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कर्मवीर - 9

कर्मवीर

(उपन्यास)

विनायक शर्मा

अध्याय 9

चारों तरफ कर्मवीर चर्चाएँ शांत होने का नाम नहीं ले रही थी। एक दिन कर्मवीर के मैनेजर का फोन आया।

“हेल्लो।”

“हाँ जी हेल्लो क्या मेरी बात कर्मवीर से हो सकती है?” उधर से आवाज आई।

“हाँ जी वो यहीं है रुकिए मैं अभी उसे फोन देता हूँ।” महावीर सिंह ने उत्तर दिया और फोन कर्मवीर को देने लगे। फोन लेते समय कर्मवीर ने उन्हें धीरे से कहा कि एक बार पूछ तो लिया कीजिये कि कौन बोल रहा है उसने कहा कि कर्मवीर से बात करनी है और आपने मेरी ओर फोन बढ़ा दिया। हालाँकि उसने फोन लिया और फिर कहा,

“हेल्लो मैं कर्मवीर बोल रहा हूँ आप कौन बोल रहे हैं?”

“जी कर्मवीर जी मैं आपकी कम्पनी का मैनेजर बोल रहा हूँ।”

“हाँ सर बोलिए कैसे हैं आप? अच्छा कोई काम अभी तक बताया नहीं आपने मेरे लिए दस दिन हो गए।” कर्मवीर ने मैनेजर से कहा।

“मिस्टर कर्मवीर आपको काम छोड़ कर भी कुछ दिखता है या नहीं?” मैनेजर थोड़े गुस्से के लहजे में कहा।

“सर काम को छोड़कर और क्या सूझ सकता है?” कर्मवीर ने थोड़ा चौंकते हुए मैनेजर से प्रश्न किया।

“अरे आपको मैने किसी चीज के लिए कहा था और आपने मुझे कहा था कि वो आप मुझे शिक्षकों वाले सर्वे के बाद बताएँगे और आप भूल कर ही बैठ गए। अभी तक आपने मुझे कुछ बताया ही नहीं है अब कम्पनी मुझसे पूछ रही है तो मैं क्या जवाब दूँ जरा ये बताइए मुझे। आप तो मुझे कुछ बता नहीं रहे हैं” मैनेजर का लहजा फिर से जरा तल्ख़ था। कर्मवीर को कुछ ध्यान ही नहीं आया कि ऐसी कौन सी बात वो मैनेजर को बताने वाला था जो उसने उसे नहीं बताई और फिर उसके कारण कम्पनी मैनेजर को खरी खोटी सूना रही है।

“ऐसी कौन सी बात थी सर मुझे तो कुछ भी ऐसा ध्यान नहीं आ रहा जिससे कि मेरे कारण आपको कम्पनी से कुछ सुनना पड़ जाए। आप ही बता दीजिये सर मुझे तो कुछ भी ध्यान नहीं आ रहा।” कर्मवीर ने थोड़ा डरते हुए मैनेजर से कहा।

“मुझे पता था कि आप फिर से भूल गए होंगे इसीलिए मैंने आपसे कहा था कि आपको काम के अलावा भी कुछ और सूझता है कि नहीं अभी भी आपको याद आया कि मुझे ही सबकुछ बताना पड़ेगा?” मेनेजर ने कर्मवीर से पूछा।

“सर प्लीज मुझे बता दीजिये मुझे कुछ भी याद नहीं आ आ रहा है।” कर्मवीर ने घबराते हुए उत्तर दिया।

“अरे श्रीमान जब मैंने आपको बताया था कि आपकी पिछली रिपोर्ट इतनी अच्छी रही थी कि कम्पनी आपको स्पेशल पैकेज देना चाहती है तो आपने कहा था कि आप इस सर्वे के बाद बताएँगे कि आपको कौन सा स्पेशल पैकेज चाहिए। अब जब इस रिपोर्ट के बाद कम्पनी का नाम और भी ज्यादा फ़ैल गया है तो कम्पनी मुझसे पूछ रही है कि उस लड़के कर्मवीर ने अपना स्पेशल पैकेज लिया कि नहीं अब बताइए मैं क्या जवाब दूँ उन्हें। और हाँ आप जो भी स्पेशल पैकेज कम्पनी से माँगे वो अलग बात है उसके अलावा कम्पनी ने आपके बारे में कुछ फैसला लिया है जो मुझे बोला गया है कि मैं आपको बताऊँ।”

“बताइए सर।”

“कम्पनी ने आपको एक महीने की छुट्टी दी है और इस एक महीने में आपसे कोई भी काम नहीं लिया जाएगा और अगले महीने से आपको तनख्वाह को डेढ़ गुना कर दिया जाएगा।” कर्मवीर को ये बात सुनकर थोड़ी ख़ुशी हुई। चूँकि वो पैसे के बारे में ज्यादा कभी सोचता ही नहीं था और हमेशा गाँव की भलाई के लिए ही अपने पैसे खर्च करता रहता था तो इस बात से उसे ज्यादा ख़ुशी नहीं हुई।

“जी शुक्रिया।” कर्मवीर ने कहा

“अरे ठीक है मुझे पता है कि आप अपनी तनख्वाह के बारे में ज्यादा नहीं सोचते लेकिन जनाब अब आप अपने उस स्पेशल पैकेज के बारे में कुछ बोलेंगे या नहीं।”

“अरे हाँ सर वो तो मैं भूल ही गया था। लेकिन सर मेरा जो स्पेशल पैकेज है वो थोड़ा महँगा हो जाएगा।” कर्मवीर ने थोड़ा हिचकिचाते हुए उत्तर दिया।

“आप बोलिए तो कम्पनी आपको हरेक महँगे से महँगे पैकेज देने के लिए तैयार है अब बस आप बोलिए और मेरी जान जो अधर में लटकी है उसे आप निकालिए।” मैनेजर ने कर्मवीर से कहा।

“ठीक है सर तो सुनिए। स्पेशल पैकेज में मुझे तीन लोगों का यूरोप ट्रिप चाहिए और उनके साथ एक हिंदी गाइड भी रहेगा उन्हें यूरोप घुमाने के लिए। और हाँ एक अच्छा सा कैमरा भी मुझे चाहिए सर।”

“बस यही आपको लग रहा है कि बहुत महँगा हो गया। अरे आपने कम्पनी का नाम और आमदनी इतनी बढ़ा दी है न कि ये भी बहुत ही छोटी चीज है कम्पनी के लिए। वैसे माझे लगता है कि ९९ प्रतिशत उम्मीद है कि आपको ये पैकेज मिल जाएगा। आप ये बता दीजिये कि आपको इस ट्रिप पर जाना कब है?”

“जी अगर हो जाता है तो अगले ही हफ्ते।”

“ठीक है मैं ये प्रपोजल कम्पनी को बता दूँगा और शाम तक ही मैं आपको जवाब दे दूँगा। वैसे जहाँ तक मुझे लग रहा है आप निश्चिन्त रहें ये पैकेज जरूर मंजूर हो जाएगा।”

“जी ठीक है शुक्रिया।” कर्मवीर ने कहा और फोन रख दिया।

जब कर्मवीर मैनेजर बात करने में लग गया था तो सरे लोग वहां से जा चुके थे और फिर अपने काम में लग गए थे। शाम को फिर से मैनेजर का फोन आया और फिर उसने कहा,

“कर्मवीर जैसा कि मैंने आपको पहले ही बताया था कि आपको ये पैकेज जरूर मिलेगा तो कम्पनी ने इस पैकेज के लिए स्वीकृति दे दी है। अब आप उन तीन लोगों का नाम बताएँ सॉरी बाक़ी दो लोगों का नाम बताएँ जो आपके साथ यूरोप जाएँगे। क्योंकि आपका तो पूरा डिटेल मेरे पास है ही।”

“जी नहीं आपको तीन लोगों का डिटेल ही लिखना पड़ेगा। क्योंकि मैं यूरोप नहीं जा रहा हूँ।”

“आप सचमुच बहुत महान हैं।” मेनेजर ने कर्मवीर से कहा। उसके बाद कर्मवीर ने बिना कुछ बोले महावीर सिंह अपनी माँ और मंगरू का सारा डिटेल लिखवा दिया। और उसके बाद मेनेजर ने कहा,

“कर्मवीर अगले सोमवार को एक गाडी जिसमे यूरोप जाने वाला हिंदी गाइड भी होगा और उसी के साथ आपकी फरमाइश वाला नया कैमरा और ढेर सारे रील भी भेज दिया जाएगा। अगर कोई और सेवा हो तो बता दीजिये।”

“अरे नहीं सर शुक्रिया और कुछ नहीं चाहिए।” कर्मवीर ने फोन पर उत्तर दिया।

“ठीक है फिर उम्मीद करते हैं आप जिन्हें भी यूरोप भेज रहे हैं उनका ट्रिप बहुत ही अच्छा हो।”

“जी शुक्रिया।” कर्मवीर ने कहा।

रात में घर में जब साथ बैठकर सभी लोग खाना खा रहे थे तो कर्मवीर ने कहा कि मुझे आपलोगों को एक बात बतानी है। कर्मवीर ने जानबूझ कर थोड़ा गंभीर होने का अभिनय किया। उसके गंभीर से चेहरे को देखकर महावीर सिंह थोड़े घबरा गए।

“ऐसी क्या बात है?” उन्होंने पूछा और बाकी के दो लोग भी गंभीरता से कर्मवीर की ओर देखने लगे और उसके जवाब की प्रतीक्षा करने लगे।

“वो दरसल बाबूजी।” इतना कहकर कर्मवीर चुप हो गया।

“वो क्या बताओ भी जल्द से।” महावीर सिंह ने थोड़ा उत्तेजित होते हुए कहा और मंगरू ने हाँ के इशारे में अपना सर हिला दिया जैसे वो महावीर सिंह की बातो में अपनी सहमती जता रहा हो।

“बाबूजी आपलोग अगले हफ्ते घुमने जा रहे हैं और मैं माफ़ी चाहूँगा मेरे पास इतना समय नहीं था कि मैं आपलोगों को ये बता सकूँ लेकिन आपलोगों का टिकट बुक हो चुका है।” कर्मवीर ने कहा।

“ये तो अच्छी बात है कि हमसब घुमने जा रहे हैं खेतों का काम भी ख़त्म ही हो गया है इसी बीच घूम आयेंगे तो अच्छा ही रहेगा। लेकिन ये तो बताओ हमलोग कहाँ घूमने जा रहे है?” महावीर सिंह ने फिर से कर्मवीर से पूछा।

“हमलोग नहीं बाबूजी आप तीनों लोग जाएँगे घूमने।”

“मैं कहाँ जाऊँगी घूमने? मैं कभी कहीं गयी नहीं हूँ मैं नहीं जाऊँगी। आप पास के गाँव के मंदिर चली जाती हूँ यही बहुत है मेरे लिए मैं कहीं नहीं जा रही और ये बताओ तुम क्यों नहीं जाओगे इन दोनों के साथ?” कर्मवीर की माँ ने अपना जवाब सुनाया और फिर अपना प्रश्न भी दाग दिया।

“वो इसलिए कि मैं बहुत दिन बाहर रह चुका हूँ और अब आपलोगों की बारी है अब आपलोग घूमेंगे और मैं घर संभालूँगा।” कर्मवीर ने उत्तर दिया।

“अरे वो सब तो बाद में निर्धारित करेंगे पहले ये तो बताओ कि हम सब जा कहाँ रहे हैं?”

