kritgyata ke aanshu books and stories free download online pdf in Hindi

कृतज्ञता के आंसू

‘नीना , तुम तैयार हो ? विपिन ने टाई की गांठ को ठीक करते हुये कहा । ‘

हां नील , आई एम रैडडी । बालों में कंघी फिराते हुये नीना ने कहा ।‘

‘भई , जल्दी करो । मुझे देर हो रही है । पार्टी में सब मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे । विपिन ने चलते हुये कहा । ‘

‘चल तो रही हूं । क्या मुझे देर नहीं हो रही है । किटटी पार्टी 8 बजे स्टार्ट होनी थी । अब साढ़े आठ हो रहे हैं । मेरी सहेलियां कब से राह देख रही होंगी । नीना ने कलाई पर बंधी घड़ी देखते हुये कहा । ‘

‘लेकिन नीना , वैभव का क्या करेंगे ? विनिन ने चिंता जाहिर की । ‘

‘उसकी कौन सी बड़ी प्राब्लम है । वह तो सो रहा है । और फिर माया तो है ही । देख लेगी । हमें चिंता करने की जरुरत नहीं । तिपाई पर पड़े पर्स को उठाते हुये , वह चल पड़ी । ‘

दस - बारह वर्ष का वैभव , बैड पर लेटा ,सोने का नाटक कर रहा था । मां के जाते ही वह उठ बैठा - हूं । चले गये , सब के सब । मुझे अकेला छोड़ कर चले गये । कोई मुझे प्यार नहीं करता । सबको अपनी ही चिंता है । जब मुझसे इतनी ही नफरत थी तो मुझे पैदा ही क्यों किया ? मम्मी को किटटी से फुरसत नहीं । और पापा को बिज़नेस पार्टियों से । मेरा क्या । माया संभाल लेगी । कोई नहीं है मेरा । बिल्कल अकेला हूं मै । बिल्कल अकेला । वह रज़ाई में घुसकर सिसकने लगा ।‘ अचानक न जाने उसे क्या सूझा । रजा़ई उघाड़ उठ बैठा वह - ठीक है । कोई मेरी फिक्र् न करे । आज़ बता दूंगा मैं उनको । आज़ से मैं वही काम करुंगा जिससे उन्हें दुख पहुंचे । वैभव मम्मी - पापा के कमरे में चला गया । पापा की फाइलों को नीचे पटक दिया । मम्मी का मेकअप का सारा सामान फर्श पर बिखेर दिया । बैड का कबर्ड देखते हुये उसके हाथ नींद की गोलियों की शीशी लग गई । अब पता चलेगा । वैभव एक साथ पांच - सात गोलियां खा गया । गोलियां खाकर वह वहीं फ़र्श पर लेट गया । धीरे - धीरे उसे नींद आने लगी । आंखें मूंदने से पहले वह आखिरी बार चिल्लाया - आंटी माया , मुझे बचाओ । मैं मरना नहीं चाहता । मौत की इच्छा रखने वाला बड़े से बड़ा शूरवीर भी मौत को नज़दीक आते देखकर एकबारगी कांप उठता है । माया रसोई में , वैभव के लिये दूध गर्म कर रही थी । वैभव के चीखने की आवाज़ सुनकर वह भागती हई बैडरुम में आई । वैभव को फ़र्श पर लेटा देखकर वह चिंतित हो उठी - क्या हुआ मेरे लाल को ? वह वैभव को हिलाने - डुलाने लगी । लेकिन वैभव को होश नहीं आया । माया वैभव का सिर गोद में लेकर अनवरत चूमती जा रही थी - ‘बेटा कुछ तो बोलो । वैभव बोलने की स्थिति में नहीं था । धीरे - धीरे उसके हाथ - पांव ठंडे होते जा रहे थे । चेहरे पर मुर्दानगी छाती जा रही थी । वैभव की हालत देखकर माया ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी । उसे कुछ नहीं सूझ रहा था । कहां जाये ? क्या करे ?

