Kuchh Gaon Gaon Kuchh Shahar Shahar - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 1

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर

तेजेंद्र शर्मा को समर्पित

प्रेरणा

"नीना आज कल क्या लिख रही हैं।"

"एक उपन्यास लिखने का मन है। दो तीन विषय दिमाग में घूम भी रहे हैं किंतु कुछ समझ में नहीं आ रहा कि कहाँ से शुरू करूँ।"

"हूँ... आप लेस्टर में कब से रह रही हैं?"

"करीब पिछले तीन दशक से... पहले लेस्टर के ही एक गाँव लॉफ़्बरो में रहती थी अब कुछ वर्षों से लेस्टर में रह रही हूँ।"

"तो फिर... इतने वर्षों से आप लेस्टर में हैं। अपने चारों ओर नजर डालिए विषय तो आपके सामने खड़ा है। आपने लेस्टर के कितने उतार-चढ़ाव देखे होंगे। चलाइए कलम और लिख डालिए लेस्टर शहर पर अगला उपन्यास..."

यहाँ के वरिष्ठ कहानीकार तेजेंद्र शर्मा जी का दिल की गहराइयों से धन्यवाद जो बातों ही बातों में मुझे उपन्यास के लिए एक विषय देकर मेरे दिमाग में उथल-पुथल मचा गए। मैं रात भर सोचती रही कि इस विषय पर क्या लिखा जा सकता है। कैसे शुरू करूँ... कहाँ से करूँ... इसके लिए सामग्री कहाँ से मिलेगी। तेजेंद्र जी ने मुझ पर विश्वास करके मुझे यहाँ के जन जीवन पर लिखने को बोला है तो अब मेरा भी फर्ज बनता है कि कुछ अलग सा लिख कर दिखाऊँ। यह मेरे लिए भी एक नया अनुभव था। मेरी सोच सुझे काफी वर्ष पीछे ले गई। जिस दिन से मैं ब्रिटेन आई एक एक करके वह सारी घटनाएँ आँखों के सामने से गुजरने लगीं। बस इसी उधेड़बुन में रात भर सो ना पाई।

दूसरे दिन से ही मेरा लेस्टर के विषय में रिसर्च आरंभ हो गया। मैं 1973 से लेस्टर में हूँ। यहाँ की इकोनोमी का उत्कर्षापकर्ष देखा है... माइनर्स की दो हड़ताल देखी हैं जो ब्रिटेन की इकोनोमी के अपकर्ष का कारण बनी।

यह विषय उतना सरल नहीं था जितना कि सुनने में लगता है। मैंने इसी विषय के ऊपर लिखने की ठान ली। कुछ ऐसा भी नहीं लिखना चाहती थी जो उपन्यास लेस्टर का इतिहास बन कर रह जाए।

एक अंग्रेज दंपति टैरी जेक्सन व फ्लोरी जेक्सन मेरे बहुत पुराने मित्र हैं। टैरी लेस्टर के ही एक प्रसिद्ध गाँव लॉफ़्बरो के स्कूलों के गवर्नर रह चुके हैं। इनके बहुत से अध्यापक व लेखक मित्र भी हैं। मैंने अपनी बात इनके सम्मुख रखी।

टैरी व फ्लोरी का हार्दिक धन्यवाद जिन्होंने मेरी बात की गंभीरता को जानते हुए इस उपन्यास को शुरू कराने में मेरी बहुत सहायता की। इन्होंने मुझे तीन ऐसे अंग्रेज लेखकों से मिलवाया जिन्होंने लेस्टर के इतिहास के विषय में लिखा है। मेरा मुख्य उद्देश्य लेस्टर का इतिहास नहीं यहाँ के रहन सहन और एशियंस पर उसका प्रभाव के विषय में लिखना था। फिर भी उन लेखकों से मिलना बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ।

