Ek aur pari-vrutant books and stories free download online pdf in Hindi

एक और परी-वृतान्त

एक और परी-वृतान्त

अपने पिता और निम्मो आंटी की इस पच्चीसवीं वर्षगाँठ पर हम जुड़वाँ बहनों को अनायास ही एक पुरानी लोकोक्ति ही याद आ जाती है, 'किसी भी मेंढक को देखकर आप अनुमान नहीं लगा सकते वह कितना ऊँचा कूद सकता है|’

निम्मो आंटी हमारे जीवन के चौथे वर्ष में हमारे पास आयी थीं| हमारे पिता के पैतृक गाँव से| हमारी नौकरानी के रूप में|

‘मेंढकी’ नाम उन्हें हमारी माँ ने दिया था|

हम बहनों को एक परी-कथा सुनाते समय|

परी-कथा में एक राजा पिता अपने तीनों राजकुमारों को अपने-अपने चिन्हित निशानों पर तीर छोड़ने के बाद उसी तीर की दिशा में अपने-अपने लिए पत्नी खोजकर लाने का आदेश देता है, इस घोषणा के साथ कि वह अपनी राजगद्दी अपने उसी राजकुमार को सौंपेगा जिसकी पत्नी सबसे अधिक गुणवती होगी| मगर बड़े राजकुमार के तीर जहाँ बड़े घरानों पर जा लगते हैं, छोटे राजकुमार का तीर एक ताल के सरकंडों पर बैठी शापग्रस्त एक मेंढकी के समीप जा पहुँचता है|

हमारी माँ अभी कहानी के इसी चरण पर थीं कि निम्मो आंटी बोल उठी थीं, ‘हम से पूछिए, सबसे ज्यादा गुणवती यही मेंढकी रहेगी और राजगद्दी फिर छोटे राजकुमार ही के पास आयेगी|’

“आंटी हमारी कहानी खराब नहीं करो, हम बहनें मचली थीं, ममा को कहानी सुना लेने दो.....” और माँ ने बहाने से निम्मो आंटी को अपने कमरे से बाहर भेज दिया था और हमें खूब हँसाए थीं, बेचारी निम्मो सोचती है वह भी उस मेंढकी की तरह शापग्रस्त है और इसे भी अपने गुण साबित करने के लिए कोई राजकुमार चाहिए.....|

हाँ, ममा, हाँ, अपना गुस्सा जोड़ में मिलाती हुईं हम माँ की पहिएदार कुर्सी पर जा पहुँची थीं, आंटी हमारी हर कहानी में अपने आप को ले आती हैं.....|

‘मेंढकी जो ठहरी’ माँ के हाथ में तस्वीरों वाली हमारी कहानियों की किताब रही थी, ‘इधर इस तस्वीर में इस मेंढकी की आँखें देखो! निम्मो की आँखें भी तो ऐसी ही हैं- गोल-गोल-बाहर को निकली हुईं.....|’

‘हाँ, ममा, हाँ’ हम हँसी थीं| और इधर, इसकी जीभ नहीं देखी क्या? माँ ने उस मेंढकी की जीभ पर अपनी उँगली जमा दी थी, उस निम्मो की जीभ की तरह ही तो है! जो मुँह के अंदर कम रहती है और बाहर ज्यादा.....|

यह सच था| अपने उस बीसवें बाइसवें वर्ष में निम्मो आंटी को अगर किसी चीज में गहरी रूचि रही थी तो वह थी खाने में| हमारा खाना उन्हीं के जिम्मे रहा करता और हमें कुछ भी खिलाने से पहले वह जरूर कहतीं, ‘चख कर देखती हूँ कुछ खराब तो नहीं.....’ और चखने चखने ही में कितना कुछ खा जाया करतीं|

बाद में हम जानी थीं कि बुनाई-मजदूर रहे उनके पिता पाँच वर्ष पहले निमोनिया की भेंट चढ़ गए थे| अपने पीछे, आठ बेटियाँ छोड़ कर और उनकी पहली दो बहनें कुछ घरों में जो काम पकड़े भी थीं, उनसे मिलने वाली मजदूरी उस भरे-पूरे परिवार की पेट-भराई के लिए बहुत कम पड़ती थी और निम्मो आंटी के साथ वर्षों से उनकी साथिन रही, उनकी भूख भी इधर हमारे घर पर चली आयी थी|

हाँ, ममा, हाँ, हम बहनें खिलखिलायीं थीं, आंटी की जीभ बिल्कुल ऐसी ही है|

तभी निम्मो आंटी अंदर आकर बोली थीं, ‘मैडम, हमें भी बताइए, बेबी लोग के साथ हम भी हँसेगी.....|’

‘हम इस मेंढकी की बात कर रही थीं,’ माँ ने अपनी नटखटी ठीं-ठीं छोड़ी थी, अपनी जीभ बाहर निकाल कर राजकुमार की ओर, कैसे टुकुर-टुकुर देख रही है|

