Poems of life, from life books and stories free download online pdf in Hindi

कविताएँ ज़िन्दगी की, ज़िन्दगी से

मैं शुभम कुमार ले कर आया हूँ कुछ मजेदार पर सच्चाई भरी कविताओं का संग्रह जिन पर सोचना जरूरी है बस नजरिया अलग हो।

कविता-1 बहना प्यारी

दुनिया में है सबसे न्यारी
मेरी हर जीत में उसकी साझेदारी
मुझको हर हाल में संभाले
ऐसी है मेरी बहना प्यारी|

जैसे फूलों की है क्यारी
ना है उसका कोई न है सानी
सबसे गुणवान लगती मुझको
ऐसी है मेरी बहना प्यारी|

मेरी पूरी है समझदारी
जाने मेरी पुरी कहानी
तारीफों के पुल बाधूँ
ऐसी है मेरी बहना प्यारी|

हर सवाल का जवाब देती
मेरी सब बातें भी सुनती
जिसको मैं सब बता पाऊँ
ऐसी है मेरी बहना प्यारी|

बहनो में है सबसे न्यारी
मुझको है सबसे प्यारी
मेरे हर राज को छुपाए
ऐसी है मेरी बहना प्यारी|

जिंदगी है मेरी कहानी
हर पल लिए नई रवानी
मेरी बहना है सबसे खास
ऐसी है मेरी बहना प्यारी|

बहना तेरे लिए लफ़्जों की कमी
तेरी वापिस रवानगी पर मेरी आँखो में नमी
बहना ये कुछ दिन काश और बढ़ जाते
तु मुझे याद आती है , रहेगी बहना प्यारी|

मेरी आँख अब है भीगी
लिखते लिखते जुबाँ जमी
दुनिया में है सबसे अलग
इतनी मुझसे जुडी मेरी बहना प्यारी|


कविता-2 संतों की बातें

जेल में पहुंचे दो संत महान
दोनो के हुए हाल बेहाल
दोनो मिले जब आपस में
नम हुई उनकी आँखे भी
बात शुरु की मन चित की
खोले चिठ्ठे कारनामों के भी
इक कहता
काश राजस्थान न जाता
सुख से अपना
हर पल तो बिताता|
दुसरा कहता
काश वो जज न आता
कोई भी केस
कभी न खोल पाता|
न जाने कैसे अच्छे दिन आए
हम तो जेल पहुँच गए|
तभी तपाक से पहला बोला
भाई क्या सही फरमाया
अब तो हालत खराब हो गई
हमारे धंधे की साख गिर गई
अब न मजा साधूगिरी में है
सब कुछ तो राजनीति में है|
तभी इक और साथी आया
नाम अपना रामपाल बताया
दोनो का चेहरा खिल गया
चलो ताश खेले साथी मिल गया|

कविता-3 कश्मकश

कश्मकश है धङकन में
क्या है मेरे दिल में?
मैं क्या हूँ और क्या सोचता?
क्या चल रहा है मेरे मन में?
जिंदगी का यह रास्ता
राह दिखाओ ना इस वन में|
जल रही है साँसे मेरी
आस है बस कब से|
वो जो कहते हैं
यह नही बस का मेरे|
तो क्यों न दिखा दूँ
क्या नही बस में मेरे|
शाँत हूँ, मैं बेआवाज हूँ
सुन रहा सब कुछ तो मैं|
क्या हूँ सोचता यूँ डूब कर
न करम मुझे बस ले चले|
काश वो भी दिन लाये खुदा
मरहम लगे सब जख्मों पर|
अहसास हो उन को भी
जो भूले हैं मुझे कभी|
हम रोते हैं
आँसुओं भर कर सदा
याद करते हैं
बचपन की वो सुबह|
न दुःख था
किसी बात का
न आस पाली
हमने उस पहर|
यह जिंदगी को
न कोई समझ सका
मन में रहती
बस यह "कश्मकश "|

न सोचना कभी इतना
कि यह जिंदगी नरक बन जाए
न ग़ुरूर करना अच्छे दिनों पर
न जानें वक्त कब बदल जाए|

कविता-4 बेपरवाह

अवशेष हूं


मैं अपने आप का।


शेष हूं


मैं मुझमें थोड़ा।


चल रहा हूं


मैं डगर पर,


ना सोचता हूं


मैं अगर मगर।


लोग कहते मुझे


बहुत लापरवाह,


पर असल में बंधु


मैं हूं बेपरवाह।।




दिल लगाता हूं


मैं अपने काम से,


लोग जो ना देते


थोड़ा सा जुड़ाव मुझे,


भूल जाता हूं उन्हें


समझ के अनजान उन्हें।


मेरी यही बात है


बस उन्हें है खलती,


तभी तो मुझे


वे कहते मतलबी।


उनकी बातों को


मैं न सुनता


क्योंकि में मैं हूं


इक बेपरवाह।।




कुछ दोस्त कहते


मुझे की में व्यस्त हूं।


कुछ लोग कहते है


की मैं बदला हूं।


कुछ रिश्तेदार कहते


मैं अपने में मस्त हू।


वे यह नहीं जाने


की क्यों ऐसा व्यवहार है


वो ये ना जानें


लड़का ये बेपरवाह हैं।।




मां कहती


बेटा ध्यान रख ले


पिता कहते


बेटा आराम कर ले


बहना कहती


भैया सब ठीक है ना।


इसी लिए इनके लिए


परवाह करता सदा मैं


बाकी सबके लिए


कवि शुभम बेपरवाह है।।




रिश्ते बहुत है


जो ध्यान है रखते


दोस्त बहुत है


जो अंत तक साथ देते


पर दिल से गले लगाने को


शुभम तड़पे है


इसी लिए तो


शुभम बेपरवाह है।।


पढ़िए इसको


और आनंद लीजिए


अपने अपनों में


इसको बांटिए


अरे सुनिए


वोट तो करते जाइए


और थोड़ा कमेंट भी


मुझे देते जाइए।


धन्यवाद देता


आपको ये कविबंधू


नाम है जिसका


@shubham36

कविता-5 क्या मैं ज़िंदा हूँ?

अपनों की लङाई देखकर
खुद की हार देख कर
फिर भी मैं चुप हूँ
तो क्या मैं जिंदा हूँ ?

टूटे वो रिश्ते देखकर
अपनों के हाथ खंजर देखकर
फिर भी मैं निःशब्द हूँ
तो क्या मैं जिंदा हूँ ?

राह अपने वजूद की खोकर
खुद को ही खुद से मिटा कर
फिर भी मैं संवेदनहीन हूँ
तो क्या मैं जिंदा हूँ?

सबके शर सवाल से घिर
उन तीक्ष्ण कटाक्षों को सुन
बनता बाहर से अंजान हूँ
तो क्या मैं जिंदा हूँ?

जानता हूँ मैं सब
समझता हूँ मैं सब
पर करता मौके की तलाश हूँ
तो क्या मैं जिंदा हूँ ?

मैं बोलता नही मैं अब
बस चुप रह कर
हो रहा तैयार मैं
तो क्या मैं जिंदा हूँ ?

बिन बोले लक्ष्य पर जमा
भनक नही कि मेरी राह कहाँ
पकड़ पाना मुझे आसान नही
तो क्या मैं अब भी मुर्दा हूँ ?

आप भी कभी ऐसा महसूस करते होंगे यदि हाँ तो जरूर बताये कि आप क्या सोचते हैं। और इस कविता पर वोट , कमेंट व इसे शेयर जरूर करें॥
धन्यवाद प्यार बनाए रखे ॥