उसे याद आया . . पति की असमय मौत के बाद , कैंसर पीड़ित उसके बेटे नीरज़ ने किस तरह से रोते - रोते उसकी गोदी में आखिरी सांसें ली थीं । कुछ सोचकर , वह वैभव को वहीं बैड पर लिटाकर उठ खड़ी हुई और आनन - फानन में अलमारी से कुछ ढ़ूंढ़ने लगी । वह बड़बड़ाती जा रही थी - मैं तुझे कुछ नहीं होले दूंगी मेरे बेटे । भाग्य से उसे वह डायरी मिल गई जिसमें उसके मालिक के फैमिली डाक्टर , मिस्टर भटनाबर का फोन नंबर लिखा था । डाक्टर भटनागर से केवल माया इतना ही कह पाई - डाक्टर साहब , भगवान के लिये , वैभव को बचा लो । मैं इसे मरते नहीं देख सकती । रिसीवर पटकर , वह वापिस वैभव के पास आ गई । वह पागलों सी कभी वैभव के हाथ - पांव मलती । कभी उसका माथा चूमती । कभी उसका सिर गोद में रवकर उसको जगाने का प्रयास करती । डाक्टर भटनागर का घर पास ही था । माया के पास पहुंचने में उन्हें दस मिनट से अधिक समय न लगा । बैडरुम में आते ही उन्होंने पूछा - ‘क्या हुआ माया ? क्या हुआ वैभव को ? ‘ अचानक उनकी नज़र फर्श पर पड़ी नींद की गोलियों पर पड़ी । वे सारा मामला समझ गये । माया से बोले - माया , वैभव की जान खतरे में है। इसे फौरन मेंरे क्लिीनिक ले जाना होगा । माया ने वैभव को गोदी में उठा लिया और डाक्टर साहब के पीछे - पीछे आकर गाड़ी में बैठ गई । घर खुला हुआ था । लेकिन , आज़ उसे किसी की परवाह थी, तो बस वैभव की । वह किसी भी हालत में वैभव को खोना नहीं चाहती थी । घर से सड़क पर आते ही कार ने रफतार पकड़ ली और पलक झपकते ही गाड़ी डाक्टर साहब के क्लिीनिक में थी । डाक्टर भटनागर ने वैभव को बैड पर लिटाया और नर्स को पानी लाने को कहा । नर्स पानी लाई । डाक्टर साहब ने पतली - पतली नलियों के सहारे वैभव को धीरे - धीरे पानी पिलाया । एक दूसरी नली उन्होंने वैभव की नाक में डाल दी । कुछ ही मिनटों में नली से दुधिया पाने निकलने लगा । जब वैभव के भीतर से गोलियों का ज़हर पूरी तरह से निकल गया तो डाक्टर भटनागर ने माया से कहा - ‘ माया , अब घबराने की जरुरत नहीं है । गोलियों का ज़हर निकल चुका है । दो - चार घंटे में वैभव को होश आ जायेगा । तुम थक गई होंगी । थोडा आराम कर लो ।‘ वहीं फ़र्श पर बैठी माया ने कहा - ‘ डाक्टर साहब , मैं आपका यह अहसान सारी ज़िदगी नहीं भूलूंगी । ‘ डाक्टर भटनागर ने चश्मा साफ करते हुये कहा - माया , इसमें अहसान की कोई बात नहीं । यह तो मेरा फर्ज़ है । अच्छा , तुम आराम करो । फिल्हाल मैं चलता हूं । तुम्हारे साहब, मिस्टर अग्रवाल को भी इन्र्फाम करना है । अच्छा सुनो , वैभव को होश आये तो मुझे खबर करना ।‘ ‘जी । माया ने सिर हिलाया । ‘ डाक्टर साहब दूसरे कमरे में चले गये । माया सारी रात वहीं वैभव के पायताने अपलक बैठी रही । सुबह वैभव ने आंखें खोलीं तो सामने माया को पाकर वह बोला - ‘ आंटी । ‘ माया वैभव का माथा सहलाते हुए बोली - ‘ हां बेटा । ‘ ‘ आंटी पानी । वैभव के होंठों ने एकाएक हरकत की ।‘ माया ने बायें हाथ से सहारा देकर , सामने टेबल पर रखे गिलास से उसे पानी पिलाया । पानी पीकर उसने चारों ओर नज़रें घुमाई । उसकी आंखें मम्मी - पापा को खोज़ रहीं थी । मम्मी - पापा को कमरे के किसी कोने में न पाकर उसने चुपचाप आंखें मूंद लीं । कुछ देर बाद डाक्टर भटनागर ने कमरे में प्रवेश किया - ‘ माया , वैभव अब कैसा है ? उन्होंने कलाई पर बंधी घड़ी देखते हुये कहा - अब तक तो वैभव को होश आ जाना चाहिये था ।‘ वे वैभव के बैड की ओर जाने लगे । माया हाथ जोड़ते हुये प्रसन्न भाव से बोली - ‘ आपकी मेहरबानी से वैभव अब बिल्कुल ठीक है डाक्टर साहब । उसने अभी मेरे हाथों से पानी पिया है । वह अभी सो रहा है ।‘ डाक्टर भटनागर ने कहा -‘ माया , वैभव अगले चार - पांच घंटों के बाद घर जा सकता है । मैंने मिस्टर अग्रवाल को फोन कर दिया है। वे आते ही होंगे ।‘

