AAO CHALE PARIVERTAN KI OR - PART-14 books and stories free download online pdf in Hindi

आओ चलें परिवर्तन की ओर... - 14

अक्षित को आते देख कर सब बच्चे एक साथ “गुड आफ्टरनून” कह कर खड़े हो जाते हैं | अक्षित बच्चों को बैठने का इशारा कर उनके साथ ही बैठ जाता है |

“कहिए, बच्चों आप लोगों का क्या हालचाल है |”

सब एक साथ कहते हैं “ठीक है सर, बस आपको पास से देखना और मिलना चाहते थे |”

अक्षित हँसते हुए कहता है “क्यों भाई मैं कोई एलियन हूँ जिसे आप लोग पास से देखना और मिलना चाहते थे |”

यह बात सुन कर सब हँसने लगते हैं और फिर उनमें से एक लड़का बोलता है “सर, मेरा नाम सुमित शर्मा है | सर हमें अभी कुछ दिन पहले ही गौरव ने बताया कि आप उसके पापा हैं तो हमें सुन कर बहुत हैरानी हुई | हम यकीन ही नहीं कर पाए कि आपका बेटा इस तरह मॉडर्न और नार्मल हो कर वह सब करता है जैसे कि हम करते हैं | हम सब यही देखने आये हैं कि आप और आपका परिवार किस तरह रहते हैं|”

अक्षित हँसते हुए बोलता है “बेटा जी हम सब वैसे ही हैं जैसे आप हैं | वैसी ही ज़िन्दगी जीते हैं जैसे आप जीते हैं | हमारे घर में हंसी मज़ाक उसी तरह होता है जैसे आम घरों में होता है | हमारे पति-पत्नी के लड़ाई-झगड़े भी होते हैं और बच्चों को डांट-डपट भी उसी तरह लगाई जाती है | फर्क बहुत छोटा-सा है | वह है कि हमने अपने घर में एक मेडिटेशन रूम बनाया हुआ है और रोज रात को हम सब मेडिटेशन करते हैं | जो सदस्य जितनी देर भी मेडिटेशन करना चाहे, करता है और नहीं हो पाती है तो चुपचाप उठ कर चला जाता है | कोई भी परेशानी या किसी भी बात का हल या अध्यात्म की बात सिर्फ़ उसी कमरे में होती है उसके बाहर हम सब आप जैसे ही है |”

सुमित मुस्कुराते हुए बोला “सर एक पर्सनल क्वेश्चन | आप पति-पत्नी की जब लड़ाई होती है तो पहले कौन बात करता है |”

अक्षित हँसते हुए बोला “हर बार बात मुझे ही शुरू करनी पड़ती है और यह करना मुझे अच्छा भी लगता है | एक दूसरे से बात किये बिना हम दोनों ही नहीं रह पाते हैं | प्यार में अहम को नहीं लाना चाहिए | वह बात शुरू करें या मैं, क्या फर्क पड़ता है |”

यह सुन कर सुमित बोला “अंकल, काश की यह हर घर में हो जाए|”

अक्षित हँसते हुए कहता है “बेटा जी तभी तो मैं आपके कॉलेज में आया था और आता रहूँगा | मैं चाहता हूँ यह सब आप भविष्य में अपने घरों में करो |

एक लड़का जो अभी तक चुप बैठा था, वह बोला “अंकल, मेरा नाम मोहित है और मेरा प्रश्न है कि क्या आपको कभी कोई परेशानी या दुःख तकलीफ नहीं हुई, अगर हुई तो आपने क्या किया |”

“बेटा मैं बचपन में बहुत ही दब्बू किस्म का लड़का था | हर कोई मेरा मज़ाक बनाता था | मेरे जीवन में बहुत परेशानियां आईं | यह मेरी दूसरी शादी है | पहली बीवी का देहांत हो चुका है | कुछ वर्ष बाद मेरी मुलाकात डॉक्टर साहिबा से हुई | दो-ढाई साल उनसे प्रेमालाप चला और फिर शादी हुई | हाँ जब से मैं अध्यात्म के क्षेत्र में आया हूँ तब से परेशानियां, दुःख, तकलीफ न के बराबर ही रह गयी हैं |”

मोहित फिर से पूछता है “सर आपको डर लगता है | परेशानी और दुःख होता है |”

