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मासूम गंगा के सवाल - 4

मासूम गंगा के सवाल

(लघुकविता-संग्रह)

शील कौशिक

(4)

उदारमना

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करोड़ों लोगों के

सपनों को सुनती हो तुम

हाथ जोडकर

कोई कुछ भी मांगता है

कर लेती हो स्वीकार

सहजता से उनकी प्रार्थना

थमा कर उन्हें आस का दामन

अपनी ऊर्जा से

आपूरित करने वाली

कितनी उदारमना हो तुम गंगाI

ऐसे मिला उत्तर

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जीवनदायिनी गंगा के तट पर

कुछ लोग अधनंगे

भिखमंगे क्यों हैं?

प्रश्न उठा मेरे मन में

एक तेज लहर

टकराई मेरे पैरों से

बचाव के लिए

पकड़ ली मैंने सांकल

करना होता है कर्म सभी को

मिल गया था मुझे उत्तरI

दरियादिली गंगा की

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अपनी जल लहरों के साथ

कण-कण को सींच कर गुलजार करती

सबका मंगल करती

जन-जन की आस का

संबल बनती

इस पुण्यसलिला गंगा की

उदारवादी छवि पर भला

किसका मन न रीझे

दरियादिल मन का होना

शायद इसे ही कहते हैंI

गंगा का दुःख

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गंगा जो देती है हमें

वह अकल्पनीय है

कुछ भी असम्भव नहीं

गंगा मैया के लिए

पर हम गंगा को

किस कदर करते हैं प्रदूषित

मानव की अकल्पनीय

धूर्तता, कृतघ्नता बताते हुए

छलछला आईं

गंगा की आँखेंI

गंगा अवतरण

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याद करो जरा

कैसा अनुपम

दृश्य होगा वह

जब तुम्हारे तीव्र वेग को

रोका होगा महाशिव ने

अपनी जटाओं में

और उतारा होगा

तुम्हें धरा पर

समस्त मानव जाति के

कल्याण हेतुI

इच्छाओं के दीप

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संध्या आरती के समय

हरे पत्तों के दोनों में

फूल दूब सँग जलता दीपक रख कर

एक के बाद एक

कतार में छोड़ते हैं लोग

श्रद्धा और विश्वास से

तब लगता है ऐसे

जैसे लहरों सँग बह चली हैं

उन सबकी इच्छाएं/आकांक्षायें

पूर्णता पाने की ओरI

नदी की नियति

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मन को भिगोती

आषाढ़ की फुहारें

सावन की झड़ी

कागज की किश्तियाँ

भादों में चमकती बिजली

उमड़ती घटाएं

कहाँ गईं अब

किसने बदली है

अपनी प्रवृति

और नदी की नियतिI

नदी के गीत

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‘अल्लामा इक़बाल’ ने लिखा था कभी

हमेशा पानी से भरी नदियों को देख कर

यह गीत

‘गोदी में खेलती हैं

जिसकी हजारों नदियाँ’

