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कोरोना समय में बाजारवाद

कोरोना समय में बाजारवाद

राजन की किराना की दुकान में लॉक डाउन का ऐलान होते ही सन्नाटा पसर गया। मण में सोंचा, एक दम नकारा हो गया?

दूसरे ही दिन 6 साल की बेटी बुलबुल ने सूचना दी कि-

' पापा, मेरे स्कूल में बोला गया है कि अब ऑनलाइन क्लास चलेगी।'

' ठीक है बेटा, पढ़ो

' लेकिन उसके लिए एंड्रॉयड मोबाइल चाहिए पापा'

' क्यूं, वो किस लिए?'

' उफ़, पापा आपका मोबाइल तो साधारण ही है, उसमे नेट कहां चलता है?'

' ओह, फिर रहने दो। चुपचाप खुद से ही पढ़ो, ये सब स्कूल वालों के चोंचले है।' बुलबुल सहमी सी चुप रह गई।

लेकिन इससे सुकून नहीं मिला। दूसरे ही दिन से स्कूल से फोन आने शुरू हो गए।

' राजन साहब, बच्ची का कोर्स पिछड़ रहा है। प्लीज़ ऑनलाइन पढ़ाई जारी रखने के लिए कोशिश करें।'

' देखिए मैडम, मेरे पास एंड्रॉयड मोबाइल नहीं है न मै खरीद सकता हूं। आप माफ करें।'

' देखिए, समय के इस संकट को समझिए और बच्चे की पढ़ाई का इंतजाम कीजिए वरना उसका प्रोमोशन रुक जाएगा। उसे आगे की क्लास नहीं मिलेगी। उसके भविष्य से मत खेलिए'

' लेकिन.. ' वह कुछ कहना चाहता था कि फोन उधर से काट दिया गया। वह चुका सा खड़ा रह गया। पास खड़ी पत्नी ने पूछा...' क्या हुआ!

' कुछ नहीं, इन स्कूल वालों के अलग ही रंग ढंग है, बोलते हैं एंड्रायड मोबाइल ले के दो बच्चे को, नहीं तो रिजल्ट खराब आयेगा। कहां से आए एंड्रॉयड मोबाइल' ? पत्नी भड़क गई

' सही तो कह रहे हैं, अब लॉकडॉउन जाने कब खत्म हो। बच्ची घर पे कैसे पढ़े। उसकी किताबें हमारी तुम्हारी समझ में तो आती नहीं है। हम तोह पढ़ा नहीं सकते! फिर तो घर बैठे-बैठे सब भूल जाएगी।'

' तुम भी क्या बात करती हो। तो क्या चोरी करने जाऊं?' बीबी झल्ल से उठी और कमरे में गई। वापस आ कर राजन की हथेली पर कुछ पैसे रख दिए..

' लो, पूरे साढ़े तीन हजार हैं। घर की छत बनवाने के लिए इकट्ठे किए थे, लेकिन बच्चे की पढ़ाई से जादा जरूरी नहीं है वो'

वह उन पैसों को देखता रहा फिर रख लिया। बाज़ार तो अब सुबह ही खुलेगी ' कहते हुए।

दूसरे दिन वो एक दोस्त सुरेश के साथ मोबाइल की दुकान पे पहुंचा। वहां काफी भीड़ थी। लोग मस्क लगाए मार्केट में घूम रहे थे। मोबाइल वाले ने किस्म-किस्म के मोबाइल दिखाने शुरू किए।

' देखिए भाई साहब, इनकी कीमत दस हजार से शुरू होती है, आगे इससे ज्यादा ज्यादा दाम के भी मिलेंगे। उसके पांव के नीचे से ज़मीन निकल गई। थोड़ा झेंप भी गया और तुरंत बाहर की ओर मुड़ लिया। पीछे पीछे सुरेश आया..

' क्या हुआ? क्या बात हो गई?'

' अरे भाई इतना बजट नहीं है अपना '

' ओह तो ऐसे कहो, कितने तक का चाहिए?'

' यार सिर्फ 3500 हैं मेरे पास।अब बताओ' कहते कहते वह बुझ गया

सुरेश ने सम्हाला

' ऐसा करो, सेकंड हैंड ले लो वो इतने का ही मिल जाएगा '

उसकी आंखों की चमक लौट आई..

