Yoon hi books and stories free download online pdf in Hindi

यूँ ही

यूँ ही

एक उम्र होती है न जो पीछे जितनी छूटती जाती है, उतनी ही परछाईं की तरफ़ दौड़ लगाती है जैसे ---उसकी उम्र भी शायद कुछ ऎसी ही है | शायद इसलिए, कभी-कभी अपना ही स्वभाव समझ नहीं आता या यूँ कहिए कि एक अजीब सा बहकाव, भटकाव आने लगता है | पता ही नहीं चलता मन क्या चाहता है | अब भाई, मन तो चलता नहीं --उसे देखा है क्या? पर भीतर की चहल -पहल लबालब छलकने को हो आती है और स्मृतियों के द्वार खोल हल्का झंझावात भीतर पूरे जोशो-खरोश से भीतर प्रवेश करता है और मधु की मिठास अचानक अपना स्वाद ही बदलने लगती है |

अब कोई पूछे, भला कुछ फ़ायदा है पुराने बीहड़ों में घुसने का | पर होता है जी, ऐसा होता ही है और उसके साथ ही नहीं, हमारे और आपके साथ भी होता है | न--न करते हम जूझ ही तो पड़ते हैं उससे और पेशानी पर बल लिए अपनी खूबसूरती पर जैसे एक लेबल चिपका ही लेते हैं | अब उस लेबल के साथ कौन कहेगा जी ;

"चाँद सी महबूबा हो मेरी, ऐसा मैंने सोचा था ---"

यूँ तो मधु मीठी होने के साथ ही सरल भी थी पर क्या किया जाए उस सरलता का जो लोग ट्यूबलाइट समझने लगें --तब तो भाई अपने अस्त्र-शस्त्र निकालने ही पड़ते हैं और कोई चाँद सा कहे या फिर सूरज की तरह तपन का ख़िताब दे अपने पर उतरना ही पड़ता है अपनी औकात पर | यह मधु का सोचनाथा, जो वो करती भी थी |

हाँ, तो मधु सी मीठी मधु ने जब इंस्टीट्यूट जॉयन किया, अंग्रेज़ों के चमचे उसे ऐसे घूरकर देखते मानो वह किसी चिड़ियाघर से पकड़कर लाई गई हो | स्कर्ट, पेंट्स पहनने वालों में ये साड़ी वाली माता जी कहाँ से अवतरित हो गईं, लोग बड़ी दुविधा में घूर घूरकर देखने को मज़बूर ! क्या करें वो बेचारे भी अंग्रेज़ियत के मारे लिबास को ही मॉडर्निटी और इंटैलीजैंस का खिताब देते | खैर ---दिल्ली यूनिवर्सिटी से पास आउट मधु को इन सब बातों से क्या फ़र्क पड़ता | बड़ी मुश्किल से उसे साड़ी पहनने का मौका मिला था और अपनी वेश-भूषा के प्रति ज़बरदस्त आकर्षण होने के कारण उसने पक्की तरह सोच लिया था कि भाई इंस्टीट्यूट में पढ़ने नहीं पढ़ाने आई है तो कुछ दिन तो साड़ी से प्यार करेगी ही | हो सकता है बाद में समय ही न मिले छह गजी साड़ी को सलीके से बाँधने का और फिर से उसे पुराने लिबास को मनाना पड़े कि भाई सॉरी ! अब नहीं मैनेज हो रहा, निकल आओ बंद अलमारियों की कैद से और तन जाओ मेरे शरीर पर |

ठीक चार बजे टी-प्वाइंट पर सब इक्क्ठे होने की कोशिश करते, कोई अपने कमरों में भी चाय-कॉफ़ी मँगवा लेते | सबको एक ब्रेक तो चाहिए न, लंबे काम के बाद --सो, सुबह अधिकतर लोग अपने कमरों या कैंटीन में भोजन लेते और शाम की चाय पर एक साथ ठहाके लगाने आ जाते | अलग -अलग डिपार्टमेंट के लोगों का परिचय उसी चाय-स्थली पर होता और वहीं से थोड़ी-बहुत दोस्ती भी शुरू होती | वह भी कोशिश करके चार बजे सबसे मिलने जाने लगी |

अपनी छह गजी मुहब्बत को सँभालते हुए वह सबके बीच में उपस्थित होने लगी |

" नमस्ते जी ---नहीं ---प्रणाम अधिक अच्छा है न ?" ट्रेंडी की चिढ़ा देने वाली अदा पर मधु को मुस्कुराहट आए बिना न रहती |

