Kataasraj.. The Silent Witness - 22 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 22

भाग 22

उर्मिला के कल ही आने के लिए कहने पर

बेसाख्ता ही सलमा के मुंह से निकला,

"कल तो मेहमान होंगे…सभी ही मुझे खोजते हैं। मिलना चाहते हैं। हटना अच्छा नही लगेगा।"

नईमा को अभी कुल सेकेंड पहले ही सलमा मेहमान का ताना दे रही थी और अब खुद मेहमान होने की वजह से आने में असमर्थता जता रही थी। नईमा को तुरंत ही खुद को सही साबित करने का मौका मिल गया।

वो बोली,

"क्यों भाई…? आप क्यों नही आ सकती..! आप तो खुद ही मेहमान हैं शमशाद मियां के घर पर। फिर आपको मेहमानवाजी की तकलीफ उठा रही हैं। आप तो मेहमान हैं मौज करिए….. घूमिए फिरिए….। अब मैं तो बेटी की शादी वाला घर छोड़ कर आने में झिझक रही थी।"

नईमा की आंखों में सवाल भी था। और खुद को सही बताने का मौका भी अच्छा मिल गया था।

नईमा बोली,

"तो अब तय रहा। चलो उर्मिला जल्दी करो काफी देर हो रही है..!"

उर्मिला बोली,

"चल रही हूं। अब तू तो छुट्टी पा गई है। अब जब ये पुरवा नाज़ को छोड़ कर बाहर आए तब ना।

फिर तेज आवाज में बोली,

"क्यों पुरवा…! अभी तुम दोनो की खुसुर फुसुर खत्म नहीं हुई…? चलो जल्दी… तुम्हारे बाऊ जी बुला रहे हैं।"

पुरवा ने नाज़ से फिर आने का वादा किया। और उसकी भर आई आंखों को पोछा। उससे विदा ले कर बाहर आने लगी। पुरवा ने साड़ी पहनी हुई थी। तेज तो चल नही सकती थी। लद-फदाती हुई बाहर आई। बोली,

"चलो.. अम्मा…! जरा सी देर रुक नही सकती। नाजों कुछ कह रही थी सुनने भी नही दिया।"

उर्मिला खीझते हुए बोली,

"तू और नाज़…! भगवान ही बचाए। दोपहर के पहले ही से दोनो बातों में लगी हुई हैं। पर अभी रात हो गई है। फिर भी कुछ बाकी ही रह गया। चल जल्दी… अभी तेरे बाऊ जी तुझे तो कुछ कहेंगे नही। मुझ पर ही नाराज होंगे।"

सलमा ने सुबह एक नजर पुरवा को देखा था। पर करीब से अभी देख रही थी। चेहरा ऐसा की नजर नहीं हटे। बेहद मासूम और पाक चेहरा था पुरवा का। ऊपर से साड़ी ने उसकी खूबसूरती को और भी निखर दिया था। मुट्ठी भर कमर पर बंधी साड़ी का बोझ उसे थका दे रहा था। अल्हड़ पन ऐसा कि उसे किसी की मौजूदगी का ख्याल ना रहा। वो साड़ी ऊपर खींचते हुए बोली,

"अम्मा…! ये आपने मुझे पहना दिया। देखो मेरी कमर पर निशान बन गया।"

सचमुच साया की डोरी से उसके कमर पर गहरा लाल निशान बन गया था।

उर्मिला बोली,

"चल.. घर चल कर तो उतारना ही है।"

सलमा उर्मिला और नईमा को बाहर तक छोड़ने आई।

शमशाद भाई को इतनी अच्छी दावत के लिए सभी ने उनका शुक्रिया अदा किया। फिर विदा ले कर अपने अपने घर के लिए चल दिए। चलने से पहले अशोक ने साजिद को अपने घर बड़े ही प्यार से आमंत्रित किया। साजिद ने भी वादा किया कि वो सलमा और अमन को ले कर उनके घर जरूर आयेंगे।

इसके बाद रास्ता तो एक ही था नईमा, बब्बन, अशोक और उर्मिला पुरवा के साथ घर चल पड़े। नईमा का जी कचोट रहा था। आज नाज़ उसके साथ नही थी। इतनी जल्दी बेटी पराई हो जायेगी ये उसने सोचा भी नही था। और बच्चे थे उसके। पर पहली औलाद की ममता और चाव कुछ अलग ही होता है। वो रास्ते भर अपनी गीली आंखे पोछती रही। अभी तक तो निकाह की व्यस्तता थी। पर अब तो सारी रस्में निपट गई थी। कल से मेहमान भी जाना शुरू हो जाएंगे। फिर नाज़ की कमी बहुत खलेगी।

इधर नाज़ भी जब से विदा हो कर ससुराल आई थी। दिल में एक इंतजार था कि अभी तो वलीमा होने वाला है। उसमे अम्मी अब्बू, भाई बहन सब आयेंगे ही। सब से मिलना हो जायेगा। इसी वजह से उसे अपना घर छूटते का ज्यादा दुख नहीं हो रहा था।

पर अब.. अब तो वलीमा भी निपट गया। अम्मी अब्बू भी घर वापस लौट गए। अब कोई उम्मीद नहीं थी कब उनसे मुलाकात होगी। पुरवा भी चली गई थी। जाने कब वो मायके जायेगी..? और कब अपने घर वालों से मिल पाएगी…? उसका दिल जोर जोर से दहाड़े मार कर रोने को कर रहा था। बड़ी ही कोशिश से खुद पर काबू किया हुआ था। जब सब अपने अपने कमरे में सोने चले गए। आरिफ भी अमन से सोने को बोल अपने कमरे में चला आया।

नाज़ बिस्तर में गुमड़ी हुई बैठी थी। उसका चेहरा उतरा हुआ था और आंखे डबडबाई हुई थी। आरिफ समझ नही आया कि ऐसा क्या हो गया जो नाज़ की ये हालत है..? कही किसी ने कुछ कह तो नही दिया।

उसने नाज़ से पूछा,

" क्या हुआ नाज़..! चेहरा उतरा हुआ क्यों है..? किसी ने कुछ कहा तो नही।"

आरिफ अच्छे से जानता था कि उसके घर वाले ऐसे नही हैं। पर वो अपनी शंका दूर करना चाहता था।

नाज़ ने ’ना’ में सिर हिलाया।

फिर उसने पूछा,

"तो फिर तबियत ठीक नहीं हो क्या….?"

नाज़ ने फिर दुबारा भी ना में सिर हिलाया।

अब आरिफ अधीर हो गया कि उसके इस उतरे चेहरे की वजह जानने के लिए। पास बैठ कर उसने नाज़ से पूछा,

"फिर क्या वजह है.. इस फूल से चेहरे के मुरझाने का…? मालूम तो चले।"

नाज़ इस तरह बावस्तगी से आरिफ से पूछे जाने पर और भी जज़्बाती हो गई। जो आंखे चंद सेकेंड पहले तक डबडबाई हुई थी। अब छलक पड़ी। मोटे मोटे दो मोती धवल गालों पर ढलक गए।

आरिफ उन्हे पोछते हुए बोला,

"ये क्या नाज….? आज तो खुशी का दिन है। हमारे निकाह का वलीमा था आज। और तुम यूं गमजदा हो रही हो। अब बता भी दो। मुझसे नही बताओगी तो किससे बताओगी…?"

आखिर क्या वजह थी जो नाज़ गमजदा थी..? क्या आरिफ जन पाया…? नाज़ के उदासी की वजह..? जानने के लिए पढ़े ’कटास राज : द साइलेंट विटनेस’ अगला भाग