Mrutyu ka madhyantar - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

मृत्यु का मध्यांतर - 1

अंक - पहला/१

'अरे.. यार, नो.. नो.. नो कार तो बिलकुल भी नहीं, जायेंगे तो बाइक पर ही। प्लीज़ अजीत। कल हमारे साथ का लास्ट सन्डे मुझे तुम्हारे साथ दिल खोलकर जीना है, बस।' इशिता ने दोनो हाथ अजीत की कमर के इर्दगीर्द लपेटकर कहा।

'अरे! लेकिन पागल, पूरा दिन बाइक पर... और वो भी इतने बड़े मुंबई शहर में। घूमने जाना है कि मरने...? अरे यार थककर चूर हो जायेंगे। बैटर है कि कार में जाए।' बार बार इशिता के गाेलमटोल गाल पर आ रही उसके बालों की लट को ठीक करते हुए अजीत बोला।

इशिता ने कहा,
'मुझे तुम्हारे साथ जिस तरह से बिंदास आंधी के जैसे आनन्द से शोर मचाते हुए घूमना है वो मज़ा सिर्फ़ बाइक पर ही आता है, कार में नहीं, समझे?' ऐसा बोलकर अजीत की नाक खींची।

अंत में इशिता की खुशी चाहते हुए अजीत बोला,
'अच्छा ठीक है चल। जाे हुकुम मेरे सरकार। तुम जीती मैं हारा।'
इशिता ने अजीत की आंखों में देखकर कहा, 'तुम्हें हराने का ऑफिसियल अधिकार सिर्फ़ इशिता दीक्षित के पास आजीवन अबाधित है। औैर जिसका नाम ही अजीत है, उसे कौन हराने की हिम्मत कर सकता है?'

'लेकिन इशिता, तुमने प्रेम से जीतकर मुझे हराया है। लोको जितने के पापड़ बेलने है, लेकिन मैंने तुम्हारे सामने हारने के लिए पापड़ तो, क्या क्या नहीं येे तुम्हे ही पता है।' हंसते हंसते अजीत बोला।

अजीत कुलकर्णी

मनोहर और उषा कुलकर्णी दंपत्ति का तीसरा और सबसे छोटा बेटा, यानि कि २६ वर्षीय अजीत। दूसरी संतान के रूप में प्राप्त हुई जान से भी प्यारी बेटी अंकिता की पिछले साल धूमधाम से शादी करवाकर, भारी मन से सबने उनके ससुराल पूना बिदा किया था। अजीत के बड़े भाई राजेन्द्र औैर उसकी भाभी अपने परिवार के साथ, उनके पुश्तैनी मुख्य व्यवसाय खेतीबाड़ी के साथ जुड़े हुए थे। औैर वैसे भी राजेन्द्र को मुंबई की भीडभाड और घड़ी के कांटों के साथ भागती हुई जिन्दगी से नफ़रत थी। तो सामने अजीत को खेतीबाड़ी से। इसलिए वो अभ्यास के बहाने से मायानगरी मुंबई की मोहमाया की मस्ती का मजा उठाने के लिए पिछले तीन साल से मुंबई शिफ्ट हुआ था।
अजीत महत्वाकांक्षी होने के साथ साथ प्रैक्टिकल और प्रोफेशनल भी था। अपनी जिन्दगी ऊपर उठने के लिए वो किसी भी तरह का समझौता करने की मनोवृत्ति रखता था। रहने के लिए, अपने पिताजी मनोहर के एक जिगरी जान दोस्त के फ्लैट में रहता था। पिछले छह महीने से मनोहर और उनकी पत्नी उषा भी अजीत के साथ रहने आए थे। अजीत जर्नलिज्म का अभ्यास पूरा करने की तैयारी में था।

इशिता दीक्षित।

मध्यम वर्गीय बाबूराव औैर सावित्री दीक्षित परिवार की २४ वर्षीय इकलौती लाड़ली बेटी यानि कि इशिता दीक्षित।

बाबूराव रेलवे में जॉब करते थे, लेकिन बारबार नादुरस्त तबियत के चलते उन्होंने नौकरी में से स्वैच्छिक इस्तीफ़ा दे दिया था। अपने एक वकील मित्र की ऑफिस में, अपने समय के अनुरूप टाइपिंग का छोटा मोटा काम करने जाते या वही काम घर में बैठकर भी आराम से कर लेते।
इशिता को बचपन से ही पढ़ाई के प्रति ज्यादा रुचि थी। उत्तरोत्तर पढ़ाई में रुचि के बढ़ते, आज उसने अंग्रेजी साहित्य एम. ए. करने के साथ साथ, लगातार दिन रात की लगन से ऑनलाइन उसने सात विदेशी भाषाओं पर भी अच्छा प्रभुत्व जमाकर एक गौरवपूर्ण सिद्धि हांसिल करके परिवार का नाम रोशन किया था। सादगी इशिता का शृंगार था। लेकिन उसकी सादगी के आगे किसी भी शृंगार की चमक फीकी पड़ जाती थी। किसी भी वेस्टर्न लुक वो बहुत खूबसूरत लगती थी, लेकिन वो हमेशा कॉलेज अवर्स के सिवाय साड़ी पहनना ज्यादा पसन्द करती थी। उसके गोरे रंग पर किसी भी साड़ी के साथ का निखार एक अलग ही अंदाज़ में उभरता था। इशिता का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट कहो या माइनस प्वाइंट वो कुछ ज्यादा ही इमोशनल थी।

