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पृथुदक तीर्थ

पिहोवा का इतिहास ___________________________
पेहवा (Pehowa) या पेहोवा या पिहोवा भारत के हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र ज़िले में स्थित एक नगर है। इसका पुराना नाम पृथूदक (Prithudak) था। यह एक हिन्दू तीर्थ है
कुरुक्षेत्र महाभारत की युद्ध भूमि रही है। जहां कई सगे संबंधी मारे गए थे। तब युद्ध की समाप्‍ती के बाद पांडवों ने भगवान श्री कृष्‍ण के साथ मिल कर अपने सगे संबंधियों की आत्‍मा को शांति पहुंचाने के लिए पिहोवा की धरती पर ही श्राद्ध किया था। तब से पिहोवा को पितरों का तीर्थ स्‍थल माना जाने लगा है
पिहोवा को उच्च महत्व का धार्मिक स्थान माना जाता है और जगह की पवित्रता को उजागर करने के लिए, हरियाणा राज्य सरकार ने शहर की सीमा में मांसाहारी भोजन की बिक्री, कब्जे, खपत और खरीद पर प्रतिबंध लगा दिया है। [११] अदालत के आदेशों के तहत कस्बे में जानवरों के वध पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। [11] महाभारत के दौरान, Ahirs विशेष रूप से है कि अहीर भगवान कृष्ण की सेना के सैनिकों को कुरुक्षेत्र के युद्ध में उनके जीवन निर्धारित सभी पेहोवा में दाह संस्कार किया गया। पिहोवा अहीरों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थान माना जाता है, और वास्तव में सभी हिंदुओं और सिखों के लिए भी।
पृथुदक तीर्थ
पिहोवा एक बहुत प्राचीन शहर है, माना जाता है कि महाभारत युद्ध कई शताब्दियों पहले हुआ था क्योंकि यह उन दिनों में सूख गई सरस्वती नदी के तट पर विकसित हुआ था। महाभारत युद्ध के समय तक, नदी लंबे समय तक सूख चुकी थी, फिर भी यह एक बहुत ही पवित्र स्थान था जहाँ लोग अपने पूर्वजों को "पिंडा प्रधान" चढ़ाते थे। इसे अभी भी "पितृधाक तीर्थ" कहा जाता है और स्थानीय किंवदंती के अनुसार प्रयाग या गया से बहुत पहले इन बलिदानों को करने के लिए यह सबसे पवित्र स्थान था। माना जाता है कि भगवान कृष्ण युद्ध शुरू होने से पहले पांडवों को इस स्थान पर ले गए थे और उनसे सरस्वती माता और उनके पूर्वजों का आशीर्वाद लिया था। वर्तमान में, नदी में कोई प्रवाह या बहिर्वाह नहीं है और यह स्थिर है। सरस्वती मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्तंभ कई सदियों पुराने हैं। [ उद्धरण वांछित ] सरस्वती सरोवर इस शहर में स्थित है, जहां लोग पूजा और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। [12]

कुरुक्षेत्र की 48 कोस परिक्रमा में पृथुदक एक महत्वपूर्ण बिंदु है ।

महाभारत में कहा गया है कि

पुण्यामाहु कुरुक्षेत्र कुरुक्षेत्रात्सरस्वती। सरस्वत्माश्च तीर्थानि तीर्थेभ्यश्च पृथुदकम॥

कुरुक्षेत्र पवित्र है और सरस्वती कुरुक्षेत्र से भी पवित्र है। सरस्वती तीर्थ अत्यंत पवित्र है, किन्तु पृथूदक इनमें सबसे अधिक पावन व पवित्र है॥

महाभारत, वामन पुराण, स्कन्द पुराण, मार्कण्डेय पुराण आदि अनेक पुराणों एवं धर्मग्रन्थों के अनुसार इस तीर्थ का महत्व इसलिए ज्यादा हो जाता है कि पौराणिक व्याख्यानों के अनुसार इस तीर्थ की रचना प्रजापति ब्रह्मा ने पृथ्वी, जल, वायु व आकाश के साथ सृष्टि के आरम्भ में की थी। 'पृथुदक' शब्द की उत्पत्ति का सम्बन्ध महाराजा पृथु से रहा है। इस जगह पृथु ने अपने पिता की मृत्यु के बाद उनका क्रियाकर्म एवं श्राद्ध किया। अर्थात जहां पृथु ने अपने पिता को उदक यानि जल दिया। पृथु व उदक के जोड़ से यह तीर्थ पृथूदक कहलाया।

वामन पुराण के अनुसार गंगा के तट पर रहने वाले रुषंगु नामक ऋषि ने अपना अन्त समय जानकर मुक्ति की इच्छा से गंगा को छोड़कर पृथुदक में जाने के लिए अपने पुत्रों से आग्रह किया था। क्योंकि उसका कल्याण गंगा द्वार पर संभव नहीं था। पद्मपुराण के अनुसार जो व्यक्ति सरस्वती के उत्तरी तट पर पृथुदक में जप करता हुआ अपने शरीर का त्याग करता है, वह नि:संदेह अमरता को प्राप्त करता है।

पेहवा में गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के महान शासक मिहिर भोज का अश्व केंद्र था,यंहा घोडो का व्यापार होता था। उन्हे भोज देव भी कहा गया है। पेहवा से गुर्जर प्रतिहार शासक मिहिर भोज का एक अभिलेख भी प्राप्त हुआ है।

देश
भारत
राज्य
हरियाणा
ज़िला
कुरुक्षेत्र ज़िला
ऊँचाई
224 मी (735 फीट)
जनसंख्या (2011)
• कुल
38,853
भाषा
• प्रचलित
हरियाणवी, हिन्दी
समय मण्डल
भारतीय मानक समय (यूटीसी 5:30)
वाहन पंजीकरण
HR 41