Aag aur Geet - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

आग और गीत - 9

(9)

“तो क्या वह नर्तकी निकल गई होगी ? ” – जोली ने पूछा ।

“पता नहीं – चलो देखते है ।” – राजेश ने कहा ।

दोनों होटल के हाल में आ गये जहां हर वस्तु अब ठीक ठाक नजर आ रही थी । राजेश ने इधर उधर देखा फिर जोली से कहा ।

“उन सरदार जी को देख रही हो ? ”

“वह वास्तव में चौहान है ।तुम उससे मिलो – मैं एक घंटा बाद होटल के बाहर वाले पार्क में तुमसे इसी भेस में मिलूंगा ।” – राजेश ने कहा औए जोली को वहीँ छोड़ कर मैनेजर के कमरे की ओर चल पड़ा ।

वास्तव में उसे उसी बैरे की तलाश थी जिससे कल उसने जानकारी प्राप्त की थी – मगर वह कहीं नजर नहीं आ रहा था । वह इधर उधर देखता हुआ मैनेजर के कमरे तक पहुंच गया ।

मैनेजर के कमरे का दरवाज़ा बंद था । वह खड़ा होकर आहट लेने लगा मगर अंदर से किसी भी प्रकार की कोई आवाज नहीं आ रही थी स उसने इधर उधर देखा । आस पास कोई नहीं था । उसने दाहिना पैर दरवाज़े पर रखा और हल्का सा दबाव डाला । दरवाज़ा अंदर से बोल्ट नहीं था – थोडा सा खुल गया – उसने झांक कर अंदर की ओर देखा और देखता ही रह गया ।

मैनेजर कुर्सी पर बैठा हुआ था । उसकी अंगुलियां में खुला हुआ फाउन्टेन पेन दबा हुआ था । गले में फांसी के फंदे के समान रेशम की पतली डोर कासी हुई थो और डोर का दूसरा सिरा खिड़की की एक सलाख से बंधा हुआ था ।

राजेश ने फिर इधर उधर देखा । कहीं कोई नहीं था । उसने जेब से दस्ताने निकाल कर हाथों पर चढ़ाये फिर दरवाज़ा थोडा सा खोल कर अंदर दाखिल हो गया । मेज पर एक कागज़ पड़ा हुआ था जिस पर अंग्रेजी में कुछ लाइनें लिखी गई थी । उसने उस कागज़ को उठा कर जेब में रखा और जल्दी से बाहर निकल कर दरवाज़ा उसी प्रकार भेड़ दिया जैसे पहले भिड़ा हुआ था फिर दस्ताने उतार कर जेब में रखे और हाल की ओर बढ़ गया ।

वह कल वाला बैरा अब तक उसे नहीं दिखाई दिया था और अब वह अपनी इस गलती पर अफ़सोस कर रहा था कि आखिर उसने कल उसका नाम क्यों नहीं पूछ लिया था ।

थक हार कर वह काउंटर की ओर बढ़ा औए निकट पहुंच कर खड़ा हो गया ।

“कहिये ? ” – काउंटर क्लर्क ने पूछा ।

“बात यह है कि यहाँ एक बेर है जो कभी कभी स्टोवर्ड का भी चार्ज संभालता है – मैं उसका नाम नहीं जानता ।”

“उसका नाम राजे है ।” – काउंटर क्लर्क ने बात काट कर कहा “आपको उससे क्या काम है ? ”

“मैं उससे मिलना चाहता हूँ – मेरी डायरी उसके पास है – वही उससे लेनी है ।”

“रुकिये – मैं उसे बुलाता हूँ ।” – काउंटर क्लर्क ने कहा फिर इंटर काम से संबंध स्थापित करके कहा “राजे को भेज दो ।”

कुछ ही क्षण बीते होंगे कि सीढ़ियों पर वही बैरा नजर आया जिसकी राजेश को तलाश थी । वह बालकोनी से नीचे उतर रहा था ।

राजेश उसकी ओर यह कहता हुआ बढ़ा ।

“मेरी डायरी...।” फिर आंखों से संकेत करके कहा “अगर भूल गये हो तो जाकर ले आओ । मैं काउंटर क्लर्क साहब से कह कर तुमको छुट्टी दिलवा दूंगा ।”

