Muskarate chahare ki hakikat - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

मुस्कराते चहरे की हकीकत - 1

एक कॉम्प्लिकेटेड, सस्पेंस थ्रिलर और एक्शन से भरी अवनी और विवान की प्रेम कहानी, जो बहुत सी मुस्किलो से होते हुए अंजाम तक पहुंचती हैं
"मुस्कराते चहरे कि हकीक़त"


संगम विहार,A-block, नई दिल्ली-62
सुबह के पांच बज रहे हैं सोनम दौड़ते हुए रमेश के पास आती है और उसे उठाने की कोशिश करती हैं। सोनम बहुत घबराई हुई थी,,
सोनम, घबराते हुए- रमेश उठिए! वो घर छोड़कर चली गई है।
सोनम की बात सुनकर रमेश अचानक खड़ा हो जाता हैं और घबराया हुआ सोनम को पकड़कर चिल्लाते हुए- क्या? कहा चली गई और कब, कैसे.....?
सोनम, गुस्से से चिल्लाते हुए- मुझे नहीं मालूम, आप बाहर जाकर देखिए।
सोनम और रमेश बाहर हॉल में आते है जहां विक्रम और वंदिता पहले से ही परेशान बैठे थे।
विक्रम, रमेश के पास आकर- भैया,उसका कुछ पता नहीं चला,,,ना जाने कहां गई होंगी।
रमेश, गुस्से में दांत पीसते हुए- ये लड़की हमे चैन से जीने नहीं देगी। पहले ही इसकी वजह से कितने परेशान है और अब घर छोड़कर भाग गई ।
रमेश परेशान होकर चारो तरफ़ देखने लगता हैं।
वंदिता,सोनम के पास आकर डरते हुए- वो लोग हमे जिंदा नहीं छोड़ेंगे दीदी।
सोनम, उसे समझाते हुए- नहीं वंदिता,(गुस्से से) उसके कर्मो की सजा हम क्यों भुगते, आखिर लगती क्या है वो हमारी।और वैसे भी हमने तो बता दिया था उन्हे।हमने थोड़ी उसे भगाया था।
रमेश, सोफे पर बैठकर अपना सिर पकड़ते हुए- कहा था उसे सिर पर मत बेठाओ, भैया-भाभी की मौत के बाद ही उसे अनाथाश्रम छोड़ आते तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता।
सोनम- सोचा नहीं था वो आगे चलकर इस हद तक जा सकती हैं।
रमेश, सोनम से -लेकीन सोनम तुम्हीं ने तो कहा था उसे उसके ननिहाल भेज दो और मां ने उसे वहां भेज दिया ।
विक्रम, बिच मे ही- और उन्होने क्या किया उसे हॉस्टल भेज दिया। जिस कारण आज ये सब हो रहा हैं।
वंदिता, विक्रम के पास आकर- विक्रम सही कह रहे हैं आप,, दो साल पहले वो यहां आईं थीं अपने साथ तूफान लेकर और अब यहां से ख़ुद निकल गई।
सोनम गुस्से से- माजी और पापाजी कि जिद्द थी उसे यहां लाने की वरना हम उसे अपने घर में पैर तक नहीं रखने देते...।
विक्रम- पर भैया वो जा कहा सकती है,,,,
रमेश, कुछ सोचकर- कहां जा सकती हैं वो, ननिहाल तो जा नहीं सकती क्या हुआ था उसके साथ वहां,हम सब जानते हैं और जॉब भी छोड दी थी ना उसने...... फ़िर कहा गई होंगी।

ये सब जिसकी बात कर रहे हैं वो है 23 वर्ष की एक लड़की, जो दिखने में जितनी सुंदर थी उतनी ही मजबूत जिसकी आंखों में आत्मविश्वास गुस्सा और एक जंग थी, उस लड़की का नाम है अवनी,,,,,
