, लेकिन भारत के एक फौजी जवान वरुण पाल ने युद्ध का सारा नज़ारा ही पलट कर रख दिया। उसकी बहादुरी को मैं सलाम करता हूँ। "

देश में जगह जगह जीत का जश्न मनाया जा रहा था। ढोल नगाड़े बज रहे थे।

लेकिन वरुण के घर सन्नाटा था। वरुण की माँ का लाडला वरुण, पिता के बुढ़ापे का सहारा वरुण, मुकेश का दोस्त समान भाई.. .....अब कभी वापस नहीं आएगा।

जो लौट के फिर न आये ।

पृथ्वी पर चेतन प्राणियों की असंख्य जातियां हैं. जिनमें से सबसे सभ्य जाती मानव की समझी जाती है. लेकिन ये ही मानव दूसरे की ज़मीन जायज़ाद, राज पाट हड़पने के लिए सभ्यता के मायने ही भूल जाता है।

युद्ध की साजिश युगों से करता आ रहा।

किसी एक मस्तिष्क में उपजी इस विकृत मानसिकता का खामियाज़ा न जाने कितने लोगों को भुगतना पड़ता है।

इतिहास गवाह है, कि कभी किसी एक व्यक्ति के कारण बड़े -बड़े राज पाट लूट गए हैं, तो कहीं कोई एक बहादुर दुश्मन के सामने ऐसे चट्टान बन कर खड़ा हो गया कि बस्तियों की बस्तियों को उजड़ने से बचा लिया।

ऐसे वीर और वीरांगनाओं ने अपना सब कुछ न्योछावर दिया। जिनके बलिदान को पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

१९४७ को भारत -पाकिस्तान विभाजन के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर लगातार विवाद की स्थिति बनी हुए है। भारत ने बहुत बार शान्ति बनाये रखने की चेष्टा की है, लेकिन पाकिस्तान अक्सर धोखा दे जाता है और चुपचाप अपने सैनिक भारत की सीमा में घुसाने की कोशिश करता रहता है।

१९६५ में भारत पाकिस्तान के युद्ध को करीब से देखने वाले मेजर लखन पाल रिटायरमेन्ट के बाद दिल्ली में सेटल हो गए थे ।

मुकेश और वरुण उनके दो बेटे थे।

वरुण का जन्म 10 अक्टूबर 1950 में दिल्ली में हुआ था। मुकेश उनसे दो साल बड़े थे।

जब वरुण तीन वर्ष के थे, तभी से उन में देशभक्ति का रंग चढ़ने लगा था। वह पिता से अक्सर युद्ध के किस्से सुनते रहते थे और अपनी खिलोने की बंदूक लेकर दुश्मन को ललकारते फिरते थे ।

एक दिन वरुण और मुकेश की स्कूल की छुट्टी हुई और वो रोज़ की तरह अपनी गाडी में सवार होने के लिए सड़क पर आये, तो उन्होंने पाया की आज उनकी गाड़ी नहीं आई। बड़े भाई मुकेश रोने लगे तो सात वर्ष के वरुण पाल ने अपने भाई को दिलासा देते हुए कहा, :रो मत भैया मुझे घर का रास्ता पता है. वरुण ने अपने बड़े भाई का बस्ता भी अपने कंधे पर उठाया और दोनों भाई मंडी हाउस से गुल डाकखाने तक पैदल चलते हुए घर पहुंचे तो माँ का रो रोकर बुरा हाल था।

माँ ने वरुण को गले लगाते हुए कहा, "अगर तुम्हे कुछ हो जाता, तो मैं कैसे ज़िंदा रहती ?"

इस पर मुकेश ने नाराज़ होते हुए कहा,"आप छोटे से ज्यादा प्यार करती हो। "

माँ ने कहा, "नहीं पगले" और रोते हुए दोनों को अपनी छाती से लगा लिया।

बचपन हंसी ख़ुशी से बीत गया। मुकेश ने डाक्टरी में एडमिशन ले लिया।

वरुण का मन तो देश की सरहदों की रक्षा करने को ललायित था। वह मिलिट्री की टट्रेनिंग के लिए देहरादून चले गये ।

माँ ने ट्रेनिंग पर जाते हुए वरुण से कहा, "बेटा पत्र लिखते रहना मुझें, तुम्हारी बहुत चिंता रहती है। "

वरुण माता -पिता का आशीर्वाद लेकर, ट्रेनिंग के लिए देहरादून रवाना हो गए।

१९७१ का वर्ष और दिसंबर का महीना था। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के बादल मंडरा रहे थे।

कश्मीर के शक्गड इलाके में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ हो चुकी थी। युद्ध के पूरे आसार नज़र आ रहे थे।