तभी सामने दरवाज़े से मिसिज़ व मिस्टर अग्रवाल को आते देखकर वे बोले -‘ लो , आप आ ही गये । आइये मिस्टर अग्रवाल । डाक्टर भटनागर ने मिस्टर अग्रवाल से हाथ मिलाते हुये बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत करते हुये कहा ।‘ ‘ कैसा है माई सन, डाक्टर भटनागर । मिस्टर अग्रवाल ने पूछा ।‘ ‘क्या हुआ इसे डाक्टर ? वैभव बोल क्यों नहीं रहा । मिसिज अग्रवाल ने वैभव के सिरहाने बैठते हुये पूछा । ‘डाक्टर भटनागर ने वैभव कह कलाई पकड़ कर नब्ज़ देखते हुये कहा - ही इज़ एब्सील्यूटिली आल राइट नाव । अब चिंता करने की कोई बात नहीं । ही इज़ फरफैक्टिली ओ के । ‘‘ पर इसे हुआ क्या था डाक्टर ? मिसिज अग्रवाल चिंतित हो उठीं । ‘

‘कुछ नहीं मिस्टर अग्रवाल , ही इज आल राइट । आप बैठिये न । खड़े क्यों हैं ? डाक्टर भटनागर सामने पड़ी कुर्सी को इशारा करते हुये कहा । ‘ मिस्टर अग्रवाल ने सफाई देनी चाही - ‘ एक्चूयली , कल हम दोनों पार्टी में गये हुये थे । रात देर से पहुंचे । थोड़ा इंटाक्स्किेटिंग था । बस नींद आ गई । सुबह आपका फोन आया तो नींद खुली । सीधा भागते हुये यहां आ गया । आखिर बात क्या है ? ‘ डोंट वरी मिस्टर अग्रवाल । वैभव इज़ ओ के नाव । डाक्टर भटनागर ने सांतवना दी ।‘

‘ वैभव , आर यू ओ के । मिस्टर अग्रवाल ने अपने बेटे के गालों को सहलाते हुये तसल्ली कर लेना ठीक समझा ।‘ वैभव ने पापा की किसी बात का जवाब न देते हुये अपना मुंह दूारी ओर कर लिया । ‘क्या हुआ मेरे बेटे ? वैभव की हथेली मलते हुये मिसिज अग्रवाल के माथे पर चिुता की लकीरें उभर आईं ।‘ वैभव ने हाथ छुड़ा लिया । ‘हाय डाक्टर भटनागर , वैभव इस तरह से क्यों बिहेव कर रहा है ? क्सा हुआ इसे ? मिसिज अग्रवाल बेचैन हो उठीं ।‘