इनसे बात-चीत करते हुए मेरी कलम भी नोट्स लेने में सक्रिय रही।

1973 में जब मैं ब्रिटेन आई तो मेरा निवास स्थान लॉफ़्बरो था। लॉफ़्बरो में काफी एशियंस दिखाई दिए। अधिकतर लोग यहाँ के कारखानों में ही काम करते मिले। इनमें बहुत से तो डिग्रियों के मालिक भी थे। उस समय इकोनोमी अपनी चरम सीमा पर थी। काम की कोई कमी ना थी। घरों में पर्चे फेंके जाते थे कि आओ हमारे कारखाने में काम करो। उन दिनों यूनियन का बोलबाला था।

एक फैसले से ब्रिटेन की इकोनोमी अपकर्ष की ओर चल पड़ी। इसमें दोष यूनियन को दिया जाए या सरकार को... पतन तो हुआ। यह कैसे हुआ। इसका कुछ आभास आपको उपन्यास पढ़ कर हो जाएगा।

मैं यहाँ हेजल फिश का भी धन्यवाद कर दूँ जिन्होंने मेरे लिए ब्रेडगेट लायब्रेरी व लॉफ़्बरो लायब्रेरी से सामग्री एकत्रित करके भेजी। हेजल फिश सैकंडरी स्कूल की अध्यापिका रह चुकी हैं जिनका वर्णन इस उपन्यास में भी मिलेगा। इनसे और भी बहुत सी बातों की जानकारी प्राप्त हुई जिसके बिना शायद मैं इस उपन्यास को लिखने का साहस ना जुटा पाती।

कुछ पुराने कारखानों के मालिकों से भी मुलाकात का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिनको माइनर्स की दूसरी हड़ताल के कारण अपने चलते हुए कारखानों को ताला लगाना पड़ा था।

जहाँ से जो भी जानकारी मिली मैंने सब को इकट्ठा किया। आधुनिक आविष्कार इंटरनेट की सहायता से काफी सामग्री एकत्रित करके करीब तीन वर्ष पहले मैंने इस उपन्यास की नींव रखी थी। अभी शुरुआत ही की थी कि अस्वस्थता के कारण सब बीच में ही छूट गया। हस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए मैं इस उपन्यास के विषय में ही सोचती रहती। यह मेरे लिए भी एक अलग सा नया अनुभव था।

वैसे तो प्रत्येक लेखक को अपनी हर रचना प्रिय होती है। आपको पढ़ कर ही पता चल जाएगा कि इस उपन्यास को लिखने में मैंने बहुत मेहनत की है। मेरा यह प्रयास कहाँ तक पाठकों को प्रभावित करता है यह तो उनकी प्रतिक्रिया से ही पता चलेगा।

"कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर" मेरा तीसरा उपन्यास है। इससे पहले दो उपन्यास "रिहाई" और "तलाश" पाठकों की प्रशंसा और सम्मान पा चुके हैं। रिहाई उपन्यास के लिए "अखिल भारतीय हिंदी सम्मेलन" द्वारा सम्मान मिला व "तलाश" उपन्यास के लिए कथा यूके द्वारा "पद्मानंद साहित्य सम्मान" जो ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमंस में मिलता है लेने का सौभाग्य प्राप्त कर चुकी हूँ।

यहाँ मैं अपने बच्चों का भी धन्यवाद कर दूँ जो हर कार्य में मेरे साथ खड़े मिलते हैं। अब आप पर निर्भर करता है कि पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया दीजिए कि मुभे अपने इस प्रयास में कहाँ तक सफलता मिली है।

नीना पॉल

*****

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर

1

एक हल्की सी आवाज से निशा की नींद खुल गई।

आवाज खुली खड़की से आई थी। जम्हाइयाँ और अँगड़ाइयाँ लेते हुए उसने कंबल को एक ओर सरकाया। कल की रात ही कुछ ऐसी उमस से भरी गर्म थी कि खिड़की खोलनी ही पड़ी।

