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लक्ष्मी का वरदान

किसी नगर में एक धनलाल नाम का सेठ था । धन के देवता कुबेर जी उनसे बहुत प्रसन्न थे। घर मे किसी भी चीज की कोई कमी नही थी। दूध,घी,धन्य एवं धान सभी भरपूर था। इतना सबक कुछ होने के बाद भी वह बहुत ही कंजूस एवं अत्याचारी था। उसके पास बहुत सारी जमीन थी । गाँव के अधिकतर लोग उसकी मजदूरी करते थे। सेठ उनसे बहुत काम लिया करा था, और बदले नाम मात्र की मजदूरी देता था । उनमें से कुछ लोगों के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था कि वह सेठ की मजदूरी करें और गुलामी करें। सारे अत्याचार सहने को मजबूर थे। गरीबी क्या-क्या ना कराती जब घर में कोई आयोजन होता था तो उसके उसके खर्च के इतने पैसे भी नहीं होते थे कि उसका ख़र्चा उठा सकें, फिर सेठ जी के पास जाकर उनसे कुछ पैसों की दर करार करके उन से उधार लेकर अपना आयोजन करते थे। सेठ जी उस पर ब्याज लगाता । ब्याज नहीं चुकाने पर ब्याज के साथ मूलधन जोड़कर फिर उस पर ब्याज लगाता। इस प्रकार दिनों दिन कर्जा बढ़ता जाता था और फिर उस कर्ज के बोझ में दबे हुए लोग सेठ की मजदूरी और गुलामी के लिए मजबूर होना ही पड़ता था

एक दिन धनलाल सेठ व्यापार के काम से शहर जाना था। उसके गाँव और शहर की दूरी 5 मील थी। उसने अपने नौकर खान बाबा को घोड़ा लाने को कहां। खान बाबा ने तुरंत घोड़ा लाकर सामने खड़ा कर दिया।सेठ धनलाल घोड़े पर सवार होकर शहर की और रवाना होता है। गांव के रास्ते जो लोग भी सेठ को देखते वे आपस मे बात करने लगते है। ऐसा लगता शायद कुछ लोग आपस में एक दूसरे से कह रहे हो कि देखो ! सेठ को जैसे घोड़े पर सवार होकर कोई राक्षस जा रहा है । कुछ लोग मन ही मन सोच रहे होंगे कि हम पर इतने अत्याचार करता है... भगवान इसके हाथ पैर तोड़ दे तब पता चलेगा कि दर्द क्या होता है। सेठ घोड़े पर सवार होकर गांव से बाहर निकल जाता है । खान बाबा जो घोड़े की लगाम पकड़े हुए आगे चल रहे थे। शहर और गांव के बीच बहुत सुंदर घना जंगल पड़ता है जो बारिश के मौसम में अति सुहावना लगता है । सेठ जी और खान बाबा थोड़े ही आगे बढ़े थे कि घोड़ा एकदम तेजी से भागा और खान बाबा के हाथ से लगाम छूट गई । घोड़ा बहुत तेजी से भागा जा रहा था । सेठ जी अचानक हुए हादसे से बेखबर थे। वे बहुत घबरा गए थे । थोड़ी दूर जाकर वे घोड़े से तेजी से गिर जाते हैं और बेहोश हो जाते हैं । जब होश में आते हैं तो अपने आप को अस्पताल में पड़ा हुआ पाते हैं । उनको बहुत चोट आई थी। हाथ, पैर के साथ शरीर की कई हड्डियां टूट चुकी थी । शायद लोगों की बद्दुआ लग गई । यह धनलाल में मन में सोचा होगा।

धनलाल की एक बेटी जिसका नाम भारती था। वह शहर में स्नातक की पढ़ाई कर रही थी । जब उसे पिता के बारे में पता चला तो वे तुरंत गांव आ गई । धनलाल के स्वभाव के विपरीत उसकी बेटी बहुत दयालु प्रवृत्ति की थी। दान धर्म करने में उसे बहुत आनंद प्राप्त होता था। उसका स्वभाव भी उसकी मां लक्ष्मी पर गया था। उसकी मां अपने यहां काम करने वालों की हर संभव मदद करती थी । उनके सुख दुख में हमेशा जो भी उससे बन पड़ता था उनकी मदद करती थी । लेकिन धनलाल की वजह से वे चोरी छुपे मदद किया करती थी ।

लक्ष्मी से सभी लोग खुश थे। लोग उनके नेक काम करने पर उनको ढेर सारी दुआ भी देते थे। यह सेठानी के परोपकार का परिणाम था कि इतने बड़े हादसे के बाद भी धनलाल जीवित बच जाता है।
भारती जब अपने पिता को इस अवस्था में देखती है तो वह बहुत दुखी हो जाती है। सेठ धनलाल सारे जमाने के लिए बहुत अत्याचारी था पर यह बेटी को बहुत प्यार करता था। अपनी बेटी को हमेशा उसने राजकुमारी की तरह पाला, उसकी हर फरमाइश पूरी करता था । तब भी जब वह आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाना चाहती थी तो भारती की मां का मन नहीं हो रहा था कि वे उसे शहर में आगे की पढ़ाई के लिए पहुँचाये। लेकिन धनलाल ने उसकी यह इच्छा भी पूरी की। मां को डर था कि शहर और गांव में बहुत अंतर होता है यहां पर बच्ची अपने सामने रहेगी तो वे क्या कर रही है .. कहां जाती है ...हर बात की जानकारी हमें लग जाती है, लेकिन शहर में कौन देखने वाला था। लेकिन भारती के संस्कार इतने अच्छे थे कि उस पर इस प्रकार की शंका करना व्यर्थ था।

