Kataasraj.. The Silent Witness - 86 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 86

भाग 86

करीब एक घंटे बाद खाना तैयार हो जाने पर जरीना ने सबसे पहले अपनी बेवा सास को खाना परोस कर दिया। रोज का ही नियम था वो पहले उन्हें देती थी। दोनो बच्चे भी उन्ही के साथ बैठ कर थोड़ा ज्यादा जो भी उनका दिल करता था खा लेते थे। फिर उन्हीं के साथ सो भी जाते थे। वैसे जरीना अपनी सास की बहुत खिदमत करती थी एक अच्छी बहू की तरह। उनका बहुत अदब भी करती थी। पर जिस दिन बख्तावर किसी लड़की को ले कर आता उस दिन फरमाबरदार बहू का चोला उतार कर जितनी जली कटी सुना सकती थी सुनाती थी। उसका मानना था कि एक मां ही अपने बच्चे को अच्छा बुरा सिखाती है। उसमें फर्क करना समझाती है। पर उसके शौहर को उन्होंने ये सब नही सिखाया। एक अच्छी मां होने का फर्ज अच्छे से नही निभाया। इसी कारण बख्तावर बुरी आदतों का आदि हो गया।

पर आज उसका जी खुश था। सालन के साथ दो बड़ी बोटियां भी डाल दी थी उसने सास की थाली में।

फिर बख्तावर को बुलाने अपने कमरे में आ गई। बख्तावर अपने सामने की मेज़ पर बोतल खोले हुए बैठा था। हाथ में शराब की गिलास थामे हुए कुछ गुनगुना रहा था।

जरीना कमरे में दाखिल हुई और बोली,

"सुनो जी..! खाना पका दिया है। अम्मी को दे दिया वो खा रही है। आप मेहमानों के साथ खायेंगे..?"

बख्तावर नशे में बोला,

"वो ऐसे मेहमान नही है जिनके साथ बैठ कर खाना खाऊं। चल तू परोस, मैं आ कर उनका खाना दे देता हूं उन्हे वही कमरे में।"

"जी..।" कह कर जरीना वापस चली गई खाना निकालने।

लड़खड़ाता हुआ बख्तावर आया और खाने की थाली थामी। पर नशे की वजह से ठीक से नहीं पकड़ पा रहा था। इसलिए जरीना को साथ थाली ले कर आने को बोल कर लड़खड़ाते हुए वो चल दिया अमन और पुरवा जिस कमरे में थे उस ओर।

बख्तावर ने जैसे ही सांकल खोली। उसके आवाज से अमन खड़ा हो गया और पुरवा भी अपना चेहरा जल्दी से ढकने लगी।

बख्तावर ने अमन को थाली पकड़ाई और बोला,

" ले .. खा ले। और सो जा। मौज कर इतनी फुरसत से नई नवेली दुलहन का साथ मिला है। कोई परेशान करने वाला नही है। ले.. ऐश कर…।"

मुखिया की बात सुन कर उसे दिखाने के लिए चेहरे पर शरम के भाव ला कर अपना सिर खुजाने लगा। उसकी नजर में तो जिन्हें उसने सताया था वो उसके मात्र सहयात्री थे। इस लिए किसी तरह का कोई दुख,अफसोस उसके आगे जाहिर नही करना था। दर्द को दफन कर उसे नए जोड़े का नाटक करना था।

जरीना ने पुरवा से बोलने को कोशिश की। पूछा,

" तुम्हारा नाम क्या है.. बानो..?"

पुरवा इस सवाल के लिए तैयार नहीं थी। असमंजस भरी नजरों से अमन की ओर देखा।

अमन तुरंत बोला,

"परवीन नाम है इनका..।"

इससे पहले की जरीना कुछ और पूछती या बोलती.. बख्तावर बिगड़ कर बोला,

"तू अपनी चोंच बंद नही रख सकती..! हर जगह शुरू हो जाती है। चल बाहर।"

जरीना अजनबियों के सामने अपमानित हो कर वहां से चली आई। बख्तावर ने खाना पानी दे कर फिर से सांकल लगा दी।

अमन थाली देख कर उसकी महक से ही समझ गया कि ये खाना पुरवा नही खा पाएगी। पर भूखे भी रहना ठीक नही था। उन्हें आगे जिस ताकत और हिम्मत की जरूरत थी वो भूखे पेट नही मिल सकता था।