ब्रिटेन में ऐसे अवसर कम ही होते हैं जब रात को ठंडी हवा की जरूरत महसूस हो...। वैसे यहाँ के मौसम का कुछ भरोसा भी तो नहीं किया जा सकता। सर्द हवाओं के बाद जब यह मौसम अचानक करवट लेता है तो वातावरण में एक अजीब सी उमस भर जाती है। ठंडी पड़ी धरती पर जब सूरज की गर्म किरणें थोड़ी गरमाहट पहुँचाने की कोशिश करती हैं उस समय हवा में एक हल्का दबाव सा महसूस होने लगता है। यहाँ की गर्मी भारत जैसी नहीं है कि सूरज का तपता हुआ गोला प्रकट हुआ और सब पसीने से नहा गए। यहाँ तो पसीना निकालने के लिए तेज धूप में बैठना पड़ता है जहाँ पसीना तो कम निकलता है लेकिन चमड़ी का रंग जरूर गहरा हो जाता है।

चमड़ी का रंग गहरा करने हेतु ही तो थोड़ी सी गर्मी होते ही लोग घरों से बाहर निकल पड़ते हैं। जो इतने महीनों से गर्म कपड़ों में लिपटे शरीर को सूर्य की थोड़ी किरणें छू सकें। वैसे ब्रिटेन में सूरज की गर्मी कहाँ नसीब होती है। यहाँ की अंग्रेज महिलाएँ अपने पीले रंग को थोड़ा गहरा करने के लिए बिजली की मशीनों का प्रयोग करती हैं। यह मशीनें भी ऐसी कि नीचे आरामदायक बिस्तर बिछा होता है और ऊपर के पलड़े पर बड़ी बड़ी टयूब लाइट्स लगी होती हैं जिनमें से गर्मी निकलती है।

महिलाएँ अपना रंग भूरा करने के लिए घंटों इन तेज रोशनी और गर्मी से भरी बिजली के नीचे लेटी रहती हैं। यह सोचे बिना कि यह तेज बनावटी गर्मी हानिकारक भी सिद्ध हो सकती है। इससे चमड़ी पर कैंसर होने का भी डर होता है। फिर भी गर्मी में सुंदर दिखने के लिए यह इन मशीनों का प्रयोग करती हैं।

वाह रे उल्टी खोपड़ी... एक ओर तो यह गोरे लोग भूरी चमड़ी वालों से घृणा करते हैं और दूसरी तरफ इतने पाउंड खर्चा करके इन जैसा रंग भी अपनाना चाहते हैं।

रंग तो स्वयं ही बदलेगा जब धूप निकलते ही लोग छोटे-छोटे कपड़े पहने हुए पार्क या किसी समुद्र के किनारे का रुख करते हैं। पार्क में जहाँ बड़े बच्चे आपस में फुटबाल खेलते दिखाई देते हैं तो वहीं छोटे बच्चे झूला झूलते हुए मिलते हैं। ऐसे मौसम को कोई भी चूकना नहीं चाहता। युवा जोड़े भी इस मस्ती से दूर कैसे रह सकते हैं। कुछ लोग तो खुलेआम इनकी मस्ती ही देखने के लिए आते हैं।

मस्ती भी ऐसी कि ब्रिटेन के समुद्री तटों पर लोगों का ताँता लग जाता है। कुछ कुर्सियों पर लेटे धूप का आनंद लेते मिलते हैं तो कुछ रेत पर बैठे बच्चों के साथ घरौंदे बना कर खेल रहे होते हैं। धूप में लेटी हुई अर्धनग्न महिलाएँ शरीर पर लोशन लगा कर सनटेन लेने की कोशिश कर रही हैं। चारों ओर शोर-शराबा, समुद्र की लहरों से खेलते युवा जोड़े, सतरंगी सूरज की किरणों से मेल खाते लोगों के रंग-बिरंगे कपड़े, बच्चों की किलकारियाँ, मस्ती भरा माहौल... यही सब देखने को मिलता है...। यह है ब्रिटेन के सूर्य देवता का कमाल जिसका लोग महीनों इंतजार करते हैं।

इंतजार तो निशा को भी है सुबह का। उसने जम्हाइयाँ लेते हुए बिस्तर छोड़ दिया। वह खिड़की के सामने से पर्दा हटा कर बाहर देखने लगी...।

