Charlie Chaplin - Meri Aatmkatha - 57 books and stories free download online pdf in Hindi

चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 57

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

57

द डिक्टेटर के निर्माण के दौरान मुझे सनक भरे पत्र मिलने शुरू हो गये थे और अब चूंकि फिल्म पूरी हो गयी थी, ऐसे पत्रों की संख्या बढ़ने लगी। कुछ पत्रों में धमकियां दी गयी थीं कि वे लोग थियेटर पर बदबूदार बम फेंकेंगे जबकि कुछ और धमकियां थीं कि जहां कहीं फिल्म दिखायी जा रही होगी, परदे फाड़ देंगे। कुछ अन्य पत्रों में दंगा फसाद करने की बात कही गयी थी। पहले तो मैंने सोचा कि पुलिस को बताया जाये लेकिन फिर सोचा कि इस तरह का प्रचार शायद दर्शकों को थियेटरों से दूर ही रखे। मेरे एक दोस्त ने सुझाव दिया कि जहाजी मज़दूरों की यूनियन के प्रमुख हैरी ब्रिजेस से बात करना ठीक रहेगा। इसलिए मैंने उन्हें घर पर खाने के लिए बुलाया।

मैंने उन्हें बुलाये जाने के कारण के बारे में साफ साफ बता दिया। मैं जानता था कि ब्रिजेस नाज़ी विरोधी हैं, इसलिए मैंने उन्हें समझाया कि मैं नाज़ी विरोधी फिल्म बना रहा हूं और मुझे धमकी भरे खत मिल रहे हैं। मैंने कहा,'अगर कहें तो मैं पहले शो में आपके बीस या तीस मज़दूरों को आमंत्रित कर सकता हूं जो दर्शकों में घुल मिल कर बैठ जायेंगे और अगर ये नाज़ी समर्थक कोई हंगामा शुरू करते हैं तो आपके आदमी कुछ भी गम्भीर बात होने से पहले उनकी ऐसी तैसी कर सकते हैं।'

ब्रिजेस हँसे,'मुझे नहीं लगता कि हालत यहां तक पहुंचेगी, चार्ली। ऐसे खुराफातियों का मुकाबला करने के लिए आपकी अपनी ही जनता में काफी रक्षक होंगे। और अगर ये पत्र नाज़ी समर्थकों की तरफ से हैं तो वैसे भी वे दिन दहाड़े वहां आने की हिम्मत नहीं जुटा पायेंगे।'

उस रात हैरी ने सैन फ्रांसिस्को की हड़ताल के बारे में एक बहुत ही रोचक बात बतायी। उस वक्त ये हालत थी कि पूरा का पूरा शहर ही उनके नियंत्रण में था। शहर की पूरी आपूर्ति उनके हाथ में थी। लेकिन उन्होंने अस्पतालों और बच्चों के लिए आवश्यक आपूर्ति में कोई बाधा नहीं डाली। हड़ताल के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा,'जब कारण न्यायोचित हो तो आपको जनता को प्रेरित करने की ज़रूरत नहीं होती; आपको सिर्फ यही करना होता है कि उन्हें तथ्य बता दें। बाकी बातें वे अपने आप तय कर लेंगे। मैंने अपने आदमियों से कहा कि अगर आप हड़ताल पर जाते हैं तो बीसियों तरह की तकलीफ़ें होंगी: हो सकता है कि कुछ लोगों को नतीजे ही पता न चलें। लेकिन वे जो भी तय करेंगे, मैं उनके कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहूंगा। अगर हड़ताल करने का फैसला होता है तो मैं पहली पंक्ति में खड़ा रहूंगा। मैंने कहा और पांच हज़ार आदमियों ने एक मत से हड़ताल करने का फैसला किया।'

