The Author रवि प्रकाश सिंह रमण Follow Current Read निर्लज्ज By रवि प्रकाश सिंह रमण Hindi Short Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books A “Go BUFFALO” Misdirected Text Message to a Cricket fan in 2051 - Part 3 A “Go BUFFALO” misdirected Text Message to a Cricket fan in... Chasing butterflies …….11 Chasing butterflies ……. (A spicy hot romantic and suspense t... The Lost Map of Sumeria The Lost Map of Sumeria (adventure-thriller-romantic-mystery... Goodbye Smile 17.08.2024Some days, you feel like a distinguished author ex... Paras Dear Readers, You are about to read a book that I had wri... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share निर्लज्ज (6.6k) 2.2k 10.3k सरिता बहुत हीं प्रतिभावान लड़की थी।इधर ग्रेजुएशन का उसका रिजल्ट आया उधर एस.बी.आई से पी.ओ पद पर चयन का सूचना पत्र।पिता समझ ना सके लड़की ने इसे कैसे संभव कर दिखाया।वे स्वयं पी.डब्लू.डी में चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी थे।दो लड़के और दो लड़कियों की जिम्मेदारी लिए जिंदगी की गाड़ी किसी तरह धक्के खाती चल रही थी।सरिता सब में बड़ी थी इसलिए अपने बाप के सिर का सबसे बड़ा बोझ भी।कितनी बार दिमाग में आया मर जाती तो अच्छा होता कमसे कम दान दहेज से मुक्ति मिलती।कितनी बार पढ़ाई छोड़ने का दबाव डाला कि कुछ पैसे बचेंगे तो लड़कों का भविष्य संवारने में काम आयेंगे। लेकिन सरिता ने एक ना सुनी,कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ा अपने पढ़ाई का खर्च निकालने लगी और अंततः एक बैैंक अधिकारी बनने का उसका सपना साकार हुआ। ऐसा नहीं था कि उसने अपने लिए ऊंचे ख्वाब पाले थे।वो हमेशा अपने पिता के मुंह से बड़ी बड़ी बातें सुनती कि राहुल को डॉक्टर बनाउंगा और बेटा सुरेश इंजिनियर बनेगा फिर हम एक बड़े घर में रहेंगे।ये और बात थी कि उसके पिता ये डींगे जब दारू के नशे की पिनक में रहते थे तब हांकते थे लेकिन जब नशा उतरता तो हर छोटी से छोटी जरूरतों को पूरा करने में उनकी असमर्थतता और उससे उत्पन्न झल्हाहट को देखकर उसका बालमन तड़प उठता और साथ हीं कहीं ना कहीं अपने पिता के सपनों को साकार करने की इच्छा उसके अवचेतन में गहरी जड़ें जमाती जाती।उसे बहुत मायूसी भी होती कि उसके पिता के ऊंचे ऊंचे सपनों में उसका और उसकी बहन का कहीं नाम ना होता।अगर भूल से नाम आता भी तो एक मजबूरी और बोझ कि तरह जैसे कि दोनों बहनें हीं उनके सपने की उड़ान के बीच सबसे बड़ी बाधा हों।पिता के इस दृष्टिकोण ने भी उसके अंदर कुछ कर गुजरने की जिद्द को जन्म दिया। सरिता को नौकरी करते दस साल हो गये हैं।शादी के बहुत सारे प्रस्ताव आए लेकिन सब में कुछ ना कुछ कमी निकाल कर शादी टाल दी गयी।मां को बहुत चिंता है कि बेटी की शादी का क्या होगा?वो तो सरिता हीं इतनी रुपवान है और इतनी अच्छी नौकरी कर रही है कि लड़के वाले बात भी कर ले रहे हैं नहीं तो शादी की उम्र तो कब की निकल चुकी है। आखिर उसने मन हीं मन ठान लिया कि कुछ भी हो सरिता के पापा से इस बारे में बात कर के हीं मानेगी।रात में उसने बात की शुरुआत की।पति झुंझला उठे -"खोपड़ी में अक्ल भी है तुम्हारे कि नहीं। राहुल एम बी बी एस के दुसरे साल में है। सुरेश का इंजिनियरिंग में एडमिशन होने वाला है और मैं पिछले महीने रिटायर हो चुका।शादी कर दोगी तो ये सब काम पूरे कैसे होंगे।शादी की बात भूल जाओ अगर आराम से जीना है।"पत्नी को काटो तो खून नहीं। सरिता ने भी बात सुन ली। हृदय पर मानो वज्राघात सा हुआ। दुसरे दिन सरिता ड्यूटी पर गयी फिर लौट कर नहीं आयी।संपर्क करने पर उसने बात करने से भी इंकार कर दिया।जब लोग पूछते है कि सरिता का क्या हुआ वो कहां है तो बहुत हीं तिक्त मन से पापा बोल देते हैं "क्या पूछते हैं उस कलंकिनी के बारे में। कितने अरमान से सोचा था स्वजातीय वर ढूंढकर लड़की की धूमधाम से शादी करूंगा लेकिन निर्लज्ज मेरी इज्जत को दांव पर लगा कुजात के साथ भाग गयी"। © ✍️रवि प्रकाश सिंह"रमण" Download Our App