धनलाल सेठ के पास पैसों की कमी तो नहीं थी। उसका इलाज शहर के बड़े अस्पताल में होता है लेकिन चोट इतनी की गंभीर थी कि उनको उठाने बिठाने के लिए सहारे की जरूरत थी। उनकी पत्नी उनके प्रत्येक काम करती थी । बेटी भी अपने पिता को अपनी ओर से हरसंभव तरीके से सहायता कर रही थी। इलाज बहुत लंबा चलता है।

एक दिन पत्नी उनकी मालिश कर रही होती है तभी बातचीत के दौरान उनसे कहती है देखो जी.. आपने लोगों पर कितने जुल्म और अत्याचार किए हैं, लोगों को कितना सताया है कि आज आपको साथ देने वाला कोई नहीं है ये उन्हीं की बद्दुआ का परिणाम है जो आप ऐसी हालत हो गई है इसलिए मैं कहती हूं किसी भी गरीब आदमी का दिल नहीं दुखाना चाहिए हमेशा जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। मजदूरों को उनके काम का उचित मूल्य देना चाहिए। आप तो राजा है आपको अपनी प्रजा की देखभाल करनी थी , लेकिन आपने देखभाल के स्थान पर उन पर जुल्म किया, सताया एवं अत्याचार किया। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था आप पर उस समय दौलत का ऐसा नशा था कि जब आपसे इस विषय पर बोलते समझाते तो उल्टा आप हमें ही गंदे गंदे शब्द बोलते थे। हे नाथ हमें आपकी चिंता इसलिए होती थी कि कोई देखे ना देखे भगवान तो देख रहा है भगवान सभी को उसके किए का दंड अवश्य देता है चाहे वह कोई भी क्यों ना हो। भगवान राम के पिता दशरथ जिन्होंने भूलवश श्रवण को तीर से मार दिया था तो उनके माता-पिता ने श्राप दिया था कि हे दशरथ जिस प्रकार हम दोनों अपने बेटे के दुख में तड़प तड़प कर मर रहे ठीक उसी प्रकार एक दिन तू भी अपने पुत्र के वियोग में तड़प तड़प कर मरेगा और हुआ भी वही जब राम वनवास चले जाते हैं तो राजा दशरथ उनके ब्लॉक में अपने प्राण त्याग कर देते हैं। जब राजा दशरथ को अपने कर्म की सजा भुगतनी पड़ी तो आप कौन होते हो ।
इस प्रकार सेवा करते करते यह सभी बातें लक्ष्मी ने धनलाल से कही। इतने में नर्स आ गई और उनको दर्द और इनका इंजेक्शन देने का समय हो गया था । दर्द बहुत ज्यादा होता था इस कारण ठीक से नींद भी नहीं आ रही थी इंजेक्शन लेने के बाद शिवजी को थोड़ा आराम लग जाता था और 1 घंटे 2 घंटे सो जाते थे।

हॉस्पिटल में रहते रहते लगभग 2 माह बीत चुका था । हां इतना आराम तो हो गया था कि वह अपने आप बैठ सकते थे , नहीं तो पहले उनका सारा समय केवल लेटे-लेटे निकलता था । एक दिन वह अपने पलंग पर बैठे हुए थे उन्होंने देखा कि गांव के कुछ लोग बाहर पत्नी से बाते कर रहे थे। जब पत्नी आई तो उसने पत्नी से पूछा कि यह लोग यहां क्यों आए। लक्ष्मी ने जवाब दिया यह वही लोग हैं जिनको जरूरत पड़ने पर आपने उनकी जरूरत पूरी नहीं की थी और उन को अपमानित करके भेजा था। लेकिन आपने मदद का हाथ उन पर से उठा लिया था पर मैंने आपसे चोरी-छिपे उनकी मदद की। वह मेरे परोपकार के कारण यहां आए ।

सेठ जी को एहसास हुआ है कि मेरे द्वारा इन पर अत्याचार करने के बाद भी मुझसे मिलने आये केवल मेरी लक्ष्मी के कारण । लक्ष्मी की एक एक बात उन्हें सही लग रही थी उनको अपने किए पर पछतावा हो रहा था। वह फूट-फूट कर रोए और कसम खा ली कि अब किसी पर अत्याचार नहीं करूंगा , जरूरतमंद की हरसंभव मत मदद करूंगा , दान धर्म भी करूंगा, इस प्रकार सेठ जी ने प्रतिज्ञा की। प्रतिज्ञा करने के बाद सेठ जी के स्वास्थ्य में बहुत शीघ्र सुधार हुआ और 8 दिन में ही अस्पताल से छुट्टी हो गई। सेठ जी अपने घर पर पहुंच गए। लोगों को भी सेठ जी के इस प्रकार व्यवहार परिवर्तन का पता लग गया था । अब सब कुछ अच्छा चलने लगा ।
इस प्रकार लक्ष्मी के वरदान से धन लाल के जीवन में सच्ची दौलत प्राप्त हुई।

लेखक : कमल माहेश्वरी