udhde zakhm - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

उधड़े ज़ख्म - 7

अंदर सुम्मी के पास उसकी और मेरी अम्मी बैठी हुई थी,अम्मी ने मेरे पास आकर कहा इसे बहुत तेज़ प्यास लग रही है,गीली पट्टी इसके होंटो पर लगा रही हुँ लेकिन उस से प्यास थोड़ी भुझ जायगी,बेटे तू इसे बातों में लगा,ताकि ये कुछ देर के लिए तो अपनी प्यास भूल जाये,

ड्रिप का थोड़ा और पानी इसके जिस्म में जायगा तो शायद प्यास की शिद्दत थोड़ी कम हो जाये इसकी।



मैंने अम्मी से कहा आप सुम्मी की अम्मी को बाहर ले जाओ,इसके होंटो पर पट्टी में लगा दूंगा।

ग्लास में छोटा सा सूती गीला कपड़ा रखा हुआ था,मेने उस कपड़े को हाथ मे लेकर सुम्मी के नाज़ुक होंटो पर लगाया,उसने झट से अपनी ज़बान होंटो पर फेरा ली।

उसकी ज़बान भी सूख चुकी था,देख कर लगता था जैसे दो दिन के रोज़ेदार की ज़बान हो,सुम्मी प्यास की वजह से बेचैन हो रही थी,और बस पानी ही मांगे जा रही थी,

में अपनी जगह से उठा और दोनों हाथो में सुम्मी का चेहरा प्यार से पकड़ा,वो मेरी आँखों मे सवाली आंखों से झाँक रही थी, में हल्का सा मुस्कुराया, वो मेरा इशारा समझ गयी और अपनी पलके झुका ली, मैंने होले से अपने होंठ सुम्मी के होंठों पर रख दिये, कुछ सेकंड में ऐसे ही उसके होंठो पर अपने होंठ रखा रहा,उसने मेरे नीचे वाले होंठ को अपने दोनों होंठो में दबा लिया,कुछ सेकंड के लिए हम दोनों ही एक दूसरे में खो गए,न दुनिया की खबर न घर वालो का डर, फिर मेंने उस के चेहरे से अपना चेहरा हटाया,उसके माथे पर प्यार से एक बोसा दिया और अलग हो कर अपनी जगह पर बैठ गया,ये हमारी ज़िंदगी का पहला किस था।

अब हम दोनों के चेहरों पर अजब सी शर्म थी,और माहौल में चुप की कैफियत तारी थी, कुछ देर बाद मेंने ही इस चुप्पी को तोड़ते हुए कहा, सुम्मी तुम्हें याद है जब हम मंगनी के बाद बाइक से घूमने गजरौला के kfc में गये थे,सुम्मी ने पलके झुका के इशारा किया कि हां मुझे याद है,मेंने कहा उस दिन तुमने काले बुर्खे पर नीला हिजाब बाँधा था,पता है वो लांग ड्राइव मेरी ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत लम्हों में से एक है,उस दिन में तौहीद(मेरा चेचेरा भाई) से उसकी अपाचे बाइक मांग कर लाया था,और उसकी गद्दी इतनी ऊंची थी के तुम न चाहते हुये भी बार बार मुझ पर गिर रही थी,और जब जब तुम अपना वजन मुझ पर डाल रही थी मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था,और सोने पर सुहागा अमरोहा से निकलते ही 3 किलोमीटर का वो गड्डो भरा रास्ता, उफ़्फ़,क्या दिन था न वो सुम्मी,मेरी बात सुन कर सुम्मी के चेहरे पर हल्की सी स्माइल आयी।

और उसकी स्माइल देख कर जो खुशी मुझे मिली वो शायद लफ़्ज़ों में बयान नही हो सकती,मेंने फिर आगे कहना शुरू किया,तुम्हें याद है जोया के पास जो नर्सरी लगी थी उसमें कितने अच्छे अच्छे पौधे लगे थे,शाम के वक़्त उन पौधों में फूल ओर भी ज़्यादा खूबसूरत लग रहे थे,और उन सब फूलों में मेरी सबसे प्यारी गुलाबो खड़ी थी,पता है उस दिन तुम्हे किस करने का मेरा बहुत मन था,लेकिन मुझे डर ये था के कही तुम नाराज़ हो कर फिर अगली बार मेरे साथ डेट पर आने से मना न कर दो,खेर मुझे क्या मालूम था वो हमारी आखरी डेट थी,ओर उसके बाद हमारा मिलना अब ऐसे होगा,

खेर सच सच बताओ तुमने ये खुद किया या तुम्हारी अम्मी ने तुम्हें आग लगाने की कोशिश की,सच सच बताओ मुझे आखिर हुआ क्या था?