“यूरोप।” कर्मवीर ने उत्तर दिया।

“यूरोप? मतलब विदेश! अरे तुम्हारी माँ कभी गाँव से बाहर नहीं गयी, मंगरू एक या दो बार शहर गया है मैं बमुश्किल कुछ बार ट्रेन में बैठा हूँ और तुम हम तीनों को यूरोप भेज रहे हो। वहाँ सब इंग्लिश बकेंगे हमें समझ में भी आएगा कुछ।” महावीर सिंह ने अपना पक्ष रखा।

“उन सबकी आप चिंता नहीं कीजिये एक आदमी यहाँ से आपके साथ जाएगा जो हिंदी जानता है वहाँ आपके रहने खाने का सारा इंतजाम वो करता रहेगा और कौन कौन सी जगह कौन कौन से देश जाना है ये वही निर्धारित करेगा और फिर आपको घुमा कर यहाँ ले भी आएगा।” महावीर सिंह कर्मवीर के इस जवाब को सुनकर चुप हो गए और कुछ सोचने लगे।

“कर्मवीर विदेश जाने के लिए तो हमें हवाई जहाज से जाना होगा न?” मंगरू ने उत्साहित होते हुए पूछा।

“हाँ मंगरू भैया और यूरोप में भारत के शहरों से भी ज्यादा मॉडर्न कपड़े पहने जाते हैं इसलिए मैं तो कहूँगा कि आप शहर जाकर अपने, बाबूजी और माँ के लिए भी कुछ मोडर्न कपड़े खरीद आइये।”

“सही कह रहे हो तुम।” मंगरू का उत्साह और भी बढ़ता ही जा रहा था।

“वो सब तो सही है लेकिन तुम क्यों नहीं जाओगे?” महावीर सिंह ने पूछा।

कर्मवीर ने आने तर्कों से उन्हें विदेश ना जाने का कारन समझा दिया। महावीर सिंह ने फिर ज्यादा जिद नहीं लेकिन कर्मवीर की माँ कहीं नहीं जाने की जिद पड़ अड़ी रहीं। कर्मवीर ने अब उन्हें समझाना शुरू किया,

“माँ आप बाहर जायेंगी घूमने सोचिये वहाँ दुसरे देश के लोगों को देखेंगी विदेश में अलग अलग जगहों को देखेंगी तब आपको पता चलेगा न कि भारत से बाहर भी लोग कैसे रहते हैं अभी तक तो आप गाँव से भी नहीं निकली हैं और आप निकलना भी नहीं चाहती ऐसा बिल्कुल भी नहीं चलेगा आप तीनों का टिकट हो चुका है और आप तीनों जा रहे हैं बस।” कर्मवीर ने अपनी माँ को समझाने की कोशिश की।

“मुझे जब हवाई जहाज पर डर लगेगा और मैं चिल्ला दूँगी तो सोचो क्या होगा?”

“कुछ नहीं होगा कोई डर नहीं लगता है हवाई जहाज में जैसे आप यहाँ बैठी हैं ऐसे ही आपको हवाई जहाज में भी बैठ के लगेगा। थोड़ा सा भी डर नहीं लगेगा आपको।” कर्मवीर ने फिर से उन्हें समझाया।

“ठीक है अगर तुम यही चाहते हो कि मेरे कारण तुम्हारे बाबूजी शर्मिंदगी झेलें तो फिर ठीक है चली जाऊँगी मैं।”

“ठीक है आप बसा जाइए और पूरा यूरोप घूम के आइये और सभी जगह तस्वीरें खिंचवाना नहीं भूलियेगा।”

“ठीक है।”

सोमवार को गाडी आई और गाइड के साथ तीनों लोग दिल्ली के लिए निकल पड़े। दिल्ली से उन्हें हवाई जहाज पकड़ना था। इधर कर्मवीर अपने कर्म में फिर से लग गया। कर्मवीर ने एक मोटर साइकिल खरीद ली क्योंकि भाग दौड़ में इसकी बहुत जरुरत पड़ती थी। वो आस पास के गाँव में गया उसने देखा कि सभी विद्यालयों में अब पर्याप्त शिक्षक मौजूद हैं। वो ये सब देखकर बहुत खुश हुआ। कुछ दिनों के बाद जब वो अपने खेत के तरफ गया तो देखा वहाँ खेतों में अभी भी कुछ बच्चे काम कर रहे हैं। उसने उन बच्चों के साथ काम कर रही माँ से पूछा,

“क्या हुआ बच्चे अब भी स्कूल क्यों नहीं जा रहे हैं अब तो स्कूल में इतने मास्टर आ गये हैं फिर भी बच्चे स्कूल क्यों नहीं जा रहे।”

“क्या बताऊँ बाबूजी इसका बाप कमाने के लिए शहर गया है कितने ही दिनों से न तो वो आया है और न ही पैसा भेजा है मैं जितना कमाती हूँ उससे तीन समय का खाना नहीं हो पाता है इसलिए इसे भी साथ में काम करवाना पड़ता है तब जाकर पूरे परिवार का पेट भर पाता है।” बहुत ही ज्यादा दुखी होते हुए उस औरत ने कर्मवीर को यही जवाब दिया।

“क्या वो कोई चिट्ठी वगैरह भी नहीं लिखते हैं?” कर्मवीर ने प्रश्न किया।

“उतना पढ़ा लिखा नहीं है वो बाबूजी। पैसे मनी आर्डर से भिजवा देता था लेकिन अब तो वो भी नहीं भेज रहा है तो क्या करूँ?” उस औरत ने एक बार फिर से कर्मवीर को अपनी व्यथा सुनाई।

“कौन से शहर गया है वो आपको पता है क्या?” कर्मवीर ने पूछा।

“नहीं बाबूजी हमें वो सब नहीं पता है हमको तो बस इतना पता है कि वो शहर गया है कमाने के लिए।”

“ठीक है आप इसे स्कूल भेजिएगा और आपके परिवार के तीनो समय के खाने की व्यवस्था मैं कर दूँगा।” कर्मवीर ने आश्वासन दिया।

कर्मवीर ने इस तरह के सभी घरों के बारे में पता किया जिसके घर के मर्दों ने पैसा भेजना बंद कर दिया था। कुल छः घर ऐसे थे जीके बच्चों को मजदूरी करना पड़ रहा था। चूँकि कर्मवीर की तनख्वाह अच्छी खासी थी और अब तो और डेढ़ गुनी होने वाली थी इसलिए उसने उन तमाम घरों के खाने पीने का बंदोवस्त करना शुरू कर दिया। उसने कहा,

“मैं ये देख लूँगा कि मेरे गाँव के लोग एक समय का खाना कम खा रहे हैं लेकिन मैं अपने गाँव में ऐसा कोई भी गाँव नहीं देखना चाहता जिस घर के बच्चे अनपढ़ हों।”

पढाई वाली समस्या का तो हल हो गया। न सिर्फ कर्मवीर के गाँव के लिए बल्कि समूचे राज्य के लिए ही। अब उसने अपने गाँव को और उन्नत बनाने के लिए गाँव में मौजूद अन्य समस्याओं की ओर अपना ध्यान खींचा। उसने देखा कि राज्य के बहुत सारे गाँव ऐसे हैं जिस गाँव में बिजली आ चुकी है और उस बिजली की सहायता से अच्छी खासी खेती हो जा रही है और कम मेहनत भी लग रही है। बच्चों के पढने में सुविधा हो रही है और सभी के गहर रोशन हो रहे हैं। उसने तय कर लिया कि उसके गाँव में भी बिजली आये।

इस कार्य के लिए वो सबसे पहले गाँव के प्रधान के पास गया। उसे देखते ही प्रधान जी बहुत ही ज्यादा खुश हो गए। शिक्षकों की बहाली के बाद कर्मवीर को हर व्यक्ति पहचानने लगा था और उसकी इज्जत भी बहुत ज्यादा करने लगे थे। प्रधान जी ने उसे अपने सोफे पर बैठने के लिए कहा और फिर पूछा,

“और बताओ कर्मवीर मेरे पास कैसे आना हुआ?”

“प्रधान जी एक समस्या है अपने गाँव के लिए।”

“बताओ कर्मवीर कौन सी समस्या है मैं हल करने की कोशिश करूँगा।”

“प्रधान जी हल तो न आप कर सकते हैं न ही मैं कर सकता हूँ हाँ हमदोनों भले उस समस्या को हल करने में अपनी मदद दे सकते हैं।”

“हाँ हाँ जरूर, क्यों नहीं मैं गाँव के लिए कुछ भी कर पाऊं तो फिर ये मेरे लिए बहुत ही ख़ुशी की बात होगी।”

“तो फिर समस्या ये है कि हमारे गाँव में बिजली नहीं है।” कर्मवीर ने थोड़े आराम से कहा।

कर्मवीर की बात सुनकर प्रधान जी उसे हैरानी के साथ देखने लगे। और थोड़ी देर सोचने के बाद उसने कहा,

“तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे यहाँ बिजली का पूरा सेट अप हो रखा है और कुछ दिनों से बिजली नहीं आई है और हमलोग एक दरख्वास्त लिखेंगे और बिजली आ जाएगी। या फिर ऐसा कुछ तो नहीं है कि एक मिस्त्री बुला लें और बिजली बनवा लें।” प्रधान बहाने बनाने में लग गया।

“ठीक है प्रधान जी मैं चलता हूँ मुझे लगा था कि आप कुछ मदद करेंगे लेकिन आप तो पहले से ही कुछ करने के मन में हैं ही नहीं ऐसा लग रहा है। अब मुझे खुद ही कुछ करना पड़ेगा।” कर्मवीर वहाँ से उठ कर जाने लगा।

“अरे रुको तो कर्मवीर मेरे कहने का वो मतलब नहीं था कि मैं कुछ नहीं करूँगा। यार ये गाँव मेरा भी है मैं भी इस गाँव की तरक्की चाहता हूँ लेकिन ये सब इतनी जल्दी नहीं हो पायेगा इसमें समय लगता है।” मुखिया जी ने अब अपनी गलती सुधारनी चाही।

“अरे प्रधान जी तो मैं कहाँ कह रहा हूँ कि आप कल ही इस गाँव को बिजली से रोशन करवा दीजिये। समय लगेगा ये तो मुझे पता ही है लेकिन एक बार इसके लिए काम तो शुरू हो तभी तो वो समय के साथ खत्म भी हो पायेगा।”

“चलो ठीक है मैं इसपर काम करना शुरू करता हूँ। इसके लिए विधायक जी से बात करनी पड़ेगी। तभी बात आगे बढ़ेगी।” अब प्रधान जी ने काम करने में लगभग अपनी सहमती जता दी।

“हाँ ठीक है मुखिया जी मैं फिर आता हूँ कुछ दिनों में।”

“ठीक है कर्मवीर।” मुखिया जी ने कहा और कर्मवीर वहाँ से जाने लगा।

“कर्मवीर रुकना एक और बात कहनी है।” मुखिया जी ने कर्मवीर को रोकते हुए कहा।

“हाँ बोलिए।” कर्मवीर ने पलटकर उत्तर दिया।

“यार तुम्हारे पिता आज से कुछ वर्ष पहले आये थे मेरे पास और उसका परिणाम पता है क्या है?”