दिल्ली की एक सुबह वरुण के माता पिता और भाई मुकेश नाश्ते की मेज पर बैठे ही थे की एक ओटो रिक्शा उनके घर के पास आकर रुका। जिसमें से एक लम्बा चौड़ा गोरे रंग वाला युवक बाहर निकला मां की ऑंखों ने झट वरुण को पहचान लिया।

वरुण ऑटो से बाहर निकला उसके दोनों हाथों में सामान था। मुकेश ने जल्दी से दौड़ कर वरुण का सामान अपने कंधे पर उठा लिया। पिता ख़ुशी से वहीं के वहीं खड़े रह गए। माँ बोली, "अंदर आ सबसे पहले तेरी नज़र उतारती हूँ। आर्मी ज्वाइन करने के बाद कितना स्मार्ट लग रहा है।

माँ ने वरुण की नज़र उतारने के बाद सर पर हाथ फेरते हुए पूछा , "ऐसे कैसे आ गया अचानक ?" सरप्राइज़ देना चाहता था मॉ को ?"

वरुण बोले ," सरप्राइज़ ही समझ लो। जैसे अचानक आया हूँ, वैसे अचानक जा भी रहा हूँ आज शाम को। "

"माँ ने हँसते हुए कहा ,:चल हठ, मजाक मत कर मेरे साथ। कितने दिनों बाद देखा है, तुझे ऐसे कैसे चला जाएगा।"

वरुण माँ की गोद में सिर रखते हुए बोले , " मेरी सबसे प्यारी माँ, मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ। सचमुच शाम की गाडी से अखनूर जाना है। '

वरुण के पिता समझ गए भारतीय सेना में फौजियों की ज़बरदस्त ज़रूरत है, तभी तो वरुण को ट्रेनिंग के बीच ही बॉडर पर जाने का आदेश मिल गया है।

माँ ने आश्चर्य से पूछा, " अभी तो तेरी ट्रेनिंग भी पूरी नहीं हुईं। ऐसे कैसे दुश्मन से लड़ेगा?

वरुण बोले मॉ आप चिंता मत करों अपने बेटे पर विश्वास रखो जल्दी ही दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब देकर वापिस आऊँगा। "

माँ बोली, "तूझ पर पूरा विश्वास है लेकिन अभी तेरी उम्र बहुत कम है। "

वरुण बोले। माँ आप जल्दी से आलू के परांठे बनाओं। मैं भईया के साथ जाकर बाज़ार से एक अच्छा सा सूट खरीद कर लाता हूं। माँ ने पूछा, "सूट क्यों खरीदना है क्या किसी की शादी है ?

वरुण हँस कर बोले, "पाकिस्तान को हराने के बाद पार्टी भी तो करेगे ?"

माँ वरुण का मनपसंद खाना बनाने रसोइ घर में चली गईं। पिताजी ने दोस्तों और रिश्तेदारों को वरुण से मिलने के लिए एकत्र कर लिया।

वरुण बाज़ार से खूबसूरत नीले रंग का सूट लेकर घर लौटा तो, उसके वापिस रेलवेस्टेशन जाने का टाइम होने वाला था उसने खाना गाडी में खाने के लिए रखवा लिया।

मुकेश टेक्सी लेने चला गया रिष्तेदारों और मित्रों की आँखें नम थीं लेकिन सब की जुबां पर एक ही बात थी, "वरुण पकिस्तान केछक्के छुड़ा देना।

टेक्सी आ गई वरुण का सामान टेक्सी में जैसे ही रखा वरुण की माँ फूट फूट कर रोने लगी, वरुण से लिपट गईं, "मेरा बच्चा कैसे रहेगा बंदूकों और गोलियों के बीच। पिताजी ने दिल को मज़बूत करते हुए कहा ,"रो मत हिम्मत रख फौज़ी को जंग में हँसते हँसते भेजना चाहिए। "

वरुण की टेक्सी काळा धुआं छोड़ती हुए आँखों से ओझल हो गई, पीछे छूट गया एक परिवार जिसे वरुण के सकुशल लौट आने का इंतज़ार था..

१३ दिसम्बर १९७१

अख़नूर के आर्मी हेड क्वाटर जाकर वरुण ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई।

उन्हें बतौर सेकिंड लैफ्टिनेंट तैनात किया गया। आर्मीकैम्प के लिए भोजन तैयार करने वाले करतार सिंह से उनकी दोस्ती हो गई जो उम्र और तज़ुर्बे में उनसे सीनियर थे..