अजीत औैर इशिता दोनों एक ही कॉलेज के स्टूडेंट्स। अजीत पढ़ाई के मामले में गंभीर और उसके सिवाय कॉलेज की भिन्न प्रवुतियो सब से आगे होने के साथ माहिर भी था। यानि कि कॉलेज कैम्पस में अजीत का नाम मशहूर औैर नामांकित तो था ही। इशिता और अजीत की दो से चार बार क्षण स्थायी मुलाकात के दरमियान सतही बातचीत हुई थी। लेकिन उस समय दरमियान दोनों की नज़रों ने थोड़ा गंभीरता से परस्पर ध्यान दिया है, उसका दोनों को पता था। थोड़े दिनों बाद अजीत ने, उस ध्यान का पीछा करते करते इशिता के नज़दीक आने के लिए फिल्मी अख्तरे औैर पैंतरे आजमाए। लेकिन अपने काम औैर परिवार की जिम्मेदारियों की ओर पूर्णरूप से जागरूक इशिता की अदम्य इच्छा होते हुए भी उसे एक सम्मानीय दूरी बनाए रखना मुनासिब लगा।

अंत में एक तपस्वी के जैसे साधना कर रहे अजीत के प्रेमयज्ञ में आहुति देने के लिए अंत में इशिता ने अजीत के निःसंदेह लग रहे स्नेह का स्वीकार करते हुए स्वाहा किया।

प्रणय से लेकर परिणय के परिणाम तक पहुंची हुई इस बात को दोनों के परिवार की संमति, आशीर्वाद, खुशी, आशीर्वचन के साथ समर्थन मिला था।

मृदु और मितभाषी इशिता की सहज, शांत और स्नेहिल स्वभाव की प्रकृति ही किसी को भी उसकी तरफ आकर्षित करने के लिए पर्याप्त थी। माता-पिता के संस्कार और कुदरत की कृपा से इशिता के इस अनन्य वैविध्यपूर्ण व्यक्तित्व से पूर्णरूप से अभिभूत होकर, किसीने उसकी अनुभूति की हो तो, वो था आदित्य।

आदित्य पाटिल।

विश्व की सबसे समृद्ध (धनवान) ऐसी मुंबई की महानगरपालिका के स्थिर पंद्रह सालों से एक साफ़सुथरी छबि वाले सम्मानीय काउंसलर ऐसे शरद पाटिल का बेटा २५ वर्षीय आदित्य पाटिल।

इशिता का सबसे करीबी कॉलेज फ्रेंड आदित्य। इशिता को आदित्य की एक और सबसे बड़ी पसंदीदा बात जमा पक्ष जैसी उसकी दिल को छू लेने वाली शालीनता, और हमेशा आंखों को सुहाती उसकी सादगी। लखपति का बेटा, लेकिन कभी भी उसने अपने पैसों के पावर को अपने व्यक्तित्व या वाणी पर हावी होने नहीं दिया था। कॉलेज थोड़े बहुत आर्थिक रूप से कमज़ोर दोस्तों की अभ्यास में आर्थिक मदद की थी। लेकिन दूसरे ही पल उस बात को आसानी से भूला भूला दिया करता था। इशिता जो किसिके साथ शेयर नहीं कर सकती थी, वैसी बात वो निसंकोच आदित्य के शेयर करके हल्का महसूस करती।

आदित्य इशिता को जितना पसंद करता या जानता था, उससे भी ज्यादा वो उसे जीता था। लेकिन.. इस बात का दूसरों को तो क्या स्वयं इशिता को भी आदित्य ने पता नहीं चलने दिया था।

आदिया को जब इशिता और अजीत के संबंध के बारे में ऑफिसियली पता चला, उस एक क्षण के लिए आदित्य को धक्का लगा था, लेकिन उस धक्के का कारण की कोई अलग ही वजह थी। और आदित्य ईश्वर को एक ही प्रार्थना करता कि जिसका आदित्य को डर है वो दिन इशिट्स की लाइफ में कभी न आए।

तीन महीने पहले...

रविवार।
सुबह के करीब ग्यारह बजे का समय होगा। ज्यादातर काम निपटाकर इशिता रूम में राइटिंग टेबल रखे हुए अपने लैपटॉप में करंट टॉपिक के अन्तर्गत एक फ़्रेंच आर्टिकल का इंग्लिश में अनुवाद करने में मशगूल थी तभी आदित्य का कॉल आया।

'सबसे पहले तो, एक से दो होनेकी धन्य पल के लिए दिल से बहुत बहुत शुभकामनाए। सबसे आखिर में भी, मुझे जानकारी नहीं देने के लिए भी शुक्रिया।' एकदम शांत मन से गार्डन के झूले पर झूलते झूलते आदित्य ने इशिता से किसी भी तरह के द्वेष भाव के बिना बोला।

थोड़ी देर के लिए इशिता को ऐसा लगा कि कौनसे शब्दों में प्रत्युत्तर देना चाहिए! पहली नज़र में देखा जाए तो स्वाभाविक तौर पर इशिता को मन में अपनी गलती का एहसास और इकरार था ही। फिर भी उसने खुद का जरा भी बचाव किए बिना वास्तविकता को स्वीकारते हुए जवाब देते हुए कहा,
'ओह माय गॉड.. आदि आई स्वेयर मुझे ऐसा लगा कि मैं शांति से तुम्हें सब बात करूंगी, लेकिन यार सब इतना जल्दी में हुआ कि... रियली आदि, आई फील सो बेड।'