बाहर का दृष्य बाँहें खोले निशा को निमंत्रण दे रहा था। निशा की आदत है कि सुबह उठते ही वह कुछ समय के लिए खिड़की के पास जरूर खड़ी होती है। जब पहाड़ी के पास घर हो... फूलों से सुगंधित ब्यार चल रही हो... सुबह के उगते सूर्य में हलकी सी गर्मी हो... कौन घर में बैठ सकता है।

निशा लेस्टर के एक गाँव लॉफ़्बरो में रहती है। लॉफ़्बरो जो अपनी युनिवर्सिटी के साथ-साथ और भी बहुत सी चीजों के लिए प्रसिद्ध है। अंतरिक्ष से अपनी पहली उड़ान के दौरान परीक्षण के लिए लाए गए पत्थर के टुकड़े का परीक्षण लॉफ़्बरो युनिवर्सिटी में ही हुआ था।

यहाँ की बहुत ही प्रसिद्ध बीकन हिल का नाम भी लॉफ़्बरो निवासी बड़े गर्व से लेते हैं। निशा बीकन हिल के करीब ही विक्टोरिया स्ट्रीट में रहती है। काली और भूरी चट्टानों से भरी बीकन हिल जिन पर खड़े हो कर पूरे लॉफ़्बरो शहर को देखा जा सकता हैं। चारों तरफ बने हुए एक जैसे मकान, कहीं कारखानों से उठता हुआ धुआँ तो कहीं लंबी टेढ़ी मेढ़ी सड़कें...। दूर से धुंध में डूबा हुआ लॉफ़्बरो का मशहूर क्वीन्स पार्क दिखाई दे रहा है जिसके बीचो बीच में एक लंबा स्मारक चिह्न सुबह की धुँधली धूप में चमक रहा है। जिसे क्रिलियन के नाम से जाना जाता है।

बीकन हिल से ही गर्व से सिर उठाए लॉफ़्बरो के चर्च आकाश को छूते मिलते हैं। जिधर नजर दौड़ाओ बस चारों ओर हरियाली ही हरियाली फैली हुई है। गर्मी के दिनों में बीकन हिल और इसके आस-पास लोगों की काफी रौनक रहती है। शाम के प्राकृतिक दृष्य रोज एक नई कहानी सुनाते हैं। एक तरफ सूरज के डूबने से चट्टानें भूरी और नारंगी रंग में भीग कर अपना सोंदर्य फैला रही होती हैं तो दूसरी ओर धीरे धीरे सरकती रात से चट्टानों पर सलेटी रंग की चादर बिछ जाती है...।

सलेटी रंग नहीं सफेदी से भरी कोहरे की चादर उस दिन भी बिछी हुई थी जब पहली बार निशा की मॉम सरोज ने परिवार सहित ब्रिटेन की धरती पर कदम रखा था।

छोटी सी पाँच महीने की बच्ची निशा को सीने से चिपकाए हीथरो हवाई अड्डे पर सरोज उनके पति सुरेश भाई व माँ सरला बेन डरते हुए भीड़ के साथ आगे बढ़ रहे थे। उनके समान और लोग भी डरे हुए थे जो पहली बार ब्रिटेन आ रहे थे।

डरने की तो बात ही थी। अपना बसा-बसाया घर बार छोड़ कर किसी अज्ञात स्थान पर जा कर फिर से आशियाना बसाना कोई मामूली बात तो थी नहीं। निशा की नानी सरला बेन को एक बार फिर मजबूर हो कर नया घर बसाने के लिए दर-दर भटकना पड़ा। अपना घर-बार छोड़ने का दर्द सरला बेन से अधिक कौन जान सकता है। उनकी खामोश नजरें दिल में उमड़ता तूफान छुपाए हुए थीं।

असली तूफान युगांडा में रहने वाले भारतीयों की जिंदगियों में उस दिन उठा था जब...

सुरेश भाई दुकान को ताला लगा कर बड़े उदास मन से घर में आए। उनका सिर झुका हुआ था। किसी गहरी सोच में डूबे हुए वह धम्म से कुर्सी पर बैठ गए...