राजे समझ गया कि मामला क्या है अतः उसने कहा ।

“साहब ! आपकी डायरी तो मैं अपने निवास स्थान ही पर भूल आया ।”

“यह तो तुमने अच्छा नहीं किया ।” राजेश ने कहा फिर काउंटर क्लर्क से कहा “उस डायरी की मुझे सख्त जरुरत है, अगर आप थोड़ी देर के लिये उन्हें छुट्टी दे दें तो मैं आपका आभारी रहूंगा ।”

“कोई बात नहीं ।” काउंटर क्लर्क ने कहा फिर राजे से कहा “जाओ, साहब की डायरी लाकर दे दो ।”

“चलो, मैं भी चलता हूं, वहीं मुझे दे देना ।” राजेश ने कहा और राजे को लिये हुए दरवाजे की ओर बढ़ा ।

दूसरे ही क्षण दोनों पार्क में थे । राजेश ने पूछा ।

“वह डांस पार्टी जो आई थी, चली गई ?”

“जी हां ।”

“कितने आदमी गये हैं ?”

“तीन औरतें और तीन मर्द ।”

“जिस औरत ने आग का नाच दिखाया था वह भी उसी पार्टी की साथी थी ?”

“मालूम तो यही होता है ।”

“वह कब आई ?”

“यह तो मैं नहीं जानता ।”

“और बेन्टो ?”

“उसने आज तीसरे ही पहर को कमरा खाली कर दिया था और हिसाब भी चुकता कर दिया था ।”

“आज पेनरो की डयूटी कहां लगी है ?”

“वह किसी राजेश नाम के आदमी पर लगा दिया गया है । राजेश कोई बहुत ही खतरनाक आदमी है ।”

“जो पार्टी आई थी उसमें से किसी का नाम जानते हो ?”

“एक आदमी का...” राजे ने कहा “नाम है मोनटे । पता चला कि वह भी खतरनाक आदमी है ।”

“गुरेजानी अपने कमरे से क्यों नहीं निकला ?” राजेश ने पूछा ।

“यह मैं नहीं जानता । वैसे भी वह अक्सर अपना कमरा बंद करके अकेले बैठे रहते हैं । आज तो बेन्टो भी उनके साथ था ।”

“कब ?”

“इंटरवेल के बाद मैंने उसे मैनेजर साहब के कमरे में जाते हुए देखा था ।”

राजेश ने सौ की एक नोट उसे थमाते हुए पूछा ।

“गुरेजानी होटल के अतिरिक्त और कहां समय व्यतीत करता है ?”

“पार्क स्ट्रीट के एक बंगले में जिसका नंबर तेरह है ।”

“अच्छा, अब जाओ ।” राजेश ने कहा । उसने जोली और चौहान को आते हुए देख लिया था ।

“क्या रहा ?” जोली ने निकट आकर पूछा ।

“रहा यह कि अब तुम दोनों चलते फिरते नजर आओ, सीधे अपने घर जाओ ! रिपोर्ट अपने चीफ को दे देना । होटल में वापस न आना, मैं चला ।” राजेश ने कहा और इस प्रकार दौड़ता हुआ भागा जैसे मौत ने उसे दौड़ा लिया हो ।

और फिर पार्क से निकल कर वह अपनी टू सीटर पर बैठा और सीधा अपने फ्लैट पर पहुंचा ।

मेकफ ने बताया था कि मलखान सो रहा है ।

राजेश ने मेक अप बिगाड़ा, कपड़े बदले । उसके बाद भोलू को आवाज दी ।

भोलू आकर उसके सामने खड़ा हो गया ।

“आज क्या पकाया है भोला नाथ ?” राजेश ने प्यार भरे स्वर में पूछा ।

“जो रोज पकाता हूं साहब ।” भोलू ने कहा ।

“रोज क्या पकाता है ?”

“जो आप खाते हैं ।”

“अबे यह क्या बात हुई । तू मेरी ही बात को उलटफेर कर कह रहा है ।”

“इसी में बचत है साहब । इस कालिये ने मुझे बताया था कि अगर बात इस प्रकार की जाये कानून के बंधन से सुरक्षित रहा जा सकता है ।”

“हांय – हांय !” राजेश आंखें निकाल कर बोला “यह कानून बिच में कहां से आ कूदा ?”