द' ग्रेट डिक्टेटर न्यू यार्क में दो थियेटरों, एस्टर तथा द कैपिटल में फिल्म दिखाये जाने के लिए बुक की गयी थी। एस्टर में हमने फिल्म प्रेस को दिखाने की व्यवस्था की। हैरी हॉपकिन्स, फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट के प्रमुख सलाहकार ने उस रात मेरे साथ खाना खाया। इसके बाद, हम प्रेस के लिए आयोजित फिल्म प्रदर्शन के लिए गये। जब हम पहुंचे तो फिल्म आधी चल चुकी थी।

कॉमेडी के प्रेस प्रदर्शन की एक खास विशेषता हुआ करती है। हँसी फिल्म में जिस तरह से होती है, उसी तरह से सुनायी देती है। रिव्यू में फिल्म में हँसी के पल, अपने सही अर्थों में सामने आते रहे।

'ये वाकई महान फिल्म है,' जब हम थियेटर से निकले तो हैरी ने कहा,'आपने बहुत ही महत्त्वपूर्ण काम किया है, लेकिन इसके चलने की बहुत कम उम्मीद है। आपको घाटा उठाना पड़ेगा।' चूंकि इस फिल्म में मेरे खुद के 2,000,000 डॉलर लगे हुए थे और दो वर्ष की मेहनत इससे जुड़ी हुई थी, मैं उनकी इस विपरीत राय से चिंतातुर होने की सीमा तक सहमत नहीं था। फिर भी, मैंने गम्भीरता से सिर हिलाया।

ईश्वर का धन्यवाद कि हॉपकिन्स गलत साबित हुए।

द' ग्रेट डिक्टेटर ने कैपिटल में खुशी से मस्त दर्शकों के सामने शानदार ढंग से खाता खोला। दर्शक दिल खोल कर हँस रहे थे और उनके उत्साह की सीमा नहीं थी। ये फिल्म न्यू यार्क में दो थियेटरों में पन्द्रह सप्ताह तक चलती रही और उस वक्त तक की मेरी सभी फिल्मों की तुलना में सबसे ज्यादा कमाई करके देने वाली फिल्म साबित हुई।

लेकिन समीक्षाएंं जो थीं, वे मिली-जुली थीं। अधिकतर समीक्षकों को अंतिम भाषण पर एतराज़ था। द' न्यूयार्क डेली न्यूज ने लिखा कि मैंने दर्शकों की तरफ साम्यवाद की उंगली उठायी है। हालांकि अधिकांश समीक्षकों ने भाषण पर ही एतराज़ किया था और कहा कि ये चरित्र में नहीं था। आम तौर पर जनता ने इसे पसन्द किया, और मुझे उसकी तारीफ में कई खत मिले।

आर्ची एल. मेयो, हॉलीवुड के महत्त् वपूर्ण निर्देशकों में से एक ने मुझसे अनुमति मांगी कि वे इस भाषण को अपने क्रिसमस कार्ड पर छापना चाहते हैं। यहां मैं मूल भाषण और उससे पहले उनके द्वारा दिया गया परिचय दे रहा हूं:

अगर हम लिंकन के काल में रहे होते तो मेरा ख्याल है मैंने आपको उनका गैटिसबर्ग भाषण भेजा होता, क्योंकि ये अपने वक्त का सर्वाधिक प्रेरणास्पद संदेश था। आज हम नये संकटों से गुज़र रहे हैं और एक दूसरे व्यक्ति ने अपने दिल की गहराइयों से और पूरी ईमानदारी से अपनी बात कही है। हालांकि मैं उस व्यक्ति को इतनी अच्छी तरह से नहीं जानता लेकिन उसने जो कुछ कहा है, उसने मुझे गहराई से छुआ है। मैं इस बात के लिए प्रेरित हुआ हूं कि चार्ली चैप्लिन द्वारा लिखे गये इस भाषण का पूरा पाठ आपको भेजूं ताकि आप भी आशा की इस अभिव्यक्ति में हिस्सेदारी कर सकें।