'अरे.. लेकिन इशिता, मैंने शिकायत के स्वरूप में नहीं की। उल्टा मुझे तो खुशी उस बात की है कि तुम अपनी लाइफ में इतनी व्यस्त रहती है कि, दोस्तों को तुम्हें मिलने लिए तो क्या लड़ना हो तो भी वेटिंग में रहना पड़ेगा। तो ये अच्छी बात है न।'

यार अब बस करोगे? देखो इस बात का हमारे पूरे ग्रुप को अच्छी तरह से पता है। तुम मेरे सब से अच्छे, दोस्त ही नहीं दोस्त से भी कुछ ज्यादा हो। ये बात तो तुम भी मानते ही हो। अजीत को लेकर मुझे मेरी फीलिंग्स जिस तरीके से व्यक्त करनी है उसके सिर्फ़ तुम ही अकेले हकदार हो, समझ लेना। इसलिए सिर्फ़ नॉर्मल कॉल या मैसेज करके मैं अपने रिलेशन को साधारण बनाना नहीं चाहती, समझे?'

'इशिता, तुम मुझे, अपना परिचय दोगी?'

'तो फिर अब इस तरह कभी भी मेरे सामने इस तरह जबड़े में मत बोलना हा। यू हर्ट मी। क्योंकि मम्मी, पापा के बाद एक तुम ही हो, जिसको मैंने भगवान का दर्जा दिया है। कान पकड़कर फटकार लगा देना, डांटना, गुस्सा करना। लेकिन तुम्हारा येे शाब्दिक प्रहार मैं कभी भी सहन नहीं कर सकूंगी, आदि..' बस इतना बोलने तक तो इशिता का गला भर आया।

झूले पर से उतरकर गार्डन का एक चक्कर लगाते हुए आदित्य बोला,

'ओह माय गॉड, इशिता, तुमने जो अभी कहा कि..'दोस्त से भी कुछ अधिक..'मैं उस विशेषाधिकार के हक़ को ध्यान में रखकर ही बोला हूं पगली। और जान से भी प्यारी सम्पत्ति जैसी सहेली को, कोई इस तरह अंधेरे में रखकर दबे पांव हमेशा के लिए छीनकर ले जाए तो थोड़ा तो... छोड़ कुछ नहीं, मैं इन्तज़ार करूंगा, तुम्हारे उस शांति का। नाऊ स्माइल एंड बी हैप्पी। मैं कॉल रखू?'

'अब मैं कॉल नहीं करूंगी, अब मैं तुम्हारी एक्स्ट्रा क्लास ही लूंगी देख लेना। तुम कॉलेज तो आओ कल, उतनी ही देर है।' खड़े होकर बाल्कनी में आते हुए इशिता ने कहा।

'जी, मैडम, और कुछ?' हंसते हंसते आदित्य ने जवाब दिया।
'चलो, बाय। टेक केर।' ऐसा बोलकर इशिताने कॉल कट कर दिया।

आदित्य के लिए इशिता का सम्मानजनक आदरभाव के साथ एक ठोस भरोसा भी था। इशिता को आदित्य की समझदारी और परिपक्वता पर, सम्मान के साथ गर्व भी था। आदित्य के साथ गहरी दोस्ती के बाद इशिता किसी भी विकट परिस्थिति में विचलित नहीं होती थी, क्योंकि आदित्य आसानी से अपनी स्थिर सूझबूझ से मार्गदर्शन देकर विकल्प ढूंढ निकलता।

नेक्स्ट डे।

इशिता अपने नियमित रूटीन शेड्यूल मुताबिक ६:३० बजे उठकर, फ्रेश होने के बाद, नित्यक्रम की एक अचूक कार्यशैली के रूप में, पंद्रह मिनट ध्यान लगाकर ईश्वर की आराधना करने के बाद ब्रेकफास्ट करके ८:१५ को कॉलेज जाते जाते कॉल लगाया अजीत को।

'हेय.. गुड मॉर्निंग। तुम आज आ रहे हो न कॉलेज?'
'गुड मॉर्निंग, नोट स्योर। क्योंकि ऑनलाइन एक लेक्चर अटैंड करना है। तुम कितने बजे तक हो कॉलेज पर?'
'कुछ ठीक नहीं है। लेकिन निकलने के हाफ एन अवर पहले, तुम्हे कॉल करके इनफॉर्म जरूर करूंगी। इसके सिवाय कोई प्लान हो तो बताओ। उस हिसाब से में अपना शेड्यूल एडजस्ट करूंगी। औैर कौनसा लेक्चर अटैंड करना है?

एक नया इंटरेस्टिंग सब्जेक्ट हाथ लगा है। डीटेल्स में आमने सामने मिलेंगे तब बताऊंगा।' बेड पर से खड़े होते हुए अजीत ने कहा।
'ठीक है चलो मैं तुम्हारे कॉल का वेइट कर रहा हूं।'
'बाय।'अजीत ने कहा।

कॉलेज के अंतिम दिन नजदीक थे। ऑलमोस्ट सब के सेमेस्टर कंप्लीट हो गए थे। सब अपने अपने फ्यूचर प्लान सेट करने में लगे हुए थे। इशिता को भाषा के प्रति इतना लगाव था कि, उसे तो सपने भी अलग अलग भाषा में आते। औैर अपने उज्जवल भविष्य के लिए वो उस ओर ही दौड़ लगाती। आदित्य को तो अपने बाद आनेवाली पीढ़ी के लिए भी कुछ सोचने की जरूरत नहीं थी क्योंकि उसके पिताजी का फैला हुआ करोड़ों का कारोबार ही उसके लिए पर्याप्त था। लेकिन उसके परिवार की ओर से, आदित्य को अपना फ्यूचर प्लान करने की पूरी आज़ादी थी। जीवनसाथी पसंद करने की भी।

