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बूँद भर शब्द


लघु कथा


लघु कथा
'सारी उम्र बीत गयी रे छोर्री!'
"नू ही साड़ी पहनते हुए, इब इस उम्र में क्या सूट पहरूँगी ! यह सुथ्हन वाले सूट ब्याह के बाद कोणी पहरे जावे म्हारी बिरादरी में!'
'ब्याह के बाद छोरी की चाहे जित्ती भी उम्र हॉवे उसे साडी ही पहननी पड़े और सर से तो पल्लू उतरने ही न पावे तो तू चाहवे के इब मैं सलवार सूट पहर लूँ,न मेरे से कोनि होवे येह, जा मैं कमरे से बाहर ही ना लिकढूंगी इब "
कहते कहते मिथलेश ने अपनी साड़ी को और कसकर अपने दुबली सी देह पर लपेट लिया ।
'यह आजकल की बहूए हुह, न हमने इनके दूसरी जात के होण पर एतराज कियाओर न हमने इनको टोका कि यह न पहरो वोह न पहरो, जो यह शहर आकर बेशरम सी बिना पल्लू के कदी बांह नंगी तो कही टांग घूमती रहवे.. तुमको कह दिया कि जो मर्ज़ी करो
पर अब हमपर भी ज़बरदस्ती कि अम्मा सीधे पल्ले की साड़ी न पहनो अम्मा सर पर पल्लू न रखा करो हमारे दोस्तों के सामने . अब यह सलवार सूट की जिद !! मुझे अबइनके घर नही रहना । एक तो पहले ही महरी और मिसराइन का काम सौप रखा हैं उस पर अब नयी जिद , इस से भली तो अपने गांव में थी .... बुदबुदाती हुयी मिथलेश घंटो तक बिस्तर पर उदास सी . करवटें बदलती रही। बहुत देर बाद जब पानी पीने रसोई की तरफ बढ़ी तो बहू की सहेलियों की हंसी सुनाई दी " यार क्या आइटम हैं तेरी सास कसम से ..""

नीलिमा शर्मा

क्या आइटम है तेरी सास
'सारी उम्र बीत गयी रे छोर्री!'
"नू ही साड़ी पहनते हुए, इब इस उम्र में क्या सूट पहरूँगी ! यह सुथ्हन वाले सूट ब्याह के बाद कोणी पहरे जावे म्हारी बिरादरी में!'
'ब्याह के बाद छोरी की चाहे जित्ती भी उम्र हॉवे उसे साडी ही पहननी पड़े और सर से तो पल्लू उतरने ही न पावे तो तू चाहवे के इब मैं सलवार सूट पहर लूँ,न मेरे से कोनि होवे येह, जा मैं कमरे से बाहर ही ना लिकढूंगी इब "
कहते कहते मिथलेश ने अपनी साड़ी को और कसकर अपने दुबली सी देह पर लपेट लिया ।
'यह आजकल की बहूए हुह, न हमने इनके दूसरी जात के होण पर एतराज कियाओर न हमने इनको टोका कि यह न पहरो वोह न पहरो, जो यह शहर आकर बेशरम सी बिना पल्लू के कदी बांह नंगी तो कही टांग घूमती रहवे.. तुमको कह दिया कि जो मर्ज़ी करो
पर अब हमपर भी ज़बरदस्ती कि अम्मा सीधे पल्ले की साड़ी न पहनो अम्मा सर पर पल्लू न रखा करो हमारे दोस्तों के सामने . अब यह सलवार सूट की जिद !! मुझे अबइनके घर नही रहना । एक तो पहले ही महरी और मिसराइन का काम सौप रखा हैं उस पर अब नयी जिद , इस से भली तो अपने गांव में थी .... बुदबुदाती हुयी मिथलेश घंटो तक बिस्तर पर उदास सी . करवटें बदलती रही। बहुत देर बाद जब पानी पीने रसोई की तरफ बढ़ी तो बहू की सहेलियों की हंसी सुनाई दी " यार क्या आइटम हैं तेरी सास कसम से ..""

नीलिमा शर्मा

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दूसरी लघुकथा

*बड़ी वाली लेखिका* "


आ जाते है मुँह उठाकर ,क्या समझते है यह फेसबुकिया लोग ? किसी की लिस्ट में हमारा नाम देखा और झट से मित्र प्रस्ताव भेज दिया ।हुह कम से कम 200 लोग मुचएल फ्रेंड हो तभी सोचती हूँ । 50 से कम वालो को तो फॉलो भी नही करनेदेती।"
एक बड़ी वाली लेखिका ने एक बड़े लेखक की तरफ देखकर अपने गालों पर लटकते बालो को कानों के पीछे घुमाते हुए कहा
"ओह हो, तो आप जब फ़ेसबुक पर आई थी तो 200 फेक मित्रो को ऐड करके आयी होंगी क्योंकि उसके कम में तो आपको भी किसी बड़े लेखक ने ऐड नही किया होगा ।"

"कहना क्या चाहते है आप" लेखिका जी का चेहरा तमतमा उठा
"यह मत भूलिए फेसबुक पर हर कोई जीरो मित्रसूची के साथ आता है और वो कितना भी महान क्यों न हो 5000 से ज्यादा मित्र सूची में ले भी नही सकता।यह मित्र सूचीवाले ही आपको पढ़कर बड़ा बनाये है जो आप आजकल लाइव आ रही है "

अवाक लेखिका लेखक महोदय को तक रही थी ।उनके इस मुंहलगे लेखक मित्र ने उनका फ़ोन अपने हाथ मे लेकर एक्सेप्ट आल फ्रेंड का बटन दबा दिया



नीलिमा शर्मा