रेल्वे स्टेशन, समय 5:15AM
ब्लेक पेंट और रेड शर्ट पहने, कंधे पर बैग लिए, जिसको दोनो हाथों से मजबूती से पकड़े अवनी आने वाली ट्रेन का इंतजार कर रही थी।
कुछ देर में वहां एक ट्रेन रुकती हैं और अवनी महिला डिब्बे मे जाकर बैठ जाती हैं,,,, वह खिड़की के पास की सीट पर बैठती हैं और खिड़की से बाहर की तरफ देखते हुए अपने अतीत के बारे मे सोचने लगती है और अपनी आंखे बंद कर लेती है।
अवनी, मन ही मन- क्या मैने इस तरह घर छोड़ने का फैसला सही किया या नहीं...? सॉरी पर मै क्या करती दादी,,, आपको पता है ना वो लोग मुझे पंसद नहीं करते और वो मुझे उन लोगो के हवाले कर देते......... और मझे
अपने मकसद को अंजाम देने के लिए घर छोड़ना जरूर था
सोचकर अवनी फिर बाहर देखने लगती हैं।।
उसके सामने की सीट पर 65 साल की औरत बैठी थी जो कबसे अवनी को इस तरह उदास देख रही थी उनका नाम था सुरेखा जी, अवनी इस बात से अनजान थी कि कोई उसे देख रहा है,,,, तभी अवनी को अपने हाथ पर किसी के हाथ का एहसास होता है और वह सामने देखती है।
सुरेखा जी, अवनी के हाथ पर हाथ रखकर- क्या हुआ बेटा? आप उदास क्यों हो..?
अवनी कुछ नहीं बोलती,वह हल्के से मुस्कुराकर अपनी नजरें फेर लेती है।
सुरेखा जी, फिर से- चलो ठीक है पर तुम जा कहा रहीं हों बेटा।
अवनी, उनकी तरफ देखकर- भोपाल,,,,,,इतना कहकर वह चुप हो जाती हैं।
सुरेखा जी, बात को आगे बढ़ाते हुए- मै भी वही जा रही हूं बेटा। तेरा घर हैं क्या वहा..?
अवनी, मुस्कराते हुए - नहीं.... मेरा घर नही है जॉब के लिए जा रहीं हूं।
सुरेखा जी- आज मेरे साथ चलोगी....
अवनी ,आश्चर्य से - कहां.....?
सुरेखा जी, मुस्कुराते हुए- एक ऐसी दुनिया में जहां सब के दुख और दर्द एक जैसे होते हैं सब साथ हंसते हैं और रोते हैं जहां अनजाने मिलकर एक परिवार बनाते हैं....।
अवनी, सुरेखा जी की तरफ देखकर- आप क्या बोल रही है दादी, मै कुछ समझी नहीं.....
सुरेखा जी- मुझ पर विश्वास है ना बेटा।
अवनी कुछ सोचकर हा मे सिर हिलाती हैं और सुरेखा जी से बातें करने लगती है।
2 घंटे बाद ट्रेन भोपाल पहुंचती है और दोनों स्टेशन पर उतरते हैं वहां से रिक्शा में बैठकर कुछ दूर जाने के बाद सुरेखा जी ड्राइवर से रिक्शा वही रुकवा देती है और उसे किराया देकर दोनों आगे निकल जाते हैं। कुछ ही देर बाद दोनों एक बड़े से गेट के पास पहुंचते हैं जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था "अग्रवाल आश्रम" और दोनों आगे बढ़ने लगती है। अवनी बार बार उस नाम को देख रही थी जैसे उसके अतीत का पन्ना इस नाम से जुड़ा हो।
अवनी, हिचकीचाहते हुए सुरेखा जी से- अग्रवाल आश्रम....
