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मन का क्या करूँ

मन का क्या करूँ

अन्नदा पाटनी

चौराहे पर लाल बत्ती हो गई । सारी गाड़ियाँ थम गई । ज़बर्दस्त ट्रैफ़िक था । मैंनेएसी बंद करवाया और खिड़की का शीशा उतार कर इधर-उधर नज़र दौड़ाने लगी । देखा सड़क के एकछोर से एक वृद्ध दम्पत्ति गाड़ियाँ रुकी देख सडक पार करने के लिए चल पड़ा । पत्नी की कमर झुकीहुई थी और पति का शरीर भी काफ़ी दुर्बल और शिथिल लग रहा था । दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ाहुआ था पर कौन किसको कितना सहारा दे रहा था यह उनकी डगमगाती चाल देख कर समझा जासकता था । ऐसा लग रहा था कि उन्हें किसी तीसरे की मदद की जरूरत थी ।

गाड़ियों के बीच में से राह बनाती वृद्धा पति को खींचती हुई आगे बढ़ रही थी । उनकीयह हालत देख मैं न जाने किस सोच में पड़ गई । देखने में तो अच्छे घर के लग रहे हैं फिर ऐसी क्यामजबूरी हो गई कि पैदल निकल पड़े हैं । बच्चे तो होंगे ही । हां , होंगे तो सही पर ध्यान आया किआजकल जो हिसाब किताब चल रहा है उसमें बड़े-बूढ़ों का कोई खाता कहाँ है । उनको कहाँ याद रहताहै कि आज जिस मुक़ाम पर वे हैं उसके पीछे माँ बाप का कितना त्याग है । आज बेचारे मोहताज हो रहेहैं कि कोई उनकी उँगली पकड़ कर सड़क पार करा दे । भूल गए कि इन्हीं बच्चों की उँगली पकड़ करउन्हें न जाने कितनी बार गिरने से बचाया था । न जाने कितनी रातों को जाग जाग कर उन्हें चुप कराया है। कैसी विडंबना है ! एक समय था कि अपने कंधे पर बैठा कर जिन्होंने बच्चों का बोझ संभाला था , आजवही बच्चे उनका बोझ नहीं उठा पा रहे । पता नहीं भविष्य में उन्हें अंतिम यात्रा के समय कंधा भी मिलपायेगा या नहीं , कहना बड़ा मुश्किल है । आये दिन इस तरह के कितने क़िस्से रोज़ सुनने को मिलतेरहते हैं ।

मै भी न जाने क्या लेकर बैठ गई । पर न चाहते हुए भी फिर नज़र उन दोनों परजाकर टिक गई । उन दोनों के चेहरे पर घबराहट साफ़ दिख रही थी कि कहीं हरी बत्ती न हो जाय । मैंभी उनकी यह हालत देख कर विचलित हो रही थी । रोज़ तो लाल बत्ती बड़ी लंबी लगती और बेसब्री सेइंतज़ार रहता कि कब हरी हो पर आज मना रही थी कि लाल बत्ती थोड़ी देर और बनी रहे । अभी तो वेलोग आधा ही रास्ता पार कर पाए थे । अगर हरी बत्ती हो गई तो क्या होगा , यह सोच कर मैं सिहिर उठी।

सचमुच तभी बत्ती हरी हो गई । गाड़ियों के स्टार्ट होने का शोर और हॉर्न की चिल्लपौं , बड़ी चिढ़ मचती है । मैंने जल्दी से शीशा चढ़ाया । गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ी ही थी कि बड़े ज़ोर कीक्रीच की आवाज़ सुनाई दी । किसी ग़ाडी ने बड़े ज़ोर का ब्रेक लगाया था । कुछ गाड़ियाँ निकल गईं ,कुछ धीमी पड गईं । ड्राईवर बोला ,"लगता है कोई एक्सीडेंट हो गया है ।" मेरा मन थोड़ा सा आशंकितहो उठा । ड्राईवर को गाड़ी रोकने को कहा और जाकर पता लगाने को कहा कि क्या हुआ । कुछ पलबाद ही उसने आकर बताया कि एक कार किसी बुढ़िया से टकरा गई है । उसे थोड़ी चोट लगी है । साथमें उसका पति भी है । हांलाकि उसके चोट नहीं लगी है पर वह बहुत घबरा गया है । जिस कार से टक्करलगी है उसका मालिक उन्हें हॉस्पिटल लेकर जा रहा है ।

मैं थोड़ी निश्चिंत हुई । ड्राईवर से गाड़ी आगे बढ़ाने को कहा । रास्ते भर उस वृद्ध दंपति के चेहरे याद आते रहे । ऑफ़िस पहंच गई पर ध्यान उधर हीलगा रहा । कुछ लोगों को बताया भी , जो हुआ था । सभी को उनसे सहानुभूति हो रही थी ।