अजीत महेनती था, लेकिन साथ साथ बहुत जल्दी रातोंरात ऊंचाई पर पहुंचने की लालसा भी थी। कुछ करने की या कुछ करके दिखाने की, उसके दिमाग हमेशा एक धुन सवार रहती। औैर अनएक्सपेक्टेड सरप्राइज देने की अपनी आदत को वो अपनी एक महत्वपूर्ण खूबी मानता।

ठीक ९:४५ को आदित्य ने कॉलेज में एंटर होकर इशिता को उसके एकमात्र फेवरेट प्लेस लाइब्रेरी में दूर से ढूंढ निकाला। कोने के टेबल पर लैपटॉप के पास कोई एक रशियन फिलॉसॉफर के किताब के पेज औैर लैपटॉप दोनों में बारी बारी से देखते हुए, लाइट पिंक कुर्ती के साथ मैचिंग दुपट्टे में उसके चहरे की लाली देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई पूर्ण रूप से खिलकर कुछ क्षण पहले ही किसी पुष्प ने अपनी ताज़गी की ताजपोशी की हो।

ब्लैक ट्राउजर के ऊपर, नी लेंथ तक का प्योर खादी का ऑफ व्हाइट कुर्ता, एल्बो से थोड़े नीचे तक फोल्ड की हुई कुर्ते की स्लीव्स, मिडिल साइज की दाढ़ी और व्हाइट ग्लास के फैशनेबल गॉगल्स औैर गरदन के नीचे तक के लंबे औैर घुंघराले बालों की हेयर स्टाइल में आदित्य, अपनी जन्मजात बहुत ही गोरी त्वचा के साथ के लुक में कोई प्रोफेशनल मॉडल को टक्कर मारने के लिए काफ़ी था।

बिलकुल धीरे से चलकर इशिता को बिना आभास कराये, धीरे से उसकी चेयर के पीछे खड़े होकर अभी तो कुछ बोलना शुरू करें तभी इशिता लैपटॉप में देखकर बोली,

'आदि, चुपचाप पास में बैठ जाओ।'
'तुम्हारी कितनी आंखें हैं?' पास की चेयर पर बैठते हुए आदित्य बोला।
'तुम्हारे लिए मेरे मन की आंखें ही इनफ है। मेरा ध्यान बार बार एंट्रेंस गेट पर जा रहा था और जैसे ही तुमने एण्ट्री ली तभी तुम कैप्चर हाे गए थे, समझे? औैर आज एकदम डिफरेंट लुक में लग रहे हो तुम।'
आदित्य के सामने देखकर इशिता बोली।
'हा, बीकॉज कि तुमने कल कहा था न कि, तुम मेरा एक्स्ट्रा क्लास लोगी इसलिए सोचा कि पूरी तैयारी के साथ निकलता हूं।' धीरे से हंसते हुए आदित्य बोला।

'थोड़ी देर बैठो आदि, बाद में हम....' थोड़ा सोचते हुए आगे बोली,
'कहां बैठेंगे?'
'यहीं कैम्पस में?'
'हम्ममम.. तुम्हें कोई काम है, कॉलेज में?'
'नहीं तो.. मैं तो सिर्फ़ तुम्हारा एक्स्ट्रा क्लास...'
आदित्य को आगे बोलते हुए रोककर इशिता बोली,
'प्लीज़.. अब एक काम करो, येे बात तुम कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर ही लिख दो। तो काम खतम हो। क्या यार, कबसे? मैं ऐसा सोच रही हूं... आदि कि, एक घण्टे में मेरा येे काम खतम करके हम कॉलेज से थोड़ा आगे...'इशिता अपनी बात पूरी करे उससे पहले ही आदित्य बोला,
'महादेव का मंदिर है वहां.... जाये ऐसा ही न।'
थोड़ी देर तक इशिता आदित्य को देखती ही रही..
'आदि, तुम कैसे पल भर में मेरे खयालों को पकड़ सकते हाे?'इशिता ने पूछा।
'हम्ममम.. वो शायद इसलिए कि, मैंने संबंध के अन्दर इशिता का नाम नहीं रखा, लेकिन संबंध का नाम इशिता रखा है, समझी?'चेयर पर से खड़े हुए आदित्य बोला।
'सही है आदित्य, तुम्हारी दोस्ती के सामने मुझे इस दुनियाभर की जायदाद एकदम मामूली लगती है। लेकिन तुम कहां जा रहे हो?'
'मैं यहां बैठा रहूंगा तो तुम्हें अपने काम के लिए समय कम पड़ेगा। एक काम करो, तुम अपना काम कंप्लीट करके पार्किंग में आओ, मैं वहां मेरी कार में बैठे बैठे म्यूजि़क सुन रहा हूं, आई.के.' आदित्य बोला।

'ठीक है, मैं घण्टे भर में आती हूं।'इशिता के जवाब देते ही आदित्य वहां से निकलकर केंटीन में आकर एक मस्त मसाला चाय की फूल साइज का पार्सल लेकर कार में जाकर अपने सिलेक्टेड म्यूजि़क कलेक्शन में से ऑल टाइम फेवरेट एवरग्रीन किशोरकुमार के सॉन्ग्स की संगत में चाय की चुस्कियों की रंगत का आनंद लेते हुए, आंख बंद करके सुनता रहा।