“इस प्रकार समझिये ।” भोलू ने कहा “अगर मैं यह कह देता कि मैंने आपके लिये मूंग की दाल पकाई है और अपने लिये स्टू – तो फंस जाता – है या नहीं ?”

“शाबाश ! तू काफ़ी काबिल हो गया है ।” राजेश ने हर्षित होकर कहा, फिर मेकफ को घूरता हुआ बोला “क्यों बे हाथी की औलाद ! इसको पट्टी पढ़ाता है । अब तेरे कानों में माटांगा की आत्मा बकरी के समान मिनमिनायेगी ।”

“अरे नहीं बास ।” मेकफ कांपता हुआ बोला “ऐसी बददुआ न दो ।”

“ठीक है । आज तुझे एक हजार दण्ड लगाने पड़ेंगे ।”

“मर जाऊँगा बास ।” मेकफ घिघियाया ।

“मर भी तो जा ।” राजेश ने कहा, फिर भोलू से कहा “और तू क्या इस प्रकार मुंह देख रहा है । चल दोनों पैर उठाकर खड़ा हो जा ।”

मगर भोलू उसी प्रकार खड़ा रहा जब कि मेकफ दण्ड लगा रहा था ।

“क्यों – तेरे कान पर जूं नहीं रेंगी !” राजेश ने भोलू से पूछा ।

“मेरे सर में जूएं नहीं हैं साहब, फिर कान पर कैसे रेंगेगी ?” भोलू ने कहा ।

“यह भी ठीक है । अच्छा दोनों पांव उठाकर खड़ा हो जा ।”

“मुझे नहीं आता साहब । पहले आप खड़े होकर दिखाइये ।”

“ठीक है ।” राजेश ने कहा और सर के बल खड़ा होने लगा –

“अरे साहब !” भोलू जल्दी से बोला “टेली फोन...।”

राजेश को फौरन याद आ गया कि उसे जोली ने फोन करना है इसलिये वह सब कुछ छोड़ छाड़कर उस कमरे की ओर भागा जिसमें प्राइवेट फोन था ।

अवसर उचित देखकर भोलू धीरे से खिसक गया, मगर मेकफ दण्ड लगाता रहा ।

राजेश ने जोली के नंबर डायल किये ।

“हलो ।” दूसरी ओर से जोली की आवाज आई ।

“रिपोर्ट ?” राजेश ने पवन के स्वर में कहा ।

जोली ने राजेश से मिलने से लेकर राजेश के चले जाने तक की बातें कह डालीं । राजेश रिसीवर कान से लगाये सुनता रहा था । जब वह मौन हो गई तो उसने कहा ।

“यह सारी बातें राजेश मुझको बता चुका है । यह बताओ कि वह आदमी इंटरवेल से कितनी देर पहले तुम्हारी बगल से उठ कर चला गया था ?”

“लगभग पंद्रह मिनिट पहले...।”

“तुम्हें सूचित कर रहा हूं कि होटल कासीनो का मैनेजेर गुरेजानी भी क़त्ल कर दिया गया और मेरी रिपोर्ट के अनुसार उसका क़त्ल उस समय हुआ जब वह आदमी बगल से उठ कर चला गया था । चौहान की रिपोर्ट क्या है ?”

“वह बेन्टो के पीछे लगा रहा था । शो आरंभ होने से पहले वह आडिटोरियम में दाखिल हुआ था । मगर आडिटोरियम से वह कब निकला यह चौहान नहीं देख सका था ।”

“आग का नाच नाचने वाली डांसर के बारे में क्या रिपोर्ट है ?” राजेश ने पूछा ।

“वह दिन में दो बार होटल कासीनो में आई गई थी ।”

“किस प्रकार, मतलब है किस सवारी से ?”

“टेक्सी से । चौहान ने टेक्सी का नंबर नोट किया था ।”

“अजय कहां है ?”