द' डिक्टेटर

का समापन भाषण

'मुझे खेद है, लेकिन मैं शासक नहीं बनना चाहता। ये मेरा काम नहीं है। किसी पर भी राज करना या किसी को जीतना नहीं चाहता। मैं तो किसी की मदद करना चाहूंगा - अगर हो सके तो - यहूदियों की, गैर यहूदियों की - काले लोगों की - गोरे लोगों की।

हम सब एक दूसरे की मदद करना चाहते हैं। मानव होते ही ऐसे हैं। हम एक दूसरे की खुशी के साथ जीना चाहते हैं - एक दूसरे की तकलीफ़ों के साथ नहीं। हम एक दूसरे से नफ़रत और घृणा नहीं करना चाहते। इस संसार में सभी के लिए स्थान है और हमारी यह समृद्ध धरती सभी के लिए अन्न जल जुटा सकती है।

'जीवन का रास्ता मुक्त और सुन्दर हो सकता है, लेकिन हम रास्ता भटक गये हैं। लालच ने आदमी की आत्मा को विषाक्त कर दिया है - दुनिया में नफ़रत की दीवारें खड़ी कर दी हैं - लालच ने हमें ज़हालत में, खून खराबे के फंदे में फंसा दिया है। हमने गति का विकास कर लिया लेकिन अपने आपको गति में ही बंद कर दिया है। हमने मशीनें बनायीं, मशीनों ने हमें बहुत कुछ दिया लेकिन हमारी मांगें और बढ़ती चली गयीं। हमारे ज्ञान ने हमें सनकी बना छोड़ा है; हमारी चतुराई ने हमें कठोर और बेरहम बना दिया है। हम बहुत ज्यादा सोचते हैं और बहुत कम महसूस करते हैं। हमें बहुत अधिक मशीनरी की तुलना में मानवीयता की ज्यादा ज़रूरत है। चतुराई की तुलना में हमें दयालुता और विनम्रता की ज़रूरत है। इन गुणों के बिना, जीवन हिंसक हो जायेगा और सब कुछ समाप्त हो जायेगा।

'हवाई जहाज और रेडियो हमें आपस में एक दूसरे के निकट लाये हैं। इन्हीं चीज़ों की प्रकृति ही आज चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है - इन्सान में अच्छाई हो - चिल्ला चिल्ला कर कह रही है - पूरी दुनिया में भाईचारा हो, हम सबमें एकता हो। यहां तक कि इस समय भी मेरी आवाज़ पूरी दुनिया में लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंच रही है - लाखों करोड़ों - हताश पुरुष, स्त्रियां, और छोटे छोटे बच्चे - उस तंत्र के शिकार लोग, जो आदमी को क्रूर और अत्याचारी बना देता है और निर्दोष इन्सानों को सींखचों के पीछे डाल देता है। जिन लोगों तक मेरी आवाज़ पहुंच रही है - मैं उनसे कहता हूं - `निराश न हों'। जो मुसीबत हम पर आ पड़ी है, वह कुछ नहीं, लालच का गुज़र जाने वाला दौर है। इन्सान की नफ़रत हमेशा नहीं रहेगी, तानाशाह मौत के हवाले होंगे और जो ताकत उन्होंने जनता से हथियायी है, जनता के पास वापिस पहुंच जायेगी और जब तक इन्सान मरते रहेंगे, स्वतंत्रता कभी खत्म नहीं होगी।

'सिपाहियो! अपने आपको इन वहशियों के हाथों में न पड़ने दो - ये आपसे घृणा करते हैं - आपको गुलाम बनाते हैं - जो आपकी ज़िंदगी के फैसले करते हैं - आपको बताते हैं कि आपको क्या करना चाहिए - क्या सोचना चाहिए और क्या महसूस करना चाहिए! जो आपसे मशक्कत करवाते हैं - आपको भूखा रखते हैं - आपके साथ मवेशियों का-सा बरताव करते हैं और आपको तोपों के चारे की तरह इस्तेमाल करते हैं - अपने आपको इन अप्राकृतिक मनुष्यों, मशीनी मानवों के हाथों गुलाम मत बनने दो, जिनके दिमाग मशीनी हैं और जिनके दिल मशीनी हैं! आप मशीनें नहीं हैं! आप इन्सान हैं! आपके दिल में मानवता के प्यार का सागर हिलोरें ले रहा है। घृणा मत करो! सिर्फ़ वही घृणा करते हैं जिन्हें प्यार नहीं मिलता - प्यार न पाने वाले और अप्राकृतिक!!