"जी, आप प्रणाम कहें या नमस्ते या फिर नमस्कार --क्या फ़र्क पड़ता है ----" मधु बड़े विनम्र स्वर में कहती, ये हरक़त रोज़ ही तो होने लगी थी, कुछ दिन में वह आदी भी हो गई पर अपनी छहगज़ी मुहब्बत को उसने अभी तक बाय नहीं की थी | वह सरलता से मुस्कुरा देती |

"वो मैंने सोचा --आप साड़ी -वाड़ी वाली हैं --सो, यू माइट नॉट लाइक --हाय, हैल्लो ---" उसने अपनेबॉय कट हेयर पर अंदाज़ में हाथ फिराया |

"जी--जी, बिलकुल ठीक सोचा आपने ---" मधु मुस्कुराकर बोलती और उपस्थित चेहरों पर छिपी मुस्कान पढ़ती |

पहले दिन तो टी-प्वाइंट पर बैठे सारे लोग मुस्कुरा रहे थे, किसी ने ठहाका भी लगाया, ट्रेंडी पुरानी थी और वो नई --फिर भी समझ पा रही थी कि ट्रेंडी की अजीब सी बेहूदी अदा पर लोग रिएक्ट कर रहे थे | बस, ट्रेंडीको ही उसकी छह गजी मुहब्बत से रश्क था, और कुछ दो-तीन चमचे भी उसकी पूँछ बने घूमते रहते थे | होता है, ये सब जगह होता है |

ट्रेंडी का वास्तविक नाम तेजिंदर कौर था और वो पंजाब के होशियारपुर से आई थी | उसकी शिक्षा-दीक्षा क्या थी, यह तो तब तक मधु नहीं जानती थी लेकिन ये राज़ की बात उसे उसके स्टूडेंट्स ने ज़रूर बता दी थी | साथ भी चेतावनी भी दी थी कि वह उससे बचकर रहे वरना वो कब उसके कंधे पर बंदूक रखकर चला देगी उसे पता भी नहीं चलेगा | कभी कुछ पहले अनुभव किया होगा कुछ लोगों ने |

उस दिन खूबसूरत मौसम था, मधु के पति कई दिन से उसमें बदलाव सा देख रहे थे |

"क्या बात है यार, तुम कुछ उलझी सी हो, कुछ अनकंफर्टेबल हो क्या इंस्टीट्यूट में ?"

"नहीं, मैं मैनेज कर लूंगी, इस बॉयकट ट्रेंडी को संभालना ही पड़ेगा, वैसे मुझे कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता पर कलको ये मुझे किसी से भी भिड़वा देगी ---" मधु अनमनी सी थी |

"यार, तुम ऐसे न हो जाया करो, ये तुम्हारा बेसिक स्वभाव नहीं है, अब मैं गाऊँ कैसे ---चाँद सी महबूबा --" उनका रिमार्क भी मधु को चुभ गया | कितनी त्रसित होगी वह -----!

समीर दाँत फाड़ने लगे |

"तो अब सूरज की गर्मी कह लो न ---"वह भुनभुनाई |

"एक --एक सजैशन ले लो, देखो तुम जिस जगह जाती हो वहाँ की कल्चर ओढ़ लो न, क्या फ़र्क पड़ता है ------?"

मधु सी मीठी मधु ने घूरकर पति की ओर देखा;

"फिर --मैं जो कुछ भी करूँऔर सबके मन का करूँ, ये ही कह रहे हो न ?"

"अरे --रे --मेरा मतलब ये नहीं था पर -----"

"तुम क्यों उलझ रहे हो बेकार ही, मैं खुद सब कुछ संभाल लूंगी ---"

"हाँ, वो तो है ---" वे मुस्कुराए और मधु भुनभुनाई |

कोई दो-चार दिनों बाद मधु अपनी छहगजी मुहब्बत को संभालती अपने कमरे की ओर जा रही थी, इंक्यायरी पर एक सरदार जी सपत्नीक खड़े पूछताछ कर रहे थे | गार्ड ने उसे जाते देखा और रिक्वेस्ट की

"मैडम ! ये तेजिंदर कौर कौन सी मैडम हैं ? यहाँ तो कोई हैं नहीं | ये बेचारे अपनी बेटी से मिलने आए हैं ---"

मधु का माथा ठनका, ये ज़रूर ट्रैंडी के माता-पिता हैं ! गार्ड के कई बार पूछने पर भी उसने कोई उत्तर नहीं दिया ----