“नहीं आप ही बताइए मुझे तो नहीं पता है।”

“ये अपना गाँव जो पक्की सडक से जुड़ा है न वो तुम्हारे पिता की ही देन है।”

“मुझे ये तो पता था कि ये सड़क जो है मेरे पिताजी की मेहनत का नतीजा है लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि इसके लिए उन्हें आपके पास आना पड़ा था।”

“हाँ वो विधायक ने कहा था कि आपके मुखिया को इन सारी चीजों के बारे में सोचना चाहिए जब तक वो आकर नहीं बताएगा मुझे तब तक मेरी तारफ से कोई मंजूरी नहीं मिलेगी और तब वो मेरे पास आये थे और फिर मैं उनके साथ विधायक के पास गया था।”

“तब भी आपको समझ नहीं आया न कि अपने गाँव के लिए कुछ सोचा जाय कुछ किया जाय।”

“ऐसी बात नहीं है कर्मवीर।” कर्मवीर की बातों से प्रधान जी शर्मिंदा हो गए।

“ठीक है कोई बात नहीं अगर ऐसी बात नहीं है तो फिर देखता हूँ इसमें आप कितनी मदद करते हैं मेरी।”

“हर संभव मदद रहेगी मेरी ओर से लेकिन यार जब तुम्हारे पिता और तुम्हारे जैसे लोगों को देखता हूँ तो फिर मेरा दिल गदगद हो उठता है।”

“चलिए ठीक है अभी मैं चलता हूँ फिर आऊँगा कुछ दिनों में।” और फिर कर्मवीर वहाँ से चला गया।

कर्मवीर अपने घर आ गया और बिजली से होने वाले फायदे के बारे में सोचने लग गया। उसने ये सोचा कि गाँव वालों को भी बिजली आने के फायदे समझा दिए जाएँ तो ज्यादा बेहतर है। वो लोग भी जिस तरह हो उस तरह उसका समर्थन करेंगे। उसने सोचा कि गाँव वालों को बुलाकर बिजली की उपयोगिता समझाई जाए। उसने गाँव में यह खबर फैला दी कि दो दिन बाद वो गाँव के लगभग सभी लोगों से बात करना चाहता है। औरत मर्द और बच्चे अगर सभी आयें तो ज्यादा अच्छा है सभी के फायदे की ही बात होगी। जितने ज्यादा लोग आयें उतना ही ज्यादा अच्छा।

कर्मवीर के पिता महावीर सिंह को गाँव के लोग जितना मानते थे उससे ज्यादा लोग कर्मवीर को मानने लगे थे। इसके पीछे कारण थे एक तो कर्मवीर पढ़ा लिखा था, केवल पढ़ा लिखा ही नहीं राज्यपाल ने उसे पुरस्कार तक दे रखा था। और दूसरा कारण कर्मवीर का पूरे राज्य में शिक्षकों की बहाली करवाना था। सभी लोगों ने कर्मवीर के द्वारा बुलाये जाने की बात को पूरे सकारात्मक तरीके से लिया और काफी संख्या में लोग उसके द्वारा बुलाई जगह पर पहुँचे। कर्मवीर वहाँ पर पहले से ही मौजूद था।

“क्या आप लोगों को पता है कि मैंने आप लोगों को यहाँ क्यों बुलाया है?” जब सारे लोग वहाँ इकट्ठे हो गए तो कर्मवीर ने उनसे प्रश्न किया। कर्मवीर का यह प्रश्न सुनकर सभी लोग आपस में बुदबुदाने लगे। तो फिर से कर्मवीर ने उनसे पूछा,

“क्या आपलोगों को पता है कि मैंने आपलोगों को यहाँ किस लिए बुलाया है?” थोड़ी देर के लिए अब सब शांत हो गये।

“नहीं बाबू हमें तो ये नहीं पता कि तुमने हमें यहाँ किसलिए बुलाया है लेकिन हमलोग इतना जानते हैं कि तुमने जब पूरे गाँव को यहाँ बुलाया है तो जरूर गाँव की भलाई के लिए ही बुलाया होगा। फिर से जरूर तुम गाँव की भलाई के लिए ही कोई काम करने वाले होगे।” भीड़ में खड़े एक आदमी ने कर्मवीर को जवाब दिया।

“हाँ आप बिल्कुल सही समझ रहे हैं। काम तो इस बार भी मैंने अच्छा ही सोचा है लेकिन इस बार मुझे आप सब लोगों की मदद की भी जरुरत पड़ेगी। और आपलोगों का मुझपर जो इतना विश्वास है उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ।” कर्मवीर ने अपना आभार प्रकट किया।

“अरे बेटे तुम इस गाँव के लिए जितना कर रहे हो इसके लिए तुम्हें आभारी होने की कोई जरुरत नहीं है पूरा गाँव तुम्हारा आभारी है आज हमारे बच्चों को अगर अच्छी शिक्षा मिल रही है तो वो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी बदौलत है तुम्हारे त्याग के कारण ही है। धन्य हिं महावीर सिंह जी जिनके घर तुम पैदा हुए हो।” भीड़ में खड़े एक बुजुर्ग ने उत्तर दिया। कर्मवीर जब भी किसी से बात करता था वो आदमी उसके बड़ाई करने लग जाता था। कर्मवीर के कई बार मना करने के बाद भी लोग उसकी बड़ाई करना नहीं छोड़ रहे थे। कर्मवीर ने भी अब ज्यादा समय गंवाना उचित नहीं समझा और एक बार फिर से सबसे पूछा,

“अच्छा चाचा ये सब छोडिये, ये बताइए कोई कुछ अनुमान लगा सकते हैं क्या कि मैंने आज आपलोगों को यहाँ क्यों एकत्रित किया है?”

“बेटा ये तो हमें नहीं पता है ये तो तुम ही हमें बता दो कि तुमने हमें यहाँ क्यों बुलाया है। वैसे एक बार फिर से मैं अपनी वही बात दोहराऊँगा कि अगर तुमने बुलाया है तो जरूर कोई शुभ कार्य के कारण ही बुलाया होगा।” फिर से उसी बुजुर्ग ने भीड़ में से जवाब दिया।

कर्मवीर थोड़ी देर के लिए चुप रहा और मुस्का दिया। फिर उसने बोलना शुरू कर दिया,

“अच्छा मैं आपलोगों को यहाँ बिजली के बारे में बताने वाला हूँ। किस किस ने बिजली के बारे में सुन रखा है?” कर्मवीर ने फिर से प्रश्न किया। जवाब में वहाँ आये गाँव के सभी पुरुष और महिलाओं ने अपना हाथ खड़ा किया।

“चलिए ये जानकर तो बहुत ही ज्यादा ख़ुशी हुई कि आप सब लोगों को बिजली के बारे में पता है। अच्छा अब आप सब में कोई एक आदमी मुझे ये बता दीजिये कि बिजली के क्या क्या फायदे हैं?”

एक बार फिर से लोगों का आपस में बातें करने का सिलसिला चल पड़ा। कोई कर्मवीर को कोई जवाब नहीं दे रहा था।

“आपलोग अगर मुझे कुछ बताएं तो ज्यादा बेहतर होगा।” कर्मवीर ने कहा और फिर भीड़ शांत हो गयी।

“बिजली से हमारे घरों में बत्ती जल सकती है और क्या?” एक बुजुर्ग ने जवाब दिया।

“कोई और बता सकते हैं कि बिजली से और क्या हो सकता है?” कर्मवीर ने प्रश्न किया।

“और क्या होना है हमारे घरों में लालटेन जला करती है उसके बदले बिजली की बत्ती जल जायेगी और क्या होगा बिजली से?” एक दूसरे व्यक्ति ने भीड़ से जवाब दिया।

“क्या सभी लोग यही मानते हैं कि बिजली आने से बस यही फर्क पड़ेगा कि घरों के लालटेन की जगह बिजली वाली बत्ती लग जायगी?” कर्मवीर ने एक बार फिर से प्रश्न किया।

“हाँ हाँ और क्या हो सकता है बिजली से?” भीड़ में बहुत सारे लोगों ने एक साथ जवाब दिया।

कर्मवीर थोड़ी देर के लिए चुप हो गया फिर उसने कहा,

“चलिए आप लोगों को यहाँ बुलाने का मेरा मकसद तो लगभग पूरा हो गया मुझे पता था कि आपलोगों में तो बहुत सारे लोगों को बिजली की पूरी उपयोगिता ही नहीं पता होगी। मैं आपको आज बिजली की उपयोगिता ही बताऊंगा।”

“हाँ हाँ बाबू बताओ जल्दी।” भीड़ में बैठे एक बुजुर्ग ने कहा।

“हाँ चाचा बता रहा हूँ। वैसे तो सबसे बड़ी यही उपयोगिता है कि लालटेन में जो मिटटी का तेल ख़त्म हो रहा है वो नहीं होगा। बिजली आने से आप बिजली का बल्ब जला सकते हैं। इससे न सिर्फ घरों बल्कि बिजली के जो खम्भे गाँव में लगेंगे उनपर भी बल्ब लगा दिए जाएँगे जिसे आप जरुरत के हिसाब से रात को जला सकते हैं । एक स्विच दिया जाता है जिससे आप उसे जला और बुझा सकते हैं। ये तो हो गयी प्राथमिक सुविधा। वैसे शहरों में तो बहुत सारे घरेलु और औद्योगिक उपकरण है जिन्हें लोग इस्तेमाल कर रहे हैं। और हम गाँव में उनका इस्तेमाल नहीं कर सकते क्योंकि हम शहर के लोगों जितना धनी नहीं हैं। गाँव में बत्ती के अलावा हम और किस किस काम में बिजली का उपयोग कर सकते हैं ये मैं आपलोगों को आज बताता हूँ। गर्मियों में जब रात को हवा नहीं चलती और हम परेशान हो जाते हैं उस समय के लिए बिजली बहुत जरुरी है। हम अपने घरों में बिजली का पंखा लगा सकते हैं जो बस एक स्विच दबाते ही हमें गर्मी से मुक्ति देगा। देश दुनिया में क्या चल रहा है ये आज हम अख़बारों में पढ़ते हैं लेकिन जो पढ़ना नहीं जानते वो किसी ऐसे आदमी की ओर देखते हैं जो उनको पढ़कर पूरी खबर सुना दे। या फिर वो रडियो पर खबर सुनते हैं। बिजली आने पर आप टेलीविजन पर जो हुआ है उसे देख भी सकते हैं क्रिकेट मैच भी जो हम रेडियो पर सुनते हैं उसे भी टेलीविज़न पर देख सकते हैं। ये सब तो बात हो गयी सुविधाओं की। सबसे ज्यादा सहायता तो हमें खेतों में मिलेगी। सिंचाई के लिए हमारी एक बहुत बड़ी धन राशि डीजल में चली जाती है। सिचाई के लिए सरकार मुफ्त में किसानों को बिजली देती है। सबसे बड़ी राहत तो हमें खेतों में मिलेगी जिससे हमारे पैसों की बचत बहुत ज्यादा हो जायेगी।”

कर्मवीर ने जब अपनी बात खत्म की तब फिर से सारे गाँव वाले आपस में बात करने लगे। कुछ व्यक्तियों ने पंखे के बारे में सुन रखा था कुछ ने कहीं कहीं टीवी भी देख रखा था। लेकिन खेतों में सिंचाई में और खेती के बहुत सारे कामों में बिजली का उपयोग कर पैसे बचाए जा सकते हैं ये बात वहाँ भीड़ में मौजूद लगभग कोई भी नहीं जानता था। थोड़ी देर ऐसे ही लोगों के बीच बातचीत चली फिर उस भीड़ में से ये अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने कहा,

“चलो ठीक है बिजली से इतने अच्छे काम होते हैं लेकिन तुम ये हम लोगों को क्यों बता रहे हो हमारे गाँव में तो बिजली है ही नहीं हम ये सब जानकर क्या करेंगे?”