'सिपाहियो! गुलामी के लिए मत लड़ो! आज़ादी के लिए लड़ो! सेंट ल्यूक के सत्रहवें अध्याय में यह लिखा है कि ईश्वर का साम्राज्य मनुष्य के भीतर होता है - सिर्फ़ एक आदमी के भीतर नहीं, न ही आदमियों के किसी समूह में ही अपितु सभी मनुष्यों में ईश्वर वास करता है! आप में! आप में, आप सब व्यक्तियों के पास ताकत है - मशीनें बनाने की ताकत। खुशियां पैदा करने की ताकत! आप, आप लोगों में इस जीवन को शानदार रोमांचक गतिविधि में बदलने की ताकत है। तो - लोकतंत्र के नाम पर - आइए, हम ताकत का इस्तेमाल करें - आइए, हम सब एक हो जायें। आइए, हम सब एक नयी दुनिया के लिए संघर्ष करें। एक ऐसी बेहतरीन दुनिया, जहां सभी व्यक्तियों को काम करने का मौका मिलेगा। इस नयी दुनिया में युवा वर्ग को भविष्य और वृद्धों को सुरक्षा मिलेगी।

'इन्हीं चीज़ों का वायदा करके वहशियों ने ताकत हथिया ली है। लेकिन वे झूठ बोलते हैं! वे उस वायदे को पूरा नहीं करते। वे कभी करेंगे भी नहीं! तानाशाह अपने आपको आज़ाद कर लेते हैं लेकिन लोगों को गुलाम बना देते हैं। आइए, दुनिया को आज़ाद कराने के लिए लड़ें - राष्ट्रीय सीमाओं को तोड़ डालें - लालच को खत्म कर डालें, नफ़रत को दफ़न करें और असहनशक्ति को कुचल दें। आइये, हम तर्क की दुनिया के लिए संघर्ष करें - एक ऐसी दुनिया के लिए, जहां पर विज्ञान और प्रगति इन सबकों खुशियों की तरफ ले जायेगी, लोकतंत्र के नाम पर आइए, हम एक जुट हो जायें!

हान्नाह! क्या आप मुझे सुन रही हैं?

आप जहां कहीं भी हैं, मेरी तरफ देखें! देखें, हान्नाह! बादल बढ़ रहे हैं! उनमें सूर्य झाँक रहा है! हम इस अंधेरे में से निकल कर प्रकाश की ओर बढ़ रहे हैं! हम एक नयी दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं - अधिक दयालु दुनिया, जहाँ आदमी अपनी लालच से ऊपर उठ जायेगा, अपनी नफ़रत और अपनी पाशविकता को त्याग देगा। देखो हान्नाह! मनुष्य की आत्मा को पंख दे दिये गये हैं और अंतत: ऐसा समय आ ही गया है जब वह आकाश में उड़ना शुरू कर रहा है। वह इन्द्रधनुष में उड़ने जा रहा है। वह आशा के आलोक में उड़ रहा है। देखो हान्नाह! देखो!'