“हाँ, क्यों नहीं, मैं भी आपकी तरह ही इंसान हूँ, मुझे भी डर लगता है | कोई काम न कर पाऊं या न हो पाए तो परेशानी भी होती है और दुःख भी होता है | बस मेरा ढंग थोड़ा अलग है | मुझे यदि डर लगता है तो वह कुछ सेकंड या फिर एक दो मिनट तक ही रहता है | उस डर लगने के समय में ही मैं उस डर से निकलने का हल खोज लेता हूँ और फिर डर गायब हो जाता है | ऐसे ही परेशानी और दुःख में भी होता है | मैं यह कभी भी नहीं सोचता कि यह मेरे साथ क्यों हुआ बल्कि यह सोचता हूँ कि जरूर मैंने ही कोई गलती की होगी जो ऐसे हुआ | जब मैंने गलती की है तो हल भी मुझे ही खोजना है इसलिए उस समय मैं सिर्फ़ उसका हल खोजता हूँ | जैसे ही हल मिलता है मैं उस दुःख और परेशानी से बाहर आ जाता हूँ |”

“सर, एक प्रश्न मेरा भी है |”

“हाँ, बोलो |”

“सर आप प्यार और शादी के बारे में क्या कहना चाहेंगे?”

“तुम शायद किसी दूसरे धर्म की लड़की से प्यार करते हो और शादी करना चाहते हो, क्यों सही बात है ?”

सब हैरान हो उसकी तरफ देखते हैं और वह घबरा कर अपना पसीना पोंछते हुए बोलता है “सर यह बात आपको कैसे पता लगी ?”

“कुछ बातें पता लग जाती हैं | यही तो अध्यात्म का फायदा है | इसके आगे की बात भी बताऊं कि तुम लोगों ने क्या क्या...?”

वह बीच में ही बोल पड़ता है “सर, मैं समझ गया, आप सब जान सकते हैं|”

“बेटा, प्यार बहुत गहरा शब्द है | लेकिन आज हमारे बीच फैली रिश्तों की दरार ने आप लोगों को प्रेरित किया और आपकी मॉडर्न जनरेशन ने इन्टरनेट के जरिये इसे बहुत ही सस्ता बना दिया | कोई बात नहीं, धरती गोल है आप सब वापिस अवश्य आएंगे | ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आप आज अपने भाई पर कम और दोस्त पर ज्यादा विश्वास करने लगे हैं | आज आप दूसरे के पिता की बात मान जाते हैं लेकिन अपने पिता की बात को सिरे से नकार देते हैं | वह इसलिए कि आज रिश्तों में वह प्यार और अपनापन नहीं रह गया है |

आज रिश्ते सिर्फ़ बोझ बनकर रह गये हैं | तभी तो आज शादी कम और live-in relationship ज्यादा पोपुलर हो रहा है | आपने कभी सोचा है ऐसा क्यों हो रहा है ? ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हम सब इन समाजिक रिश्तों के आदि हो चुके हैं | अब हम इन रिश्तों से सिर्फ़ अपेक्षा करते हैं लेकिन देना कुछ नहीं चाहते हैं | इस कारण इन रिश्तों में negativity और रौब ने प्यार व विश्वास की जगह ले ली है | दो दोस्त या फिर live-in रिश्तों में दोनों ही पक्ष बराबर का सहयोग करते हैं | दोनों ही पक्ष positivity दिखाने की कोशिश करते हैं क्योंकि दोनों को ही पता है कि यदि वह ऐसा नहीं करेंगे तो यह रिश्ता टूट जाएगा | बाप-बेटे, भाई-भाई और पति-पत्नी के रिश्ते में दोनों को पता है दूसरा कर क्या लेगा, रहना तो साथ ही पड़ेगा | मेरा आप लोगों से बस यह ही कहना है कि आपसी रिश्तों में एक बार फिर से प्यार और मीठास लाइए | वह सिर्फ़ एक बात को निकालने मात्र से ही हो जाएगा और वह है अपेक्षा यानी expectation|”

“सर, आप दोस्ती और प्यार में शारीरिक सम्बन्ध को क्या महत्व देते हैं |”

