Kamsin - 33 - Last books and stories free download online pdf in Hindi

कमसिन - 33 - लास्ट

कमसिन

सीमा असीम सक्सेना

(33)

पिंकी और बिट्टू जो मैन्यू कार्ड में खाने की चीजें देख रहे थे वे एकदम से उसकी तरफ देखने लगे,

कौन रवि? राशि का ध्यान अभी भी बाहर की तरफ ही लगा था, उसने उन लोगों के प्रश्न को भी शायद नहीं सुना था। पिंक कलर की शर्ट और ब्लैक रंग की पैंट, चेहरे पर वहीं मुस्कुराहट।

रवि यहां पर वो पहली बार इस होटल में रवि के साथ ही खाने आई थी। और आज फिर रवि, कहीं धोखा तो नहीं खा रही है उसकी आंखे। वो भाग कर नीचे रवि के पास पहुंच जाना चाहती थी ताकि छूकर देख सके। उसने खुद को चिकोटी काटी कहीं ख्वाब में तो नहीं है वो। नहीं ख्वाब नहीं । ये सच है, हकीकत है। तीन महीने पहले गुजरे पल एक एक कर आंखों में घूम गये। रवि पहले से कुछ कमजोर दिख रहे थे, साथ में कोइ्र महिला लाल रंग की साड़ी में।

एक पुरूष भी साथ में थे थोड़े मोटे, तगड़े से। कहाँ जा रहे है ये? इसी होटल में आ जाये, भगवान मेरी ये प्रार्थना तो सुन लेना, कुछ नहीं माना है तो बस ये मान लो और कुछ नहीं चाहिए । बस एक नजर भर के देख लूं, वे भी उसे देख ले कि देखों अभी भी जिंदा हूँ । हाँ ये अलग बात है पल पल मर के जीयी हूं। एक बार मरने की हिम्मत नहीं जुटा पाई और हर पल का मरना स्वीकार कर लिया था सिर्फ इस वजह से कि अपनी खातिर दूसरे का मरना स्वीकार नहीं था।

उसे पता था कि जितना प्यार वो करती है उतना ही रवि भी करते थे ! जरूर कोई न कोई मजबूरी रही होगी । जो वे अलग हुए, कठोर बातें कहीं। लेकिन रवि जैसा सच में कोई भी नहीं। वो हमेशा उसके दिल में धड़कन बन के धड़कते हैं, वो भी जरूर उनके सीने में धड़कती होगी। आज सुबह से ही मुस्कुराने को जी चाह रहा था फिर पिंकी का साथ लेकर आना। अब खुशबगार मौसम आने वाला होता है तो पहले से कुछ कुछ अहसास होने लगता है। रवि का देखना कितना अच्छा लग रहा था इसे कह पाना बहुत ही मुश्किल है। ये समझिये मरने वाले को जीवन का मिलना या अंधे को आंखे।

उसकी नजरें बराबर नीचे ही लगी थी । अभी उस सड़क पर ही चल रहे थे, लम्बे डग भरते हुए रवि आगे आगे और वे दोनों काफी पीछे। सामने मंदिर वे कुछ पल वहां ठिठके राशि को आश्चर्य हुआ कि रवि कभी भगवान को मानते ही नहीं थे । उनके लिए सच्चाई और इंसानियत ही ईश्वर का रूप थे फिर आज ये क्या हुआ। शायद उनके हाथ जुड़े थे और उन्होंने सिर झुकाकर नमन भी किया। इंसान कितना भी नास्तिक क्यों न हो परिस्थिति वश कभी कभार वह आस्तिक बन ही जाता है। क्या वो भी परेशान हैं ?

उनके साथ चल रहे वे मोटे से अंकल, आंटी के पीछे पीछे चलने लगे थे और आंटी किसी कंफैक्शरी की दुकान पर आकर खड़ी हो गई थी। रवि ने पीछे मुड़कर देखा और वे भी वही पर पहुँचे गये। आ जाइये आप इस रेस्टोरेन्ट में एक बार न जाने क्यों राशि का मन पुकार उठा ! वह कुछ कहना चाहती थी कि बिट्टू बोल पड़ा आप कुछ सोंच रही है?

ये लिजिये मैन्यू कार्ड और बताइये क्या खायेंगी?