सुरेखा जी- यह आश्रम भोपाल के सबसे बड़े बिजनेसमैन का है जिनकी पहुंच देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी दूर-दूर तक है, देश में कई जगह उनका बिजनेस फैला हुआ है उनका नाम है 'कृष्णमूर्ति अग्रवाल'
सुरेखा जी आगे बोलती है- बेटा यहां वृद्धाश्रम और अनाथ आश्रम दोनों है जहां बच्चों को बड़ों का प्यार मिल जाता है और हमें उनका साथ,,,,,,
इतना कहकर सुरेखा जी गेट के अंदर चली जाती है और अवनी को आने के लिए बोलती है।
अवनी, सुरेखा जी से - आप चलिए दादी मै आती हूं।
इतना कहकर अवनी थोड़ा दूर जाकर अपने जेब से फोन निकालती हैं और उसमें सिम बदलकर कीसी को कॉल लगाती है।
सामने से किसी व्यक्ति की आवाज आती है- मिस अवनी आप भोपाल पहुंची या नहीं....
अवनी- जय हिंद सर,,,,अभी मैं भोपाल में ही हूं
अवनी आगे कुछ बोलती इससे पहले ही सामने से आवाज आती है ,,,,,सर मत बोलना आगे से वरना.. तुम्हें मिशन पता है ना, 2 साल से तुम इस पर वर्क कर रही हो। ध्यान रहें किसी को बिल्कुल भी शक ना हो।
अवनी- यस सर, मुझे पता है। आपको कुछ इंपोर्टेंट बताना था।
बताओ,,,,, सामने से आवाज आती हैं।
मैं अग्रवाल आश्रम में खड़ी हूं,,, अवनी सामने लगे बॉर्ड की तरफ देखकर बोलती हैं।
क्या बोल रही हो तुम वहां कैसे पहुंची,,,,, सामने से उस व्यक्ति की आवाज आती है
अवनी, उन्हें समझाते हुए- डोंट वरी... सब कुछ अपने प्लान के हिसाब से ही होगा। मै यहां गलती से पहुंच गई। अभी यहां से निकल जाऊंगी।
फिर से उस व्यक्ति की आवाज आती है- हां जल्दी से वहां से निकलना, बेस्ट ऑफ लक अवनी...
अवनी, मुस्कराते हुए- थैंक यू.....
और फोन कट हो जाता है अवनी फोन को वापस जेब में रखकर सुरेखा जी के पीछे पीछे जाती हैं।सामने एक 70 साल का व्यक्ति खड़ा था जो अवनी और सुरेखा जी को ही देख रहा था। सुरेखा जी उसके पास आती है तभी वह आदमी सुरेखा जी से कहता है- बहुत देर लगा दिया आपने आने में सुरेखा जी.....
सुरेखा जी, थोड़ा उदास होकर- ज्यादा दिन नहीं केवल तीन दिन ही हुए हैं हमें यहां से गए हुए और क्या करें मन ही नहीं किया वहां से आने का.... इतना कहते ही सूरेखा जी की आंखो में आंसू टपकने लगते है।
महेश जी, उनके आंसू पूछते हुए- आप किन के लिए आंसू बहा रही है उनके लिए जिन्होंने पीछे मुड़कर हमें देखा भी नहीं, अब हमें भी उनके बिना जीने की आदत डालनी होगी सुरेखा जी।
महेश जी सुरेखा जी के हाथों से बैग लेता है और चलने लगता है तभी उसकी नजर अवनी पर जाती है
महेश जी, सुरेखा जी से- ये आपके साथ कौन है सुरेखा जी.....
