Kataasraj.. The Silent Witness - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 13

भाग 13

सब कुछ पूछ कर उर्मिला आश्वस्त हो गई कि चलो पुरवा के बाउजी ने अच्छा घर वर ढूंढा है। क्योंकि पूरी रिश्ते दारी में गुलाब बुआ का बड़ा ही रोब दाब था। क्योंकि वो सब से बीस ही पड़ती थीं। अपनी सगी बुआ से ज्यादा मान जान गुलाब बुआ का था। किसी के भी बेटी का ब्याह हो… वो खाली साड़ी देना अपनी तौहीन समझती थी। साथ में कुछ न कुछ सोने का जरूर होता। उर्मिला ने मन ही मन ऊपर देख कर बोली,

बस भगवान..! कोई बाधा ना आए।

फिर धनकू के घर की ओर देखा। कहीं वो लोग सुन तो नही रहे। धनकू की मेहरारू डगरा में सिर गाड़े चावल बिनने में व्यस्त थी।

उर्मिला ने लंबी सांस ली की चलो बात उसके कान तक नही पहुंची। फिर वो अंदर चली गई।

इधर नाज़ अपनी अम्मी से चोटियां गुथवा रही थी। पुरवा दनदनाती हुई अंदर चली आई। उसके बाल देर से धोने की वजह से अभी गीले ही थे।

नाज़ और नईमा ने उसे देखा।

नईमा पुरवा से बोली,

"कैसे बाल बिखरे हुए है पुरवा बिटिया…! आ नाज की चोटी बांध दूं तो फिर तुम्हारी भी बांध दूं।"

पुरवा बालों में अंदर हाथ लगाते हुए बोली,

"देर से नहाई ना मैं चाची इसलिए अभी बाल गीले ही हैं।"

नाज़ का दिल पुरवा को देखते ही धड़कने लगा। उसके आने की रफ्तार बता रही थी कि कोई ना कोई संदेश आरिफ का जरूर लाई है। उसने सवालिया नजरो से पुरवा की ओर देखा।

पुरवा ने भी ’हां’ में सिर हिलाया।

अब नाज़ कहां रुकने वाली थी…? उसने अपनी एक छोटी पूरी होते ही उठ खड़ी हुई और बोली,

"अम्मी…! आप बहुत ही खींच खींच कर छोटी गूंथती है। मुझे नहीं करवाना आपसे। अब पुरवा आ गई है उसी से करवा लूंगी।"

नईमा उसे रोकते हुए बोली,

"अरे….! रुक तो। कस कर बांधने से बाल लंबे होते है। तुझे क्या पता..?"

नाज़ बोली,

"इत्ते लंबे तो पहले से ही हैं। अब और लंबा करके क्या करूंगी।"

फिर दोनो अंदर चली गई।

पुरवा नाज़ की चोटी फटाफट खोल कर एक छोटी बनाने लगी।

चोटी बनवाते हुए नाज़ बेसब्री से बोली,

"क्या हुआ पुरवा…? आरिफ ने कोई संदेश दिया है।"

पुरवा मुंह बनाते हुए बोली,

"हां दिया है ना। तभी तो भाग कर आ रही हूं। क्या बताऊं…? ये आरिफ भाई के चक्कर में तो मैं बस कबूतर बन कर रह गई हूं। इधर का संदेशा उधर। उधर का संदेशा इधर। मेरे पास तो बस अब यही एक काम है। मिलने की बुलाया है। और जल्दी करो। वरना वो आ कर चले भी जायेंगे।"

नाज़ ने सिर घुमा कर पुरवा की ओर बड़ी उम्मीद से देखा।

पुरवा बोली,

"क्या.???? मुझे ऐसा मत देख। मैं नहीं चाची से इजाजत लेने वाली आज। तेरे ही चक्कर में ही अम्मा से कितना डांट खा कर आ रही हूं। फिर उन्हें मनाने के चक्कर में खाना भी बनाना पड़ा। तब जा कर पसीजी और तेरे घर आने को बोला। देख.. मसाला पीसने से अभी भी मेरे हाथ भभा रहे हैं।"