अक्षित हँसते हुए कहता है “बेटा, आप लोग बहुत अच्छी तैयारी कर के आये हो | बहुत अच्छा लग रहा है कि आज की नौजवान पीढ़ी ऐसे सवाल पूछ रही है |” कुछ देर रुक कर अक्षित फिर से बोलता है “बेटा, जो दोस्ती बिना किसी अपेक्षा के आगे बढ़ती है, वही असली दोस्ती है | दोस्ती में गहराई और दोस्त की पहचान सिर्फ़ तभी होती है जब आपका दोस्त आपकी गलत बातों और व्यवहार को सहे नहीं बल्कि उसकी आलोचना करे | आपको रास्ता दिखाए कि आप कैसे उसे ठीक कर सकते हैं, साथ ही साथ उस रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित भी करे | यह बात दिल में बैठा लो कि एक अच्छा दोस्त ही आपकी आलोचना कर सकता है वरना आपको झाड़ पर चढ़ाने वाले तो हजारों मिल जाएंगे | आपको अपनी आलोचना सहने की आदत होनी चाहिए और विश्वास होना चाहिए कि आपका अच्छा दोस्त ही सिर्फ़ आपकी अच्छाई चाहेगा | यह विश्वास ही इस दोस्ती को प्यार में तब्दील कर देगा |

प्यार आत्माओं का मिलन है उसमें शरीर आ भी सकता है और नहीं भी | शारीरिक सुख आनन्द को जन्म देता है और आनन्द क्षणिक ही होता है | यदि आपको परमानन्द को पाना है तो पहले प्यार को उस ऊँचाई तक ले जाओ जहाँ आप अपने शारीरिक सुख से ज्यादा दूसरे के शारीरिक सुख और इच्छा की इज्जत और सम्मान करें|”

“सर, सच कितना और झूठ कितना बोलना चाहिए |”

“बेटा, जब यह लिखा गया था कि हमें सच बोलना चाहिए, वह ज़माना ही अलग था | उस जमाने की तो छोड़ो, अभी कुछ दशक पहले हमारे एक बहुत ही प्रिय ने यह बोला था कि कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो | उस और आज के जमाने में ही बहुत अंतर आ गया है | उस जमाने में दूसरे गाल पर थप्पड़ मारते हुए उस व्यक्ति को शर्म आ जाती थी | आज के जमाने में यदि आप ऐसा करेंगे तो वह दस से पहले तो रुकेगा ही नहीं, हाँ उसके बाद भी उसे शर्म आ जाए तो बहुत गनीमत है | फिर आपको क्या करना चाहिए उसके लिए मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ, मुझे याद नहीं वह मैंने कहाँ पढ़ी थी लेकिन आज के हिसाब से वह पूरी तरह से सही बैठती है |

एक गाँव के रास्ते पर सांप की एक बिल थी | उस बिल में एक काला और डरावना नाग रहता था | कोई भी यदि उस रास्ते से गलती से भी निकल जाता था तो वह सांप उसे डस लेता था | गाँव के लोगों ने उस रास्ते से निकलना ही छोड़ दिया था | एक दिन उस गाँव से एक साधू गुज़रा तो गाँव वालों ने उसे उस रास्ते से जाने को मना करते हुए पूरी बात बताई | वह साधू उस सांप की बिल के पास गया और जैसे ही सांप गुस्से से बाहर निकला तो साधू को देखते ही शांत हो फन फैला कर बैठ गया | यह देखकर साधू ने उसकी इस हरकत के लिए उसे धिक्कारा और आदेश दिया कि वह दोबारा ऐसा न करे, कह कर वह साधू उस गाँव से चला गया |

कुछ महीनों के बाद जब वह उस गाँव से दोबारा गुजरा तो वहाँ का नज़ारा देख वह हैरान भी हुआ और परेशान भी | उसने देखा कि कुछ बच्चे अपने हाथ में पकड़े डंडे से उस सांप को इधर से उधर उछाल रहे थे | उनकी इस हरकत के कारण कई जगह से सांप के शरीर में जख्म हो गये थे | साधू से यह देखा नहीं गया और उसने उन बच्चों को वहाँ से डांट कर भगा दिया | साधू ने सांप को उठाया और उसे सहलाते हुए कहा मैंने तुम्हें डसने को मना किया था लेकिन यह थोड़े ही कहा था कि तुम अपना वजूद ही खो दो | तुम डसो नहीं लेकिन यदि कोई तुम्हें नुक्सान पहुँचाने की कोशिश करता है तो फुंकार तो सकते हो | यह लोग उसी से डर कर भाग जाएंगे और तुम्हें भी कोई शारीरिक नुक्सान नहीं होगा |

