Kataasraj.. The Silent Witness - 87 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 87

भाग 87

पुरवा और अमन पर जो कुछ, चंद घंटे पहले उन पर बीता था, उसका मातम मनाते हुए दोनो ही आंसू बहा रहे थे। पर उस आंसू की तपिश ऐसी थी कि उनके आत्मा, हृदय, दिल को दग्ध किए दे रही थी। दर्द की उस ज्वाला में अपने दोषी को भस्म करने के लिए वह सिर्फ उचित समय की प्रतीक्षा कर रहे थे।

जब हर तरफ से आवाज आनी बंद हो गई। पूरा का पूरा गांव, उसमे रहने वाले लोग, पशु पक्षी सब गहरी नींद में डूब गया। तब अमन ने अपनी कलाई में बंधी घड़ी पर नजर डाली। रात के डेढ़ बज रहे थे। वो उठा और पुरवा को धीरे से बुलाया,

"पुरु..! उठो।"

बस इसी पल का इंतजार करती पुरवा उठ बैठी। झट से अपनी ओढ़नी को खूब अच्छे से कमर पर कस कर बांध लिया। जिसमे उसे बख्तावर या किसी और से उलझने में, हाथा पाई करने में या फिर भागने में कोई परेशानी ना हो।

धीरे से अमन ने दरवाजे को थोड़ा सा खोल कर बाहर सहन में झांका। कोई दिखाई नही पड़ा। हर और सन्नाटा छाया हुआ था। अमन बाहर निकल आया और अपने पीछे पुरवा को भी उसका हाथ थामे हुए ले आया।

इस सन्नाटे में अगर कोई खलल पड़ रही थी तो वो किसी के खर्राटे ही हल्की आवाज भर ही से पड़ रही थी।

अमन ने अंदाजा लगाया कि ये बख्तावर की ही खर्राटे की आवाज होगी। वो दोनो उधर ही चल पड़े।

जिस कमरे से खर्राटे की आवाज आ रही थी, उसके बाहर खड़े हो कर अमन ने आस पास कोई नही इस बात से आश्वस्त हुआ पहले।

फिर सटाए हुए दरवाजे को आहिस्ता से खोला। शायद बच्चे रात में उठ कर दादी के पास से मां के आते होंगे। इसी कारण से जरीना ने दरवाजे की सांकल नही लगाती रही होगी।

अंदर कमरे में बड़ी सी गद्दे दार आराम कुर्सी पर बख्तावर नशे में धुत्त होकर सोया पड़ा हुआ था। सामने खाली बोतल पड़ी हुई थी। अमन और पुरवा के पास कोई भी हथियार नही था। वो कैसे बख्तावर नाम के जानवर से बदला से समझ नही आ रहा था।

अगर शराब की बोतल तोड़ कर उससे मारे तो जरीना जाग जाती बोतल तोड़ने की आवाज से।

इस लिए अमन ने इसका हल निकाला। धीरे से मेज़ हिला कर बोतल को नीचे गिरा दिया और खुद जल्दी से पलंग के पीछे छुप गए।

छानक की आवाज से बोतल नीचे गिरी और टूट गई। दिन भर की भाग दौड़ से थकी जरीना गहरी नींद में डूबी हुई थी। बोतल टूटने की आवाज सुन कर जागी और बोतल टूटा देख कर बड़बड़ाती हुई करवट बदला,

" या अल्लाह ..! आप ने कैसे नशेड़ी के पल्ले बांध दिया है। रात में भी चैन से नहीं सोने देता। अब इसे मुझको ही साफ करना होगा।"

फिर करवट बदल कर ये सोच कर सो गई कि जब मुझको ही साफ करना है तो अभी क्यों करूं..! सुबह करूंगी। अच्छा हो ये सुबह मुझसे पहले उठे और ये कांच के टुकड़े इन्हे ही धसें तभी अकल आयेगी।