रोटियों में घी चुपड़ा हुआ था, साथ में अचार भी था। अमन ने रोटी का टुकड़ा लिया और उसमे अचार लगा कर पुरवा के मुंह में डालने की कोशिश की।

पुरवा की आंखों से आंसू बहने लगे। उसने मुंह दूसरी ओर घुमा लिया और कातर स्वर में बोली,

"अमन..! ना जाने अम्मा बाऊ जी किस हाल में हैं…! उनका क्या हुआ होगा..? मैं यहां आराम से बैठ कर उसी नीच हत्यारे के घर की रोटी खाऊं..? मुझसे नही होगा। तुम खा लो।"

अमन पुरवा को समझाते हुए बोला,

"पुरु..! तुम क्या समझती हो..? मुझे तकलीफ नहीं है ..! पर क्या करूं..? अगर बिना खाए इस नीच को सजा मिल जाती तो मैं भी नही खाता। एक दो दिन नही कई दिन कुछ नही खाता। पर क्या करें…? बदले के लिए शरीर में ताकत भी तो होनी चाहिए। बस थोड़ा सा खा लो पुरु..! अम्मा बाऊ जी की खातिर ही खा लो।"

फिर से अमन ने रोटी का टुकड़ा पुरवा के मुंह में डाला।

पुरवा रोते हुए उसे चबाने लगी।

किसी तरह दो रोटी उन्होंने हलक के नीचे उतारी। फिर अमन ने कोने में पड़ी खटिया पर पुरवा को लिटा दिया। खुद वहीं नीचे लेट गया।

अब उसे आगे की तरकीब सोचनी थी। जो भी करना था में ही करना था। इस अय्याश का क्या भरोसा…! इसकी नियत पुरवा पर भी खराब हो सकती थी।

कुछ देर बाद पुरवा उठी और बोली,

"अमन ..! मुझे बाहर जाना है।"

अमन समझ गया।

वो दरवाजे को धीरे धीरे से हिलाने लगा।

जरीना भी खा पी कर बावरचीखाना साफ करके बस सोने के लिए जा रही थी। तभी उसे दरवाजे को हिलाने की आहट सुनाई दी। वो दरवाजे के करीब आई और पूछा,

"क्या है..?"

अमन बोला,

"वो…परवीन को कुछ दिक्कत है। वो आपसे कुछ बात करना चाहती है।"

फिर जब तक जरीना दरवाजा खोले अमन ने धीरे से पुरवा के कान में उसे समझा दिया।

"पुरवा चारपाई से उठ कर दरवाजे के पास आ गई और दरवाजा खोलते ही जरीना से फुसफुसा कर बोली,

"बाजी..! आप मेहरबानी कर के दरवाजा बाहर से बंद ना करें।"

फिर धीरे से अपनी उस परेशानी के बारे में बताया।

जरीना मुस्कुराई और बोली,

"कोई बात नही बहन। एक औरत ही दूसरी औरत की परेशानी के बारे में समझती है। पर सुबह तड़के ही उठ कर फिर से बाहर से सांकल लगा दूंगी। नही तो अगर कहीं मेरे जालिम शौहर को पता चल गया कि मैंने सांकल खोल दी थी तो मेरी चमड़ी उधेड़ देगा।"

इतना कह कर गुसल की जगह दिखा कर जरीना चली गई अपने कमरे में।

पुरवा और अमन अपनी अपनी जगह पर लेटे हुए रात गहराने का इंतजार करने लगे।

बख्तावर खूब पी कर वहीं पर लुढ़क रहा।

अब दुबली पतली जरीना के बस का तो था नहीं उसको उठा कर बिस्तर पर लिटाने का। एक दो बार हिलाया और थोड़ी कोशिश की। फिर झल्ला कर छोड़ दिया और गुस्साते हुए बोली,

"रात मेरे संग बियायेंगे…! मैं नखरे ना करूं..! हुंह पता नही कैसे आदमी से वास्ता पड़ गया है। जागेगा तो दूसरी के साथ रहेगा। मेरे साथ रहेगा तो पी कर सोएगा। हाय री किस्मत।"

फिर अपने पलंग पर आ कर लेटी और तुरंत ही सो गई।