“मैं इसी जवाब का इंतज़ार कर रहा था। आपलोगों को नहीं लगता कि हमारे गाँव में भी बिजली होनी चाहिए। आपको पता है हमसे बस पचास साठ किलोमीटर दूर के गाँव में बिजली आ चुकी है। मैंने सरकारी महकमे में पता किया है हमारे गाँव में बिजली लाने का अभी दूर दूर तक कोई प्लान नहीं है।” कर्मवीर ने उस आदमी को उत्तर दिया।

“हाँ तो फिर इसमें हम क्या कर सकते हैं? जब सरकार का मन होगा तब हमारे गाँव में भी बिजली आएगी।” फिर से उसी आदमी ने उत्तर दिया।

उस आदमी के इस तरह के निष्क्रिय उत्तर से कर्मवीर थोड़ा क्षुब्ध हो गया लेकिन फिर से ये याद आ गया कि वो सब बेचारे हैं वो तो बस यही सोचते हैं कि सरकार जब हमें सुविधा मुहैया कराएगी तभी हम उन सुविधाओं को भोग पायेंगे। कर्मवीर ने उस आदमी को समझाने के लिए प्रश्न किया।

“हमारे गाँव से ५५ किलोमीटर दूर एक गाँव है रतनपुर। वहाँ अभी से दो साल पहले बिजली आई है। क्या आपलोगों को पता है कि वहाँ बिजली कैसे आई?”

“सरकार का मन हुआ होगा और उसने वहां बिजली के तार लगवा दिए होंगे और फिर बिजली आ गयी होगी।” फिर से उसी अधेड़ ने उत्तर दिया।

“जी नहीं सरकार अपने मन से कितना काम करती है ये हम सब को पता है। वो गाँव जिस विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है उस विधानसभा क्षेत्र का विधायक उसी गाँव से है जैसे ही वो विधायक बना उसने अपने गाँव में बिजली पहुँचाने की सिफारिश सरकार से की और चूँकि वो विधायक था इसलिए उसकी सिफारिश भी मंजूर कर दी गई। और सारे गाँव में बिजली पहुँचाना सरकार का लक्ष्य है। इसलिए वो किसी को मना नहीं कर सकती।” कर्मवीर ने पूरे गाँव वालों को समझाया।

“लेकिन हमारे गाँव से तो कोई विधायक है ही नहीं।” फिर से एक गाँव वाले ने गाँव की मजबूरी का बखान किया।

“हाँ हमारे गाँव से कोई विधायक नहीं है तो इसका मतलब क्या हुआ हमारे गाँव में बिजली ही नहीं आएगी। या फिर जब तक कोई विधायक नहीं बन जाता तब तक सरकार हमें बिजली नहीं देगी। ऐसा नहीं है हमारा हक है कि हमारे भी गाँव में बिजली हो और इसके लिए हम सब गाँव वालों को मिलके काम करना होगा और इसीलिए मैंने आपलोगों को यहाँ बुलाया है आज।”

“तो बताओ बाबू कि हमलोग क्या कर सकते हैं। बिजली अगर गाँव में आएगी तो सभी का भला ही होगा।” फिर से एक व्यक्ति ने भीड़ की तरफ से कर्मवीर से राय माँगी।

“हमलोगों को बस एकजुट रहना है। हमने जिन्हें चुना है वो गाँव के बारे में कितना सोच रहे हैं ये हम सब को पता है। आज तक किसी विधायक ने चुनाव बाद हमारे गाँव में कदम नहीं रखा पता नहीं उन्हें हमारे गाँव का नाम भ पता होगा कि नहीं। तो उनसे तो उम्मीद ही करना बेमानी है। हमारे मुखिया जी जो कि बस इस गाँव का ख्याल रखने के लिए ही चुने गए हिं उन्हें भी इस गाँव से जज्यादा कोई मतलब नहीं है। मैं गया था उनके पास तब उन्होंने मुझे ये आश्वासन दिया है कि वो ये बात विधायक जी तक पहुंचाएंगे और विधायक जी ही फिर बिजली लाने के लिए बात आगे बढ़ाएंगे। तब तक के लिए हमें प्रतीक्षा तो करनी ही होगी लेकिन मैं आपलोगों की मदद भी चाहता हूँ।”

“हाँ हाँ बाबू बताओ हम किस तरह तुम्हारी मदद कर सकते हैं हम तो हमेशा तैयार ही हैं तुम्हारी मदद कि लिए। तुम हो तभी हमारे गाँव का कुछ हो सकता है।” भीड़ में से एक बुजुर्ग ने कहा।

“फिलहाल तो आपलोगों को ज्यादा कुछ करने की जरुरत नहीं है। मैं एक पत्र लिख रहा हूँ जिसमे मैं बिजली नहीं होने के कारण गाँव में क्या क्या समस्याएं हो रही हैं मैं वो लिख दूँगा और जो पढ़ लिख सकते हैं वो पढ़कर उसपर अपना दस्तखत कर दीजियेगा और जो नहीं पढ़ लिख सकते वो अपना अंगूठा लगा दीजियेगा। फिलहाल तो हम मुखिया के काम कि ही प्रतीक्षा करेंगे अगर प्रक्रिया में ज्यादा विलम्ब होगा तो मैं कुछ और सोचूँगा।” तीन कहने के बाद कर्मवीर ने अपने पास रखे थैले से वो चिट्ठी निकाली और कुछ सादे कागज़ गाँव वालों की तरफ उनके दस्तखत और अंगूठे के निशान के लिए बढ़ा दिए।

वहाँ पर मौजूद सभी गाँव वालों ने उसपर अपने दस्तखत कर दिए। एक बार फिर से कर्मवीर ने कहा,

“अभी हमलोग कुछ दिन तक मुखिया जी की प्रतीक्षा करेंगे कि वो हमारे लिए क्या खबर लेकर आते हैं। अगर उनसे कुछ नहीं हो पायेगा तो फिर हम अपने स्तर से काम करना शुरू कर देंगे।” सभी लोगों ने सहमती भरी और फिर सभी लोग अपने अपने घर चले गए।

लगभग एक महीने बीत जाने के बाद भी मुखिया जी ने कोई खबर नहीं पहुँचाई। कर्मवीर को हालाँकि उनसे उम्मीद भी यही थी। वो आज मुखिया जी के गर निकल रहा था कि उसने देखा कि उसके बाबूजी माँ और मंगरू एक गाडी से उतर रहे हैं।

“अरे बाबूजी आप आ आ गए कुछ बताया ही नहीं आपने। कम से कम दिल्ली से एक फोन ही कर दिया होता। अच्छा बताइए कि मेरे लिए विदेश से क्या लेकर आये हैं।” महावीर सिंह को देखते ही कर्मवीर ने बोलना शुरू कर दिया।

“अरे साँस भी लेने दोगे कि यूँ ही धारा प्रवाह बोलते ही रहोगे। पहले घर के अन्दर चल लूँ। थोड़ा मुँह हाथ धो लूँ फिर बताता हूँ सब कुछ।” महावीर सिंह ने कर्मवीर को जवाब दिया।

कर्मवीर भी उसके बाद कुछ नहीं बोला और फिर उनका सामान लेकर घर के अन्दर चला गया। मंगरू कर्मवीर से बात करने को बहुत ही ज्यादा आतुर था। मंगरू के चेहरे को देख के कर्मवीर भी यह समझ गया कि मंगरू उससे बात करने को बहुत ही ज्यादा उत्साहित है। उसने तो मंगरू को कह भी दिया कि’

“भैया मैं आपसे अलग से बात करूँगा अप चिंता नहीं कीजिये।” सभी घर में अन्दर घुसे और फिर सब मुँह हाथ धोने चले गए। कर्मवीर ने भी कहा कि आपलोग आराम कीजिये शाम में आराम से बातें करेंगे अभी मैं काम से कहीं जा रहा हूँ।

“ठीक है।” महावीर सिंह ने कहा और फिर सभी अपना अपना सामन ठीक करने लगे और कर्मवीर घर से बाहर चला गया।

कर्मवीर तुरंत मुखिया जी के पास पहुँचा, मुखिया जी घर पर ही थे। मुखिया जी कर्मवीर को देखते ही उससे नजरें चुरा लेना चाहते थे लेकिन अब ये संभव नहीं था क्योंकि अब वो उनके घर में आ चुका था। मुखिया जी के पास कोई चारा नहीं था। उन्होंने कर्मवीर से कहा,

“आओ आओ कर्मवीर बहुत दिनों बाद तुम्हारे दर्शन हुए हैं कैसे हो भाई और क्या खबर है?”

“मेरा तो सबकुछ ठीक है मुखिया जी आप बताइए क्या खबर है?” कर्मवीर ने पलट कर सवाल किया।

“ अरे भाई अपना भी सब अच्छा ही है।” कहकर मुखिया जी ने एक जोर की बेहूदी हँसी हँस दी।

“अरे मैं आपकी खबर नहीं पूछ रहा हूँ आप ये बताइए कि जिस काम के बारे में हमने आपको कहा था उसमे कितना क्या आगे बढ़ा है?”

“अच्छा वो वो काम तो हो गया। तुमने जो काम दिया था वो तो हो गया भाई।”

“ क्या सचमुच काम हो गया?” मुखिया जी का जवाब सुनकर कर्मवीर बहुत ही ज्यादा खुश हो गया उसे लगा कि बहुत ही जल्द गाँव में बिजली लगने का काम शुरू भी जो जाएगा। राज्य सरकार से मंजूरी मिल ही गयी तब ही तो मुखिया जी कह रहे हैं कि काम हो गया है।

“हाँ और नहीं तो क्या? जिस दिन तुम हमारे पास आये थे उसके दो ही दिन बाद हम गए विधायक जी के पास और लिखित में उनको बता दिए कि हमारे गाँव में समस्या है और हमारे गाँव में बिजली नहीं है।” मुखिया जी ने भी पूरे जोश के साथ जवाब दिया।

“अच्छा अरे वाह मुखिया जी चलिए अब ये बताइए कि काम कब से शुरू हो जाएगा बिजली लगने का गाँव में?” कर्मवीर ने अपने अन्दर चल रहे सवाल को सीधा मुखिया जी के सामने रख दिया।

“वो भी हो जाएगा जी, थोड़ा धीरज तो रखिये। अभी तो हम विधायक जी के पास पहुँचाये हैं वो सरकार के पास पहुँचायेंगे और फिर सरकार उसके लिए स्वीकृति देगी तभी तो काम शुरू होगा न कर्मवीर।” मुखिया जी ने अब पूरी स्थिति सपष्ट की कि कर्मवीर का काम होने का मतलब था कि मुखिया ने विधायक को बस इस बात से अवगत करवा दिया कि उनके गाँव में बिजली नहीं है और बिजली की जरुरत है।

“मतलब अभी तक आपने विधायक से ये भी पता नहीं किया है कि उसने सरकार के पास ये प्रस्ताव भी रखा है या नहीं।” कर्मवीर ने चौंकते हुए प्रश्त्न किया।

“कर्मवीर देखो ये कोई ग्राम पंचायत नहीं है कि आज अर्जी दिए और कल जाके पूछ लो कि हाँ जी मेरा काम हुआ कि नहीं हुआ। बाबू विधायक के पास हम रोज रोज नहीं जा सकते और जब हम एक बार अपना अर्जी दे आये हैं तो जब काम हो जायेगा तो वो खुद ही हमें बता देंगे कि काम हो गया और अगर नहीं हो पायेगा तो वो भी बता देंगे कि काम नहीं हो पाया। इतनी हड़बड़ी क्या है और ऐसे भी वो विधायक है वहाँ रोज रोज नहीं जाया जा सकता है।”

“ठीक है आप मत जाइए मैं जाऊँगा विधायक के पास।” कर्मवीर ने कहा और वहाँ से उठ कर चल दिया।

वहाँ से वो सीधा अपने घर पहुँचा, वहाँ अब सारे लोग ठीक तरीके से सेटल हो गये थे। महवीर सिंह खाट पर लेटकर आराम कर रहे थे। माँ रसोई में खाना बना कर ख़त्म कर चुकी थी और मंगरू विदेश में खींची गयी तस्वीरें देख रहा था। महावीर सिंह ने खाट पर बैठते हुए कहा, कि

“तुमने मोटर साइकिल ली है क्या?”