डाक्टर भटनागर बाल - मनोवैज्ञानिक भी थे । वैभव की मनस्थिति को बड़ी अच्छी तरह से समझ चुके थे । मिस्टर अग्रवाल का हाथ पकड़कर बोले -‘ इधर आइये मिस्टर अग्रवाल । आप भी आइये मिसिज अग्रवाल । ‘ डाक्टर भटनागर , मिस्टर अग्रवाल दूसरे कमरे में ले गये और सामने लगे सरेफे की ओर इशारा करते हुये बोले - ‘तशरीफ़ रखिये मिस्टर अग्रवाल । आप भी बैठिये मिसिज अग्रवाल । ‘ मिसिज अग्रवाल ने सोफे पर बैठते हुये पूछा - ‘क्या हुआ मेरे बेटे को डाक्टर साहब ? ‘

डाक्टर भटनागर बड़ी संजी़दगी से बोले - ‘एक्चूयली वैभव इज़ सफरिंग फ्राम डिपरैशन । देखिये , मिसिज अग्रवाल फोन पर मैंने आपको डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा । दरअसल , वैभव ने नींद की गोलियां खा ली थीं । वो तो माया ने मुझे वक्त पर बुला लिया । वरना , कुछ भी हो सकता था ।‘

‘ पर, ऐसा वैभव ने क्यों किया डाक्टर साहब । हमने तो वैभव को सारी सहुलतें दी हैं । जो आम तौर पर बच्चों को नहीं मिल पातीं । मिस्टर अग्रवाल ने डाक्टर भटनागर की बात को बीच में ही काटते हुये कहा ।‘

मिसिज अग्रवाल कुछ नहीं बोलीं । बस हाथ जोड़ लिये । वे मन ही मन भगवान को धन्यवाद देने लगीं ।

‘माफ़ करना मिस्टर अग्रवाल , कहना तो नहीं चाहिये । यह आपका घरेलू मामला है । लेकिन एक डाक्टर होने के नाते कहना चाहता हूं ।

दरअसल आपका बेटा दौलत एंड ऐशोआराम का नहीं , प्यार का भूखा है । उसे आप दोनों का प्यार चाहिये । इस उम्र मे , जब बच्चों को अपने पेरेंटस के प्यार की सबसे अधिक जरुरत होती है । तब आप जैसे लोग समझते हैं कि महंगे खिलौने , कम्प्यूटर एंड टी वी से बच्चों को खुश रखा जा सकता है । लेकिन मैं आपको बता दूं मिस्टर अग्रवाल कि ये चीज़े केवल कुछ समय तक ही बच्चों का दिल बहला सकती है। । लंबे समय तक नहीं । बच्चों को प्यार की जरुरत होती हैं । अपने बच्चे को प्यार दीज़िए । मां - बाप का दुलार ही बच्चों की जड़ों को सींच कर उसे हरा -भरा रखता है । मेरी कोई औलाद नहीं हैं । इसलिये औलाद का अर्थ समझता हूं । यही हाल रहा तो मिस्टर अग्रवाल मैं कहे देता हूं कि एक दिन आप अपने बेटे से हाथ धो बैठेंगे ।‘

मिसिज अग्रवाल फूट- फूट कर रोने लगीं -‘ नहीं डाक्टर साहब । हम ऐसा नहीं होने देंगे । हम वैभव को घुट-घुट कर मरने नहीं देंगे । हम वैभव को इतजा प्यार देंगे कि वह एक मूमेंट के लिये भी अपने आपको अकेला महसूस नहीं करेगा । अपने पति की बाज़ू पकड़कर मिसिज अग्रवाल अपने पति से कहा - हमें माया को भी थैंक्यू कहना चाहिये विपिन । शी इज़ रियली सो गुड हैंड हंबल टू अस ।‘

‘यस , वी शुड रीना । समाज़ में अपनी हैसियत व रुतबे के मुकाबले सबको छोटा व तुच्छ समझने वाले मिस्टर अग्रवाल की आंखों में आज़ गरीब माया के लिये सचमुच कृतज्ञता के आंसू थे । ‘

- डा नरेंद्र शुक्ल़़