Kataasraj.. The Silent Witness - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 12

भाग 12

पुरवा ने रात का खाना बना दिया था। उसे ढलती हुई धूप देख कर अंदाजा हो रहा था समय होने वाला है। वो उर्मिला के पास आकर बोली,

"अम्मा…! खाना तो बना दिया। अब क्या करूं…?"

उर्मिला बोली,

" जा … आराम कर ले।"

पुरवा बोली,

"अम्मा…! देख रही हो दिन ढलने वाला है। अब क्या आराम करूंगी…?"

"तब … फिर जा जो किताब आरिफ ने दिया है। उसे पढ़ ले।"

फिर पुरवा बोली,

" नही… अम्मा…! अभी मन नहीं है। सुबह से किताब ही तो पढ़ रही थी। बोलो ना अम्मा…! क्या करें…"

अब उर्मिला वही बोली जो पुरवा सुनना चाहती थी।

"तब.. फिर जा.. नाज़ के घर चली जा। उससे मिल आ।"

उर्मिला ने कहा।

पुरवा चहकते हुए बोली,

"सच … में अम्मा…! चली जाऊं..?"

उर्मिला हंसते हुए बोली,

"हां. हां. ! चली जा। अब दिन ही कितने बचे हैं उसके निकाह के। फिर तो चली जायेगी वो।"

उर्मिला को अपना और नईमा का का वक्त याद आ गया। सहेली से बिछड़ना क्या होता है…? उसका दर्द कैसा होता है…? ये नईमा और उर्मिला से बेहतर कौन जानता है…?

अम्मा की ’हां’ होते ही पुरवा उछलती कूदती कमरे में जा कर तैयार होने लगी।

और फिर थोड़ी ही देर में पुरवा तैयार उर्मिला के सामने खड़ी थी।

"अम्मा…! जा रही हूं।"

उर्मिला ने मुस्कुरा कर सिर हिला दिया।

और पुरवा चली गई नाज़ के घर।

उसे जाते हुए उर्मिला देख रही थी। फिर पति अशोक को दिखाते हुए बोली,

"देख रहे हो… बेटी कितनी बड़ी हो गई। कोई चिंता है या कान में तेल डाल कर, आंखे बंद कर कुछ भी नही दिखने का स्वांग करते बैठे रहोगे। इसके साथ की ही है नाज़। देखो उसका निकाह हो रहा है। आप भी कोई लड़का देखिए। किसी से पता कर बात चीत की कोशिश करिए।"

अशोक उर्मिला को देख व्यंगत्मक लहज़े में बोला,

"तुमको को तो लगता है कि तुम्हें ही सिर्फ चिंता है पुरवा की। मुझे तो कुछ भी दिखता ही नही। तो एक बात जान लो। मैं तो आंख बंद करके, कानो में तेल डाल कर भी अपना फर्ज अच्छे से निभाने की हैसियत रखता हूं।"

उर्मिला हैरत से अशोक को देखने लगी। ये क्या कह रहे हैं..? कैसे अपना फर्ज निभाने की तैयारी कर रहे हैं कि मुझे ही नही पता। वो अशोक के पास खिसक आई और बोली,

"सच बताओ…! कोई लड़का है क्या अपनी पुरवा के लिए तुम्हारी नज़र में। मजाक तो नही कर रहे।"

अशोक बोले,

"मैं कोई मजाक नहीं कर रहा। और नजर में नही है बल्कि मैने लगभग बात भी कर ली है। लड़का बहुत अच्छा और समझदार है।

तुम्हे पता ही है अभी पिछले हफ्ते मैं बुआ के घर महाराजगंज गया था। उनके ही देवरानी है अपने चाचा की बहन गुलाब बुआ। उन्हीं का लड़का है। और जल्दी जल्दी क्यों उनके घर जा रहा हूं। क्या मैं यूं ही घूमने गया था…? वो बुआ ने बताया था एक लड़का। वो उसी के पिता आने वाले थे। उसी से बात करने गया था। उन्हें रिश्ता पसंद है। जैसी लड़की वो अपने बेटे के लिए चाहते है। पुरवा उस मापदंड पर बिल्कुल खरी उतरती है। भगवान ने चाहा तो अगले बैशाख से पहले अपनी पुरवा के हाथ पीले हो जायेंगे। फिर बचे चंदू और नंदू। वो तो अभी छोटे हैं। अपने मामा के साथ रह कर पढ़ ही रहे हैं।"