ग्यारह बजे के आसपास कार के फ्रंट डॉर के विंडो पर इशिता ने नॉक करते ही आदित्य ने डॉर ओपन किया। इसलिए कार में बैठते हुए इशिता बोली,
'सॉरी, आदि, मेरी वजह से तुम्हें इतना वैट करना पड़ा।'
'अच्छा है न, वैसे भी अब तुम्हारा वैट करने की आदत डालनी ही पड़ेगी न?'
'आदि मुझे लगता है कि.. तुम सही में अब मेरे हाथ का मार खाकर ही मानोगे।'
'बट इट्स फैक्ट। अब तुम इशिता दीक्षित में से इशिता कुलकर्णी बनने जा रही हो, तो...'
'तो... आगे बोलो न, बोलो बोलो। तो मैं तुम्हें ठीक से जवाब दे सकूं, बोलो तो।'
पार्किंग में से कार को मैन लेकर हंसते हंसते आदित्य बोला, 'मुझे लग रहा है आज शिवजी से पहले तुम्हारा तीसरा नेत्र खुल जायेगा।'
'तुम्हें ऐसा ऐसा लग रहा है?' इशिता ने पूछा।
'लेकिन मुझे येे भी पता है कि, महादेव के जैसे ही तुम मुझे माफ़ भी कर दोगी।' प्रसाद के साथ पूजा की सामग्री लेकर इशिता शांति से शिवलिंग के सामने ऐसे एकाकार हो गई कि चित प्रफुल्लित हो गया।

दोनों दर्शन करके मंदिर के परिसर के बीच में स्थित विशाल पीपल के पेड़ के इर्दगिर्द बने हुए चबूतरे पर आकर बैठे, सुंदर अहलादक ठंडे हवा की आ रही लहरों से बार बार इशिता की जुल्फें उसके चेहरे पर आ रही थी।
आदित्य को प्रसाद देते हुए इशिता बोली,

'आदि, मुझे याद है जहां तक, मैं छोटी थी तब से मम्मी मुझे हरेक सोमवार इस मंदिर अचूक लेकर आती। औैर वो प्रणाली मैं आज तक बरकरार रखी है। औैर अंत तक बरकरार रख सकूं ऐसी एक ही अनन्त इच्छा है। पता नहीं लेकिन होश संभाला तब से इस जगह से मुझे बहुत ही लगाव है। मैं जब भी बहुत खुश होती हूं या अपसेट होती हूं, तब यहां आकर मेरी फीलिंग्स शिवलिंग के साथ शेयर करती हूं औैर मुझे भीतर से लिटरली ऐसा फील होता है कि मेरा भोलानाथ मुझे सून रहा है।'
आदित्य की ओर देखकर इतना बोलते हुए इशिता एकदम से भावुक हो गईं।

तब आदित्य बोला,
'इसलिए तो मुझे ईश्वर को कोई अर्जी करनी हो तो, मैं तुम्हें बोल हूं। क्योंकि तुम्हारा डायरेक्ट कॉन्टैक्ट है। तो तुम्हारी सिफ़ारिश से मेरा काम जल्दी हो जाए न।'

'ना, ऐसा नहीं है, महादेव ने ऐसा कहा कि, 'तुम्हें तकलीफ़ न हो इसलिए आदित्य को मेरा प्रतिनिधि के रूप में तुम्हारे पास भेज रहा हूं, समझे?' बाल उड़कर चेहरे पर न आए इस तरह दुपट्टा सिर पर बांधती हुई इशिता बोली।

'एक मिनट मैं अजीत को कॉल कर लू। बाद में हम बात करते हैं।' अपने पर्स में से मोबाइल निकालते हुए इशिता बोली।

इशिता ने अजीत के नंबर पर कॉल किया लेकिन दूसरे ही सेकंड में कॉल कट होकर रिप्लाइ ऑटो टेक्स्ट मैसेज आया..'कॉल यू लेटर..'
इसलिए इशिता समझ गई कि वो ऑनलाइन किसी क्लास में बिजी है।

'हा, अब बोलो क्या है तुम्हारा एक्स्ट्रा क्लास?' गॉगल्स को कुर्ते के जेब में रखते हुए आदित्य बोला।

'आदि, मैंने नोट किया कि कल से तुम्हारा टॉन चेंज हो गया है। तुम गर्भित भाषा में मेरे साथ क्यूं बात करने लगे हाे? तुम मेरे साथ निसंकोच क्यूं बात नहीं कर सकते?'
इशिता ने गंभीर होते हुए पूछा।

'ना, ऐसा नहीं है इशिता, लेकिन कल तक मुझे ऐसा घमंड था कि तुम्हारी किसी भी खुशी या नाखुशी पर तुम्हारे परिवार के बाद मैं ही पहले अधिकार का अधिकारी हूं, लेकिन..'

