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आखरी मोहब्बत...  

मोहब्बत है मुझे उस से, ये उसे पता नहीं,

आज से नहीं कई सालों से है, हाँ लेकिन उसे पता नहीं.

चाँद तक जाने का वादा नहीं है,

हाँ इस दुनियां के कई चक्कर लगा सकता हूँ उसकी एक झलक पाने को इतना पता है मुझे

हाँ मोहब्बत है मुझे उस से उसे पता नहीं है ये भी पता है मुझे...

ये शब्द विक्रम के थे, ईशा के लिए....

ईशा वो लड़की थी, विक्रम की जिंदगी कि जिसके लिए विक्रम इस दुनियां में था ही नहीं और विक्रम के लिए ईशा उसकी पूरी दुनियां थी.

ईशा के नाम पर दुनियां शूरू होती थी और ईशा के नाम पर खत्म.

विक्रम घर से स्कूल के लिए जब निकला करता था. तो स्कूल के पहले गेट से 100 मीटर पर ईशा खड़ी हुआ करता थी. वो वहां पर अपने स्कूल की बस का इंतजार करती थी.

विक्रम अकसर उसे रुक कर देखा करता था.

ईशा का बस स्टॉप विक्रम के स्कूल के छोटे गेट से बस कुछ कदमों की दूरी पर था. विक्रम वैसे भी स्कूल लेट ही आता था यहीं वजह थी की इशा को वो देख पाता था. पहले विक्रम अंजाने में लेट हुआ करता था लेकिन जब से ईशा से नजर मिली थी तब से जान बूझ कर लेट हुआ करता था.

विक्रम सुबह 7.15 तक छोटे गेट के पास आकर खड़ा हो जाता था, कुछ ही दुरी पर चंद लमहों में ईशा भी आ जाती थी.

ईशा के आते ही विक्रम ऐसी जगह पर खड़ा हो जाता था जहां से उसे तो ईशा दिखती रहे, लेकिन ईशा को वो न दिखे इस काम में उसका साथ किस्मत भी दे रही थी, गेट के बाहर ही एक बड़ा बर्गद का पेड था. जिसके सहारे वो खड़ा हो जाता था और ईशा को बिना किसी रूकावट के देखता रहता था. जैसे परवाना शमा को देखता है, एक बच्चा खिलोने की दुकान के बाहर खड़ा होकर खिलौनों को देखता है.

वो रोज वहां पर खड़ा होने लगा था, नतीजा ये हुआ की स्कूल में रोज लेट पहुंचता था. अब लेट जाने पर पीटीआई उसे रोज डाटते थे. लेकिन पीटीआई की डाट ईशा के चेहरे के आगे कुछ भी न थी.

उसके मासूम से चेहरे को देखने के लिए इतना हरजाना तो बनता था.

स्कूल टीचर्स की डांट से इतना फर्क नहीं पड़ता था बात तो तब थोड़ी छुपानी मुश्किल हो गई जब विक्रम के खास दोस्तों को शक होने लगा, वो सुबह जब स्कूल आते थे तो उन्हें बाहर विक्रम दिख जाता था फिर वो इस सोच में पड़ जाते थे की जब ये स्कूल बाहर टाईम पर आ जाता है तो फिर ये स्कूल क्यों नहीं आता...

लेट तो आता नहीं है तो ये स्कूल के बाहर अकेले करता क्या है, फिर उन्होंने विक्रम पर नजर रखना शुरू किया औऱ सच्च पता चल ही गया.

बस कभी कभी वो भी विक्रम का साथ देने आ जाते थे.

विक्रम का कई बार स्कूल जाने का मन नहीं होता था, पहले जब भी उसके दोस्त स्कूल नहीं आते थे उस दिन वो भी नहीं आता था, लेकिन जब से ईशा से नजरे मिली थी तब से कहानी बदल गई, कोई आए चाहे न आए वो रोज स्कूल आता था ताकि वो ईशा को देख सके. खुद को विक्रम ये कहकर हिम्मत दे देता था, सुबह ईशी को देख लूंगा तो पूरा दिन स्कूल को अकेले झेलने की ताकत आ जाएगी.

वो दिसंबर की एक आम सी सुबह थी, हलका हलका कोहरा था. मौसम में ठंडक थी बिल्कुल वैसा ही मौसम था जैसा विक्रम को पसंद था.

इस मौसम में उसे ईशा को देखना और भी ज्यादा पसंद था. वो स्कूल के बाहर अमित को लेकर खड़ा हो गया.

अमित और विक्रम दोनों खड़ें थे, विक्रम की निगाहें ईशा को खोज रहीं थी.

अमित साथ में खड़ा उसे कोस रहा था, तू उस से बात क्यों नहीं करता ?

उसे भी तो पता चले कोई उसके लिए रोज यहां पर खड़ा होता है और अपने साथ औरो को भी खड़ा रखता है, अमित ने बोला.