सुम्मी के होंठ हिले ओर उसने कहना शुरू किया,मंगनी के बाद से ही अम्मी ने मुझे इमोशनल ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया था।

इधर अम्मी तुमसे बात न करने का दबाव बना रहीं थी,उधर तुम भी कुछ समझने को तैयार नही थे।

कल अम्मी चांदपुर रिश्ता देखने गयी थी मेरे लिए,वहाँ अम्मी अब्बू दोनों पूरे दिन रुके,मेंने न कल दोपहर कुछ खाया न कल रात,अम्मी ने रात आते ही बाते बनानी शुरू कर दी,कि लड़का डॉ० है, अच्छे खानदान से है, सब शरीफ और पढ़े लिखे लोग है,में देर रात तक अम्मी की कही हुई बाते सोच के रोती रही,मेरी आँखें ओर चेहरा सूज गया था,इसके बावजूद भी मेने सुबह उठ कर फज्र की नमाज़ पढ़ी,दोनों भाई को नाश्ता बना के दिया,अम्मी अब्बू दोनों को रोटी बना के दी,अम्मी चांदपुर से लाई मिठाई खा रही थी,जब में रोटी लेकर गयी तो मुझसे बोली ले सुम्मी मुँह मीठा कर ले,बहुत अच्छी जगह रिश्ता पक्का कर के आयी हूं तेरा,मेंने कहा मुझे नही खानी,और आप लोग भी मत खायें, क्योंकि में वहाँ शादी नही करूंगी,तो अम्मी कहती हैं तू खा या मत खा लेकिन शादी तो तेरी वही होनी हैं, मैने कहा मुझे नही करनी तो नही करनी,मर जाऊंगी लेकिन किसी ओर से शादी नही करूंगी, इसपर पापा बोले इसे इसके हाल पर छोड़ दो,जा बेटे ऊपर जा, तो अम्मी कहने लगी तुम इसकी बातों में आ रहे हो, ये पूरी बेहया है,ये इतनी आसानी से थोड़ी मर जायेगी,ये उस चौधरी के लड़के से शादी कर के ही मरेगी,और में वहाँ अपने जीते जी इसकी शादी होने नही दूंगी।

बस में रोते रोते ऊपर अपने कमरे में चली गयी,पुताई के लिए घर में केरोसिन तेल रखा था,मेंनेअपने ऊपर डाल कर आग लगा ली, जुनैद ज़िन्दगी इतनी बेरहम होती है के अपना दिया हुआ एक लम्हा भी वापिस नही लेती,कभी कभी इंसान सोचता है कि उस पल के किनारे पर जा खड़ा हो जहाँ से गलती हुई थी,और रास्ता बदल ले,मगर ज़िन्दगी लेने देने के मामले से मुकर जाती है ,सब दरवाज़े बन्द कर लेती है,वहाँ बस सब कुछ तस्लीम करना पड़ता है, तुम्हे भी ये तस्लीम करना होगा के ये हादसा अब हो चुका जुनैद।

मैं - तुमसे में इसी लिए ज़िद कर रहा था कि भाग चलो मेरे साथ,मत पड़ो चक्करों में घर वालो के, बसा लेते हैं अपनी दुनिया इनकी दुनिया से और, इनके फर्जी रस्मो रिवाजो के साथ इन्हें छोड़ कर।

सुम्मी- हर बड़ी ज़िम्मेदारी लड़कियों के ऊपर ही है जुनैद,चाहे वो घर की इज़्ज़त की ज़िम्मेदारी हो या नस्लों को बढ़ाने की ज़िम्मेदारी हो या घर को चलाने की ज़िम्मेदारी हो या रिश्तों को निभाने की ज़िम्मेदारी हो।

और कहीं तो होगी वो ज़िन्दगी,

जहाँ तुम हमेशा मेरे साथ होगे।

मेने कहा में हमेशा साथ हु तुम्हारे, हर वक़्त, तुम आराम करो अब।


होते होते शाम का वक़्त हो गया डाक्टर्स की टीम लगातार सुम्मी का चेकअप कर रही थी,उसकी हालत में कुछ सुधार होता हुआ दिख रहा था,में भी थक के भूका प्यासा उसके सिरहाने पर पर सिर रख के सो गया था।