जो उर्मिला अभी बस कुछ पल पहले पति को बेटी के ब्याह की जिम्मेदारी का एहसास करा रही थी। उसे बे परवाह बाप होने का ताना दे रही थी। अब बैशाख से पहले बेटी का ब्याह करने की सुन कर सकते में आ गई। उंगली पर महीने जोड़ने लगी। कुल चौदह महीने ही बचे हैं। तो क्या बस चौदह महीने बाद पुरवा पराई हो जायेगी…? उसकी आंखे भर आई। फिर पति से ओरहन देते हुए बोली,

"तुम्हें ….! इकलौती बेटी इतनी बोझ बन गई है कि अंदर ही अंदर ब्याह तय कर लिया और मुझसे पूछना तो दूर बताना भी जरूरी नहीं समझा…! मैने लड़का देखते रहने के लिए कहा था। ये नही कहा कि उसे तुरंत घर से विदा कर दो।"

उर्मिला ने मुंह फुला लिया।

अशोक हंसते हुए बोले,

"तुमसे तो जीतना असंभव है भागवान। अभी तक अब घर वर अच्छा है। अपने रिश्तेदारी में हैं। वो लोग पढ़े लिखे हैं। अब तुम कह रही हो तो कुछ समय तक और टाला जा सकता है। पर छेका तो जल्दी से करना ही होगा।"

उर्मिला का मन ना जाने कैसा होने लगा।

वो अपनी बेटी के लिए हर तरह से योग्य वर चाहती थी। को दिखने में तो अच्छा हो ही साथ में पढ़ा लिखा भी हो। घर से बहुत ज्यादा संपन्न भले ना हो पर उसकी बेटी को अपनी इच्छाएं नही मारनी पड़ी। ऐसा ही कुछ दामाद पाने की ख्वाहिश थी उसकी दिल में। वो अशोक से सब कुछ जान लेना चाहती थी। अगर उसकी उम्मीद से जरा सा भी ऊंच नीच हुआ तो फिर वो इस रिश्ते के लिए मना कर देगी। ऐसा सोच वो धीरे से अशोक से बोली,

(क्योंकि पास वाला घर धनकू का था। और उसकी मेहरारू भी बाहर ही बैठी हुई थी। और उसका आंख कान हमेशा ही उर्मिला के घर पर ही लगा रहता। अगर कहीं भूले से भी उसने पुरवा के ब्याह का बात सुन लिया तो बिना समय बर्बाद किए पूरे गांव में गा आएगी। फिर कौन दुश्मन …. ? कौन हित…? किसको पता किसके दिल में क्या है…? लड़का अच्छा देख ब्याह ही काट दे। यही वजह थी उर्मिला के धीरे बोलने की।)

"कितना लंबा है जी वो…?"

अशोक बोला,

"हमसे तीन चार अंगुल बड़े ही होगा।"

"रंग कैसा है…? पक्के पानी का तो नही है…?"

अशोक बोले,

"अरे…! पुरवा से ज्यादे ही साफ है। चिंता मत करो।"

फिर उर्मिला बोली,

"खेती … उती… है ना काम भर का।"

अशोक बोले,

"अपने बुआ का ही पटीदार है…। तो जितना खेत बारी बुआ के पास है। वही उतना उनके पास भी है। और फूफा तो नौकरी नहीं करते हैं। लड़के का बाप… जवाहर फूफा तो अदालत में काम भी करते है। मतलब … बुआ से बिसे है। और बुआ का ठाठ बाट देखी ही हो। बताने का जरूरत नही है।"

फिर अशोक बोला,

"और सुनो….! लड़का कानून भी पढ़ रहा है पटना कॉलेज से।"

क्या उर्मिला की कसौटी पर अशोक का देखा लड़का खरा उतरा…? क्या वो पुरवा के लिए जैसा वर चाहती थी वैसा ही ये लड़का था…? क्या बात आगे बढ़ पाई…? जानने के लिए पढ़े अगला भाग।