राशि ने सुनकर भी कुछ जवाब नहीं दिया उसके मन में इस वक्त घमाशान मचा था, एक एक पल किस तरह बिताया था जिसे शब्दों में वयाँ ही नहीं किया जा सकता। मन में भरे अथाह प्यार को भला चंद लफ्जों में नही कहा जा सकता। वह नजर भर के एक बार देख ही ले उन्हें, जिनके अंश को प्रेम से उसने सहेज रखा है। उसके रोम रोम से उनका ही नाम निकलता है, बूंद भर की चाह थी और पूरा सागर पाया था। तैरने की जगह डुबोता ही गया, गहरे गहरे और गहरे तक। बस नजर भर देखना ही काफी है, अनायास उसकी नजर फिर उधर ही मुड़ गई जिधर वे दुकान पर खड़े थे। यही है। कहाँ गये? अभी तो थे उसने अपने मन को बहुत समझाया पर आंसू ढलक कर गाल पर आ गये, कहाँ मानता है मन।

दी, क्या हुआ? पिंकी ने उसे हिलाते हुए पूछा।

कहाँ? कुछ भी नहीं।

फिर से आंसू?

आंख में शायद कुछ आ गया था।

आपसे बहाना बनाना भी नहीं आता।

लीजिये पानी पीजिए। इतने दिनों से साथ में रह रही है। राशि को हमेशा उसने उदास ही देखा था ! न जाने क्या गम था कभी बताया ही नहीं। राशी के मन में बार-बार हूक सी उठ रही थी, जो ढेर सारे आंसू बाहर उड़ेलने को आतुर थी परन्तु वह उन्हें भीतर ही भीतर जज्ब कर रही थी। जरा बाशरूम होकर आती हूँ। जब खुद को संभालना मुश्किल लगा, तो वह उठकर जाने लगी।

ठीक है मुँह धो लेंगी तो फ्रेश लगेगा।

हाँ ।

मैं भी साथ चलूँ?

अरे नहीं, तुम बैठो बस अभी आई। आँखों में आँसुओं का सैलाब उमड़ रहा था। जो किसी भी हाल में शांत नहीं हो रहा था, सब धुंधलाया सा आस पास कुछ साफ नजर ही नहीं आ रहा था। कही वह चक्कर खाकर न गिर जाये। उसके पाँव लड़खड़ाये से थे और वह बाशरूम की तरफ बढ़ रही थी। उसने एक बेटर से बाशरूम का रास्ता पूंछा और उधर ही चली गई। बाशरूम के भीतर लगे शीशे में खुद को निहारा और कैसी अजीब सी लग रही है वह। बेचारी पिंकी कितने प्यार और मन से उसे लेकर आई थी और उसकी बेवकूफी की वजह से सब खराब हो रहा है। उसने हल्की से चपत अपने गाल पर लगाई और ढेर सारे पानी के छींटे मुँह पर मारे। वह बाहर निकली सामने ही एक टेबल पर रवि और उनके साथ बैठे दिखे ।

रवि। उसका जी चाहा एक बार जोर से आवाज देकर बुला ले। पर नही दे सकी। शब्द कभी साथ नहीं देते जब उनकी बहुत जरूरत होती है तो मौन ही हो जाते है।

अब किधर से निकल कर जाये। राशि ने दुपट्टे को अपने सिर पर डाला और तेज कदमों के साथ आगे की तरफ से निकली। वे लोग काफी पी रहे थे, उसकी तरफ देखा ही नहीं उसने गहरी सांस ली और जी भर के उस हवा में घुली अपने रवि की खुश्बू को अपने भीतर भर लिया। ऊर्जा का संचार हुआ। जिंदा दिल रवि सच्ची जिंदगी जीते थे, आज कुछ उदास से दिखे फिर भी उसे अच्छा लगा। उनके करीब होने को अहसास मन को खुश करने के लिए काफी था। मन में कलियाँ सी फूंटी और मुस्कुराहट खिल आई। मेज पर बैठते हुए वो बोली मुझे तेज भूख लगी है जल्दी खाने का आॅर्डर दो। स्टार्टर खाते पिंकी और बिट्टू से उसने कहा।

आप के लिए क्या मँगा दूँ राशि जी।

कुछ भी, आज आपकी पसंद का।

चलो ठीक है टमाटर सूप और फिंगर चिप्स। ठीक है न।

जी हाँ। उसने मुस्कुराते हुए कहा। न जाने क्यों दिल में इतनी उथल पुथल सी मच रही थी परन्तु होंठों पर मुस्कुराहट खिली जा रही थी। उफ ये मन बड़ा अजीब है इसकी बातें तो बस यही समझे। राशि ने सूप को पीना शुरू कर दिया था साथ ही फिंगर चिप्स भी खाती जा रही थी। पिंकी को बहुत अच्छा लग रहा था इस तरह से उन्हें खुश देखकर। क्योंकि पिछले तीन महीनें से वे उसके घर में उसके साथ ही हैं परन्तु कभी इतना खुश नहीं देखा था। वह कुछ कहना चाहती थी लेकिन फिर चुप हो गई वह उन्हें डिस्टर्व नहीं करना चाहती थी। वो हमेशा इसी तरह मुस्कुराती रहें। आज उन्होंने बहुत जल्दी फिनिश कर दिया था और मैन्यू उठाकर खाने की चीजें देखने लगी थी साथ ही आॅर्डर भी कर दिया। मेरे लिए चिली पटैटो और रायता। एक रोटी ।

बस ।

हाँ!