' अच्छा? '

' हां, ऐसे करो मेरा बेटा अपना मोबाइल बेचना चाहता है। 12000 का लिया था। तुम्हे 5 में ही दिलवा दूंगा। तुम दोनों का काम हो जाएगा' उसकी आंखें फिर चमक उठीं। लेकिन धीरे से बोला-

' लेकिन मेरे पास तो 5000 भी नहीं है।'

' कोई बात नहीं, पहले चल कर मोबाइल देख लो फिर समझ आए तो के लेना बाकी पैसे बाद में देते रहना। बिटिया की पढ़ाई तो न रुकेगी,'

वह सुरेश कर साथ उसके घर पहुंचा। मोबाइल देखा परखा, पसंद आ गया। सुरेश का बेटा बोला..

' चाचा, इसमें जिओ का सिम भी लगा हुआ है। डाटा भी पड़ा हुआ है। उसके पैसे हम नहीं ले रहे। क्यूंकि हम वैसे भी बिना मोबाइल का सिम करेंगे क्या?'

' बहुत बहुत धन्यवाद बेटा '

और वो पैसे दे कर मोबाइल ले k चला आया। बेटी देख के चहक उठी। पापा के हाथ से ले के मां की तरफ भाग गई, किचन में काम करती मां खुशी से झूम गई। अब उसे सब अच्छा लगने लगा था। बुलबुल ने अगले ही दिन से क्लास करना शुरू कर दिया। जब वो क्लास करती तो दोनों पति पत्नी बड़े दंभ और मोह से बेटी को देखते रहते। चेहरे पे एक अलग ही चमक बिछी रहती। लेकिन ये चमक बहुत दिनों तक बरकरार नहीं रह पाई। मोबाइल का डाटा खत्म हो गया। दुकानें सुबह 8 से 12 तक खुलती है जिससे थोड़ी बहुत आमदनी हो जाती है। घर का खर्च निकल आता है। बहुत मुश्किल से गुंजाइश निकली गई। वो रिचार्ज करवाने पहुंचा.. शॉप वाले ने पूछा

' किते का कर दूं? 300 का, 250 वाला या 199 वाला?' वह फिर सोंच्च में पड़ गया। पूछा..

' इससे कम में नहीं आता है?'

' नहीं भाई, ये सबसे कम वाला है ' उसने बड़े सहमते हुए 100 रुपए निकाले..

' भाई, 199 वाला कर दो, 100 रुपए रख लो, बाकी कल आ के दूंगा, तुम तो जानते ही हो देश की हालत। मुश्किल से खाना ही मिल जाता है। मगर बच्चे कि पढ़ाई भी ज़रूरी है, आज कल मोबाइल प्र ही पढ़ाई हो रही है..सुना होगा?'

' हां, सुना है मेरा बेटा भी ऑनलाइन ही पढ़ता है। पढ़ता क्या है, पढ़ता कम गढ़ता ज्यादा है, पढ़ाई का बहाना करके गेम खेलता रहता है बस भाई साब, बाजारवाद हावी होता जा रहा है हर तरफ'

दोनों की मिली जुली हंसी। फिर वो चला आया। बुलबुल फिर से ऑनलाइन पढ़ने लगी थी। लेकिन अब वो क्लास के अलावा भी मोबाइल लिए बैठी रहती। गेम में लगी रहती। और जब मां पुकारती..

' बुलबुल, जा के फ्रिज से सब्जी निकाल लाओ ' जवाब आता मै होमवर्क कर रही हूं मां '

अब बस मोबाइल था कि वो थी। महीना बीता। बुलबुल की आंखो से अब पानी बहने लगा था, मगर वो बचपना, वो आंखे मल के पानी सुखाती और फिर शुरू हो जाती। राजन कई दिनों से इस बात पे गौर कर रहा था मगर बच्ची मान नहीं रही थी। एक दिन सुबह उसने बुलबुल को पुकारा..

' बुलबुल, चलो मेरे साथ, ' वह चल दी। दोनों आंख के डॉक्टर के यहां पहुंचे। डॉक्टर ने आंख की जांच की और बोला हल्के पॉवर का चश्मा लगेगा। उसने मरे मन से कहा.. ' बना दीजिए '

' ओके, कौन सा बनवाएंगे?'