“हाँ बाबूजी भागदौड़ में काफी दिक्कत आती थी और कम्पनी ने एक महीने का एडवांस भी दे दिया था तो मैंने सोचा कि मोटर साइकिल ले ली जाए आपको भी सुविधा हो जायेगी और मुझे भी इधर उधर जाने में आराम हो जाएगा।” कर्मवीर ने उत्तर दिया लेकिन उसका चेहरा अभी भी उतरा हुआ था।

“अच्छा कल से तुम मुझे इसे चलाना सिखा देना अभी ये बताओ कि तुम इतने तनाव में क्यों दिख रहे हो?”

“कुछ नहीं बाबूजी आप बताइए आपलोगों का ट्रिप कैसा रहा? विदेश में मजा आया कि नहीं?” कर्मवीर ने अपने चेहरे पर से तनाव को हटाने का अभिनय किया।

“खैर छोडो अभी नहीं बताना तो मत बताओ लेकिन बाद में बता देना कि तुम तनाव में क्यों थे?”

“ठीक है मैं बता दूँगा।” महावीर सिंह भी जान गए थे कि अभी अभी वो बाहर से आये हैं इसलिए कर्मवीर उन्हें अपनी समस्याओं के बारे में बताकर दुखी नहीं करना चाहता है।

“आप तो बता ही नहीं रहे हैं कि आपकी विदेश यात्रा कैसी रही?”

“अरे मत पूछो बहुत ही ज्यादा अच्छी रही। विदेश वाले भारत से बहुत आगे है। हमारे गाँव में अभी भी बैलगाड़ी चलती है और वहाँ की गाड़ियों की बात ही क्या है एक से एक अच्छी अच्छी बसें कारें सबकुछ तो वहाँ का अच्छा ही लगा। हाँ लोग उतने सहृदय नहीं है न जितना हमारे गाँव के हैं। या ये कह लो कि वो हमारी भाषा समझते ही नहीं तो हमें कैसे पता चलता कि अच्छे हैं या बुरे।”

“इन्होंने तो तुम्हारे लिए लड़की भी ढूँढ ली थी कह रहे थे कि मैं तो नहीं कर पाया लेकिन कर्मवीर की शादी विदेश में ही कर देंगे यहाँ की लड़कियां देखो कितनी सुन्दर हैं। कर्मवीर की पत्नी बनकर आएँगी तो बड़ा अच्छा रहेगा। जिस भी देश हम गए उस देश में ये घुमने के साथ साथ अपने लिए बहु जरूर देख लेते थे।” कर्मवीर की माँ ने कहा।

“अरे वो तो मैं मजाक कर रहा था, वहाँ कहाँ करेंगे कर्मवीर की शादी। वहाँ की लड़कियों का पहनावा ठीक नहीं है। पश्चिम के देशों के लोग हमारी तरह सुसंस्कृत नहीं होते हैं।” महावीर सिंह ने उत्तर दिया।

अभी इन तीन लोगों की बातें चल ही रही थीं कि इतने में मंगरू भी विदेश की तस्वीरें लेकर वहाँ आ गया।

“अरे कर्मवीर तुमने तो पूछा ही नहीं कि माँ की हवाई यात्रा कैसी रही?” मंगरू ने वहां आते ही कर्मवीर को याद दिलाया।

“अरे हाँ ये तो मैं भूल ही गया था कि माँ तो हवाई यात्रा से डर रही थीं कैसी रही आपकी हवाई यात्रा?”

“पहली बार में तो मुझे लगा जैसे मेरी जान निकल जायेगी। जहाज इतनी जोर से आवाज करता हुआ ऊपर जाने लगा। चलो वो तो फिर भी ठीक था तब तो मुझे ज्यादा कुछ पता नहीं चला। और जब जहाज उड़ रहा था तब तो और भी बिल्कुल पता नहीं चला। लेकिन जब जहाज नीचे उतरने वाला था तब तो लगा जैसे मेरी जान ही निकली जा रही है। एक बार बचपन में मैं झूला झूलने गयी थी। तब मुझे ऐसा ही डर लगा था। लेकिन ये एहसास तो और भी डरावना था। मैं तो चिल्लाने लगी थी सभी लोग जहाज में मुझे ही देखने लगे।” कर्मवीर की माँ ने अपनी हवाई यात्रा का अनुभव बताया।

“आप भी न माँ कुछ भी तो नहीं होता है जहाज पर बैठ के।” कर्मवीर ने उत्तर दिया।

“ना बाबा न अब तो मैं कभी भी हवाई जहाज में नहीं बैठूंगी।” कर्मवीर की माँ ने उत्तर दिया और वहाँ मौजूद सभी लोग हँस पड़े। घर के सारे लोग बैठे रहे और विदेश यात्रा पर बातें होती रही । थोड़ी देर बाद माँ और मंगरू वहाँ से चले गए।

जब महावीर सिंह और कर्मवीर ही वहाँ बच गए तब महावीर सिंह ने कर्मवीर से पूछा,

“ये बताओ तुम जब घर आये थे तो इतने परेशान क्यों थे? क्या किसि से कोई मनमुताब हो गया है या फिर किसी से कोई झगडा हो गया है?”

“आपको क्या लगता है बाबूजी मेरा किसी से कोई झगडा हो सकता है क्या?” कर्मवीर ने अपने पिता से प्रश्न किया।

“नहीं तुम किसी से झगडा नहीं कर सकते ये तो मुझे पता है लेकिन ये भी तो हो सकता है न कोई और ही तुमसे आ कर उलझ गया हो परेशानी तो तब भी हो सकती है न!” महावीर सिंह को अभी भी लग रहा था कि कोई व्यक्ति कर्मवीर से उलझा है इसीलिए वो इतना ज्यादा परेशान होकर घर के भीतर आया था।

“नहीं बाबूजी झगडा वगैरह तो किसी से नहीं हुआ है लेकिन परेशान होने वाली बात तो है।” कर्मवीर ने अब अपने बाबूजी को सबकुछ बताना ही उचित समझा।

“अरे तो तब से मैं पूछ रहा हूँ कि क्या परेशानी है तुम बता ही नहीं रहे हो। बताओ जल्दी से भाई कि आखिर ऐसा क्या हो गया जिसके कारण तुम इतने परेशान हो।” महावीर सिंह ने थोड़ा उत्तेजित होते हुए प्रश्न किया।

महावीर सिंह के इस प्रश्न के बाद कर्मवीर थोड़ी देर चुप रहा फिर उसने कहना शुरू किया,

“क्या बताऊं बाबूजी यहाँ सभी लोग एक से बढ़ कर एक हैं।”

“क्यों क्या हो गया अब किसने क्या किया?”

“करता तब तो कोई दिक्कत ही नहीं थी न बाबूजी कोई कुछ करना ही नहीं चाहता है दिक्कत की बात तो यही है।” कर्मवीर ने उदास होते हुए कहा।

“अरे कर्मवीर बात क्या है तुम शुरू से अंत तक मुझे अच्छे से समझाओ।” महावीर सिंह ने अपना धैर्य खोते हुए कहा।

“बाबूजी आप और हम सब जानते हैं कि अब गाँव में भी बिजली आणि शुरू हो गयी है। अपने से कुछ दुरी पर ही बहुत से गाँव ऐसे हैं जहाँ बिजली आ चुकी है और बिजली के अनेको फायदे हैं बाबूजी। मैंने माना कि गाँव के लोग थोड़े कम पढ़े लिखे हैं और उनके पास कमाने खाने के बाद समय उतना नहीं बच पाटा है और न ही बेचारों के पास उतना पॉवर है कि वो कुछ कर सकते हैं, गाँव वाले तो जितना कर सकते हैं वो करते ही हैं। लेकिन इस प्रधान को देखिये। मैंने इसे एक लिखित आवेदन दिया था कि अपने गाँव में भी बिजली होने चाहिए। तो उसने कहा इसपर तो विधायक जी ही बात कर सकते हैं। फिर मैंने कहा कि तो विधायक जी से बात करो। तो उस समय तो उसने कहा था कि हाँ हाँ क्यों नहीं बात करेंगे विधायक जी अपने गाँव में बिजली लगवाने की बात है भाई। और जब आज मैं एक महीने बाद जा रहा हूँ तो वो मुझे बोलता है कि आपकी चिट्ठी तो मैंने विधायक जी को तभी दे दी थी अब जब विधायक जी का कोई जवाब आएगा तब ही कार्रवाही आगे बढ़ेगी न। बताइए ये कोई मतलब हुआ बाबूजी। एक महीने में वो न तो विधायक के पास गया न ही उसे ये तक समझ आया कि इतने दिन हो गये हैं कुछ किया जाय। मैंने उसे बीच में कुछ नहीं कहा, कि कहीं वो ये न सोच ले कि मैं उसे कुछ ज्यादा ही तंग कर रहा हूँ और उसका उसने मुझे ये परिणाम दिया। अरे भाई बिजली आएगी तो सभी के घर में आयेगी। सभी के खेतो में उससे सिंचाई होगी। मुखिया का घर भी उससे रोशन होगा और उसके भी खेतों की हरियाली बढ़ेगी। कौन सा अकेले मेरे घर में ही बिजली का सारा उपयोग होगा। लेकिन आज उस प्रधान ने मुझसे जिस तरह बात की न मुझे यही महसूस हुआ कि मैं उसके पास अपना कोई व्यक्तिगत काम करवाने गया हूँ।” कर्मवीर ने अपनी परेशानी के वजह महवीर सिंह को बताई।

थोड़ी देर तो महावीर सिंह चुप सोचते रहे और कर्मवीर भी चुप ही रहा लेकिन उसके बाद महावीर सिंह ने कहा,

“मुझे लग रहा था कि ऐसी ही कोई बात होगी जरुर तुम किसी और की बातों से ही परेशान होगे। वो प्रधान है ही वैसा। मैं भी जब गाँव में सडक बनवाने के पीछे पड़ गया था तब उसका सहयोग नाम मात्र का ही था। वो मुखिया था और उसे ये सब सोचना चाहिए था लेकिन वो क्यों सोचे उसे तो गाँव के लिए जो फण्ड आते हैं बस उसे हजम करने में मजा आता है। अब हम भी क्या करें, कोई चोर है तो कोई बड़ा चोर है हमें उसमे से छोटे चोर को ही अपना प्रतिनिधि बनाना पड़ता है। तो रहने दो उसे अब मतलब ही नहीं रखो उससे जब उससे बिना कोई भी मदद लिए तुमने पूरे राज्य में शिक्षकों की बहाली करवा ली तो ये बिजली आना तो मैं बहुत ही छोटी बात समझ रहा हूँ। तुम तो खुद से भी इतना कर ही सकते हो।” महावीर सिंह ने कर्मवीर को साहस देने का काम किया।

“हाँ बाबूजी आप सही कह रहे हैं, मुझे खुद ही से सारी जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। इसमें बस मेरे गाँव वाले ही मेरे साथ हमेशा खड़े रहते हैं और किसी का सहयोग मुझे चाहिए भी नहीं। लेकिन देखिएगा इस बार मैं मंगरू भैया को मुखिया बना दूँगा। उस मुखिया को तो मैं कभी नहीं जीतने दूँगा। मंगरू भैया बाकी मैं समझा दूँगा कि मखिया की जिम्मेदारी क्या होती है और कुछ भी कम बेसी के लिए तो मैं रहूँगा ही उनके साथ।” कर्मवीर ने मुखिया पर अपने गुस्से का इजहार करते हुए कहा।

“हाँ ये तो तुमने सही कहा वो अब मुखिया बनने के लायक नहीं है। मंगरू को ही इस बार मुखिया पद के लिए खड़ा किया जाएगा। बहुत ही जल्द तो चुनाव भी होने वाला है। सात महीने रह गए हैं चुनाव में वो फिर मेरे और तुम्हारे पास आएगा ही कि हम लोगों से अपील कर दे कि वो उसे वोट दें। लेकिन इस बार उसे उसके किये कर्मों की सजा देनी ही होगी।” महावीर सिंह ने भी अपनी भड़ास प्रधान पर निकालनी चाही। कुछ देर और दोनों पिता पुत्र के बीच बातें चलती रही फिर कर्मवीर ने कहा,