जब लगा कि जरीना फिर से गहरी नींद सो गई है तो अमन और पुरवा पलंग के पीछे से बाहर निकल आए। अमन ने एक झटके से पूरी ताकत से पुरवा को बोतल के टूटे हिस्से से बख्तावर के सीने पर वार करने को कहा और खुद जोर लगा कर के उसे काबू में कर मुंह अपनी हथेली से दबा दिया जिससे उसकी चीख या आवाज ना निकले।

अमन के मुंह दबाते ही पुरवा एक झटके से बोतल को बख्तावर के सीने में चुभा दिया। बोतल सीने में धसते ही गर्म खून का छोटा पुरवा के चेहरे पर पड़ा। जैसे इस जालिम ने बाऊ जी के सीने में तलवार चुभाई थी। जैसे जैसे उसके सीने में बोतल से वार कर रही थी आंखों से आंसू बह रहे थे और दिल की पीड़ा पिघल कर आंखो से आंसू बन कर बह रही थी। बख्तावर के गरम खून के छींटे पुरवा के सीने के दहकते आग को ठंडा.. कर रहे थे।

फिर तो वो तब तक वार करती रही जब तक बख्तावर का शरीर शांत नही हो कर झूल नही गया। बड़ी ही खामोशी से एक जानवर.., एक वहशी का अंत हो गया।

अब अमन ने पुरवा के हाथ को रोका और आंखो से इंकार कर बताया कि इस दुष्ट को इसके किए की सजा मिल गई। अब चलो।

अमन पुरवा का हाथ थामे बाहर निकलने लगा।

तभी उसकी निगाह जरीना के बगल में रक्खे उसके दुपट्टे पर पड़ी। उसे ले कर पुरवा के सिर पर ओढ़ा दिया साथ की एक एक जोड़ी कपड़ा रस्सी पर टांगे हुए जरीना और बख्तावर के एक एक जोड़ी कपड़े साथ ले लिए और फुसफुसाते हुए बोला,

"पुरु..! इससे पहले कि कोई जाग जाए, किसी को पता चले यहां से निकलना होगा।"

आते वक्त ही अमन ने गौर से आने जाने के रास्ते का मुआयना कर लिया था। दोनो जिस दरवाजे से आए थे उसे छोड़ कर जो बावर्ची खाने के बगल से पीछे के दरवाजा था उसे खोल कर बाहर निकल गए।

बाहर निकलते ही अमन पुरवा का हाथ थामे बेतहाशा भागने लगा। जाने कैसे उनके अंदर इतनी शक्ति आ गई थी कि वो इतनी तेज भागे की थोड़ी ही देर में वो रेलवे लाइन के करीब थे।

वही लाइन पकड़े पकड़े अमन पुरवा को ले कर लाहौर की दिशा में चलने लगा।

पुरवा तो जैसे अपना बुद्धि, विवेक सब खो चुकी थी। सब कुछ अमन के ऊपर छोड़ दिया था जैसा जैसा वो कह रहा था, बस आंख मूंदे एक कठपुतली की भांति करती जा रही थी।

रात में चांद के हल्के उजाले में वो लाहौर की ओर बढ़े जा रहे थे। अमन बोला,

"पुरु. .. हम लाहौर जा रहे हैं। क्योंकि ट्रेन वही जानी थी। बाऊ जी का पता वही जा कर चल पाएगा। फिर अम्मा के बारे में भी पता लगाने की कोशिश करेंगे।"

लगातार चलते चलते करीब साढ़े तीन बजे अमन और पुरवा लाहौर रेलवे स्टेशन पर थे। बेंच पर अमन ने पुरवा को बिठा दिया।

कुछ देर बैठ कर सुस्ता लेने के बाद अमन पुरवा को ले कर पास के नलके के पास आया और बोला,

"पुरु..! अभी कोई दिख नही रहा। तुम नहा कर ये वाले कपड़े पहन लो और खून के छींटे साफ कर लो। पुरवा ने इधर उधर देखा पूरा स्टेशन खाली था एक दो लोग और कुत्ते को छोड़ कर। वो भी गहरी नींद में थे।

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