प्रीमियर के एक हफ्ते बाद मुझे आर्थर सुल्जबर्गर, न्यू यार्क टाइम्स के स्वामी द्वारा दिये गये लंच आयोजन में आमंत्रित किया गया। जब मैं वहां पहुंचा तो मुझे टाइम्स बिल्डिंग की सबसे ऊपर वाली मंजिल में ले जाया गया और एक घरेलू सुइट में मेरी अगवानी की गयी। ये पेंटिंगों, फोटोग्राफों और चमड़े के गद्दों वगैरह से सजा धजा एक ड्राइंग रूम था। फायर प्लेस के पास कई विभूतियां विराजमान थीं। इनमें युनाइटेड स्टेट्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति मिस्टर हरबर्ट हूवर, भी थे। साधुओं जैसी मुखाकृति और छोटी आंखें वाले कद्दावर शख्स थे वे।

'ये, श्रीमान प्रेसिडेंट, चार्ली चैप्लिन हैं।' मिस्टर सुल्जबर्गर ने मुझे उस विभूति के पास ले जाते हुए कहा। कई सलवटों के बीच में से मिस्टर हूवर का चेहरा मुस्कुराया।

'ओह! हां,' वे उत्साह से बोले,'हम पहले भी मिल चुके हैं। कई बरस पहले।'

मैं ये देख कर हैरान हुआ कि मिस्टर हूवर को वह मुलाकात याद रही, क्योंकि उस वक्त वे व्हाइट हाउस के लिए खुद को ढालने की तैयारियों में लगे हुए थे। वे एस्टर होटल में एक प्रेस डिनर में शामिल हुए थे और मुझे वहां के एक सदस्य द्वारा मिस्टर हूवर के व्याख्यान से पहले भर्ती के रूप में शामिल कर लिया गया था। उस समय मैं तलाक दिये जाने की उलझनों में फंसा हुआ था और मुझे ऐसा लगता है कि मैंने इस आशय के कुछ शब्द बड़बड़ा दिये थे कि मैं राजनीति के बारे में बहुत कम जानता हूं बल्कि सच तो ये है कि मैं अपने खुद के मामलों को भी ढंग से कहां जानता हूं। दो मिनट तक इस तरह की कुछ बकवास करने के बाद मैं बैठ गया था। बाद में मिस्टर हूवर से मेरा परिचय कराया गया था। मेरा ख्याल है, मैंने वहां कहा था,'कैसे हैं आप!' और बस, बात वहीं खत्म हो गयी थी।

वे बेतरतीब सी पाण्डुलिपि देखकर बोल रहे थे। उनके सामने कागज़ों की चार इंच मोटी गड्डी थी और वे जैसे जैसे कागज़ पढ़ते जाते, उन्हें अपने सामने से हटाते जाते। डेढ़ घंटे बाद सब लोग उन कागज़ों को मज़े लेते हुए देखने लगे। दो घंटे बाद कागज़ों की बराबर-बराबर की दो गड्डियां हो गयी थी। कई बार वे बारह पन्द्रह कागज़ एक साथ उठा लेते और उन्हें एक तरफ रख देते। बेशक, वे पल बहुत सुखद होते। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है और ये भाषण भी आखिर खत्म हुआ, जिस वक्त उन्होंने बिल्कुल कारोबारी तरीके से अपने कागज़ संभाले, मैं उनकी तरफ देखकर मुस्कुराया। मैं उन्हें उनके भाषण के लिए बधाई देना ही चाहता था कि वे मेरी तरफ ध्यान दिये कि मेरे पास से गुज़र गये थे।

और अब, कई बरसों के बाद, बीच का वह अरसा, जिसमें वे राष्ट्रपति रहे थे, वे असामान्य रूप से दोस्ताना दिखते हुए फायर प्लेस के सामने खड़े थे। हम एक बड़ी सी गोल मेज पर लंच के लिए बैठ गये। कुल मिला कर हम बारह लोग थे। मुझे बताया गया था कि इस तरह के लंच आयोजन एक खास भीतरी समूह के लिए ही होते थे।