हम बहनों ने माँ की ठीं-ठीं का पीछा किया था|

मेंढक के बारे में आप तो जानती ही होंगी, मैडम, निम्मो आंटी ने तेज स्वर में माँ को सुनाया था, ‘मेंढक अकेला ऐसा जीव है जो पानी में भी रह सकता है और खुश्की पर भी| बिल खोदकर जमीदोज भी हो सकता है और फिर फुदक कर पेड़ पर भी चढ़ सकता है|’

मैं नहीं जानूँगी भला? जिसने जीव-विज्ञान में अपनी डॉक्टरेट कर रखी है? माँ झल्लायी थीं, कितने मेंढक अपने हाथों से चीरे-फाड़े हैं? उनके बारे में कितना कुछ पढ़ा-पढ़ाया है? और, अभी कुछ भूली नहीं हूँ|

यहाँ हम यह बताती चलें कि हमारी माँ उसी स्थानीय यूनिवर्सिटी में प्रवक्ता रह चुकी थीं जहाँ हमारे पिता जीव-विज्ञान वाले विभाग में आजकल विभागाध्यक्ष हैं| दोनों की भेंट इकतीस वर्ष पूर्व इसी विभाग में हुई थी और यहीं से वे एक-दूसरे से प्रेम रखने लगे थे| किन्तु दुर्भाग्यवश उनके विवाह के तीसरे वर्ष से ही, हमारी माँ की माँसपेशियाँ दिन-ब-दिन शिथिल होती चली गयी थीं और हमारे उस चौथे साल में पहुँचते-पहुँचते माँ शारीरिक रूप से इतनी अक्षम हो गयी थीं कि उन्हें उठने-बैठने के लिये अब सहायता की आवश्यकता पड़ती थी| बेशक मानसिक रूप से वह अभी भी पूर्णतया सशक्त थीं और पहिएदार अपनी कुर्सी पर बैठकर हम बहनों के साथ खूब हँसती-बतियाती थीं| वाद्य संगीत भी खूब सुनती-समझाती थीं| बचपन की अपनी सभी परिकथाएँ हमने उन्हीं के मुख से सुनी थीं| साथ ही रविशंकर की सितार तथा बाख एवं बीथोवन की सिम्फ़नियों से हमारा परिचय भी उन्हीं ने कराया था| अचरज नहीं जो आज हम बहनें जुगलबंदी में सितार और तबला बजाकर अच्छा नाम कमा रही हैं| और उनके मुख से सुनी वे परिकथाएँ भी हमारे साथ आज तक ज्यों की त्यों बनी हुई हैं| छब्बीस साल पहले उन्हें मृत्यु के हाथों खो देने के बावजूद|

फिर तो, मैडम, आप उन मेंढकों के बारे में भी जानती होंगी जिनकी, खाल का रिसाव जहरीला होता है, निम्मो आंटी अपना ज्ञान बघारने लगी थी, इतना जहरीला कि हमारे गाँव में लोगबाग शिकार पर जाते समय अपने बरछे उन मेंढकों की पीठ पर घिस लिया करते हैं ताकि उनकी तुफंग से जब वे अपने बरछे शिकार पर फेंके तो उस जानवर पर जहर भी अपना असर दिखलाए..... और एक बात बतावें| कुछ लोगबाग तो ऐसे मेंढकों की खाल के रिसाव को सुखा कर सुंघाते भी हैं, नशे की खातिर| बल्कि कुछ नशेड़ी तो ऐसे भी हैं जो सीधे-सीधे उन मेंढकों ही को चाट बैठते हैं|

हाँ, एक किस्म ऐसी है तो| गोल्डन पायजन फ्रॉग|

यह मेंढकी क्या गोल्डन पायजन फ्रॉग थी, ममा? जहर वाली? हम बहनें भयभीत हुईं थी| हमारी परिकथाओं में जहर की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहा करती|

नहीं, नहीं, माँ ने हमारी गालें सह्लायी थीं, यह मेंढकी तो असल में एक राजकुमारी थी जो अपनी रानी माँ के दुश्मनों से बचने के लिए एक मेंढकी का रूप धारण किए हुए थी| इसके पास तो जादू था| जैसे ही वह अपने गीत के द्वारा बुलाती, वे सातों फौरन हाजिर हो जातीं.....

‘हाँ, ममा’ हमने व्यग्रता जतलायी थी, आप, हमारी कहानी पर लौट आओ.....|

माँ के बाद निम्मो आंटी ने अपना आवाह-क्षेत्र और फैला लिया था| हमारे साथ-साथ हमारे पिता की भी पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी| उनके खाने पहनने को तो देखती ही, उनकी यूनिवर्सिटी के घंटों का भी हिसाब-किताब रखने लगी थीं| उन्हें भोजन परोसने के साथ-साथ उनके साथ बैठकर स्वयं भी भोजन करने लगी थीं| बिन बुलाए उनके कमरे में भी आने-जाने लगी थीं| समय-कुसमय|

उधर पूर्व प्रदर्शित हमारे पिता का संयम एवं अनुशासन भी धराशायी हो चला था| जिस पिता की अल्प अपने जीवनकाल में हम बहनों ने अभी तक आत्म केन्द्रित एवं अलगाव पसंद एक सहजीवी के रूप में देख रखा था वह अपने व्यवहार में अजानी एक निस्संगता और असंगत एक पारस्परिकता ले आए थे|