आदित्य को प्रत्युत्तर देते हुए इशिता बोली,

'आदि, अजीत के साथ मेरा प्रणय संबंध में बंध जाना वो इतनी सहज और सामान्य घटना नहीं है कि, जिसे मैं तुम्हें एकदम सामान्य बात के जैसे कॉल या मैसेज से शेयर कर दू। संबंध एक पलड़े में मेरा प्यार औैर दूसरे पलड़े में हमारी दोस्ती। दोनो के समतोल के संतुलन की एक ही सतह है आदि। औैर वो पूरी जिन्दगी रहेगी।'


'इशिता एक सेकेंड के लिए मैं तुम्हारी बात मान भी लू, लेकिन मुझे अब अपनी दोस्ती के मर्यादा के प्रति सजग रहना पड़ेगा। क्योंकि अब तुम पर सिर्फ़ तुम्हारे अकेले का ही नहीं लेकिन अजीत का भी उतना ही हक्क है।' आदित्य अपनी दुविधा समझाते हुए बोला।

'अपनी दोस्ती की मर्यादा? तुम्हारी उस मर्यादा के गर्व की वजह से ही येे इशिता दुनिया से लडने के लिए तैयार है, आदि मुझे तुम पर जितना गर्व है उतना तो अपने आप पर भी नहीं है।'इशिता ने आदित्य की बात का ठोस जवाब दिया।

'एक बात कहूं इशिता, दुनिया का मुझे पता नहीं लेकिन खुद की बात करूं तो मेरे लिए जिन्दगी में अगर कोई सबसे पीड़ाजनक है, तो येे है कि.. दो जिस्म एक जान जैसे सम्बन्धों का बंटवारा करना। मेरे मत अनुसार किसी भी भावना से जुडे़ हुए संबंध का सीमांकन असहनीय होता है। पार्टीशन इज ऑलवेज पैनफुल।'

'एक बात पूछूं आदि? मेरे औैर अजीत के प्रेम संबंध से तुम कितने खुश हो?'

'मेरी खुशी का मापदंड, तुम्हारी खुशी पर निर्भर है। तुम खुश हो तो बस, मेरे लिए वही काफ़ी है।' स्माइल के साथ इशिता की ओर देखकर आदित्य बोला।

'आदि, मैं अजीत से सिर्फ़ नहीं करती, उसे जीती हूं, सांस लेती हूं। मैंने मेरी सांसों औैर विश्वास का अजीत में प्रत्यारोपण किया है। अजीत की आंखों में, शब्दों में, मेरे प्रेम को महसूस किया है, जाना है। अजीत के निसंदेह प्रेम पर मेरा एकाधिकार है। मेरे इस प्रेम पूंजी की परिभाषा का अनुवाद मैं तुम्हें किस तरह समझाऊं? आदि? आदि तुम्हारे साथ मेरी येे फीलिंग शेयर करके मैं.. मैं इतनी भावविभोर औैर आनंदित हूं कि..'
इतना बोलते ही मुस्कान के साथ इशिता के आंसु बहने लगे।

आदित्य को जिस पल इशिता और अजीत के प्रणय संबंध के बारे में जानकारी हुई थी, तब से आदित्य के दिमाग में उन दोनों के भविष्य को लेकर चल रहे वैचारिक मनोमंथन के अंत आए हुए निष्कर्ष के संवाद इस क्षण आदित्य के होठों तक आए। लेकिन चुपचाप पी गया... इशिता का भरोसा कायम रखने के लिए।

उसके सिर पर हाथ रखते हुए आदित्य बोला, 'अरे, पगली, तुम्हारे येे शब्द सुनकर आज मैं धन्य महसूस कर रहा हूं, उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं है। आज तुमने हमारी मित्रता को नया आयाम देकर एक गौरवपूर्ण ऊंचाई प्रदान की है, उसके लिए शायद मेरा जीवन समर्पित कर दू तो भी कम पड़ेगा।'

'आज का दिन भी कितना सुंदर है न आदि, मैं औैर अजीत प्रेम संबंध में जुड़ने के बाद येे पहला सोमवार है। जिसको मैं सब से ज्यादा मानती हूं वो दोस्त और महादेव दोनों मेरे प्रेम के साक्षी है।'

इशिता बेहद खुश थी। उसके प्रफुल्लित मन की खुशी की रेखाएं उसके चेहरे और आंखों में साफ़ नज़र आ रही थी।

अजीत का बाद में मैसेज आया कि वो कॉलेज नहीं आयेगा। काम खतम करके कॉल करेगा। उसके एक घण्टे बाद इशिता औैर आदित्य अलग हुए।

घण्टों, दिन ब दिन गुजरते गुजरते आज अजीत औैर इशिता एक दूसरे के प्रणय संबंध बंधे होने के तीन महीने का समय, दोनों ने एक एक दिन इतने प्रचुर रोमांच के साथ रोमांटिक वातावरण में, एक दूसरे के सानिध्य में ऐसे बिताए जैसे येे कल की ही बात हो!

तीन महीने बाद,
शुक्रवार की एक शाम .. घेघुर औैर उछालते हुए अथाग अरब सागर के सामने, मरीन ड्राइव के किनारे पर असंख्य यात्रियों (लोगों) के बीच इशिता, अजीत के कंधों पर सिर रखकर, हाथों में हाथ डालकर चुपचाप, क्षितिज के अंत तक अपने प्रणय सफ़र की कल्पना में डूबते हुए सिंदूरी संध्या की साक्षी मेें, खुद भी गले तक अजीत के प्रेम में डूबकर अनन्य अनुभूति के साथ सूर्यास्त के नज़ारे का आनंद ले रही थी।

तब अजीत बोला,
'इशिता, मैंने हमारे फ्यूचर प्लान के लिए एक यूनिक आइडिया सोचा है। मैंने पहले से ही ऐसा सोच के रखा था कि एक अच्छे से स्टेटस की एक अच्छे से स्टेट्स की लाइफ के लिए मैं लॉन्ग टाईम स्ट्रगल नहीं करूंगा। मुझे नेक्स्ट दस सालों में लाइफ को उस स्टेज पर ले जाकर सेट करनी है कि.. उसके बाद मैं... ओह, सॉरी हम दोनों लाइफ को जस्ट एन्जॉय ही करेंगे।'