"सस्रीयकाल बाऊ जी, बेबे जी ----" मधु ने उन बुज़ुर्ग के समक्ष नतमस्तक हो सिर झुका दिया| पल भर में दम्पति ने उसे ढेरों आशीषों से नहला दिया |

"जिन्दी रे पुत्तर ---अस्सी ते होशियारपुर तौं बेटी के मिलने वास्ते आए हैंगे जी, इदर ही पढ़ांदी हे --ऐ लोको कहते हैं जी इदर कोई नीं हैगी जी -----"

"नहीं, आप आइये ---मेरे साथ --मैं बुलवाती हूँ ----" मधु उन्हें अपने कमरे में ले गई और पानी पिलाकर चाय का ऑर्डर दिया ---

"ओ पुत्तर जी, तुसी परेशान न हो जी, अस्सी स्टेशन तौं खा-पी के आए जी --"

"नहीं, इसमें परेशानी की क्या बात है ---आपने फ़ोन नहीं किया था उसे ---?"

बेचारे बुज़ुर्ग इतने परेशान हो रहे थे, मधु को अच्छा नहीं लग रहा था |

"फ़ोन ही तो मिल नईं रहा जी, तदी ते अस्सी परेशान हो गए न ?" बेचारी घबराई माँ ने दुप्पट्टे से मुह पूछा |

कमरे में इंटरकॉम था जिसकी पूरी लिस्ट कमरे की मेज़ के कॉंच के नीचे लगाई गई थी | मधु ने इंटरकॉम से ट्रेंडी को फ़ोन किया ;

'प्लीज़, मेरे कमरे में आ सकेंगी ?' मधु ने विनम्र स्वर में कहा |

"वाय ---वाय शुड आई ?" वह बौखला गई |

"कल की आई छोकरी मुझे --ट्रैंडी को अपने कमरे में बुला रही है ! ज़रूर मुझसे दोस्ती करना चाहती होगी, माय फ़ूट -----"उसने अपने कमरे में बैठे अपनी चमचियों के सामने डींग हाँकी |

"या--या--वाय शुड यू गो ---?"चमची कहाँ चुप रहने वाली थी, उसके सहारे तो उनका भी रौब पड़ता था |

"प्लीज़, आइए---आपका ही काम है ---" मधु सुन ही रही थी, वह विनम्र बनी रही |

"ओय---मेरा काम क्या होगा तू----" वह अपनी औकात पर आने लगी थी |

"आपकी मर्ज़ी ---नहीं तो मुझे आपके पास आना पड़ेगा , बेहतर तो है आप ही आएं---"मधु ने फ़ोन रख दिया | चाय आ चुकी थी, उसने अपनी ड्राअर से कुछ बिस्किट निकालकर एक प्लेट में बुज़ुर्ग दम्पति के सामने रखे |

कुछेक मिनिट बाद बाहर से कई पदचाप सुनाई दिए, अपने लश्कर के साथ ट्रेंडी पधार रही थी |

"क्यों --क्या बात -----" जैसे ही ट्रैंडी कमरे में घुसी, उसकी दृष्टिअपने माता-पिता पर पड़ी जो बहुत आराम से चाय पी रहे थे |

"जे ते हैगी अपनी तेजिंदर ---ओय कुड़िए ---तू ऐ की पेस बनाया ऐ --तू तो पिछाण में बी नी --"

तेजिंदर कौर उर्फ़ ट्रेंडी का अंग्रेज़ियत और सो कॉल्ड मॉडर्निटी का भूत अचानक ही उतर गया था जो मधु को देखते ही सवार हो जाता था |वह सकपका सी गई थी, मधु से तो जैसे आँखें ही नहीं मिला पा रही थी |

मधु ने अपनी कुर्सी से उठकर उसके कंधे पर हाथ रखा ;

"इट्स ऑल राइट ---" कुछ रुककर वह बोली ;

"माँ -पिता की ममता, करुणा कोई नहीं दे सकता, अपनी जड़ों से जुड़े रहने में शर्माना कैसा --हम यूँ ही क्यों अपने को छोटा दिखाएँ ?"

ट्रेंडी के चमचे भी चुपचाप कमरे से बाहर निकल गए | चाय पीकर बुज़ुर्ग उसे ढेरों आशीष देते अपनी बेटी के साथ चल दिए, पीछे -पीछे पीयून उनका सामन ले जा रहा था |

डॉ प्रणव भारती