एक दिन करतार सिंह ने वरुण के कन्धे पर हाथ रखकर पूछा, 'कैसा लगा आर्मी केम्प का खाना। "

वरुण ने मुस्कुराते हुए कहा, "बहुत अच्छा। अपने देश की माटी की खुशबु है इस खाने में, लेकिन मेरी माँ के हाथ के बने आलू पराँठों का जवाब नहीं। "

करतार सिंह ने कहा, 'बस ये जंग जीतने के बाद तेरे घर सबसे पहले चलूँगा, आलू के परांठे खाने। कई सालों से बना बना कर खिला रहा हूँ, मैं भी तो किसी और का बनाया खाना खाऊँ। ' वरुण ने हँसते हुए कहा, 'बेशक। '

वरुण ने अपने घर के लिए एक पत्र लिखा। उन्होंने लिखा कि, वह बहुत खुश हैं। उन्हें सीमा पर लगी चौंकियों में सोने उतना ही आनंद आता है जितना आनंद माँ की गोद में सोने में।

१६ दिसंबर १९७१

शकगढ पर तैनात भारतीय सशक्त सेना की एक टुकड़ी ने आर्मी के रेडिओ सेट पर संदेश भेजा कि बसंतर नदी के पास पाकिस्तान के ११ टैंक घुस चुके हैं और हमें शीघ्र मदद चहिए। वरुण तुरंत अपनी टुकड़ी के साथ शकगढ़ रवाना हो गए।

भारतीय सेना के पास केवल तीन टैंक थे। शकगड़ के कमांडिंग ओफिसर ने वरुण को

रिपोटिंग के लिए हेड क्वाटर बुलाया। वरुण की कम उम्र थी, ६ महीने की ट्रेनिंग शेष थी और युद्ध का अनुभव जीरो था। उन्होने वरुण को युद्ध पर नहीं भेजने का फैसला लिया। वरुण जी जान से कमांडर को मनाने में जुट गए।

आफिसर ने उन्हें डांटते हुए कहा,"ये युद्ध कितना महत्वपूर्ण है क्या तुम्हें इसका ज़रा भी अंदाजा है?"

वरुण बिना कुछ बोले सीधा अपने केम्प में गए और अपने सामन में से अपना नीले रंग का सूट लाकर ऑफिसर की मेज़ पर रखते हुए बोले, "जनाब मैं जीत का जश्न मनाने के लिए अपने साथ ये सूट भी लाया हूँ। "

कमांडर को उनकी आँखों में आत्मविश्वास दिखाई दिया। "

तभी सूबेदार ने हेड क्वाटर को खबर दी, "जनाब हमारे एक टैंक में तकनीकी खराबी आ गई अब हमारे पास केवल दो टैंक बचे हैं।"

भारत की मुश्किलें और बढ़ गई थीं।

कमांडर ने एक वरिष्ठ सूबेदार को वरुण के साथ भेजा। वरुण को सलाह दी गई की कि वह वरिष्ठ सूबेदार के निर्देश अनुसार चले।

इतना वख्त नहीं बचा था, कि यह देखा जाये कि दुश्मन ने बारूदी सुरंग तो नहीं बिछा रखी।

सूबेदार और वरुण ने मिलकर दुश्मन के सात टैंक धराशायी कर दिए, लेकिन सूबेदार के टैंक में आग लग गई।

हेडक्वाटर से वरुण को बार बार निर्देश मिल रहा था, "वरुण वापिस आ जाओ। "

लेकिन वरुण ने कहा, अभी मेरी बंदूक में गोलियाँ बाकी हैं। वरुण ने तीन टैंक और उडा दिए। पाकिस्तान की सेना के पसीने छूट गए उन्होंने वरुण के टैंक को निशाना बनाया जिससे वरुण के टैंक की छत क्षति ग्र्स्त हो गई।

कमांडर ने रेडिओ सेट पर वरुण से कहा। टैंक से नीचे उतर आओ /वरुण ने जान बूझकर अपना रेडिओ सेट बंद कर दिया और पाकिस्तान के एक और टैंक पर गोलियां बरसा दी।

पाकिस्तान की ऒर से एक तोप का गोला दनदनाता हुआ आया और वरुण के टैंक के पास आकर इतनी ज़ोर से फटा कि वरुण की पेट की आंतड़ियाँ बाहर निकल आई।

वरुण ने अपने खून से लथपथ हाथों से एक और टैंक पर गोलियां बरसा दीं, इस टैंक में पाकिस्तान का कमांडर था, वह टैंक छोड़ कर अपनी जान बचा भाग खड़ा हुआ।

पाकिस्तान ने अपनी सेना को पीछे हटने का आदेश दे दिया।

भारत के फौजी कैम्प में जीत की खबर पहुंच चुकी थी।

वरुण की आँखेँ जीत की ज्योति लेकर हमेशा हमेशा के लिए बंद हो चुकी थीं।

१८ दिसम्बर १९७१

वरुण का परिवार लगातार रेडिओ सेट पर समाचार सुन रहा था। भारत की जीत और युद्ध समाप्ति की खबर सुनकर परिवार ने चैन की सांस ली।

