Panch sawal aur shoukilal ji - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

पाँच सवाल और शौकीलाल जी - 2

लंबे डग भरते हुए शौकीलाल जी घर आये। मैं भी साथ था। घर आकर उन्होंने बड़ा अधीर होकर टीवी चलाया। फिर देखने में ध्यान मग्न हो गए। उनकी अधीरता देखकर ऐसा लगा जैसे अभी- अभी उनके घर का छप्पर फटेगा और धन वर्षा शुरू हो जाएगी।

मैं खुर्दबीनी नजर से शौकीलाल जी के इकलौते कमरे का कोना-कोना देखने लगा। पूरे कमरे में केवल फिल्मी पत्रिकायें बिखरी पड़ी थीं। रंग बिरंगी पत्रिकायें। विभिन्न भाषाओं की पत्रिकायें। पूरा बॉलीवुड शौकीलाल जी के कमरे में समा गया लगता था। साथ में टीवी वर्ल्ड मैगजीन की प्रति भी धूल फाँक रही थी। सेंटर टेबुल पर अखबारों के फिल्म कालम की कतरनों का अम्बार लगा था। सामने रैक पर मेरी नजर गयी तो वहाँ अमीर बनने के नुस्खे से भरी विभिन्न लेखकों की कई मोटी- मोटी किताबें रखी हुई थीं। कमरे की वर्त्तमान स्थिति मुझसे चुगली कर रही थी कि शौकीलाल जी पर आजकल अमीर बनने का शौक सवार है।

'जितो छप्पर फाड़ के' जैसे गेम शो जो एक रुपया में एसी, कम्प्यूटर, बाइक, कार खरीदवाते हैं और पाँच सवाल पर करोड़पति बनाते हैं, के प्रति शौकीलाल जी दीवानगी इस नये शौक की सत्यतता पर मुहर लगा रही थी।

मेरी उत्सुकता फिर भी अपनी जगह कायम थी। इतनी सारी फिल्मी पत्रिकायें? शौकीलाल जी के शौक से इनका क्या सम्बन्ध हो सकता है? फिर टीवी वर्ल्ड की इतनी सारी प्रतियाँ? मैं शौकीलाल जी के नये शौक के साथ इन पत्रिकाओं का ताल-मेल बिठाने का प्रयास करने लगा।

गेम शो समाप्त होने के बाद शौकीलाल जी को मेरी उपस्थिति का भान हुआ। वे मेरी ओर मुखातिब हुए-" भाई देखा तुमने, कितने सरल सवालों के कितनी सहजता से जवाब देकर वह लेडी लखपति बन गयी। एसी और पीसी एक रुपया में उड़ा ले गई। मैं भी हरेक सवाल का जवाब जानता था। काश, मैं गेम शो में भाग लेता तो वे क़ीमती सामान मेरे होते।" ललचाई नज़रों से शौकीलाल जी ने टीवी स्क्रीन पर नजर डाली। चेहरे पर उग आई लाचारी उनकी मनोदशा दर्शा रही थी।

मैंने हमदर्दी जतायी-" इतना अधीर मत हो जाइए शौकीलाल जी, एक दिन आप के घर का छप्पर भी फटेगा।"

-" क्या खाक फटेगा !" शौकीलाल जी निराशा के गह्वर में डूबते चले गए-" मैं क्या आज से प्रयासरत हूँ इन दौलत बाँटू प्रोग्रामों में भाग लेने के लिए? अरसा बीत गया। किस्मत देखिए, आजतक एक चांस भी नहीं मिला। पहले KBC में भाग लेने के लिए हाथ पैर मारा। फोन से नम्बर मिलाता रहा लेकिन क्या मजाल जो एक बार भी नम्बर मिला हो। बूथ वाले को यूँ ही पैसे लुटाता रहा। उधर से निराश हुआ तो आया 'सवाल दस करोड़ का'। आशा की नयी किरण छिटकी तो लगा ,अमीर बनने का सपना अब पूरा होगा। इस बार बिनती-चिरौरी करके बगल वाले वर्मा जी का फोन नम्बर लेकर एस टी डी नम्बर बायोडाटा के साथ लिख भेजा। इंतजार पर इंतजार किया लेकिन एक दिन भी फोन की घंटी नहीं बजी। हाँ, मेरा बाजा जरूर बज गया भाइया।

दो-चार अच्छे ट्यूशन थे। मुझ अकेले के लिए इतना काफी था। फोन की घंटी बजने के इंतजार में पड़ोसी के फोन की तरफ कान दिये दिन दिन भर बैठा रहता था। नतीजा, सारे ट्यूशन हाथ से निकल गए। सोचा, टीवी वर्ल्ड मैगजीन खरीदकर नम्बर ही मिला कर देखूँ। शायद किस्मत का सितारा चमक उठे। दोगुना दाम देकर मैगजीन खरीद-खरीद पूरा कमरा भर दिया लेकिन नम्बर नहीं मिला। दो लाख वाला क्या दो हजार वाला नम्बर भी नहीं मिला।"

शौकीलाल जी की शोक कथा सुनकर उनके प्रति मेरी हमदर्दी और बढ़ गई-" शौकीलाल जी, बहुत बुरा हुआ आप के साथ। वो ऊपरवाला भी अजीब है भाई। ज़रा सा अमीरी आप को दे देता तो उसका क्या जाता? समुद्र से एक बूंद निकल ही जाती तो क्या फ़र्क पड़ने वाला था? लेकिन नहीं, आप को जरा सा अमीर बनना भी उसे क़ुबूल नहीं हुआ। खैर जाने दीजिए। यकीन मानिये शौकीलाल जी सारी कालोनी की सहानुभूति आप के साथ है। एक दिन आप की साधना अवश्य सफल होगी।"

-"अच्छा यह तो बताइये शौकीलाल जी, आपने इतनी सारी फिल्मी पत्रिकायें क्यों इकट्ठा कर रखी हैं। आप तो फिल्मों के इतने शौकीन भी नहीं हैं।"

-" तैयारी कर रहा हूँ भाई। "

-" कैसी तैयारी?"

-" ले देकर अब एक ही सहारा बचा है अमीर बनने का। वो है-जीतो छप्पर फाड़ के। इसी की तैयारी कर रहा हूँ। फिल्मी पत्रिकायें इसीलिए पढ़ रहा हूँ कि निन्यानवे प्रतिशत सवाल फिल्मों से ही किये जाते हैं।"

सुनकर मैंने अपना माथा पीट लिया। कितने अच्छे भले थे अपने शौकीलाल जी, क्या हो गया इन्हें? ट्यूशन से अच्छी कमाई हो जाती थी। शिक्षक चयन प्रतियोगिता की तैयारी भी कर रहे थे। सफल भी हो ही जाते। बीच में यह कैसा शौक पाल बैठे? अमीर बनने का शौक उतना बुरा भी नहीं है लेकिन शार्टकट रास्ता , जैसा कि टीवी वाले दिखा रहे हैं, अपनाकर केवल शौकीलाल जी ही नहीं दूसरे कई युवा भी गुमराह होकर अंधेरे में विलीन होने की तैयारी में जुटे हैं।

-" शौकीलाल जी, आप बड़ी लगन से शिक्षक चयन प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे थे। फिर यह क्या सूझा आप को?"

शौकीलाल जी ने लापरवाही से जवाब दिया।

@कृष्ण मनु
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