अमेरिकी व्यवसायी प्रशासकों का एक वर्ग होता है जो मुझे हीनता की भावना से भर देता है। वे बहुत ऊंचे कद के होते हैं, दिखने में आकर्षक होते हैं, बेहद शानदार तरीके से उन्होंने कपड़े पहने होते हैं, सहज, आत्म नियंत्रण में रहने वाले और साफ सोचने वाले लोग, और उनके सामने तथ्य सफाई से रखे होते हैं। उनकी गूंजती सी भारी आवाज़ होती है और जब वे मानवीय मामलों की बात करते हैं तो ज्यामिती की भाषा के शब्दों में करते हैं। उदाहरण के लिए वे कहेंगे: 'वार्षिक बेरोज़गारी के नमूने से होनी वाली संगठनात्मक प्रक्रियाएंं' आदि। और इसी तरह के लोग उस मेज पर चारों तरफ बैठे हुए थे। वे भयावह लग रहे थे और उनके कद आकाश को छूते लग रहे थे। उनमें अगर कोई मानवीय चेहरा था तो वह था ओ'हरे मैक्कार्मिक का। वे बहुत विदुषी और आकर्षक महिला थीं। वे न्यू यार्क टाइम्स की विख्यात राजनैतिक स्तम्भकार थीं।

लंच के वक्त माहौल औपचारिक था और बातचीत कर पाना मुश्किल था। हर कोई मिस्टर हूवर को 'मिस्टर प्रेसिडेंट' कह कर संबोधित कर रहा था। मुझे लगा, शायद इस सब की ज़रूरत नहीं थी। जैसे जैसे लंच आगे बढ़ा, मुझे यह महसूस होने लगा कि मुझे यूं ही बेकार में लंच के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है। एक पल बाद मिस्टर सुल्जबर्गर ने जो कुछ कहा, उससे मेरा रहा सहा शक भी जाता रहा। बीच में, मौन के अनुकूल पल पा कर उन्होंने कहा,'मिस्टर प्रेसिडेंट, मैं चाहता हूं कि आप यूरोप के लिए अपने प्रस्तावित मिशन के बारे में बतायें।'

मिस्टर हूवर ने अपने छुरी कांटे नीचे रख दिये, ध्यानपूर्वक कौर चबाते रहे, तब उसे गले से नीचे उतारा और अंतत: उन्होंने वह सब कुछ कहना शुरू किया जो पूरे लंच के दौरान उसके दिलो-दिमाग को घेरे हुए था। वे अपनी प्लेट में देखकर बात करने लगे और जब वे बोलते तो मिस्टर सुल्जबर्गर और मेरी तरफ भेदभरी निगाहों से देख लेते,'हम सब जानते हैं कि इस वक्त यूरोप किस दयनीय हालत से गुज़र रहा है, वहां पर युद्ध के बाद से गरीबी और भुखमरी के हालात अपने पैर पसार रहे हैं। वहां पर हालात इतने नाज़ुक हैं कि मैंने वाशिंगटन से अनुरोध किया है कि वे हालात पर काबू पाने के लिए जल्दी ही कुछ करें,' (मैंने यही माना कि वाशिंगटन का मतलब राष्ट्रपति रूज़वेट ही होगा) यहां पर उन्होंने पहले विश्व युद्ध के दौरान भेजे गये अपने पिछले मिशन के आंकड़े और नतीजे उगलने शुरू कर दिये, जब 'हमने पूरे यूरोप को खिलाया था।' 'इस तरह का मिशन,' उन्होंने कहना जारी रखा,'किसी पार्टी से जुड़ा नहीं होगा, और ये पूरी तरह से मानवीय प्रयोजनों के लिए होगा। आप इसमें कुछ दिलचस्पी रखते हैं?' उन्होंने मेरी तरफ कनखियों से देखते हुए कहा।

मैंने गंभीरता से सिर हिलाया।

'आप इस परियोजना को कब शुरू करना चाहते हैं, मिस्टर प्रेसिडेंट?' मिस्टर सुल्जबर्गर ने पूछा।