कुल मिला कर मैं यह कहना चाहता हूँ कि आज के जमाने के हिसाब से आप दूसरा गाल आगे करते हुए फुन्कारे जरूर तभी सामने वाले को कुछ शर्म या एहसास होगा वरना नहीं | बाकी रही झूठ बोलने की बात तो इस विषय में मैं सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूँगा कि जहाँ बहुत ज़रूरी हो वहीँ बोलें और उससे किसी का कोई नुक्सान भी नहीं होना चाहिए | जब भी आप झूठ बोलें तो उसका पछतावा या दुःख जरूर होना चाहिए | यदि आपको आत्मग्लानि होगी तो अगली बार या तो आप झूठ बोलेंगे नहीं या फिर ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे झूठ बोलने की नौबत आए |”

“अंकल, एक आखिरी सवाल, मैं....मैं अलग तरह का प्रश्न पूछना चाहता हूँ|”

“हाँ, हाँ, पूछो लेकिन पहले अपना नाम तो बताओ |”

“सर मेरा नाम पंकज है और मेरा यह प्रश्न मेरी माँ और घर से सम्बन्धित है | प्रश्न पूछने से पहले मैं आपको अपने घर के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ |”

“हाँ, हाँ, बिना किसी संकोच के बोलो |”

“सर, हम दो बहन भाई हैं और मेरे माता-पिता दोनों सरकारी कर्मचारी हैं | दोनों ही बहुत अच्छी पोस्ट पर भी हैं | हमारे घर में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हैं | मेरे माता पिता आपस में और हमसे भी बहुत प्यार करते थे लेकिन पिछले कुछ साल से मेरी माता श्री को लोगों का भला करने का भूत सवार हो गया है | उनके इस भूत से हमारे घर का अमन चैन पूरी तरह से धवस्त हो गया है | सर, मेरे पिता जी का कहना है कि तुम भला करो, मेरे को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है लकिन कोई जरूरतमंद है सिर्फ़ उसका ही भला करो | यह नहीं की, जो भी तुम्हारे दरवाज़े आ गया उसी के साथ चल दीं | आदमी की पहचान होना बहुत जरूरी है |

हम सब माँ को समझा-समझा कर दुःखी हो चुके हैं लेकिन वह मानती ही नहीं हैं | कुछ ऐसे लोग जो हमारी रिश्तेदारी और पास-पड़ोस में हैं जो बहुत मतलबी और सिर्फ़ बुरा सोचने और करने वाले हैं | यह जानते हुए कोई भी उनकी मदद को आगे नहीं आता है | यदि वह लोग माँ के पास आकर मदद मांगे तो माँ को चाहे किसी तीसरे का एहसान ही क्यों न लेना पड़े या फिर हम खुद कितने परेशान क्यों न हो, माँ उनकी मदद को निकल पड़ती हैं | सिर्फ़ इस कारण ही हमारे माता-पिता की आपसी झड़पें काफी बढ़ गई हैं | माँ हर बार लड़ाई-झगड़े के बाद यह वादा करती हैं कि वह अब ऐसा नहीं करेंगी लेकिन फिर करती हैं | घर का माहौल और उनका आपसी प्रेम दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है लेकिन दोनों ही कुछ भी समझने को तैयार नहीं हैं | अब मेरा प्रश्न सिर्फ़ इतना है इसमें कौन गलत और कौन ठीक है और इसका हल क्या है?”

“बेटा जी, यह आजकल बहुत घरों की परेशानी है | यह इसलिए हो रहा है क्योंकि कुछ लोग बिना सोचे समझे अधकचरा ज्ञान बांट रहे हैं | बहुत लोग ऐसा अधकचरा ज्ञान पाकर बेवकूफी भरे काम यह सोच कर कर रहे हैं कि वह तो भला कर रहे हैं तो उनका बुरा कैसे हो सकता है |