फ्राइड राइस।

ठीक है थोड़े से। खाना टैबल पर लग गया था राशि ने अपनी प्लेट उठाकर उसमें थोड़े से आलू व रायता रख लिया और रोटरी रखकर खाने लगी। उसने ये भी नहीं देखा कि बिट्टू ने खाना शुरू किया ही नही। वह इतनी मशगूल थी रवि की यादों में और उसके पास होने से कि सब भूल गई।

उसे ध्यान आया कुछ अरे बिट्टू पिंकी तुम लोग क्यों नही ले रहे हो? दी आपको इतना खुश पहले कभी नहीं देखा। आज देख रही हूँ तो मन को बहुत तसल्ली महसूस हो रही है। आप हमेशा खुश रहे। पिंकी ने खाना शुरू कर दिया था। खिड़की के शीशे से बाहर का पूरा दृश्य दिख रहा था बादल...... से पहाड़ों पर तैर रहे थे पर राशि इन सब चीजों से बेखबर सिफ रवि के बारे में ही सोंच रही थी। जी चाहा अभी जाकर उनके गले से लग जाओ। सब दर्द आसुओं से बहा दो । और साथ ही ये भी पूछते आखिर उसकी गलती क्या है? क्यों दी उसे सजा?

आप और लीजिए न बिट्टू ने उसे टोकते हुए कहा।

नहीं, नहीं बस ।

और ये राइस ।

अब मन नहीं है।

चलो अच्छा ठीक है,

ओके मैं हाथ धोकर आती हूँ,

ओके जी!

एक बार और रवि को देख लेने का लालच वह छोड़ नहीं पा रही थी पूरी तरह अपनी आँखों में कैद कर ले फिर चाहें वे मिलें न मिले। जिंदगी इसी तरह से गुजार देगी। वह फिर से अपने चेहरे को चुन्नी से ढंक कर उधर से ही निकली जिधर रवि बैठे थे। पर वहाँ तो कोई नही। कहाँ गये। चले गये। ओह ऐसा क्यों कर रहे हो मेरे साथ। हे ईश्वर ये धरती फट क्यो नहीं जाती ये आसमां झुक क्यों नहीं जाता। वह चीखना चाहती थी परन्तु वो ऐसा हर्गिज नहीं कर सकती थी क्योंकि वह एक इंसान है और सभ्य समाज में रहती है किस तरह कर सकती है ऐसा। एक ऐसा सभ्य समाज जो हमेशा दोहरे माप दंड बना के रखता है। कहाँ जाये अब वह वापस पिंकी पिंटू के पास नहीं जाना चाहती। हे ईश्वर ही एक बार ही मिला दे, मन की बातें कह सुन लेने दे । कैसे पूरी पूरी रात चाँद के निकलने के इंतजार में, या फिर चाँद के आने के बाद उसके साथ बात करते ही हुए गुजारी थी ! कैसे कैसे पल पल निकला था उसको अपने रवि को एक बार देख लेने का मन में विश्वास या आस लिए ! और आज जब वो दिखा भी तो कुछ यूँ जैसे सावन के महीने में बदली के साथ खेल करता हुआ चाँद एक झलक दिखा कर गायब हो जाता है ! वह आँखों में आंसू भरे हुए उस मंदिर तक पहुँच गई जहाँ पर एक बड़ा सा घंटा लटक रहा था उसने पूरी ताकत लगाकर उसे घंटे को हिला दिया उसे घंटे की आवाज चारो तरफ गूंज गई।

ये आवाज मेरे रवि तक भी पहुंचा देना। हे ईश्वर! अगर तुम तक मेरी आवाज पहुँचती है तो एक बार मुझे मेरे रवि से मिला दे, कभी न बिछड़ने के लिए या फिर एक बार फिर से बिछुड़ जाने के लिए। मन में हाहाकार मच गया था, सब लोग उसी की तरफ देख रहे थे, मानों वह कोई अजूबा हो। वह वास्तव में इस समय एक अजूबा सी ही दिख रही थी। जहां कुछ समय पहले तक चाँदनी बिखरी थी और पूर्णिमा का चाँद मन को आलोकित कर रहा था वहीं पर अब अमावस्या सा घनघोर अंधेरा बिखर गया था सब कुछ पाकर भी सब खो गया था। आसमान में बादल घिर आये थे, दूर पहाड़ी पर हल्की सी सूरज की चमक थी परन्तु, वह चमक भी उन भरे हुए बादलों को बरसने से रोक नहीं पाई थी झमाझम बारिश होने लगी। राशि भी तो इसी तरह आँसू बहाकर मन को हल्का करना चाह रही थी।

परन्तु कैसे?