अजीत के विचार प्रॉपर्ली इशिता के समझ में नहीं आए तो आश्चर्य के भाव के साथ, वो अजीत के चेहरे की ओर देखकर बोली,

'अजीत,... तुमने अभी कहा कि.. पहले से, मतलब कब से? औैर आई थिंक तुम नियति को ओवर टेक करने की बात कर रहे हो? औैर एक बात कहूं अजीत.. कामयाबी का कभी कोई शॉर्टकट नहीं होता। येे बात याद रखना।'

'अरे.. पहले से मतलब जब मैं फर्स्ट टाइम मुंबई आया तब। औैर इशिता उसमे गलत किया है? कुछ बनने के लिए पूरी दुनिया दौड़ रही है। औैर मैं अपने लक्ष तक पहुंचने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं। किस्मत बनानी पड़ती है इशिता।'

थोड़ी देर अजीत की ओर देखते हुए इशिता बोली,
'अजीत, तुम्हारी येे महान महत्वाकांक्षा के महाग्रंथ में "मैं" शब्द क्यूं आता है? 'हम' शब्द क्यूं नहीं आता?' वो बताओगे मुझे? औैर थोड़ा मुझे भी उस यूनिक आइडिया का डेमो दिखाओगे?'

इशिता की बात का जवाब देते हुए अजीत बोला,
'अरे.. इशिता, हम अलग है क्या? कैसी बातें कर रही हो तुम भी यार?'

'मैं नहीं तुम.. तुम्हारी बातें, समझे? औैर 'तुम' औैर 'मैं' में से अब हम हुए हैं, इसलिए तुम्हारे किसी भी फ्यूचर प्लान की मुझे जानकारी होनी ही चाहिए।'
थोड़ी नाराज़गी दिखाते हुए इशिता बोली,

'लेकिन इशिता...' इतना बोलते ही अजीत चुप हो गया।
तो इशिता ने पूछा,

'हेय.. क्या हुआ? एनीथिंग सीरियस?'

'येे मेरा फ्यूचर प्लान तुम मेरी लाइफ में आई उससे पहले का है, वो मेरी लाइफ का गोल भी है। और... अब उसकी शुरुआत होने जा रही है।'
अजीत थोड़ा गंभीर होते हुए बोला।

'अजीत डॉन्ट क्रिएट एनी सस्पेंस, टॉक क्लियरली प्लीज़।' इशिता को अजीत बातों से थोड़ा शक होने लगा।

'इशिता, सस्पेंस नहीं, सरप्राइज।' स्माइल के साथ इशिता की आंखों में देखते हुए अजीत बोला।
'अजीत मेरा दिल औैर दिमाग डाइजेस्ट कर सके उतना ही सरप्राइज देना।'
बढ़ी हुई धड़कनों के साथ इशिता ने कहा।l

इशिता की दोनों हाथ की हथेलियों को अपने हाथ में लेकर इशिता की आंखों में देखकर अजीत बोला,
'इशिता, मैं अपने भविष्य की स्वप्ननगरी की नींव रखने जा रहा हूं।'
'कहां?' एक डर के साथ इशिता ने पूछा।
'अमेरिका।'
अजीत के सिर्फ़ एक एकाक्षरी शब्द के प्रत्युत्तर ने, इशिता के पूरे अस्तित्व को इतनी हद तक हचमचा दिया कि, सामने घेघूर समुद्र के तूफानी मोजों की आवाज़ भी उसके भीतर के चित्कार के सामने वामन लग रहा था।
इशिता के शरीर में से एक छोटी सी कंपकंपी छूट गईं तथा ऐसा भास हुआ कि एक क्षण के लिए धड़कन चूक गई। उसे ऐसा लगा कि कुछ सुनने या समझने में उसकी कोई भूल हुई है। इसलिए हिम्मत जुटाकर फिर से पूछा,

'अजीत.. तुम मज़ाक कर रहे हो न? तुम अमेरिका जाओगे? आर यू मेड?'

'इशिता, इट्स नोट अ जोक। आई एम सीरियस। मैं सच में अमेरिका जा रहा हूं, इशिता।'
पल में ही जम गई इशिता। टप..टप.. करके आंसू निकल पड़े। उसने अपने दुपट्टे से मुंह छुपाकर और पीठ घुमाकर थोड़ा दूर चली गई। सिर्फ़ अजीत की अनुपस्थिति की कल्पना मात्र से ही जैसे इशिता के पांव के नीचे की जमीन खिसक गई।
अजीत, इशिता के लिए सिर्फ़ नाम नहीं था। उसके दिल की धड़कनों का मालिक था। उसके आत्मविश्वास की आधारशिला था।

दो मिनट तक चुप रहकर, अजीत की ओर पीठ दिखाकर खड़ी हुई इशिता के दोनों कंधों पर हाथ रखते हुए बोला,
'इशिता मै एक बेहतर जिन्दगी की शुरुआत करने जा रहा हूं। उस बात को लेकर तुम खुश नहीं हो? मैं तुम्हें दुनिया के हर एक एशो आराम की जिंदगी देना चाहता हूं। मैं तुम्हें दुनिया दिखाना चाहता हूं। मैं तुम्हें....'अभी अजीत एक शब्द भी आगे बोले उससे पहले इशिता घुमकर थोड़े ऊंचे आवाज़ में बोली..

