Kataasraj.. The Silent Witness - 78 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 78

भाग 78

जाने कैसे नानी को पता चल गया था कि वो सब आज ही आ रहे हैं। भूंजी से कह कर शीरा, कोरमा, दाल यखनी, बिरयानी और भी बहुत कुछ बनवा दिया था। खुद झूले पर बैठी हुक्का गुड गुड़ा रही थीं।

साजिद की मोटर की आवाज सुनी तो बोल पड़ीं,

"लो आ गया मेरा लाला..। आज तो सब को ले कर ही आएगा। मुझे तेरे बड़े मालिक ने रात ही को सपने में आ कर बता दिया। जा भूंजी सबके लिए बादाम शरबत ले आ।"

भूंजी भी सबको आते देख आश्चर्य में पड़ गई कि कैसे इनको पहले से पता चल गया कि सब आ रहे हैं, जो इतनी तैयारियां करवा कर बैठी है।

पुरवा को एहतियातन सलमा बिना नानी जान के पास गए सीधा कमरे में ले कर जाने लगी।

सलमा को पुरवा को ले कर जाते देख वो जोर से चिल्लाई,

"ले जा… ले जा… नही तो तेरी बहुरिया को मैं मंतर पढ़ दूंगी। इधर ना ले आना।"

सलमा उनकी बात को अनसुना कर बोली,

"उर्मिला.. तुम थकी हो और बिटिया तुम्हारी भी तबियत ठीक नहीं है। चलो आराम करो.. सुबह फिर निकलना है। इनकी बक बक पर ध्यान मत देना। ये कब क्या किसे बोल दे कुछ पता नहीं। उमर का तकाजा है ना। नब्बे बरस से ज्यादा की ही हो गई होंगी।"

उर्मिला और पुरवा को उनके कमरे में छोड़ कर सलमा जाना तो चाहती थी कि कुछ वक्त नानी के साथ बिताए। पर वो फिर वही बात उठाएंगी। इस लिए ना जाना ही मुनासिब लगा। उसने थोड़ी देर बाद भूंजी से सब को उनके कमरे में ही खाना पहुंचा देने को कहा। क्योंकि सभी बहुत ज्यादा थक गए थे।

उर्मिला ने खाना के बाद पुरवा को उसकी जड़ी घिस कर और काढ़ा पिलाया। फिर सब सो गए।

ऐसी नींद लगी सबको की सुबह दिन निकलने के बाद सात बजे जागे।

उठते ही फटाफट सब नहा कर तैयार हो गए। सिर्फ पुरवा नही नहाई थी। क्योंकि फिर से ताप ना चढ़ जाए इस डर से।

अब वो बिल्कुल ठीक थी। जब तक अम्मी अब्बू चलने की तैयारी करें वो आया और उर्मिला से बोला,

"मौसी..! मैं पुरवा को नानी के बगीचे में घुमा दूं। वहां बड़े ही प्यार खरगोश के बच्चे है। इसे दिखा दूं।"

अशोक हंस कर बोले,

"हमसे क्या पूछ रहे हो…! जिसे जाना है उससे पूछो। जाना चाहे तो ले जाओ।"

अमन बोला,

"क्यों .. पुरवा..? चलें..? देखना है।"

पुरवा अपनी ओढ़नी संभालती हुई उठ गई अमन के साथ जाने को। बोली,

"अम्मा..! जा रही हूं।"

अमन पुरवा को ले कर बगीचे की बजाय नानी के कमरे में चला गया। नानी कल उसकी अम्मी की उपेक्षा पूर्ण बरताव से बहुत नाराज हुई थीं। और इसी नाराजगी में थोड़ी ज्यादा ही अफीम ले ली थी। वो अभी तक जागी नही थी।

अमन पुरवा को साथ लिए उनके कमरे में दाखिल हुआ। नानी के सीने से चिपक कर बोला,

" नानी जान..! आपका छोटा लाला आया है।"

नानी ने जाग कर सिर पर हाथ फिरते हुए कहा,

"तेरी अम्मी ने रोका नहीं..! तुझे आने दिया मेरे पास..!"