“कल मैं खुद जाऊँगा विधायक जी के पास।”

“हाँ ठीक है तुम खुद जाके उन्हें बताना कि हमारे गाँव में बिजली नहीं होने के कारण क्या क्या दिक्कतें आ रही हैं और अगर बिजली आ गयी तो क्या क्या फायदे गाँव वालों को मिल जाएँगे।” दोनों की बात समाप्त हुई और फिर कर्मवीर भी अपने कमरे में चला गया।

अगले दिन सुबह सुबह ही कर्मवीर मोटर साइकिल लेकर विधायक जी के आवास पर चला गया। उसने वहाँ जाकर उसके अर्दली से कहा कि वो कर्मवीर है और विधायक से मिलना चाहता है। अर्दली ने उसे कहा कि वो बैठ जाए और जब विधायक जी लोगों से मिलना शुरू करेंगे तो वो उससे भी मिल लेंगे। विधायक से मिलने के लिए कर्मवीर से पहले भी कुछ लोग आये हुए थे। उनके बाद ही कर्मवी का नम्बर आने वाला था। कर्मवीर आराम से विधायक के आवास में बाहर बने हॉल में बैठ गया। उसने देखा कि विधायक के घर पर तो बिजली है और पंखा भी चल रहा है। फिर ईसे क्या मतलब कि गाँव में बिजली आ रही है कि नहीं। बिजली आनी भी चाहिए कि नहीं।

थोड़ी देर बाद विधायक जी नहा धोकर नास्ता कर अपने उस कमरे में गए जहाँ वो रोज अपने क्षेत्र के लोगों से मिलते थे। कर्मवीर को यह बात सुकून देने वाली लगी कि चलो कम से कम विधायक अपने क्षेत्र के लोगों से मिल तो लेता है न। बारी बारी से सारे लोग एक एक करके विधायक जी से मिलने के लिए जाने लगे। कर्मवीर भी अपनी बारी आने पर विधायक के पास गया।

“नमस्कार सर।” अन्दर घुसते ही कर्मवीर ने पूरे शिष्टाचार से विधायक जी को नमस्कार किया क्योंकि विधायक जी उम्र में भी उसके पिता से बड़े थे और विधायक पद तो उन्होंने ग्रहण कर ही रखा था।

“आओ आओ बच्चे क्या नाम है तुम्हारा और बताओ कैसे आना हुआ मेरे पास?” विधायक जी ने कर्मवीर से पूछा।

“सर मेरा नाम कर्मवीर है और मैं अपने गाँव की एक समस्या लेकर आपके पास आया हूँ।” कर्मवीर ने उत्तर दिया।

“कर्मवीर! अरे क्या तुम वही लड़के हो जिसने शिक्षकों की बहाली करवाई है?” विधायक जी ने अपनी आँखें छोटी करते हुए प्रश्न किया।

“ जी मैं वही कर्मवीर हूँ।” कर्मवीर ने बड़ी ही शालीनता के साथ स्वीकार किया।

“अरे बच्चे मैं तो तुमसे मिलने के लिए जाने वाला था लेकिन समयाभाव के कारण मैं तुमसे मिल नहीं पाया। मैंने तुम्हें टीवी पर देखा था लेकिन अभी मैं तुम्हें देखकर पहचान नहीं पाया। अब आँखें बूढी हो गईं हैं और दिमाग भी तो बुढा हो गया है इसलिए चीजें कम याद रहती हैं। भाई जिस गाँव में तुम जैसे होनहार लोग हों उस गाँव में भला कोई समस्या हो सकती है क्या? चलो फिर भी बताओ क्या समस्या है मैं जरुर उसे दूर करूँगा।” विधायक जी ने ढेर सारी बातें एक ही बार में ऐसे कह दीं जैसे कर्मवीर उन्हें बोलने का कोई मौका ही नहीं देगा।

“समस्या तो गंभीर है सर और मुझे आपसे पूरी उम्मीद है इसीलिए मैं आपके पास आया हूँ।”

“हाँ हां बताओ बात क्या है, मैं जरूर मदद करूँगा।” विधायक जी ने एक बार फिर से कर्मवीर को आश्वासन दिया।

“सर दरअसल हमारे गाँव में अभी तक बिजली नहीं आ पाई है और इसके कारण वहाँ के लोगों को काफी दिक्कत होती है। लोग रात में अँधेरे में रहते हैं। सिंचाई के लिए डीजल में खर्च इतना ज्यादा हो जाता है कि किसान परेशान हो जाते हैं अगर बाकी के गाँव की तरह ही हमारे गाँव में भी बिजली आ जाती तो सही होता सर हमारे गाँव के सभी घरों का भला हो जाता।” कर्मवीर ने अपनी समस्या से विधायक जी को अवगत करवाया।

विधायक जी कर्मवीर की बात सुनकर थोड़ी देर तक सोचते रहे फिर उन्होंने कहा,

“अरे आएगी बिजली क्यों नहीं आएगी जब बाकि के गाँव में बिजली आ रही है तो तुम्हारे गाँव में भी बिजली आएगी ही। आखिर तुम्हारे गाँव से सरकार को कोई दुश्मनी थोड़े ही न है कि तुम्हारे गाँव में बिजली नहीं पहुँचाई जायेगी। तुम निश्चिन्त होकर रहो। अभी पूरे राज्य में बिजली पहुंचनी है और अगले पन्द्रह सालों में राज्य के हरेक गाँव में बिजली पहुँच जायेगी।” विधायक जी के भी बोलने के तरीके से यह स्पष्ट हो गया था कि वो उसकी मदद करने के पक्ष में नहीं हैं।

“सर अगर पंद्रह साल बाद मेरे गाँव में बिजली पहुंचेगी तो मेरा गाँव तो पंद्रह साल पीछे हो जाएगा। आपके क्षेत्र का गाँव है आप उसकी तरक्की के लिए जिम्मेदार हैं सर आप कुछ कीजिये ताकि हमारे गाँव में बिजली जल्दी पहुँच जाए।” कर्मवीर ने विधायक जी को जैसे उनके कर्तव्यों की बात याद दिला दी। अब चूँकि वो चुने गए जन प्रतिनिधि थे इसलिए वो कर्मवीर की बात को सीधे मना नहीं कर सकते थे। दूसरा कारण ये भी था कि कर्मवीर थोड़ा पढ़ा लिखा आदमी था, उसने तो पहले ही सरकार को नाकों चने चबवा दिया था। इसलिए उन्होंने थोड़ा सोचने विचारने के बाद कहा,

“हाँ हाँ जरूर जरूर हम तुम्हारी बात को सरकार के समक्ष रखेंगे। और हमारे कहने का यह मतलब कतई नहीं था कि तुम्हारे गाँव में पंद्रह साल बाद बिजली आएगी। मैंने तो सरकार का लक्ष्य तुम्हें बताया कि अगले पंद्रह साल में हरेक गाँव हरेक घर बिजली से रोशन हो ऐसा सरकार का लक्ष्य है। हम कोशिश करेंगे कि तुम्हारे गाँव में जल्द से जल्द बिजली पहुँच जाए जिससे तुम लोगों को हो रही दिक्कतों का निवारण हो जाए।” विधायक ने थोड़ी गोल मोल बातें करके एक बार फिर से कर्मवीर को आश्वासन पकड़ा दिया।

“जी सर आपसे मुझे यही उम्मीद थी इसिलए मैं आपके पास आया था। मैं बहुत जल्द फिर से आपके पास आऊँगा ये पता करने कि बात आगे बढ़ी या नहीं।”

“अरे तुम्हें आने की कोई जरुरत ही नहीं समझ लो बहुत ही जल्द काम हो जाएगा।” विधायक जी ने अपनी बातें खत्म की और कर्मवीर एक बार फिर से उन्हें नमस्कार कर वहाँ से चल पड़ा।

विधायक के पास से लौटने के बाद कर्मवीर थोड़ी तसल्ली में दिख रहा था। लौटने के बाद उसके चहरे की रंगत ही बदली हुई थी। घर आते ही महावीर सिंह ने उसे देखते ही समझ लिया कि कोई अच्छी ही खबर होगी।

“क्या बात है बेटे लगता है कोई अच्छी खबर सुनाने वाले हो?”

“हाँ बाबूजी विधायक जी के पास गया था न। शुरू शुरू में तो उन्होंने एक नेता की तरह बातें की लेकिन फिर उन्होंने कहा है कि वो जल्दी ही हमारे गाँव में बिजली पहुँचवा देंगे।”

“अरे बेटा नेता लोग जब तक काम कर नहीं देते मुझे तो उनका कोई भरोसा नहीं होता। देखो अगर काम करवा दें तो बहुत ही अच्छी बात है।” महावीर सिंह ने अपना थोड़ा सा अविश्वास विधायक की बातों में पेश किया।

“नहीं बाबूजी विधायक जी वैसे नहीं हैं वो बिजली लगवा देंगे मुझे पता है। उन्होंने मुझे आश्वस्त भी किया है कि जब काम शुरू हो जाएगा तो वो मुझे फोन करेंगे।”

“चलो ठीक है अगर ऐसी बात है तो बहुत अच्छा है।” महावीर सिंह ने कर्मवीर से कहा।

अभी कुछ ही दिन बीते थे कि विधायक का फोन आ गया। फोन महावीर सिंह ने उठाया।

“हेल्लो।”

“हाँ ही हेल्लो मैं महावीर सिंह बोल रहा हूँ आप कौन?” महावीर सिंह ने सामने वाले से उसका नाम जानना चाहा। चूँकि वो कभी सामने वाले का परिचय नहीं पूछते थे और उन्हें कर्मवीर ने बताया था कि वो पहले परिचय पूछ लिया करें तभी बात आगे किया करें।

“जी मैं विधायक बोल रहा हूँ। नमस्कार महावीर जी आप ठीक ठाक हैं न। मुझे जरा कर्मवीर से बात करनी है क्या आप मेरी बात कर्मवीर से करवा देंगे?” विधायक का फोन आना इस बात का सूचक था कि बिजली के काम वाली ही बात रही होगी। महावीर सिंह थोड़े उत्साहित से हो गए उन्हें अपने बेटे की मेहनत सफल होती नजर आ रही थी। उन्होंने तुरंत ही विधायक को कहा,

“हाँ विधायक जी मैं बिल्कुल ठीक हूँ आप एक मिनट लाइन पर रहिये मैं अभी कर्मवीर को बुलाकर लाता हूँ।”

महावीर सिंह कर्मवीर को खोजते हुए बाहर निकले। बाहर कर्मवीर मंगरू के साथ बैठकर विदेश यात्रा वृतांत सुन रहा था। महावीर सिंह ने दूर से ही आवाज लगाई,

“अरे कर्मवीर जल्दी आ विधायक ने फोन किया है।” विधायक का नाम सुनकर कर्मवीर भी काफी खुश हो गया उसे लगा कि हो न हो विधायक ने उसे ये बताने के लिए फोन किया हो गा कि अब उसके गाँव में भी बिजली का काम शुरू हो जाएगा। वो भागा भागा फोन के पास पहुँचा।

“हेल्लो, नमस्कार विधायक जी।” कर्मवीर ने बहुत ही जल्दबाजी में कहा।

“हाँ नमस्कार नमस्कार कर्मवीर ये बताओ तुम कैसे हो?” विधायक ने पहले औपचारिकताएं पूरी करने के लिए प्रश्न पूछा।