घर लौटी तो रात हो गई थी । तन और मन दोनों से ही थक गई थी इसलिए जल्दी ही बिस्तर पर लेट गई । नींद तो आई नहीं उल्टी बेचैनी बढ़ गई । सोचने लगी उसी वृद्धा और वृद्ध के बारे में। बार बार तसल्ली दे रही थी कि अस्पताल में उनकी चिकित्सा तो हो ही गई होगी फिर चिंता की क्याबात है । चिंता इस बात की नहीं थी , चिंता थी कि अस्पताल से निकल कर कहाँ जाएँगे । कल क्या होगा। शायद कल कोई न कोई रिश्तेदार उनको लेने आ ही जायेगा और अब तक तो कोई न कोई आ ही गयाहोगा । पर न आया हो तो ? बस आशंका,चिंता और उदासी , सबको आँसुओं के बहाने बहने का मौक़ामिल गया ।

अगले दिन अख़बार में इस दुर्घटना का कोई ज़िक्र नहीं था । शायद छोटी सी तो दुर्घटनाथी इसलिए ,पर यह पूरा घटनाक्रम किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की आँखों की नींद उड़ाने के लिए केलिए काफ़ी था । मन को बहुत समझाया कि सब ठीक हो गया होगा पर क्या करूँ , दिल है कि मानताही नहीं ।

उस दिन सब्ज़ी और फल ख़रीद रही थी । पीछे से आवाज़ सुनाई दी ," अरे तरबूज़ मतलो । इतना बड़ा और भारी कौन उठायेगा ?" मुड़ कर देखा तो वही वृद्ध दंपति खड़े थे । मुझसे रहा नगया पास जाकर बोली ," नमस्कार ।"

वृद्धा बोली ," कौन हो तुम , हम तो जानते नही ।" मैंने वह दुर्घटना वाली बात बताई औरयह भी बताया कि मैं उनके लिए कितनी परेशान रही । शायद उन्हें मुझमें सच्चाई नज़र आई , बोलीं , "अरे मैं बिल्कुल ठीक हूँ । कुछ ज़्यादा थोड़े ही लगी थी ।"

तभी उनके पति बोले ," मैं तो घबरा गया था भई । इसको कुछ हो जाता तो मैं अकेलेज़िंदगी कैसे काट पाता । अभी भी मैं मना कर रहा था पर मानी नहीं कि फल खाने का मन कर रहा हैख़ासकर तरबूज़ । मुझे लगा कि मैं जाने से मना कर दूँगा तो फिर शायद यह भी नहीं जायेगी पर उल्टेबोली ,"तुम्हें तो साथ चलना ही पड़ेगा क्योंकि तुम जब मेरा हाथ पकड़ कर चलते हो तो बड़ा सहारामिलता है । " अब इतने बजे तरबूज़ का बोझ कौन उठायेगा ? पास रहते हैं तो कोई ऑटो भी जाने कोतैयार नहीं होता ।"

उनकी बातें सुनकर मेरा मन भर आया । मैंने कहा," आप ले लीजिए तरबूज़ औरसब्ज़ियाँ भी । मैं यहीं पास में रहती हूँ । आप लोगों को छोड़ते हुए चली जाऊँगी । "

दोनों ने बहुत मना किया पर मैं नहीं मानी । और भी कुछ फल अपनी तरफ़ से मिलादिए और थैले गाड़ी में ड्राईवर से कह कर रखवा दिए । थोड़ी दूर बाद ही उनका घर आ गया । देखा घरतो बहुत बड़ा था । मैंने आश्चर्य से पूछा ," इतने बडे घर में आप अकेले रहते हैं ?"

बोले ," नहीं नहीं , बीच में एक आँगन है उसमें बच्चों ने दीवार खड़ी कर दी है जिससेदो कमरे अलग हो गए हैं । हम उनमें ही रहते हैं । "

“अच्छा अच्छा तो बाकी हिस्से में बच्चे रहते होंगे ।" मैंने उत्सुकता से पूछा ।

" अरे , नहीं नहीं , दो बेटे और एक बेटी हैं , वे सब इंडिया से बाहर रहते हैं । इसलिए बाक़ी का हिस्सा बेच दिया है । "

मैंने पूछा " पर जब वे लोग आते हैं तो कहाँ ठहरते हैं?"

तो वे बोले ," आते हैं तो कौन सा ज़्यादा दिन कोआते हैं । मुश्किल से आठ दस दिन के लिए आते हैं , बाक़ी समय बच्चों और परिवार को बाहर घुमातेरहते हैं । वैसे भी घर में ठहरने में उन्हें असुविधा ही होती है । होटल में ठहरते हैं । पैसे की कमी तो हैनहीं । "

मैंने पूछा," आप लोग उनके साथ क्यों नहीं चले गए ?"