सुरेखा जी, अवनी कि तरफ देखकर- ये आज रात हमारे साथ ही रहेगी इसका यहां कोई नहीं है सुबह यहां से निकल कर यह अपने लिए मकान ढूंढ लेगी।
महेश जी अवनी के पास आकर - बेटा तुम जितने दिन चाहो यहां रुक सकती हो हम साहब से बात कर लेंगे।
अवनी, महेश जी से- नहीं दादाजी हम सुबह जल्दी ही यहां से निकल जाएंगे, हमे कुछ काम हैं बाहर....।
महेश जी- ठीक है बेटा , आओ अंदर चलो।
और खुद आगे चलने लगता है उसके पीछे सुरेखा जी और अवनी आते हैं
आश्रम बहुत ही बड़ा था जहां लगभग 1100 लोग रहते थे जिनमें 600 बच्चे और 500 बुजुर्ग रहते हैं लेकिन इस आश्रम में 15 से कम उम्र के बच्चे ही रहते थे और उनमें भी लड़कियों की संख्या बहुत कम,यहां बच्चों की शिक्षा से लेकर खाने-पीने की सारी व्यवस्थाएं थी और बुजुर्गों के लिए भी अच्छी व्यवस्था थीं
सुरेखा जी अवनी को अपने कमरे में ले जाते हैं और उसे फ्रेश होने के लिए बोलकर खुद बाहर चली जाती है।
कुछ देर बाद में महेश जी और सुरेखा जी दोनों खाना लेकर अवनी के पास आते हैं और उसे खाना खिलाते हैं।
अवनी,दोनों की तरफ देखकर -थैंक्यू दादी आपने मुझे इतना प्यार दिया, बिल्कुल मेरी दादी जैसा..मैं भी अपनी दादी से बहुत प्यार करती थी लेकिन अब वह इस दुनिया में नहीं रही
इतना कहकर अवनी सुरेखा जी के गले लग जाती हैं ।
अगली सुबह
अवनी सुबह जल्दी उठ जाती हैं और फ्रेश होकर सुरेखा जी के पास आती है ,जो पहले से ही उठ चुकी थी और उन्हें जाने के लिए बोलती है।
सुरेखा जी, अवनी से-बेटा नाश्ता तो करती जाओ.....
अवनी- नहीं दादी अभी मुझे बहुत काम है जल्दी नहीं पहुंची तो मुझे कभी काम नहीं मिलेगा,,,
तभी बाहर से महेश जी आते हैं जो अवनी और सुरेखा जी की बातें सुन रहे थे अवनी के पास आकर उसे आशीर्वाद देते हुए- तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई बेटा.., भगवान करे तुम जिस काम के लिए जा रही हो उसमें तुम्हें सफलता मिले।
अवनी मुस्कुराते हुए दोनों का आशीर्वाद लेती है और जाने लगती है तभी पीछे से सुरेखा जी की आवाज आती है,,, बेटा यदि तुम भोपाल में रहो तो हमसे मिलने जरूर आना... दादी कहां है ना तुमने,,,,
अवनी, पीछे मुड़कर- जरूर आऊंगी दादी....
अवनी वहां से चली जाती है तभी उसकी नजर सामने खेल रहे बच्चों पर जाती है अवनी उनके पास जाकर- मेरे साथ खेलोगे।
सभी बच्चे अवनी की तरफ देखने लगते हैं और अवनी उनके साथ खेलने लगती है। उनमें से एक बच्चा अवनी के पास आकार - दीदी हमें घुमाने ले जाओगे ना, हमें यहां से घुमाने नहीं लेकर जाते।।
अवनी, उसके पास बैठकर- आपका नाम क्या है.....
लड़का-ईसू और यह मेरे दोस्त है निशा स्लोक और चिन्नू....(अपने पास खड़े बच्चो की तरफ़ इशारा करते हुए)
अवनी, मुस्कराते हुए- पक्का, लेकीन अभी नहीं, कभी और दिन अभी मुझे जाना है।
कनु- ओके दिदी लेकीन आप प्रोमिश करो आप वापस आओगी ना।
अवनी, उसके गालों पर हाथ रखकर- प्रोमिस.... अब मै जाऊ।
सभी बच्चे मुस्कुराते हुए हा में सिर हिलाते हैं और अवनी उन्हें बाय बोल कर वहां से चली जाती है।

continue....