परन्तु सूखी हैं आज नदियाँ

बीमार हैं, बहुत बीमार

आओ नदी की सेहत दुरस्त करें

कुछ सोचें इनके लिए

इस गीत को रखें जीवितI

दोष किसका

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नदियाँ कदापि

दोषी नहीं हो सकती

केदार घटी की तबाही की

चिन्नई में हुए विनाश की

सच तो यह है

कि फेसबुक चैक-इन की चाहतों की चलते

हमने बोए हैं विनाश के मन्त्र

नदी के मार्ग में खोमचे उगा कर

किनारे पर मकान-दुकान बना कर

उसके सफर की फितरत बदल करI

बचा भी क्या है

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जिस नदी का जल

था जीवन का पर्यायवाची

देख कर उसका काल रूप

क्यों भयभीत हैं हम

वनों के विनाश की नींव पर

अंधाधुंध कंक्रीटीकरण

हमने ही तो किया

अब मूक-अवाक

देखने के सिवा

बचा भी क्या हैI

मजबूर नदी

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हम नहीं संजों पाते

इन्द्रदेव के वेग से बरसते जल को

नहीं बचा पाते

शिव जटा-सी गुंथी जड़ों वाले पेड़ों को

जो रोक कर जल के वेग को

करते हैं प्रदान विनम्र गति

इनके न रहने पर

नदी का प्रचंड वेग

लेकर आता है तबाही

हमीं ने मजबूर कर दी

नदियाँ उफनने कोI

सुना नहीं

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बूढी अम्मा पुकारती थी

बार-बार बेटे को कहती थी

नहला कर ले आ

एक बार गंगाजी में

पुण्य लगेगा तुझे

तेरी काया में होगा सुख

सुना नहीं उसने

माँ तो चली गई

अतृप्त इच्छा लेकर

फिर रहा है मारा-मारा अबI

मिलता नहीं जो

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जो मिलता नहीं

गंगा मैया से जाकर

नहीं कहता प्रशंसा के दो शब्द

नहीं करता तट पर कदमताल

नहीं पढ़ता उसकी लहरों को

नहीं रखता आस्था

नहीं पाता अलौकिक अनुभूति

उसके पास रखने को

शेष बचेगा भी क्या

खाली हाथ रह जाएगा वहI

यात्रा गंगा की

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विभिन्न प्रदेशों के

अन्त:स्थल को सींचती

भूख-प्यास मिटाती

पाप-ताप से मुक्ति दिलाती

अलग-अलग नामों का चोला पहनती

प्रात: स्मरणीय गंगा

गंगासागर पहुंच कर

पाती है अवसान

और बन जाती है

अंतिम तीर्थस्थलI

समर्था

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हा-हाकार करती

बीमार बूढी माँ को

निर्भाग बेटा

कर गया माँ गंगा के हवाले

बेटे से बिछुड़ने का दर्द समेटे

इधर-उधर ढूंढती

बदहवास माँ को

दे दी शरण

गले लगाकर गंगा ने

अपने तट परI

एक दुआ मेरे लिए

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तुम लिखो

मेरे हृदय की अंतरतम प्यास

लिखो मेरे मन की आस

जीवन भर ओढ़ी चुप्पी

आँखों में बसा सपना

साँझ के धुंधलके में छाई उदासी

सब लिख चुको तो

एक उम्मीद का दीया

एक दुआ

मेरी सलामती के लिए भी लिखनाI

अनछुई-सी दास्ताँ

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आतुर हैं शब्द

कुछ उकेरने के लिए

खाली पृष्ठों पर

सालों-साल अनछुई-सी

तुम्हारी दास्ताँ लिखने को

काश में लिख पाऊँ

उतर कर तुम्हारी आत्मा में

देखना फिर गूँजेगा तुम्हारा नाद

जान लेगी दुनिया

तुम्हारी बेचैनियाँ तुम्हारी वेदनाI

तुम्हारा आना

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कई साल के बाद मिली

तो उलहाना दिया गंगा ने

मैं रस्ता तकती रही तुम्हारा

मेरा वेग से बहना

रुक-रुक कर बहना

मौसम का बारी-बारी

आना-जाना

सब कुछ तय था

बस तुम्हारा

आना ही तय न थाI

अधूरापन जीवन का

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जाने कौन से

बस्ते में बंद है

गंगा नदी की विरल कथा

जो कभी बाँची नहीं गई

सुनी नहीं गई उसकी अनसुनी फरियाद

उसके दुखों का हिसाब

सभी के जीवन का अधूरापन देखकर

मुझे स्वीकार्य हो चली है

तुम्हारी अधूरी बाँची हुई कथा

व लिखी जाने वाली कवितायेँI

नदी-प्रेम में

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नदी के साथ प्रेम में होना

मानो अकेली-सी राह पर

उसकी परछाईं को देख भर लेना

बहते हुए जल को

हौले से छू भर लेना

और कर लेना संवाद

उसकी ठंडक से

तरंगित हो जाना

मानो जीने के

मायने पा जानाI

नदी का सफर

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करती हूँ तय अकेले ही

तमाम सफर

पेड़ की छाया मिले तब भी

न मिले तब भी

अपने ही साये में

ठहर लेती हूँ पल भर को

कर लेती हूँ याद

झरते पत्तों वाले मौसम को

साथ रखती हूँ देने की दीनता

सभी को तय करने होते हैं

अकेले ही अपने-अपने सफरI

क्रमश....