तभी आंटी तमक कर बोली ," अरे भई , हमारा वहाँ गुज़ारा नहीं । एक बार गए थे । कुछदिन ठीक था पर बाद में तो उकता गए । पूरे दिन अकेले पड़े रहो । सब कामकाजी हैं , सुबह से जो घरसे निकलते हैं तो शाम को ही दर्शन होते हैं । बच्चे स्कूल में बिजी । भैया अपना तो इंडिया ही भला । "

बात तो सही है पर बच्चे भी लाचार हैं । बेचारे ख़ुद भी तो लगे रहते हैं । यहाँ तो फिर भी नौकर चाकर मिल जाते हैं वहाँ तो सारी भागदौड़ ख़ुद को ही करनी पड़ती है । भले ही ऑटोमेंटिकमशीनें हैं फिर भी जुटना पड़ता है । बर्तन डालो फिर निकालो ,जमाओ , कपड़े मशीन में डालो , ड्रायर में डालो और फिर तै करो । पूरा धोबी घाट लग जाता है ।

फिर वह आंटी बोलीं , " थोड़ा बहुत एडजस्ट होने लगे तो संकेत मिलने लगे कि अब दूसरे बेटे के घर रहने को चले जाओ । आजकल दो शब्द बहुत प्रचलन में हैं न "स्पेस" और " ब्रेक" । उनकाअर्थ हमें समझाया गया कि अब दूसरे बेटे के घर बोरियाँ बिस्तरा बाँध कर चले जाओ । फिर जब उन्हें स्पेस और ब्रेक की ज़रूरत पड़े तो फिर वहाँ से बिस्तरा बाँध कर निकल पड़ो । वाह भई वाह ! अब इस उम्र में हमारा एक जगह टिकने का समय है या इधर उधर ख़ानाबदोश बन कर घूमने का ।" कहती कहती वह अंदर चली गईं ।

तभी उनके पति देव महोदय हंस कर बोले ," बेटी , बाग़बान पिक्चर देखी है ?"

मैं बोली , " हां , अंकल ,देखी तो है और बहुत अच्छी भी लगी, पर क्यों पूछ रहे हैं आप ? क्या वैसा ही कुछ हुआ आपके साथ ?"

अंदर से आंटी चाय लेकर आ गईं । अंकल हँसते हँसते बोले ," अरे नहीं नहीं ,वैसा कुछ नहीं हुआ । " फिर आंटी की तरफ़ मुँह करके बोले ," अरी भागवान , शुक्र मनाओ कि बच्चे हमारा समय ही बाँटना चाह रहे थे , कम से कम बाग़बान फ़िल्म की तरह हमारा बँटवारा तो नहीं कर रहे थे । "

" अजी हां जी , इतनी हिम्मत नहीं है किसी में । अब तो जो भी ज़िंदगी बची है वह अपने दे , अपने इस घर में ही बीतेगी ।"आंटी बड़ी दृढ़ता से बोलीं ।

बातों बातों में , फिर चाय पीने में इतना समय निकल गया । मैंने चलने की इजाज़तमाँगी । "आप अपना फ़ोन नं. दे दीजिए , मैं तो हाल चाल पूछती रहूँगी पर आप भी कोई काम हो तो बिनासंकोच मुझे फ़ोन कर दीजिएगा । " मैं बोल कर दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गई ।

तभी आंटी बोली ," थैंक्यू बेटा । तुम चिंता मत करो , बस इतना ज़रूर करो कि हमारेलिए भगवान से यह मनाओ कि हम स्वस्थ रहें और एक दूसरे का सहारा बनें रहें । मेरी तो एक हीख़्वाहिश है कि भगवान हमें एक साथ ही उठा ले पर जानती हूँ यह संभव नहीं है . एक न एक तो पहलेजायेगा । पता नहीं तब क्या होगा । "

अंकल बोले ,"अरे जो होगा सो होगा । अब इसे तो जाने दो । बेटा ,हमारे लिए परेशान होने की ज़रूरतनहीं है । हम मज़े में हैं। अपने मन के मालिक हैं और मस्त हैं । तुम से मिल कर अच्छा लगा और विश्वासभी जगा कि इंसानियत अभी भी ज़िंदा है । तुम आराम से घर जाओ बेटा ।"

मैं दोनों को प्रणाम कर घर आ गई । घर आकर भी उन वृद्ध अंकल और आंटी की बातेंदिमाग़ में घूमती रहीं । उन्होंने तो बड़ी सहजता से कह दिया कि उनकी फ़िक्र न करूँ । मैं मन कोसमझाती भी हूँ कि संवेदनशील होना अच्छा है लेकिन इतना भी नहीं । पर इस मन का क्या करूँ , मानता ही नहीं है ।