' मतलब '

' अरे भाई साहब, एक चश्मा नॉर्मल बनता है, उसे लगा के बच्चे कोई भी काम करें। पढ़ाई लिखाई भी कर सकते हैं। एक चश्मा अभी हाल ही में लॉन्च हुआ है लोगों की जरूरत को देखते हुए। क्यूंकि सारे ऑफिस स्कूल, कॉलेज सब बंद हैं। लौकडाउन चल रहा है, कोई पता नहीं कब खुलेगा। इसलिए रोज़ी नामक कंपनी ने एक अलग किस्म का चश्मा बनाया है जिससे सिर्फ ऑनलाइन ही काम किए जाते हैं। इससे आंखे सुरक्षित रहती हैं और कोई साइड इफेक्ट भी नहीं। हां, थोड़ा मंहगा ज़रूर पड़ेगा क्यूंकि इसके ग्लास फ्रेम की क्वालिटी ही अलग होती है आम चश्मों की बनिस्बत '

राजन का मन फिर डूबने लगा। 500 डॉक्टर की फीस पहले ही भर चुका है। अब क्या बतायेगा ये डॉक्टर। उसने डरते डरते पूछा..

' वैसे कितने का पड़ेगा?'

' ढाई हजार का भाई साहब, लेकिन बिल्कुल सेफ है '

उसने बुलबुल को इशारा किया चलने का और डॉक्टर से बोला ' कल आता हूं, जो होगा बताऊंगा '

.............

वह रास्ते भर सोचता गया..

' आमदनी तो कुछ होती नहीं। इन लोगों ने लूट मचा रखी है, बाज़ार इस कदर हावी हो रहा है। कुछ दिनों में कफ़न भी ब्रांडेड आने लगेंगे। लेकिन बच्ची की पढ़ाई और सेहत दोनों ज़रूरी है। फिर पैसे का जुगाड कैसे हो? '

.....

दूसरे दिन वो किसी दोस्त के वहां पहुंचा

' भाई, बहुत ज़रूरी काम आम पड़ा है, ढाई हजार का इंतजाम कर दो कहीं '

' तुझे नहीं पता देश की हालत क्या हुई है। लोग भूखे मर रहे हैं। हमे खाना मिल रहा है यही शुक्र मनाओ, मेरा भी काम बंद पड़ा है। जो थोड़ा कुछ बचा रखा था वहीं खा रहे हैं, माफ करना मेरे भाई '

' कोई बात नहीं धीरज, मै समझ रहा हूं,'

वो थके क़दमों से बाहर आ गया। शर्ट की जेब में थोड़े से पैसे थे निकाले, उन्हें मायूसी से देखता रहा फिर वापस रख लिया।

........

शाम काफी घिर आयी थी। अंधेरा सा हो रहा था। मां बेटी घबरा रही थीं। बुलबुल भी मोबाइल छोड़ कर बार-बार दरवाज़े की तरफ देख रही थी, पत्नी बार-बार बाहर झांक आती और मन ही मन बड़बड़ाती..

' हे भगवान, कहां चले गए ऐसे खतरनाक माहौल में। कहीं बीमारी ले के न घर लौटे! गए तो थे इसका चश्मा बनवाने?'

अभी वो वापस किचेन में लौटी ही थी कि बाहर से ही राजन की आवाज आई..

' रेखा.. ओ रेखा..कहां हो भाई। ये देखो सरकार ने सारा टेंशन ही खत्म कर दिया।,

वो लगभाग दौड़ती हुई उसके नजदीक आई..

' आ.. अच्छा.. सच्ची?'

लेकिन राजन का चेहरा देख सहम सी गई। चेहरे पे उड़ती हवाइयां, सुर्ख आंखें..काले पड़े हुए होंठ, लरजते पांव..

' हां..ये देखो..'

कहते हुए राजन ने एक शराब की बोतल आगे कर दी..

' देखो, अब कोई भी भूख से नहीं मरेगा, कोई प्यास नहीं सताएगी '

बुलबुल पिता के चेहरे को एकटक देख रही थी और पत्नी डबडबाई आंखें लिए किचेन कि तरफ लौट गई थी।

हुस्न तबस्सुम निहाँ

९४१५७७८५९५

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