बेचारे पिंकी व पिंटू उसकी वजह से और ज्यादा परेशान हो जायेंगे।यह सोचकर वो वापस भीतर जाने को मुड़ी !

चलो अब चलते है पिंकी, राशि बाहर ही होंगी ।

हाँ बस चलो।

बिट्टू ने पेमेंट कर दिया था।

बाहर निकलते हुए वे राशि को देखते जा रहे थे कि किधर चली गयी ! पर राशि का मन अभी भी भटक रहा था ! आस अभी भी बाकी थी ! क्या रवि उसे एक बार फिर मिल जायेंगे और फिर हमेशा के लिए उसके ही होंगे। हाँ हाँ हाँ ! उसकी अन्र्तात्मा से चीख फूट पड़ी थी उसके शीतल मन मंदिर में जलते हुए प्रेम के दिये की लौ और तेज होकर जलने लगी थी, वह उसके ताप से एकदम पिघलना चाहती थी ! जमना नहीं चाहती थी ! उस ताप को कुछ और तपिश की जरूरत है, शीतलता की नहीं। बाहर लगा घड़ा सा घंटा और उसमें लटकती रस्सी को एक बार और पूरी ताकत से खींचकर उसने जोर से हिलाया, बहुत तेज ध्वनि के साथ पूरा वातावरण एक बार फिर से उस ध्वनि से गुंजायमान हो गया था अगर रवि के कानों तक ये आवाज पहुँची होगी तो वे अवश्य ही इस मंदिर तक लौट कर आयेंगे ! अगर उनके मन में राशि के लिए प्यार शेष होगा।

कुछ नहीं हुआ !

कोई नहीं आया?

मन में फिर से उदासी, नहीं बचा है सब खत्म हो गया है ! रवि को मन में उसके लिए प्यार नहीं है। लेकिन उसक विश्वास ये नहीं कहता है अभी बाकी है बचा हुआ है बल्कि सब कुछ शेष है।

राशि! ! ! ! उसके कान में ये आवाज आई !

अरे! ये क्या उसके कान गँूजने लगे हैं। उसकी अकड़ी हुई देह की अकड़ने कुछ नर्म सी महसूस हुई।

उसे महसूस हो रहा था कि अब प्यार की इंतहा हो गई है ! पर वह बैचैन नही है ।

बिट्टू कार पार्किंग से लेने चला गया था, पिंकी होटल के बाहर शेड के नीचे खड़ी थी और राशि मंदिर के पास खुले आसमान के नीचे पानी से भींगती हुई ! बारिश तेज हो रही थी परन्तु उसे सुनाई नहीं दे रही थी। आज उसे पूरी तरह भीग जाना था, हो जाने दो, जो भी हो। उसी समय राशि की आँखें अचानक से उस तरफ ही देखने लगी। जिधर से रवि आ रहे थे उन्होंने पिंक कलर की शर्ट और काले रंग की पैंट के साथ, काली जैकेट डाल रखी थी, आसमान में काले बादलों के बीच तेज बिजली कड़की थी। राशि बिना किसी हिचक के सबके सामने ही रवि के सीने से लग गई थी और रवि ने उसे इस तरह संभाल कर सीने से चिपका लिया मानों वह कोई कोमल फूलों का गुलदस्ता हो। बारिश का प्रवाह और तेज हो गया था। दोनों की आँखों से बहता हुआ पानी बारिश को और तीव्र करता जा रहा था। प्रेम में बहुत ज्यादा शक्ति होती है वह हिम्मत भी दे देता है, हर आस टूट जाने के बाद भी वह कभी नहीं टूटता !

उसका अडिग विश्वास, अडिग ही रहा, रवि लौट आये थे। उसे ढूँढते हुए ही आये थे और उसे ले जाने को हमेशा के लिए। या फिर कुछ पलों का ही ये साथ था नहीं जानती थी, फिर भी उसका विश्वास जीत गया था । उसका प्यार उस मंदिर के सामने ही आकर मिल गया था । अब न उसे बारिश की परवाह थी और न ही आस पास के लोगों द्वारा उसे इस तरह बीच राह में रवि के गले लगकर देखे जाने की कोई परवाह। वो दोनों तो बस अपनी ही दुनियां में मग्न हो गये थे। तपिश पिघलने लगी थी या भीतर ही भीतर और ज्यादा तपाने लगी थी शायद ।

समाप्त