सरोज जल्दी से हाथ पोंछते हुए किचन से बाहर आई... "क्या बात है जी... तबियत तो ठीक है। आज दुकान भी जल्दी बंद कर दी।"

"हाँ सरोज चिंता तो इस बात की है कि पता नहीं यह ताला कल खुलेगा भी या नहीं..."

"शुभ-शुभ बोलो जी... ऐसी भी क्या बात हो गई। किसी से झगड़ा हुआ है क्या... शीघ्र बताइए बात क्या है मेरा दिल बैठा जा रहा है।"

"इस बात की अफवाह तो बहुत दिनों से फैल रही थी सरोज। कुछ अकलमंद लोग सब कुछ बेच-बाच के यहाँ से चले भी गए हैं। किंतु कुछ हमारे जैसे भावुक यहीं से चिपके पड़े हैं यह सोच कर कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। पर नहीं सरोज... हमारे राष्ट्रपति इदी अमीन ने खुले आम ऐलान कर दिया है कि सब भारतीवंशी युगांडा छोड़ कर चले जाएँ।"

"क्या... चले जाएँ पर कहाँ...?"

"यह तो नहीं बताया और ना ही कोई जानता है किंतु सप्ताह के अंदर हमारी जमीन जायदाद सब कुछ जब्त कर लिया जाएगा। इतने थोड़े से समय में कोई घर दुकान बेच भी तो नहीं सकता। जब यहाँ के निवासियों को भरा-भराया घर और दुकानें यूँ ही मिल जाएँगी तो कोई क्यों खरीदेगा। हम अपना कुछ निजी सामान ही ले कर जा सकते हैं। इदी अमीन को अपने देश में भारतीय नहीं उनका पैसा, जायदाद व व्यापार चाहिए। मेरा तो दिल बैठा जा रहा है सरोज परिवार के साथ हम कहाँ जाएँगे?"

सरोज की माँ सरला बेन... जिन्होंने दुनिया देखी हुई है वह आगे बढ़ कर सुरेश भाई को धीरज बंधाने लगीं। "घबराइए मत जमाई जी। मैं भी पड़ोसियों से यह बात सुन कर आ रही हूँ। वह सब इंग्लैंड जा रहे हैं। आपके पापा ने जाने से पहले बहुत अच्छा काम किया था कि हम सबका ब्रिटिश पासपोर्ट बनवा दिया था नहीं तो आज हम कहीं के न रहते। हमारे पास भी ब्रिटिश पासपोर्ट है। जिधर सब जा रहे हैं उधर हम भी अपनी किस्मत आजमाने चल पड़ेंगे।"

सब खामोशी से अपना सामान बाँध रहे थे। खामोशी के अतिरिक्त और कोई विकल्प भी तो नहीं था। सब को इस बात का भी ध्यान रखना था कि दो सूटकेस से अधिक न हो जाए नहीं तो हवाई जहाज वाले पैसे लगा देंगे।

नया जीवन आरंभ करने के लिए साथ में केवल दो सूटकेस और 55 पाउंड...

सरोज पैसे गिनते हुए बोली... यह 55 पाउंड कब तक चलेंगे जी। साथ में छोटा बच्चा है... बा हैं। इन 55 पाउंड में हम क्या खाएँगे और कहाँ रहेंगे।

सरोज घबराओ मत। जिसने इस मुसीबत में डाला है वही रास्ता भी दिखाएगा।

जिसे जिधर रास्ता दिखाई दिया वह उधर की ओर चल पड़ा। अधिकतर भारतीयों के पास ब्रिटिश पासपोर्ट थे। अपना निजी सामान ले कर व सब कुछ पीछे छोड़ कर सब ने एक अनजान देश ब्रिटेन का रुख किया।

पीछे केवल घर जायदाद ही नहीं छोड़ा बल्कि वहाँ का मौसम भी छूट गया। ब्रिटेन जैसे ठंडे देश का तो किसी को अनुभव ही नहीं था। हीथरो एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही जिस सबसे पहली चीज का सामना करना पड़ा, वे थीं ब्रिटेन की ठंडी हवाएँ। नवंबर का सर्द महीना था। मौसम के हिसाब से ढंग के कपड़े भी नहीं थे किसी के पास। वैसे अपनी सोच के अनुसार सभी ने गर्म कपड़े पहने हुए थे। शायद किसी को ये अंदाजा नहीं था कि इतनी ठंड भी हो सकती है।