“मैं बिल्कुल ठीक हूँ विधायक जी आप बताइए आप कैसे हैं? और आपको मेरे घर का नम्बर कैसे पता चला मुझसे तो आपने उस दिन नम्बर लिया ही नहीं था।”

“मैं भी ठीक हूँ कर्मवीर और तुम ये जान लो कि तुम अब कोई छोटे मोटे आदमी नहीं रह गए हो। तुम्हें याद है मैंने तुम्हें कहा था कि मैं तुमसे पहले ही मिलने के लिए आने वाला था लेकिन मुझ वक़्त नहीं मिल पाया इसलिए मैं नहीं आ पाया था। उसी वक्त तुम्हारा नम्बर मेरे पास था। तुम अपने आप को कोई छोटा मोटा आदमी न समझो तुम अब अब बहुत बड़े आदमी हो गए हो।” विधायक ने कर्मवीर की बड़ाई में कसीदे कढ़े।

“अरे विधायक जी आप तो यूँ ही बोल रहे हैं मैं कहाँ कोई बड़ा आदमी होने लग गया। ये बताइए कैसे याद कर लिया आपने मुझे।” कर्मवीर अब असली बात पर आना चाह रहा था।

“अरे तुम्हें लोग भूल ही नहीं पा रहे हैं ये बात बताने के लिए मैंने तुम्हें फोन किया।”

“क्या बात कर रहे हैं आप सर?” कर्मवीर ने लजाते हुए जवाब दिया।

“अरे कर्मवीर सही कह रहा हूँ मैं। पता है विजली वाली बात जब मैंने मुख्यमंत्री जी के सामने राखी और बताया कि ये जो गाँव है ये कर्मवीर का गाँव है तो उन्हें तुरंत तुम याद आ गए। उन्होंने तुरंत ही कह दिया कि अरे जल्दी से उस गाँव में बिजली पहुँचवा दो नहीं तो ये लड़का फिर से हमारी सरकार के खिलाफ आग लगा देगा।” विधायक जी की बोली में हँसी मिली हुई थी।

“अच्छा फिर कब से हमारे गाँव में बिजली का काम होना शुरू होने वाला है?” कर्मवीर ने सम्पूर्ण उत्तेजना में सवाल किया।

“अब मुख्यमंत्री ने तो कल ही लिखित अनुमति दे दी है अब क्या देर होगी बस हमारे क्षेत्र के बिजली विभाग में वो चिट्ठी थमा देनी है और फिर हो जाएगा काम एक दो दिन में शुरू।” विधायक के इतना कहते ही कर्मवीर ख़ुशी से अन्दर तक भर गया।

“सर आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर। मैं बता नहीं सकता कि मैं आज कितना खुश हूँ। आपने कौन सी निधि मुझे और मेरे गाँव वालों को देने की बात कही है। अब मेरा भी गाँव बहुत ही ज्यादा विकसित और खुशहाल हो जाएगा। थैंक यू सो मच सर।” कर्मवीर के बोलने से यह परिलक्षित हो रहा था कि वो अन्दर से कितना खुश है। उसके हरेक शब्द से ख़ुशी भर भर के बाहर आ रही थी। जिस तरह बरसात में नदी पूरी भरी होती है और उसकी लहरें उफान मरती रहती हैं उसी तरह कर्मवीर भी ख़ुशी से लबरेज हो गया था और उसकी बोली से खुशनुमा तरंगें प्रवाहित हो रही थी।

कर्मवीर की गाँव के प्रति ऐसी श्रद्धा देखकर विधायक जी बहुत ही मुग्ध हो गये। उन्होंने कर्मवीर की श्रद्धा से प्रभावित होते हुए कहा,

“कर्मवीर तुम्हें पता है अगर तुमसे आधा भी हरेक गाँव में एक ग्रामवासी समर्पित हो जाए तो फिर भारत का हरेक गाँव ही उन्नत हो जायेगा।” विधायक की की गयी इस प्रशंसा से फिर कर्मवीर शर्मा गया और उसने कहा,

“आपने तो आज ठान ही लिया है कि आप आज मेरी झूठी बड़ाई ही करते रहेंगे। अभी तक मुझे तो ऐसा लग ही नहीं रहा है कि मैंने कुछ किया है।” कर्मवीर ने अपना तर्क दिया।

“ये तो तुम्हारा बरप्पन है कर्मवीर। मैंने सुना था कि जिस तरह फलों से लदे वृक्ष झुक जाया करते हैं उसी तरह ज्ञान से भरा मनुष्य भी पेड़ की तरह ही झुक जाता है अर्थात शांत हो जाता है। तुम वही ज्ञान से भरे मनुष्य हो। मुझे फक्र है कि हमारे देश में तुम जैसे नौजवान भी हैं। तुम्हारे गाँव का भविष्य बहुत ही ज्यादा उज्ज्वल है क्योंकि तुम्हारी उम्र में तो लोग अपने बारे में भी ढंग से नहीं सोच पाते और तुमने तो पूरे राज्य को इतना बड़ा तोहफा दिया और फिर उसके बाद अपने गाँव के लिए ये कर रहे हो।”

“ये सब तो मेरे बाबूजी का दिया हुआ है।” कर्मवीर ने अपनी महानता का सारा श्रेय अपने बाबूजी को देना चाहा।

“हाँ कर्मवीर वास्तव में तुम दोनों पिता पुत्र बहुत ही महान हो।” विधायक जी ने कहा।

“अरे सर मैं उनके सामने कुछ भी नहीं हूँ।”

“चलो मैं जान गया कि जिस गाँव में तुम और तुम्हारे पिता जैसे लोग हों उस गाँव की तरक्की कोई रोक नहीं सकता वो गाँव हमेशा आगे ही बढ़ता रहेगा। मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं और मैं कोशिश करूँगा कि इसी हफ्ते तुम्हारे गाँव में बिजली लगने का काम शुरू हो जाए।” विधायक जी के दिए वादे के बाद तो कर्मवीर जैसे फूला नहीं समां रहा था। उसकी जैसे सदियों से माँगी मुराद पूरी हो गयी थी। वो फोन रखकर बाहर अपने बाबूजी के पास गया।

बाहर बाबूजी और मंगरू बैठ कर बातें कर रहे थे। कर्मवीर काफी हँसमुख चेहरा लेकर उनके पास पहुँचा। उसे खुश देखकर बाबूजी समझ गए कि विधायक ने कोई सकारात्मक खबर ही दी होगी तभी तो कर्मवीर इतनी ख़ुशी से बाहर आ रहा है।

“बाबूजी आपको पता है हमारे गाँव में बिजली लगाने के लिए सरकार ने मंजूरी दे दी है।” कर्मवीर ने इस तरह बोला और उसके बोलने कि गति इतनी तेज थी जिसका कोई वर्णन ही नहीं किया जा सके वो चाहता था कि तुरंत ही वो ये खुशखबरी अपने पिता को सुना दे। महावीर सिंह ने उसकी ये बात सुनी तो उनपर कोई ख़ास ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।

“मंजूरी तो दे दी है लेकिन कब से बिजली हमारे गाँव में लगनी शुरू होगी इसपर कुछ कहा है क्या विधायक जी ने।” महावीर सिंह ने सडक वाले प्रकरण में जो विलम्ब हुआ था उसे देख रखा था। उन्हें पता था कि सरकार की मंजूरी के बाद भी योजनाओं को क्रियान्वित होने में कितना सामय लग जाता है।

“अरे नहीं बाबूजी इस मामले को मंजूरी मिल गई है और बहुत ही जल्द काम भी शुरू हो जाएगा मुझे विधायक जी ने आश्वस्त कर दिया है और हाँ आपकी बड़ाई करते नहीं अघा रहे थे विधायक जी कि तुम्हारे पिता बहुत महान हैं जिन्होंने गाँव के भलाई के लिए ही अपना जीवन लगा दिया और उन्होंने थोड़ी सी बड़ाई मेरी भी कर दी कि तुम्हें देखकर भी अब अच्छा लगता है कि तुम भी अपने पिता के रास्ते पर ही चल रहे हो।” कर्मवीर ने बताया।

“देखो मैं तो तभी मानूँगा जब काम शुरू हो जायगा। मैं नेता लोगों की बातों पर ज्यादा विश्वास नहीं करता देखा नहीं था तुम्हारे साथ उस प्रधान ने क्या किया था। पहले दिन कितनी मीठी बातें की थी लेकिन जब काम करने की बारी आई तो फिर कैसे वो पीछे हट गया था। किस तरह उसने अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लिया था। मेरी तो यही सलाह है बेटे कि अभी जब तक बिजली का काम शुरू न हो जाए तुम भी किसी को कुछ मत बताना। अगर वो विधायक तुम्हारा काम मतलब गाँव का कम नहीं कर कर पाया और तुम्हे सीधे शब्दों में बाद में ये कह दे कि देखो मुझे तो इतना बड़ा क्षेत्र देखना पड़ता है तो तुम क्या करोगे। तुम तो गाँव वालों के सामने बेवकूफ बन जाओगे न। इसलिए मुझे बता दिया चलो ठीक है लेकिन अभी और किसी को मत बताना। जब काम शुरू हो जाये तब ही बताना।” महावीर सिंह ने अपने अनुभव को कर्मवीर के साथ साझा किया। उन्होंने अपनी अंजुरी से आज एक चुटकी अनुभव निकालकर कर्मवीर की झोली में डाल दी।

आप ठीक कह रहे हैं बाबूजी।” बहुत ही मुरझाई आवाज और उदास चेहरे के साथ कर्मवीर ने महावीर सिंह को जवाब दिया। उसे इतना तो पता था कि उसके पिता जब ये सलाह दे रहे हैं तो पक्का सही ही है। जब उसने भी स्वविवेक से सोचा तो उसे यही सही भी लगा क्योंकि अगर विधायक ने काम शुरू नहीं करवाया और ये गाँव वालों को बोल दे कि बस कुछ ही दिनों में हमारे गाँव में बिजली लगने का काम शुरू हो जाएगा और ऐसा न हो पाया तो उसे बहुत ही ज्यादा शर्मिंदगी महसूस होगी। कर्मवीर ने विधायक से बात करके जब फोन रखा तो उसने सोचा था कि पहले वो अपने बाबूजी को ये बात बतायेगा और उसके बाद वो गाँव में जाकर एक दो को ये बात बता देगा कि एक हफ्ते के भीतर ही उसके गाँव में बिजली का काम शुरू हो जायगा लेकिन अब वो ऐसा नहीं करेगा। अभी कर्मवीर की हालत उस काले बादल की तरह थी जिन्हें देखने से तो लगता है कि वो खूब बरसेंगे लेकिन न तो वो गरज पाते हैं और न ही बरस पाते हैं। बस यूँ ही वो आते हैं और हवा के साथ बहते चले जाते हैं। लेकिन कर्मवीर को इस बात का भी भरपूर भरोसा था कि वो एक दिन खूब बरसेगा और जोरदार बरसेगा। बस वो अपने समय का इन्तेजार करने लगा।

कर्मवीर को समय का इन्तजार था समय का और वो समय आ भी गया। विधायक ने एक बार फिर से कर्मवीर के घर में फोन किया। फोन कर्मवीर ने ही उठाया।

“हेल्लो।” कर्मवीर के हेल्लो बोलते ही विधायक ने आवाज पहचान ली कि ये कर्मवीर की ही आवाज है।

“हाँ कर्मवीर कैसे हो?” विधायक ने पूछा। कर्मवीर ने भी विधायक की आवाज और बोलने का लहजा पहचान लिया था।

“मैं ठीक हूँ विधायक जी आप बताइए आप कैसे हैं?”