“अपने घर पर होगा ।”

“कल सवेरे तक उसे ले जाने वाले टेक्सी ड्राइवरों के बारे में मुझे रिपोर्ट मिल जानी चाहिए । वैसे एक नंबर मैं भी बता सकता हूं । नोट करो ।” राजेश ने कहा फिर नंबर नोट कराने के बाद बोला “इसी नंबर की गाड़ी से कल रात वह गई थी । इस गाड़ी का ड्राइवर सही तौर पर यह बता सकता है कि उसने उस औरत को कहां उतारा था, बस ।”

संबंध काट कर जब वह कमरे से बाहर निकला तो उसके कमरे में फोन की घंटी बज रही थी ।

वह लपका हुआ कमरे में पहुंचा और रिसीवर उठा कर माउथपीस में बोला ।

“म्याऊं ।”

“हलो, कौन है ? राजेश कहां है ?” दूसरी ओर से सर शंभूदयाल की आवाज आई ।

“अरे बाप रे ।” राजेश ने कहा ।

“क्या बकवास है ।” शंभूदयाल की गर्जना सुनाई दी “कौन बोल रहा है ?”

“मैं हूं श्रीमान जी, राजेश ।”

“अभी बिल्ली की आवाज आई थी और फिर...।”

“जी हां ।” राजेश ने जल्दी से कहा “मैंने एक बिल्ली पाल रखी है और उसे सुधा भी रखा है । वही रिसीवर उठाती है ।”

“विचित्र आदमी हो ।”

“दोनों बातें नहीं हो सकती श्रीमान जी । कन्फ्युशस ने कहा है कि...।”

“बकवास नहीं । फौरन आ जाओ । स्थिति चिंताजनक है ।”

“अभी आया श्रीमान जी ।” राजेश ने कह कर संबंध काट दिया । फिर मेकफ को बुला कर कुछ आदेश दिये । उसके बाद नीचे आया, मोटर साइकल निकाली और उस पर बैठ कर चल दिया ।

अभी रात अधिक नहीं व्यतीत हुई थी और कुछ सड़कों पर अच्छी खासी चहलपहल थी ।

मगर जैसे ही मोटर साइकल सुनसान इलाके की ओर मुड़ी उसको पता लग गया कि उसका पीछा किया जा रहा है । उसने मोटर साइकल रोक दी और नीचे उतर कर अपने पीछे आने वाली मोटर साइकल की ओर देखने लगा ।

पीछे वाली मोटर साइकल भी उसकी मोटर साइकल के पास आकर रुकी और उस पर से जो आदमी उतरा वह काफी शक्तिशाली और फाइटर मालूम हो रहा था ।

“क्या बात है दोस्त !” राजेश ने पूछा “तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे थे ?”

उस आदमी ने उत्तर देने के बजाय फायर कर दिया । राजेश सावधान तो था ही – अपने को बचा ले गया । उस आदमी ने दो फायर और किये मगर चौथे फायर करने का राजेश ने उसे अवसर नहीं दिया । उसने उस आदमी पर छलांग लगा दी और उसे लिये दिये सड़क पर गिरा । उसका विपक्षी यद्यपि शक्ति में अधिक था मगर फिर भी उसने उसको उठने का अवसर नहीं दिया । उसके जबड़े पर घूंसे बरसा रहा था ।

अचानक गोलियों की वर्षा आरंभ हो गई । ऐसा लग रहा था जैसे दो ओर से उसे घेरने की कोशिश की जा रही हो ।

अब राजेश के सामने भाग निकलने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था । वह यह भी ताड़ गया था कि उसे जान से मारने की नहीं बल्कि जिन्दा गिरफ्तार करने की कोशिश की जा रही है – क्योंकि गोलियां इधर उधर पड़ रही थीं ।

उसने अपने विपक्षी की ओर देखा । वह बेहोश हो चुका था । उसने उसकी जेबों से कागजात निकले और पेट के बल रेंगता हुआ अपनी मोटर साइकिल की ओर बढ़ने लगा ।

मोटर साइकिल पर बैठते समय उसने यह भी देख लिया था कि विपक्षी की मोटर साइकिल से कुछ पीछे एक जीप खड़ी है । फायर करने वाले शायद उसी जीप से आये थे ।

राजेश ने मोटर साइकिल स्टार्ट की और वहां से निकल भागा । भागते भागते उसने भी कई फायर किये थे और दो चींखे भी गूंजी थीं ।

मार्ग में उसने एक पब्लिक टेलीफोन बूथ से जोली के नंबर डायल किये ।

“हलो ।” – दूसरी ओर से जोली की भर्राई हुई आवाज सुनाई दी ।