आप यदि कोई भी अच्छा कार्य उनके साथ कर रहे हैं जिनके बारे में आपको पता है कि वह अच्छे लोग नहीं हैं तो आपको अच्छा करने के बाद भी बुरा ही मिलेगा | कीचड़ में बिना किसी सोच-समझ के उतरोगे तो कपड़े सनेगें ही | मेरी राय में ऐसे बुरे व्यक्ति आपसे कभी कोई मदद मांगते हैं तो आपको उन्हें रास्ता भर ही बताना चाहिए लेकिन खुद शामिल नहीं होना चाहिए | ज़िन्दगी में कुछ फैसले ऐसे भी होते हैं जो पूरी ज़िन्दगी तबाह कर देते हैं |

आग का काम या धर्म है जलाना, ऐसे ही बुरे व्यक्ति का भी है | ऐसे में यदि आप उसका साथ देते हैं तो इसका साफ़ मतलब है आप भी बुराई का साथ दे रहे हैं | जब आप बुराई का साथ दे रहे हैं तो आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि आपको अच्छाई मिलेगी | श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश देते हुए अर्जुन से कहा था कि तुम अपने सामने खड़े अपनों को यदि मारोगे नहीं तो आप भी बुराई का साथ दे रहे हैं | आपके अपने, यदि आपके सामने लड़ाई के मैदान में आकर खड़े हुए हैं तो वह जानते हैं की या तो वह मरेंगे या फिर मारेंगे | तो तुम क्यों सोच रहे हो, तुम धर्म की लड़ाई लड़ रहे हो और वह अधर्म की | अब फैसला तुम्हें करना है और वह तो फैसला कर के ही आए हैं |

खैर, इस मामले में आपके पिता और माँ दोनों ही गलत हैं | पिता इसलिए गलत हैं क्योंकि उनको एक हद तक ही समझाना चाहिए | सम्बन्ध खराब करने से कोई भी हल नहीं निकलेगा | ऐसे में आप लोग सिर्फ़ वक्त का ही इन्तजार कर सकते हैं और आपकी माँ का गिरना निश्चित है | इसलिए हर तरह से सौहार्दपूर्ण वातावरण बना कर रखो ताकि जिस दिन आपकी माँ इस तरह की कोई मुसीबत में फंसे तो आप तत्परता से उसे निकाल पाएं | ऐसा करने से ही आपकी माँ को अपनी गलती का एहसास होगा, लड़ाई-झगड़े से कोई हल नहीं निकलेगा |”

“सर, इसका मतलब हमें किसी का भला करने से पहले उसके बारे में जानना जरूरी है और अगर ऐसा है तो फिर तो हम भला कर ही नहीं पाएंगे |”

“नहीं बेटा, आप मेरी बातों का गलत मतलब न निकालें | मेरा मतलब सिर्फ़ इतना है कि यदि आप से कोई मदद मांगता है | तो आप से जो भी मदद हो सकती है हर हालात और हर समय करनी चाहिए | चाहे आप उसे जानते या फिर नहीं जानते लेकिन यदि आप जानते हैं वह अच्छा नहीं है तो जैसा मैंने पहले कहा वैसा ही करना चाहिए |

इस मामले में एक और बात कहना चाहता हूँ | आप यदि भला ही करना चाहते हैं तो कुछ ऐसा करिए जिससे आप भला भी कर पाएं और आपके साथ बुरा भी न हो | ऐसा करने के दो ही रास्ते हैं | एक है कि आप अध्यात्म के क्षेत्र में आएं और दूसरा आप अपना स्टेटस इतना ऊंचा कर लें जहाँ से आप इतने सक्षम हो जाएँ कि आप बुरे को नहीं, बुराई को ही खत्म कर पाएं जैसे किसी संस्था से जुड़ें या फिर कोई अपनी संस्था शुरू करें |

चलिए, अब बातें बहुत हो गईं, आइये अब मेडिटेशन रूम में चलते हैं और आज मैं आपको मेडिटेशन के तरीके बताता हूँ और आप आज मेरे साथ मेडिटेशन करिए |”

सब उठ कर अक्षित के साथ चल पड़ते हैं | अक्षित मेडिटेशन रूम का दरवाज़ा बन्द करते हुए कहता है “अरे आप लोग अंदर कहाँ आ रहे हैं | आप भी अब किताब बन्द कर कुछ देर मेडिटेशन करिए | कैसे करेंगे? अरे भाई मैंने मेडिटेशन को करने के तरीके लिखे तो हैं, इन्तजार करिए, फिर मिलते हैं ब्रेक के बाद !”

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