“अरे वाह भाई तुमने तो मेरी आवाज पहचान ली। मैं तो ठीक ही हूँ तुम्हें एक बात बतानी थी।”

“हाँ हाँ बताइए विधायक जी।” कर्मवीर ने बहुत ही जल्दबाजी में बोला।

“हाँ हाँ तुम्हारी ख़ुशी जायज ही है बहुत ही जल्द, अरे नहीं कल से ही तुम्हारे गाँव में बिजली लगने का काम शुरू हो जाएगा और तुम्हें ये भी बता दूँ। कि शहर से ७५ किलोमीटर दूर से तुम्हारे गाँव तक बिजली लाने का तो काम पिछले पाँच दिनों से चल रहा है। बिजली का खम्भा गाड़ना है न तो काम थोड़ा धीरे धीरे हो रहा है। तुम्हारे गाँव में कल से खम्भे गाड़ने का काम शुरू हो जायगा। वो लोग तो बोल रहे थे कि एक ही दल जो है वो शहर से खम्भा गाड़ते हुए जायेगी और जब गाँव पहुच जायेगी तो वही टीम गाँव में खम्भा गाड़ने का काम करेगी। लेकिन मैंने ही कहा कि नहीं भाई गाँव में जल्द से दूसरी टीम को लगाया जाय ताकि जब तक गाँव में बिजली लगने का काम पूरा हो तब तक शहर से बिजली का कनेक्शन गाँव तक पहुँच जाए और गाँव वालों को उसका फायदा मिले।” विधायक जी ने जब अपनी बात ख़त्म की तो कर्मवीर की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा था उसे अपना सपना सच होता दिख रहा था। जैसे किसी बाँझ की गोद भर जाती है तो उसे जो ख़ुशी मिलती है वही ख़ुशी कर्मवीर को महसूस हो रही थी। उसकी ख़ुशी का कोई पार ही नहीं रह रहा था। वो इस ख़ुशी को कैसे बयाँ करे उसे समझ नहीं आ रहा था।

“विधायक जी मैं आपका कैसे शुक्रिया अदा करूँ ये समझ नहीं आ रहा। आपने मेरा कितना बड़ा काम किया है। मेरे गाँव पर कितना एहसान किया है आपने मैं ये बता नहीं सकता।”

“अरे इसमें एहसान की क्या बात है। मैं अपने क्षेत्र के बारे में नहीं सोचूँगा मैं काम नहीं करूँगा तो फिर कौन काम करेगा?” विधायक ने अपनी कर्तव्य परायणता का परिचय देते हुए कहा।

“चलो कल से जरा खुद से लग के काम करवा लेना तुम भी।” विधायक जी ने कर्मवीर से कहा।

‘अरे विधायक जी इसमें कोई सोचने वाली बात है क्या?” कर्मवीर ने उत्तर दिया।

“ठीक है फिर मैं फोन रखता हूँ। जब मिलेंगे तो तुमसे दावत लूँगा।”

“हाँ हां जरूर।” कर्मवीर ने कहा और उधर से विधायक ने हल्का सा हँस कर फोन रख दिया।

कर्मवीर का मन आया कि वो जाकर अपने पिता को सारी बातें बता दे क्योंकि अब तो आधा काम शुरू भी हो गया था। लेकिन फिर उसे पिता की ही बातें याद आ गईं कि नेताओं की बात पर कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए। इसलिए इस बार बिन आत्म तस्ल्ल्ली के अपने पिता को भी सूचित करना उचित नहीं समझा। उसने अपनी मोटर साइकिल उठाई और फिर वो शहर की ओर चला गया। वो शहर से करीब बीस किलोमीटर दूर ही था कि तभी उसे काम होता हुआ दिख गया। उसकी ख़ुशी दोगुनी हो गयी। उसने पानी मोटर साइकिल मोड़ दी। और काफी रफ़्तार से अपने घर पहुँचा।

“पिताजी गाँव में बिजली लगने का काम कल से ही शुरू होने वाला है। और शहर से गाँव तक बिजली लाने का काम शुरू भी हो गया है और ये मैं खुद देख के आ रहा हूँ इस बार।” कर्मवीर ने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने पिता को यह बात बताई।

“ये हुई न कोई बात। अब तुम गाँव में किसी को भी बता सकते हो क्योंकि इस बार तुमने खुद देखा है कि गाँव के लिए बिजली आने का काम शुरू हो गया है।”

“हां बाबूजी आपको पता नहीं है कि मैं आज कितना खुश हूँ।”

“मुझे सब पता है बेटे तुम मेरा ही खून हो और गाँव के लिए कुछ भी अच्छा होता है तो कितनी ख़ुशी होती है ये मैं अच्छी तरह से जानता हूँ।” महावीर सिंह को अपने दिन याद आ गए जब उन्होंने गाँव के लिए पक्की सड़क बनवाई थी।

कर्मवीर अपने घर से निकल अपने खेतों की तरफ बढ़ गया। वहाँ रास्ते में उसे एक दो लोग मिले उसका मन आया कि वो उन्हें बता दे कि कल से गाँव में बिजली लगने का काम शुरू होने वाला है लेकिन उसने सोचा कि ये बात अब काम शुरू होने के बाद ही बताई जाये तो ज्यादा अच्छा है। इसलिए उसने किसी को आज भी कुछ नहीं बताया। एक आदमी उसे और मिला और उसने ही कर्मवीर को रोककर पूछा,

“कर्मवीर ये बताओ गाँव में बिजली आने वाली है क्या?” उस आदमी के इतना पूछते ही कर्मवीर के दिमाग में भांति भांति के प्रश्न आने लगे। उसे लगा कि इसे पता चल गया या फिर बहुत पहले मैंने बस बिजली की बात कर के छोड़ दी और उसके बाद गाँव वालों से बिजली के बारे में कोई बात ही नहीं की इसलिए तो नहीं ये आदमी मुझसे गुस्से में ये सवाल पूछ रहा है।

‘क्यों ऐसा क्यों पूछ रहे हैं आप?” कर्मवीर ने अपने उठते सवालों को किनारे कर उस व्यक्ति से उसी के सवाल का कारण जानना चाहा।

“अरे मैं कल शहर गया था। जाते वक्त तो मैंने ध्यान नहीं दिया लेकिन लौटते वक्त मैंने देखा कि कुछ लोग सड़क किनारे बिजली के खम्भे गाड़ रहे थे और खम्भे शहर से हमारे गाँव की तरफ ही आ रहे थे। इसलिए मुझे लगा कि हो सकता है हमारे गाँव तक ही बिजली लाने का काम चल रहा हो। क्योंकि तुमने एक बार पूरे गाँव को इकट्ठा कर के बताया था कि तुम गाँव में बिजली लाने की कोशिश करोगे।” उस व्यक्ति के इस जवाब के बाद कर्मवीर के पास छिपाने के लिए कुछ बच नहीं गया था। उसने सब कुछ उस आदमी को सही सही बताना ही उचित समझा।

“हाँ कल मेरी विधायक जी से बात भी हुई थी इस सिलसिले में कल से एक काम गाँव में भी शुरू हो जायगा एक टीम गाँव में बिजली के खम्भे और तार लगाने का काम करने के लिए कल से आने वाली है। जब तक यहाँ बिजली लगने का काम हो जाएगा तब तक शहर से भी बिजली गाँव तक पहुँच जायेगी और फिर हमारे गाँव में भी बिजली होगी।” कर्मवीर ने सारा वाकया उस व्यक्ति को समझा दिया।

“अरे वाह ये तो बहुत ही ख़ुशी की बात है। हमारे गाँव में भी बिजली होगी। हमें तुमपर नाज है कर्मवीर।” वो आदमी वहाँ से तीन बोलकर चला गया।

कर्मवीर भी आगे बढ़ता हुआ अपने खेतो में चला गया। खेत जाकर जब वो लौटने लगा तो कई लोगों ने उससे पूछ दिया और मुबारकबाद भी देने लगे। कई ने तो उसे गले से लगा लिया। कल से ही गाँव में बिजली लगने का काम शुरू होने वाला है यह खबर पूरे गाँव में फ़ैल गयी थी। जो व्यक्ति कर्मवीर से मिलके गया था उसी ने सबको बताया था। असल में उसने सब को नहीं एक दो आदमी को ये बात बताई थी और फिर यह खबर एक कान से दो और फिर दो से चार होती चली गयी।

अगले दिन से गाँव में बिजली का काम शुरू करने वाली टीम भी आ गई और फिर बिजली लगने का काम शुरू हो गया। टीम ने आते ही कर्मवीर से संपर्क किया क्योंकि उन्हें बताया गया था कि उसी व्यक्ति से मिलना है और वही सबकुछ बताएगा उस टीम को। जब यह बात गाँव के मुखिया को पता चली तो फिर मुखिया जी को बहुत बुरा लगा कि यह काम तो मुखिया की जानकारी में होनी चाहिए थी। उनका मन आया कि एक बार वो इस काम को रुकवा दें लेकिन अगले ही पल उन्हें कर्मवीर की पहुँच और लोकप्रियता याद आ गयी और वो अपने जलते दिल के ऊपर मुस्कुराते चेहरे का मुखौटा पहने गाँव में आ गए।

गाँव के लगभग सारे लोग खड़े हो करे काम करने वाली टीम को देख रहे थे और कर्मवीर गाँव वालों और टीम के साथ मिलकर ट्रांसफार्मर और बिजली के खम्भों के लिए जगह निर्धारित कर रहा था। जगह निर्धारित हो गयी और काम भी शुरू हो गया और मुखिया जी की तरफ ना तो किसी ने देखा और ना ही किसी ने उनसे कोई बात की। करीब पंद्रह दिनों में ही बिजली के खम्भे लगने का काम पूरा हो गया।

बिजली का काम जैसे ही पूरा हुआ वैसे ही बिजली का शुभाराम्ब होने की भी तिथि निर्धारित की गयी। विधायक जी ने स्वयं कहा था कि उस गाँव में बिजली का शुभारम्भ करने वो खुद आयेंगे। बिजली का ट्रांसफार्मर लोगों ने वहाँ लगवाया जहाँ सडक निर्माण के लिए महावीर सिंह का नाम लिखा बोर्ड लगा था। उसके बगल में ही एक बोर्ड कर्मवीर के नाम का भी लगा दिया और उसमे ये लिखा गया था कि यह ट्रांसफार्मर महावीर सिंह के बेटे कर्मवीर की अथक परिश्रम का ही फल है। कर्मवीर को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी यह सब गाँव वालों ने आपस में मिलकर तय कर लिया था।

विधायक जी नियत तिथि और नियत समय पर कर्मवीर के गाँव आये और ट्रांसफार्मर पर लगे उस हैंडल को उन्हें ऊपर करना था जिसके बाद गाँव में बिजली आ जाती। इसके अलावा दीवार पर कर्मवीर के नाम की जो शिला चुनवाई गयी थी उसका भी अनावरण करना था उन्हें। विधायक जी विधिवत उस हैंडल के पास पहुँचे और फिर कर्मवीर को बुलाकर कहा कि इस गाँव को बिजली देने का असली और पहला हक तुम्हारा ही है। अभी भी उस गाँव का मुखिया एक कोने में खड़ा होकर लज्जित हो रहा था।

कर्मवीर वहाँ गया और उसने हैंडल ऊपर किया। महावीर सिंह से उसकी आँखें मिली और चारों नेत्रों से गंगा यमुना प्रवाहित होने लगी। दोनों की आँखों में ख़ुशी के ही आँसू थे। इसके बाद विधायक जी ने उस शिला से कपडा हटाया तो उसपर जो लिखा था उसे पढकर तो कर्मवीर और भी ज्यादा भावुक हो गया। सभी ने उसके बाद कर्मवीर को माला पहनाई और महावीर सिंह को भी सम्मनित किया गया। बड़े ही धूम धाम के बीच वो दिन बीत गया।

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