नाज़ ने अपना अगला दांव खेला।

वो मुंह लटका कर बोली,

"मैं तो अम्मी से नहीं कह पाऊंगी कि मुझे घूमने जाना है। वो क्या सोचेंगी….? बाकी लड़कियां निकाह तय होते ही ससुराल जाने का सोच कर रोती धोती हैं। और मैं घूमने जाने की बात कर रही हूं। निकाह के दस दिन पहले। चल.. फिर रहने ही देते हैं। क्या होगा….? बहुत होगा तो यही ना कि आरिफ आ कर लौट जायेंगे।"

नाज़ इतना कह कर कमरे के सिमटे सामान को फिर से समेटने लगी।

पुरवा की एक ही सहेली थी नाज़। अब उसका भी साथ बस कुछ दिनों का ही था। फिर तो बस उसकी याद ही रह जायेगी। अब जब इतने समय तक एक दूसरे का साथ निभाया हर सही गलत चीज में। तो फिर अब बिछड़ते बिछड़ते उसे दुखी करना पुरवा को ठीक नहीं लगा।

वो बिना नाज़ से कुछ कहे बाहर आंगन में बैठी नईमा के पास गई और बोली,

"चाची…! एक बात बोले… मना तो नही करेंगी।"

नईमा बोली,

"ना बेटी..! भला मैं क्यों मना करूंगी…? बोल क्या बात है…?"

पुरवा बोली,

"चाची….! वो नाज़ बड़ी उदास है। इतनी सी देर में ही दो बार रो चुकी। आप कहो तो उसे थोड़ा सा घुमा लाए। उसका मन बदल जाएगा।"

नईमा चाहती तो नही थी नाज़ को बाहर भेजना। क्योंकि निकाह करीब आ गया था। पर नाज़ रो रही है। ये सुन कर उसका कलेजा छलनी होने लगा। अब घर में रहेगी तो रोएगी ही। ठीक ही कह रही है पुरवा। जाने देती हूं। थोड़ा बाहर जायेगी तो मन बदल जाएगा। फिर निकाह के बाद कहां घूम पाएगी। ऐसा सोच विचार कर नईमा बोली,

"इसमें मना करने वाली कौन सी बात है..? जा.. ले जा उसे भी घुमा ला। बेटी अब तो तेरा उसका साथ कुछ दिनों का ही बचा है। जब भी तुम खाली हो आ जाया करो और घूम फिर आया करो दोनो सहेली।"

नईमा चाची की इजाजत मिलते ही पुरवा तेजी से ये खबर बताने अंदर नाज़ के पास गई।

नाज़ तो ये सोचे उदास बैठी थी कि आरिफ से मिलना तो दूर रहा अब पुरवा भी नाराज हो कर उसे अकेला छोड़ कर चली गई।

पर परदा हिला और पुरवा अंदर आ गई। अपनी प्यारी सखी को वापस देख नाज़ उठ कर उससे लिपट गई।

पुरवा उसे खुद से अलग करते हुए बोली,

"चल छोड़.. मुझे। रहने दे दिखावा करने को। हर बात में खुद तो पीछे रहती है, और मुझे आगे कर देती है। जिससे अगर पकड़े जाएं कही और कोई देख ले तो सारा ठीकरा मेरे ऊपर ही फूटे। तू साफ बच कर निकल जाए।"

नाज बोली,

"नही पुरवा ऐसी बात नहीं है। तू देखना… कभी अगर ऐसा मौका आया तो मैं तेरी कितनी मदद करती हूं। सब कुछ दांव पर लगा देंगे। पर तुझ पर आंच नहीं आने देंगे।"

पुरवा बोली,

"चल… चल… रहने दे। मैने चाची से पूछ लिया है। किसी तरह बात बना कर राजी किया है उनको। चल जल्दी कर आरिफ भाई इंतजार करते होंगे।"

इतना कह पुरवा ने नाज़ को सुंदर सी ओढ़नी देते हुए बोली,

"बस इसे ओढ़ ले। फिर कुछ भी कमी नही नज़र आयेगी।"

फिर नाज़ का हाथ पकड़ कर बाहर निकल गई।

कैसी रही नाज़ और आरिफ की ये मुलाकात…? जानने के लिए पढ़ें अगला भाग।