छोटी सी निशा... शाल में लिपटी हुई बाहर की सर्दी से बेखबर सरोज के सीने से चिपकी हुई माँ के शरीर की गर्मी ले रही थी। ठिठुरते हुए अधिकतर लोगों ने लेस्टर का रुख किया। कारण साफ था कि लेस्टर को इंडस्ट्रीज का शहर माना जाता था। यह एक सस्ता शहर भी था। इंडस्ट्रीज के कारण उनके हिसाब का काम भी सारा लेस्टर में था।

लेस्टर में ही इनके आने से पहले कई भारतीय बसे हुए थे। सुरेश भाई को जब पता चला कि उनके दूर के रिश्ते के भाई मुकुल पटेल यहाँ लेस्टर में हैं तो उनके दिल को थोड़ी राहत मिली। यह वो समय था जब ब्रिटिश सरकार ने यहाँ के कारखानों में काम करने के लिए भारतीयों को अनुमति व बीजे दिए थे। उस समय गुजरात से आए लोगों के साथ मुकुल पटेल भी एक थे। ब्रिटेन के कारखानों में काम करने वालों की कमी थी। प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए ब्रिटिश सरकार को यह एक सस्ता और आसान तरीका नजर आया जिस कारण भारत से बहुत से लोगों को यहाँ आने की अनुमति दे दी गई।

गुजरात से ही नहीं भारत के एक प्रदेश पंजाब के देहातों से भी काम करने के लिए लोगों को दिल खोल कर ब्रिटेन में आने के लिए वीजे दिए गए। ब्रिटिश निवासियों ने इनके आने पर आवाज तो उठाई किंतु देश की भलाई के कारण अधिक आपत्ति नहीं जताई। लोग ये सोच कर चुप थे कि पैसा कमा कर थोड़े समय के पश्चात यह लोग वापिस अपने देश लौट जाएँगे। मगर यहाँ की सुख सुविधाएँ व अच्छा वेतन देख कर यह लोग परिवार सहित यहीं बस गए। यहाँ पर बस ही गए तो यहाँ का रहन सहन अपनाने में ही सबने अपनी भलाई समझी।

जब परदेस में कोई अपना मिल जाए तो खुशी दोनों तरफ से होती है। मुकुल पटेल एक बड़ी सी कार ले कर सुरेश भाई के परिवार को लेने हीथरो हवाई अड्डे पर पहुँच गए। ब्रिटेन में कार केवल सुख सविधा के साधन के लिए ही नहीं बल्कि कार यहाँ पर एक जरूरत की वस्तु है... यहाँ के मौसम और दूरियों को देखते हुए। मुकुल भाई को देख कर सबको खुशी हुई। अनजान देश में कोई जाना पहचाना चेहरा देख कर दिल में छुपा डर कुछ हद तक दूर हो जाता है...

कार में बैठते ही मुकुल भाई ने कार में लगा हीटर चालू कर दिया जिससे सर्दी से सबको थोड़ी राहत मिली। सब उत्सुकतावश कार के शीशे से बाहर देख रहे थे। ब्रिटेन की साफ-सुथरी चौड़ी सड़कों पर कैसे कारें चुपचाप अपनी दिशा की ओर भागी जा रहीं हैं। कहीं से भी शोर या भोंपू की आवाज नहीं...। सड़कों पर व किनारे लगे पेड़ों पर सफेद कोहरा बिछा हुआ है। नंगे पेड़ों की डालियाँ सफेद कोहरे के वस्त्र पहने खुशी से झूम रहीं हैं। बीच बीच में धुंध भी मिल जाती। कहीं पर तो धुंध इतनी गहरी हो जाती कि सामने का रास्ता भी ठीक से दिखाई नहीं देता। नजर आती तो बस आगे चलती हुई कारों की लाल बत्तियाँ।

***