अभी हम स्थिति के इस बदलाव को समझने का प्रयास ही कर रही थी कि एक शाम निम्मो आंटी हमसे बोली थी, हम और आप के पापा एक दूसरे, से शादी करने जा रहे हैं.....|

मगर आप तो हमारी ममा जैसी हैं नहीं, हम ने संदेह प्रकट किया था|

‘मतलब?’ वह अनजान बन बैठी थीं|

आप की ड्रेस, आपकी बोली ममा जैसी नहीं, ममा जैसे आप किताब नहीं पढ़ सकतीं, म्यूजिक नहीं समझ सकतीं|

‘आप को मेंढकी वाली यह कहानी याद है न? जिस ने रातों-रात एक कालीन तैयार कर दिया था?’

‘मगर वह मेंढकी तो एक राजकुमारी थी जिसे अपने शाप के कारण एक मेंढकी बने रहना था, हम बहनों ने प्रतिवाद किया था, और उसके पास जादू था, जिसके बल पर वह अपनी सात नौकरानियों को चुपके से रात में बुलाकर काम करवा सकती थी.....|’

पोलैण्ड की उस लोकगाथा में आगे राजा पिता ने अपनी बहुओं को मिलने से पहले तीनों को पहली ही रात में रातों रात एक कालीन बुनने का आदेश दे डाला था, इस शर्त के साथ कि जिस किसी का कालीन उसे सर्वाधिक भाएगा, वह उसी के पति को अपनी राजगद्दी सौंप देगा| और मेंढकी द्वारा तैयार किया गया कालीन ही सर्वोत्तम रहा था और उसी के पति को फिर राजगद्दी मिल गयी थी और पति के राजा बनते ही वह मेंढकी शापमुक्त हो ली थी और राजकुमारी वाले अपने मूल-रूप में लौट ली थी|

‘हमारे पास सात बहनें हैं जिनके हाथ में जादू है.....|’

वे राजकुमारियाँ हैं क्या? या फिर परियाँ या चुड़ैलें? हम दो बहनों के लिये निम्मो आंटी या उनकी सात बहनों को किसी भी परि-कथा में लाना कठिन था|

न राजकुमारियाँ! न परियाँ| और न ही चुड़ैलें| मगर हम सभी बहनों के पास जादू है| हाथ का जादू| बुनाई का जादू, निम्मो आंटी की गरदन तन गयी थी और सुर चढ़ आया था, हम सभी बहनें उस बप्पा की बेटियाँ हैं जिनके बाप-दादा ने पानी पीने के लिये- हाथ ही से जमीन खोद डाली थी| फिर बुनाई में वही जादू वही हाथ का जादू, हमारे बप्पा के पास रहा जो अब हम बहनों के पास है| यह मेहनत का जादू है| कारीगरी का जादू है| हम सभी बहनों ने अपने बप्पा के कंघी-पंजा देखे हैं| लम्बाई में बिछे हुए एक सूत वाले ताने पर अलग-अलग रंगों के बाने से धारीदार क्या नीली-चिट्टी क्या, नीली पट्टीदार क्या, हरी-पीली फूल-पत्ती क्या, जीव-जन्तु वाली क्या और परियों वाली क्या, सभी कुछ सभी कुछ अपनी संवारते हुए हम बहनों ने देख रखी हैं| हमारे बप्पा की बुनाई का लोहा पूरा गाँव मानता था| आपके पापा को भी मालूम है जैसी फूल-पत्ती, जैसे पशु-पंछी वह अपनी दरियों में उतार लाते थे, और कोई उनके सामने एक बिन्दु भी नहीं| जो भी देखे, दाँतों तले उँगली दबाया करे| बस बप्पा रहे नहीं ज्यादा दिन| पैसों की कमी के कारण हम उनके निमोनिया का इलाज करवा नहीं पायीं| मगर जाते-जाते हम बहनों को बप्पा बोल जरूर गए, अपने हाथ का जादू आप बहनों के हाथों में छोड़े जा रहा हूँ| इसे बनाए रखना| और अब हम उसी जादू को अपने हाथों में लिवा लाएँगी| आपके पापा के पास कपास के खेत हैं और हमारे पास बुनाई का जादू.....|

निम्मो आंटी का दावा झूठा नहीं निकला था| उसे प्रमाणिक ठहराया था पापा के तत्वावधान में निष्पन्न हुए उन आठ बहनों के उत्साही उद्यम ने| हस्त-कौशल ने|

और सबसे बड़ी बात रही थी, निम्मो आंटी की व्यावहारिक बुद्धि| जिसके बूते पर सभी अड़ेंगे एवं अटकाव उन्होंने पिछेल कर सफलता हथिया ली थी| ‘कंघी-पंजा’ नाम की ट्रेडमार्क दरियों की मारकिट खड़ी कर ली थी|

उनकी कहानी अब किवदन्तियों में सम्मिलित की जाने लगी थी और हम बहनों ने भी उस कहानी को अब एक परी-वृत्तान्त का नाम दे दिया था|

*****