नानी के अंदर जाने कहां से इतनी फुर्ती आ गई। वो उठ कर बैठ गई और पुरवा को देख कर बोली,

"अच्छा..बेटा..! अपनी दुलहन को मिलवाने ले कर आया है।"

अमन जाने कैसे हां कह गया।

नानी ने अपनी सूखी हड्डियों वाले हाथ से इशारा कर पुरवा को पास बुला कर बिठाया और दोनो के सिर पर दुआ देते हुए हाथ फेरते हुए मीठी आवाज में बोली,

"नाम क्या है तेरा दुल्हन..?"

पुरवा के कुछ बोलने के पहले ही अमन बोला,

"पुरवा.. नाम है इनका नानी जान।"

नानी ने मुंह बनाते हुए कहा,

"ये कैसा नाम हुआ भला..? पुरवा .. पछुआ …ये तो हिंदुओ का नाम लगता है।"

अमन बोला,

"मेरी प्यारी नानी जान..! ये हिंदू ही है।"

"नानी ने अमन का कान पकड़ते हुए कहा,

"अच्छा.. तो जनाब ने मुहब्बत वाली शादी की है। पर कोई बात नही बेटा। इश्क भी अल्लाह की इबादत ही है। जिस पर दिल आ जाता है, वही खुदा सा दिखने लगता है। जैसे तेरे नाना जान में मुझे खुदा का अक्स ही दिखता था। इसे बहुत खुश रखना। कभी एक दूसरे का साथ मत छोड़ना। (फिर पुरवा की ओर देखते हुए बोली) दुलहन..! ये कंगन कभी मत उतरना। मेरा आशीर्वाद समझ कर पहने रखना।"

अमन को डर था की कही अम्मी अब्बू आ गए तो बिगड़ जायेंगे। इस लिए बोला,

"अच्छा नानी..! अब चलता हूं। मेरा नतीजा आने वाला है। फिर आऊंगा आपसे मिलने।"

इतना कह कर पुरवा का हाथ पकड़ कर बाहर जाने लगा। नानी के कमरे का स्याह माहौल उसे शरारत पर मजबूर कर रहा था। वो धीरे से पुरवा का हाथ दबाते हुए बोला,

"देखा.. पुरु..! नानी जान ने भी अपनी रजामंदी और दुआएं दे दी हैं। तुम बस कुछ साल इंतजार कर लो। मैं अभी किसी काबिल नही हूं। काबिल बन कर आऊंगा तुम्हारे घर। सबसे बात करने।"

पुरवा धीमे से बोली,

"ये सब ख्याल बस ख्याल ही रह जाने वाला है अमन। जब सबके दिल की हसरत पूरी ही हो जाए तो कोई दुनिया में दुखी ही न रहे। मेरी शादी तय हो चुकी है। उसे कैसे और क्यों टालेंगे अम्मा बाऊ जी…? हर रिश्ते को नाम दिया जाए ये जरूरी तो नहीं।"

अमन भावुक स्वर में बोला,

"तुम किसी और की हो सकती हो तो ही जाओ पुरु..! पर .. मैं तो तुम्हारा हो चुका। अब ये ऊपर वाला जाने कि मुझे जिंदगी में तुम्हारा साथ देगा या तुम्हारी याद देगा।"

तभी साजिद की आवाज सुन कर अमन ने पुरवा का हाथ छोड़ दिया और बगल से निकल कर खरगोश वाले बाड़े के पास आ कर पुरवा को उसे दिखाने लगा।

बिलकुल सही वक्त पर अमन और पुरवा नानी के पास से निकल कर आए थे। क्योंकि उनके साजिद और सलमा नानी के पास गए और दूसरे ही मिनट आ कर मोटर के पास जाने लगे। उन्हें बाड़े के पास देख कर आवाज लगाई,

"चलो… बच्चों..! देर मत करो जल्दी निकलना है।"

अमन और पुरवा भी आ कर मोटर पर बैठ गए। अशोक और उर्मिला पहले ही आ चुके थे।

सब के बैठते ही साजिद ने मोटर स्टार्ट कर दी।

अमन के दिल दिमाग में बार बार उस अखबार के टुकड़े में लिखी हुई खबर गूंज रही थी। दिल नही चाहता था कि पुरवा अपने अम्मा बाऊ जी के साथ जल्दी वापस लौट जाए।

पर दिमाग कह रहा था कि हालात बिगड़ने के पहले वो सुरक्षित अपने गांव सिधौली पहुंच जाए।