'जैसे ही हमें वाशिंगटन की तरफ से अनुमोदन मिलेगा,' मिस्टर हूवर ने कहा। 'वाशिंगटन को जनता की तरफ से अनुरोध किये जाने और गणमान्य सार्वजनिक विभूतियों की ओर से समर्थन की ज़रूरत है।' एक बार फिर उन्होंने मेरी तरफ कनखियों से देखा और मैंने एक बार फिर सिर हिलाया। 'कब्जे वाले फ्रांस में,' उन्होंने कहना जारी रखा, 'लाखों लोग ऐसे हैं जिन्हें मदद की ज़रूरत है। नार्वे, डेनमार्क, हॉलेण्ड, बेल्जियम, सब जगह, पूरा का पूरा यूरोप ही अकाल की चपेट में हैं।' वे साधिकार बोलते रहे, आंकड़े उगलते रहे और उन पर अपने विश्वास, आशा और सहृदयता का मुल्लमा चढ़ाते रहे।

इसके बाद मौन पसर गया। मैंने अपना गला खखारा,'बेशक, स्थितियां बिल्कुल वैसी ही नहीं हैं जैसी कि पहले विश्व युद्ध के समय थीं। फ्रांस और उसी की तरह दूसरे कई देश भी पूरी तरह से कब्जे में हैं। निश्चित रूप से हम नहीं चाहेंगे कि हम जो अन्न भेजें, वह नाज़ियों के हाथ लगे।'

मिस्टर हूवर थोड़ा सा नाराज़ दिखे, इसी तरह की मामूली सी सरसराहट उन सब लोगों में भी दिखी जो वहां पर जमा थे। वे सब के सब पहले मिस्टर हूवर की तरफ देखने लगे फिर मेरी तरफ।

मिस्टर हूवर ने फिर से अपनी प्लेट की तरफ देख कर कहा,'हम अमेरिकी रेड क्रॉस के सहयोग से, पार्टीबाजी से परे एक कमीशन बनायेंगे और हेग समझौते के पैरा सत्ताइस, खण्ड तितालिस के अधीन काम करेंगे। इसके अन्तर्गत मदद करने वाला मिशन (मर्सी कमीशन) दोनों ही तरफ के, वे आपस में संघर्षरत हों या नहीं, बीमारों और ज़रूरतमंदों की मदद करेगा। मेरा ख्याल है, मानवता की दृष्टि से आप सब के सब इस तरह के कमीशन का समर्थन करेंगे।' ये ठीक वही शब्द नहीं हैं जो उन्होंने कहे थे - इसी तरह के भावार्थ वाली बात कही थी उन्होंने।

मैं अपनी बात पर अड़ा रहा। 'मैं इस विचार से सच्चे दिल से पूरी तरह से सहमत हूं, लेकिन शर्त यही है कि ये अन्न नाज़ियों के हाथों में नहीं पड़ना चाहिए,' मैंने कहा।

इस जुमले से मेज पर एक बार फिर सनसनी फैल गयी।

मिस्टर हूवर ने सधी हुई विनम्रता के साथ कहा,'हम इस तरह के काम पहले भी कर चुके हैं।' वहां जो आकाश छूती युवा विभूतियां बैठी थीं, उन सबकी निगाह अब मेरी तरफ मुड़ी। उनमें से एक मुस्कुराया।

उसके बोल फूटे,'मेरा ख्याल है मिस्टर प्रेसिडेंट स्थिति को संभाल सकते हैं।'

'बहुत ही अच्छा विचार है,' मिस्टर सुल्जबर्गर ने अधिकारपूर्ण तरीके से कहा।

'मैं पूरी तरह से सहमत हूं,' मैंने दबी हुई आवाज़ में कहा,'और इसका सौ प्रतिशत समर्थन करूंगा, यदि भौतिक रूप से इसकी व्यवस्था यहूदी लोगों के हाथों में हो।'

'ओह,' मिस्टर हूवर ने बात काटते हुए कहा,'ये तो संभव नहीं होगा।'