अगले दिन पांच बजे काल बेल बजी, वरुण की माँ ने कहा, वरुण होगा आप जाकर दरवाजा खोलो मैं आरती की थाली सजातीं हूँ।

वरुण के पिता ने दरवाज़ा खोला तो पोस्ट मैन टेलिग्राम लिए खडा था। वरुण के पिता बुदबुदाए वरुण का होगा, कब आ रहा है।

टेलिग्राम देखकर वःह जड़ हो गए, टेलिग्राम में लिखा था

'डीपली रिगरेट टु इनफ़ॉर्म यू यॉर सन आई सी, सेकेंड लेफ़्टिनेंट वरुण पाल रिपोर्टेडली किल्ड इन एक्शन 16 दिसंबर. प्लीज़ एकसेप्ट सिनसियर कंडोलेंसेज़.'

वरुण के पिता वहीं सर पकड़ कर बैठ गए। मुकेश दौड़ा हुआ आया और बोला, "क्या हुआ पापा वरुण ठीक तो है न ?: कब आ रहा है वो घर वापिस ?"

वरुण के पिता बिलख बिलख कऱ रो पड़े, " कभी नहीं लौटेगा वरुण"

मुकेश उदास होलर बोला, "ऐसा मत कहो,पापा। "

वरुण के पिता बोले, " मेरा बेटे। ये सच है. वरुण शहीद हो गया। "

मुकेश बोला, " नहीं, पापा ऐसा मत कहो। हो सकता है ये टेलिग्राम झूठा हो। किसी ने हमारे साथ मज़ाक किया हो। "

वरुण के पापा फ़फ़क फ़फ़क कर रो रहे थे वो रोते हुए बोले, "टेलिग्राम आर्मी हैड क्वार्टर से आया है, झूठा नहीं है। "

ये सुनते ही वरुण की माँ चीख पड़ी, उनके हाथ से आरती का थाल छूट गया, "मेरा बच्चा,हाय मेरा बच्चा कहाँ चला गया।,उसको वापिस बुला लो, वापिस बुला लो । वरुण कहाँ चला गया लाल। " कहते कहते वे बेहोश हो गईं।

अड़ोसी पड़ोसी रिश्तेदार सब इकट्ठे हो गए, सभी की आँखें नम थी।

१९ दिसम्बर १९७१

वरुण को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई देने की तैयारी चल रही थी, करतार सिंह दूर खड़ा सुबक रहा था, वह वरुण की तस्वीर के पास जाकर बोला, 'तुने तो वादा किया था लड़ाई खत्म हो जाए, फिर अपनी माँ के हाथ के आलू के परांठे खिलाएगा। ओये धोखा दे गया। "

वरुण का पार्थिव शरीर जब आर्मी की गाडी से उसके घर पहुंचा तो, वहॉँ खड़े मिडिया के लोग भी रो पड़े, "महज़ २१ वर्ष की आयु में देश के लिए इतना बड़ा बलिदान। "

पिता ने उसके सामान में से नीले रंग का सूट निकाला और वरुण के शव के पास उसे रखते हुए बोले, 'जीत का जश्न तो मना लेता, कितने अरमान थे तेरे इस सूट को पहनकर पार्टी करने के। सब भूल गया तू। '

आर्मी चीफ ने उन्हें संभालते हुए कहा, "शहीदों की शहादत को यूँ रो कर शर्मिंदा न कीजिये। वरुण मरकर भी अमर हो गया है।

वरुण के पिता बोले, " बेटे को खूब कन्धे पर बिठाया है, आज कैसे कन्धा दूँ उसे। जानता हूँ, शहीद कभी नहीं मरते, वो तो हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं.

बाद में इस वीर को राष्ट्रपति द्वारा मरनोप्रांत "परमवीर चक्र " प्रदान किया गया।

कुछ वर्ष बाद पाकिस्तान के एक कमांडर, जिसने १९७१ के युद्ध में पाक़िस्तान की कमान संभाली थी, अपनी एक पुस्तक में उस युद्ध का वर्णन करते हुए लिखा था,

"उस दिन पाक़िस्तान की जीत निश्चित थी, लेकिन भारत के एक फौजी जवान वरुण पाल ने युद्ध का सारा नज़ारा ही पलट कर रख दिया। उसकी बहादुरी को मैं सलाम करता हूँ। "

देश में जगह जगह जीत का जश्न मनाया जा रहा था। ढोल नगाड़े बज रहे थे।

लेकिन वरुण के घर सन्नाटा था। वरुण की माँ का लाडला वरुण, पिता के बुढ़ापे का सहारा वरुण, मुकेश का दोस्त समान भाई.. .....अब कभी वापस नहीं आएगा।

***