तुझे क्या लगता है मैं उस से बात करना नहीं चाहता, मैं नहीं चाहता वो भी मुझसे बात करे लेकिन तूने कभी उसे ध्यान से देखा है? कितनी खूबसूरत है वो तुझे लगता है वो मुझसे बात करेगी...

देख वो कहां खड़ी है, उसके साथ कौन खड़ा है, कहीं ऐसा न हो जाए की मैं उसे देख भी न पाऊं और ये मैं बिल्कूल भी अफौर्ड नहीं कर सकता ये विक्रम अमित की आखों में आखे डालकर कंधे पर हाथ रख कर बोल रहा था.

जैसे ही विक्रम नें बात खत्म करी ईशी आ गई थी. अमित चुप था विक्रम ईशी को देख रहा था जब तक ईशा की बस नहीं आ गई.

उस पूरे दिन विक्रम गुम सुम था. अमित के अलावा वजह किसी को भी नहीं पता थी.

विक्रम बॉक्सर था, शरीर से तो फिट था लोकिन रंग गोहुआ था और ईशा एकदम गोरी अगर दोनों साथ खड़े हो जाए तो विक्रम ईशा के सामने नजरबट्टू लगे यह बात विक्रम को पता थी.

स्कूल यूही देखते देखते गुजर गया वो दीदार का लमहा भी यूहीं पार हो गया. वो जो मासूम सा इश्क था वो मासूम ही रह गया .

स्कूल खत्म और कॉलज शूरू हो गया.

नई जिंदगी नए लोग नए दोस्त नई जगह इन सब के बीच स्कूल का प्यार कही खो सा गया था. दिल के किसी कोने में सिमट के रह गया था.

वक्त की रफ्तार इतनी तेज थी की स्कूल के 15 सालों को पता नहीं चला तो फिर कॉलेज के तीन साल तो मानों बस पल्क ही झपकी थी और कॉलेज अपनी खट्टी मिठी यादों के साथ खत्म हो चुका था.

क़ॉलज खत्म हुए एक साल हो गया था. रात के लगभग 11 बज रहे थे. विक्रम को निंद नहीं आ रही थी. उसने फेसबूक पर टाईम पास करना शूरू कर दिया.

तभी उसे एक पूराना चेहरा दिखा, चेहरा दिखते ही धड़कने तेज हो चुकी थी न जाने उंगलियों ने कब बिना बताए, दिमाग ने बिना कुछ समझे फ्रेंड रिकवेस्ट को सेंड वाले बटन को दबा दिया था.

ये वही चेहरा था, जिसे 4 साल तक स्कूल के बाहर देखा था. ईशा मलोहत्रा

स्कूल खत्म होने के बाद उस चेहरे की कोई खबर न थी, आज रात जब उसे फेसबुक पर ईशा दिखी थी तो मानों मार्क जूकरबर्ग को थैंक्यू बोलने का मन कर गया था.

रिकवेस्ट एक्सेप्ट हुई बाते शुरू हई दोनों ने एक दूसरे को जाना बातों ही बातों में शाम को रात और रात को दिन किया.

कुछ ही दिनों की बातों में दोनों इतने करीब आ गए थे मानों कई सालों से जान पहचान थी.

फिर बातों ही में बातों ईशा ने एक रोज बताया की मै तो एक लड़के से बहुत प्यार करती हुँ.

विक्रम का दिल बाठ गया था, उसे लगता था की ईशा अब उसकी जिंदगी आई है तो उसका स्कूल प्यार जो अधूरा रह गया था. वो अब पूरा हो जाएगा लेकिन विक्रम की मोहब्बत फिर से दिल में और चेहरे पर शिकन न थी.

प्यार तो उसे किसी और से था, विक्रम के हिस्से में दोस्ती का रिश्ता आया था.

दोस्ती को सब कुछ समझ के लड़का जान लुटाने को तैयार था.

फिर पता ये चला की उसे जिस से प्यार था वो लड़का तो बस यूही था ईशा को उस से प्यार और उसको ईशा से कुछ न था.

जब ये बात विक्रम को पता चली तो वो दंग रह गया.

ईशा जैसी प्यारी लड़की के साथ कोई टाईम पास कैसे कर सकता है

बात विक्रम के समझ से बाहर की थी पर उसने ईशा को कुछ बोला नहीं शायद उसे इतना अभी हक न था.

दिन पर दिन बीत ते गए, शामें रातों में और रातें दिन में बदलने गली कुछ नहीं बदलती थी तो इन दोनों की बातें इनका रिश्ता गेहराता जा रहा था.

विक्रम ने जो मोहब्बत दूर से करी थी करीब से उस रंग मिल गया जिस चेहरे को उसने देखा था उसे एक आवाज और व्यवहार मिल गया था.

ईशा उसके प्यार से आंजान थी. ईशा की हर एक छोटी बात विक्रम के लिए पहाड़ थी. मरने जीने का सवाल थी.