'मैं.. मैं.. मैं.. औैर बस.. मैं.. टू फिर तुम्हारी लाइफ में 'मैं'कहां हूं अजीत? तुम्हारे सपने, तुम्हारी आकांक्षा, तुम्हारे एंबीशनस, तुम्हारी स्टेट्स वाली लाइफ लेकिन, "मैं" कहा हूं? लाइफ का इतना बड़ा मेजर डिसीज़न लेने से पहले, तुमने एक सेकेंड के लिए भी म मेरे बारे में सोचा? के तुम्हारी गैरमौजूदगी के इमेजिन से मुझ पर क्या बीतेगी? कहीं सबसे महंगा औैर कहां सबसे मामूली तुम्हारे 'आई लव यू' शब्द के साथ मुझे जोड़ने से एक बार मेरे सपनों के बारे में सोचा? मुझे क्या पता कि मेरा प्रेम तुम्हारे 'ए' स्टेट्स के लेबल से कहीं छोटा है। येे.. येे 'आई लव यू' शब्द ही गलत है। जिसमे सहयोग से निकटता का स्नेह आजीवन जुड़ा हो वहां "यू" क्यूं? औैर तुम्हारी सभी बातों में 'यू..' 'यू..' औैर 'यू' है। 'वी' नहीं, क्यूं अजीत क्यूं?'
बस अजीत के सीने पर सिर रखकर इशिता रोती रही।
उसके बाद दोनों देर तक चुपचाप दीवार पर बैठे रहे। अब समुद्र में भी भाटा आने से लहरों की तीव्रता न के बराबर औैर पानी की सतह, किनारे से काफ़ी दूर तक चली गई थी, औैर अंधेरा घिर आया था। इशिता की मनोव्यथा का सही चित्र दिखा रहे प्रकृति के इस नजारे को देखकर इशिता आकाश की ओर भीगी आंखों से देखकर मंद मंद मुस्कुराती रही।

अजीत का हाथ इशिता अपने हाथ में लेकर बोली,
'अजीत, तुम नहीं पूछोगे कि मेरा सपना क्या है? फिर भी नहीं रह पा रही हूं इसलिए कह देती हूं।
औैर.. तुम्हें नहीं कहूंगी तो किसे कहूंगी? सिर्फ़ दो ही सेकंड में भागने की तैयारी में... मुंबई की लोकल मेट्रो में तुम्हारे हाथों में हाथ डालकर दौड़ के चढ़ना, भारी बारिश में मन भरकर भीगते, भीगते, रोड़ के किनारे पर किसी भी चाय की टपरी पर एक ही कुल्लहड़ में तुम्हें आंख मारते हुए चाय पीना, साज शृंगार के लिए सोने का हार नहीं, मेरे गरदन के आसपास लिपटे हुए तुम्हारे हाथ का साथ चाहिए। मैं सिद्धि विनायक, भगवान के दर्शन के लिए नहीं तुम्हारे दर्शन के आती हूं। मुझे स्कोडा या सुज़ुकी में नहीं, घंटी वाली साइकिल में, तुम्हारे पीछे बैठकर मैरीन ड्राइव पर चक्कर लगाना है। मुझे तुम्हारे साथ टाईम स्क्वेयर पर जाकर बर्गर या पिज़्ज़ा खाने से ज्यादा तीनसो स्क्वेयर फ़ीट के वन बी. एच. के. में हाफ वड़ापाऊ शेयर करने में ज्यादा खुशी मिलेगी। बस, एक तुम्हारे साथ के सामने मुझे संसार के सारे सुख बेमानी लगते है। औैर तुम...'

गला साफ़ करते हुए अजीत बोला,

'इशिता, जितना प्यार तुम मुझसे करती हो उतना ही मै अपने गोल और मेरे अचीवमेंट्स से करता हूं। तुम्हारी सब बात सही, कुबूल। आज की दुनिया में बैटर एण्ड बैटर लाइफ के लिए कौन परिश्रम या संघर्ष नहीं करता? जाे मैं यहां इंडिया में २५ साल मेहनत करके भी हांसील नहीं कर पाऊंगा, वो में अमेरिका में सिर्फ़ पांच साल में ही कर दिखाऊंगा। औैर बहुत कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना पड़ता ही है।'

'मेरे पास खोने के लिए तुम्हरे सिवाय कुछ भी नहीं है अजीत।' अजीत की आंखों में देखते हुए इशिता बोली।
'लेकिन, इशिता, मैं कहां हमेशा के लिए जा रहा हूं?'
'तुम जा रहे हो, वो बात ही मेरे लिए सदमे से कुछ कम नहीं। तुमने फाइनल कर ही लिया है?'
'हां।'
'कब?'
'नेक्स्ट सन्डे।'
इशिता ने अपनी दोनों हथेलियों से अपना चेहरा ढककर, सिर झुका दिया।

लगा कि इशिता के भीतर छलक रहे शांत स्नेह के सरोवर का बांध मेें अचानक फट जाने की वजह से जिस तरह सब टूटकर पलक झपकते ही सब विनाश करके शांत हो जाता है, बिलकुल वैसी ही अनुभूति के साथ इशिता अंदर से तूट गई।'

गिले गालों को दुपट्टे से पोंछते हुए इशिता बोली,
'मुझे इतना बताओगे कि..
इशिता में अजीत कहां नहीं है...? औैर अजीत में इशिता कहां है..?'

आगे अगले अंक में....


© विजय रावल


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