Kataasraj.. The Silent Witness - 47 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 47

भाग 47

धनकू ने सिंचाई के दौरान कई बार पूछने की कोशिश की कि आखिर वो कहां जा रहे हैं। पर बता कर अशोक पत्नी के आदेश का उल्लघंन कैसे करता..! अभी चार दिन इन्हें परखना था कि ये दोनो उनके जाने की बात गांव में कहीं फैलाते हैं या नही। इस लिए अशोक चुप रहा।

सुबह शाम दोनो हो अशोक के घर आते। बैठ कर मीठी मीठी बातें करते और घर की चिंता नहीं करने को बोलते।

पर अशोक और उर्मिला ने जाने का पूरा कार्यक्रम उन्हें नही बताया। ना ही यह कि वह किसके संग जा रहे हैं।

कटास राज जाने की तैयारियों में चार दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला..! पुरवा को ना चाहते हुए भी मजबूरी में जाना पड़ रहा था। क्योंकि उर्मिला अशोक उसे साथ ले कर जाना चाहते थे। रास्ते का खाना सूखा नाश्ता, चबैना, भूंजा सब कुछ उर्मिला ने बांध लिया था। जिससे सलमा और साजिद को परेशान नहीं होना पड़े। दो झोला तो खाने पीने का ही सामान हो गया था। दो झोले में कपड़ा रख लिया था। अशोक ने अपना सिर्फ दो जोड़ी कपड़ा ही रखने दिए थे। उनका कहना था गरमी है हम इन्ही में धो धो कर काम चला लेंगे। ज्यादा बोझा बढ़ाने की जरूरत नहीं है। यही उर्मिला और पुरवा को भी बोला।

लेकिन उर्मिला सलमा और साजिद के आगे खुद को फटीचर जैसे नही दिखाना चाहती थी। ज्यादा तो थी ही नहीं। पर जो भी नई नई साड़ी उसके पास थी और जो भी नये कपड़े पुरवा के पास थे। उन सब को झोले में रख लिया था। ऐसे कर के पुरवा और उर्मिला के कई जोड़ी कपड़े हो गए।

जाने के दिन सुबह ही धनकू और उसकी पत्नी को बुला कर उर्मिला और अशोक ने सब कुछ समझा दिया। कहां भूसा रक्खा, कहां पुआल रक्खा है, सब दिखा दिया। समझा दिया कि शाम को हरा चारा और सुबह सूखा चारा डालना है। कितनी मात्रा में डालना है ये भी समझा दिया। बड़े जानवर को एक एक टोकरी भर भर के और छोटे को आधी आधी टोकरी देना है।

जाने की तैयारी हो गई। उर्मिला, पुरवा और अशोक ने नए वाले कपड़े पहन लिए।

उर्मिला ने भगवान को हाथ जोड़ कर सही सलामत वापस आने की विनती की और घर को भी कर कर कुशल से रखने का अनुरोध किया।

घर ने ताला मार कर उसने चाभी धनकू की पत्नी को दी। सर से पल्ला आगे खींच कर घूंघट निकाला और जाने को हुई। तभी अचानक निगाह चाची के घर की ओर उठ गई। वो उसी की ओर देख रही थीं। अब उर्मिला से आगे बढ़ते नही बना। कैसे उन्हें अनदेखा कर के आगे बढ़ जाए। जब से इस घर में कदम रक्खा था, चाची को पूरा मान सम्मान दिया था। कभी उनका अनादर नही किया था। कहते है माता पिता भी देवता का ही रूप होते हैं। अब अपनी सास नही है तो क्या हुआ। चाची को ही अशोक मां समान और वो सास के बराबर दरजा देती आई है। तो अब कैसे उनको अनदेखा कर दे। भगवान के दर्शन को जा रही है तो उनके आशीष के बगैर कैसे चली जाए..!

चाहते तो यही अशोक भी थे। पर उर्मिला के उलाहनों की वजह से वो झिझक रहे थे। चाची के घर की ओर निगाह डाल ही नही रहे थे। पर जब घूंघट काढ़े उर्मिला ने हाथ का झोला वहीं छोड़ कर चाची की ओर रुख किया तो अशोक के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। वो भी उर्मिला के पीछे हो लिया। जाते जाते वो चाची के आशीर्वाद से वंचित नहीं रहना चाहता था।

उर्मिला ने चाची के पास जा कर पैर छुआ और बोली,

"चाची….! जा रहे हैं हम लोग। आप आशीर्वाद दीजिए कि कर कुशल से कटास राज बाबा के दर्शन कर के आएं।"

साथ में अशोक ने भी पैर छुए और बोला,

"हां चाची..! आशीर्वाद दो अच्छे से जाएं और वापस आएं हम लोग।"

चाची का मुंह उतरा हुआ ही था। वो उनके जाने से खुश नहीं थीं। जिस वजह से घर और जानवर की देख भाल को इनकार किया था वो निष्फल हो गया था। उर्मिला और अशोक उनके इनकार का मतलब नहीं समझ सके। उसकी दूसरी व्यवस्था कर ली उन लोगों ने। वो उनकी नजर में बुरी भी बन गईं और वो जा भी रहे हैं। सोचा था इत्मीनान से मौका लगते ही अशोक को समझाने का प्रयत्न करेंगी। पर अशोक पत्नी उर्मिला की बातों में आ कर खींचा खींचा ही रहा इन तीन दिनों।

चाची रूठी रूठी ही आवाज में आशीर्वाद देते हुए सिर पर हाथ रक्खा और बोली,

"बेटवा… अशोक..! हम एक्को आना नही चाहते थे कि तुम बहू और पुरवा को ले कर इस माहौल में इतनी दूर जाओ। वो भी उन लोगों के साथ। पर मेरा हक ही क्या है तुम सब पर जो अधिकार से मना करती।"

फिर उर्मिला की ओर इशारा कर के बोली,

"इसे समझाने की कोशिश तो बहुत की हमने। पर इसे हमारे से ज्यादा बाहरी लोगों पर भरोसा है। वो ज्यादा अच्छे लगते हैं। इसने मंतर दे दिया और तू भी इसी के कहे में चल कर इतनी दूर जा रहा है। मेरी बात सुनने की और इनकार का कारण जानने की जरूरत नहीं समझी।"

अशोक बोला,

"चाची ..! आप कुछ भी गलत सलत मत सोचों उन लोगों के बारे में। ये बिहार है। देश दुनिया में चाहे जो कुछ भी उल्टा सीधा अफवाह फैला हुआ हो। पर यहां के लोगों में ऐसा कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ है। सब पहले जैसे ही मिल जुल कर रह रहे हैं।"

"अब जब जा ही रहे हो बेटा तो खुश रहो..। भगवान भोले नाथ तुम सब की रक्षा करें। भले भले जाओ.. भले भले से आओ दर्शन कर के। बहुत संभाल के जाना और जल्दी लौट आना।"

उर्मिला का मुंह उतर गया ये सुन का कि चाची उसे ही दोषी बना रही हैं। वो समझ रही हैं मैंने मंतर दिया है इनको चलने के लिए। कुछ भी अच्छा कर लो लेकिन ये नाराज ही रहेंगी। जाने दो अब जो कुछ भी समझना हो समझे.. मेरी बला से। अब हम तो जा ही रहे हैं। एक भगवान के दर्शन जाने में ये इतना अडंगा लगा रही है।