जितनी बार वो इंस्टाग्राम पर उसकी तस्विरों को देखता उतनी बार उसकी मोहब्बत और गेहरी ठंडी सी आह भरता फोन को सीने से लगाता, दिल में बार बार तम्मना होती बात केहने की लेकिन फिर खो देने के डर बात जुबान पर न सकी.

क्या वो ये जानने के बाद कभी मुझसे बात करेगी?

क्या उसे ये पता चल गया तो वो मुझसे तालुक रखेगी?

क्या वो अपने प्यार को मेरे लिए कभी छोडेगी?

नहीं...

इन सब का जवाब एक ही आता नहीं. वो अपनी और ईशा की दोस्ती पर काला बादल दिखता अंत में वो खुद को ईशा से दूर पाता.. इन सब के डर से कुछ बोल ही नहीं पाता.

इन सभी बातों को सोचते सोचते वक्त निकल गया दोस्ती ही सही उसने मिलने का वादा किया नेहरू प्लेस के एक क्लब में टाईम तय हुआ.

विक्रम ने भी अपने दिल की कह देने का अपने आप से वादा किया

शाम के 5 बजे का वक्त तय हुआ था.

इशा कब्ल टाईम पर पहुंच गई थी. इन दोनो की पहली मुलाकात थी इशा और विक्रम दोनों को बेकरारी थी.

ईशा विक्रम को बार बार कॉल कर रही थी, विक्रम पिक नहीं कर रहा था.

विक्रम नेहरू प्लेस के उसी मॉल के बाहर गाड़ी में बैठा शराब पी रहा था जिसके अंदर ईशा उसका इंतजार कर रही थी.

उसने सोचा वो एक लेटर लिखेगा और उसमें अपने सारे ज्जबातों को निकाल कर रख देगा लेकिन ऐसा करने के लिए उसे शराब की जरूरत पड़ गई.

पीते पीते उसने लिखना शुरू किया जब लेटर पूरा हो गया तो शाम के 7 बज चुके थे. ईशा विक्रम के फोन पर 80 कॉलस कर चुकी थी.

लेटर तो विक्रम ने लिख दिया लेकिन जब वो देने के लिए अपना फोन उठाया तो ईशा का लास्ट मैसज था मुझे अपनी शक्ल मत दिखा देना एंड आई मीन इट आज के बद हम कभी नहीं मिंलेगें.

विक्रम ने इसे कुदरत का इशारा समझा और फैसला किया की वो ईशा को अपने प्यार के बारे में नही बताएगा और उसकी जिंदगी को और मुश्किल नहीं बनाएगा.

उसने लेटर को अपनी जेब में डाला और जो बोतल उसने पास के ठेके से ली थी उसे नीट पी कर ईशा के टैक्स्ट को बार बार पढने लगा.

शराब उसे जरा भी कड़वी नहीं लग रही थी. मानों पानी की तरह गले से नीचे उतर रही थी.

उस टैक्सट का एक एक शब्द उसके दिल को चीर रहा था.

पता ही नहीं चला बोतल कब खत्म हो गई. उसने गाड़ी शूरी करी यू टर्न लिया और जैसे ही गाड़ी को फ्लाईओवर पर चढाया उसे पता चला की उसे नशा ज्यादा हो गया है, उसे सब कुछ धुंधला धुधला दिख रहा था, इतने में उसे लगा सामने से कुछ आर हा है उसने राईट में गाड़ी मोड़ी बहुत तेज आवाज हुई और गाड़ी पलट गई थी.

विक्रम को कुछ समझ नही आ रहा था कानों में बस सायर्न की आवाज आ रही थी वो गाड़ी में उलटा पड़ा था. चारों तरफ खून था. पुलिस ने उसे बाहर निकाला और जल्दी से उसे पास के फोर्टीस अस्पताल के लिए एंब्यूलेंस में डाल कर रवाना कर दिया.

पुलिस नें विक्रम के फोन से ईशा को भी क़ॉल करके जान कारी दी की उसका ऐक्सिडेंट हो गया है, और वो जल्दी से जल्दी फोर्टिस अस्पताल साकेत आ जाए.

ईशा के पैरो के नीचे से जमिन निकल गई थी वो आधे रास्ते से फोर्टिस के लिए रवाना हो गई.

जब वो होस्पिटल में पहुची तो विक्रम का बेसिक ट्रिटमेंट हो गया था उसे ऑपरेशन थियेटर लेकर जाया ज रहा था. ईशा विक्रम की तरफ से पहुंचनी वाली पहली शख्स थी सो ड़ॉटर ने इशा को देखते ही उसे विक्रम के कपड़े दिए और दिया विक्रम की जेब में रखा खून से सना हुआ लेटर...

विक्रम ओप्रेशन थियेटर में था ईशा बाहर और प्यार बीच में....