Sathiya - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

साथिया - 12

अबीर ने तुरंत माही को फ़ोन लगाया।

" हाँ पापा..!" माही की खनकती आवाज आई।

" कैसा है मेरा बच्चा?" अबीर बोले।

" ठीक हूँ पापा और आपको बहुत मिस करती हूँ।" माही बोली।

" अब भी नाराज है पापा ?" अबीर ने पूछा।

" नही पापा ..! अब पुरानी बातें भुला दी मैंने। और आपने भी तो मॉम के खातिर मुझे दिया उनको। दर्द तो आपको भी हुआ होगा न मुझसे दूर होते हुए।" माही बोली।

"अपने कलेजे के टुकड़े को दूर करना किसी भी मां-बाप के लिए बहुत ही कष्टदायक होता है बच्चे। पर हमें पता था कि तुम समझने की कोशिश जरूर करोगी। उस समय मजबूरी थी। तुम्हारी भी तबीयत ठीक नहीं रहती थी और हमसे कहा गया था कि तुम्हें दिल्ली का वेदर सूट नहीं कर रहा है इसलिए तुम्हें कहीं पहाड़ों पर भेजा जाए। तो वही तुम्हारे फूफा जी और बुआ मीनाक्षी के बच्चे की अचानक मौत से तुम्हारी बुआ गहरे सदमे में चली गई थी। जिस तरीके से तुम मेरी बेटी हो वह मेरी बहन है। उन्हें जीते जी मरते नहीं देख सकता था मैं इसलिए मैंने और तुम्हारी मम्मी ने एक बड़ा फैसला लिया और तुम्हें तुम्हारी बुआ के गोद में डाल दिया। इससे दो जिंदगियां बच्चे ठीक तुम्हारी और तुम्हारी बुआ की। तुम्हें पाकर तुम्हारी बुआ फिर से जीने लगी और दिल्ली के माहौल से दूर शिमला में रहने के कारण तुम्हारी भी तबीयत में सुधार आने लगा और तुम भी धीरे-धीरे ठीक होने लगी।" अबीर बोले।



माही कुछ न बोलि।

" जानता हूं मैं कि इस बात से तुम्हें तकलीफ हुई और तुम हम लोगों से नाराज भी रही कई सालों तक पर बेटा उस समय हमें जो सही लगा वह हमने किया पर इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं कि मैं और मालिनी तुम्हें प्यार नहीं करते। तुम हमारे घर का छोटा बच्चा हो और छोटे बच्चे से प्यार हमेशा ज्यादा रहता है और फिक्र भी" अबीर बोले।

" जी पापा।" माही ने कहा।

" शायद ये प्यार ही था कि हम तुम्हें खोना नहीं चाहते थे भले उसके लिए हमें तुमसे दूर रहना पड़े ।और इसीलिए हमने तुम्हें खुद से दूर करने का फैसला कर लिया ।"अबीर बोले।

" इट्स ओके पापा। अब मैं जब सारी बातें जानती हूं तो मुझे आपसे और मम्मी से कोई तकलीफ नहीं और फिर मॉम यानी कि मेरी बुआ उन्होंने मुझे कोई कमी नहीं रहने दी। बहुत ही अच्छे से रखा है मुझे उन्होंने। बहुत ही प्यार से ।मां और बाप दोनो का प्यार अकेले उन्होंने दिया है इसलिए मुझे आप लोगों से कोई शिकायत नहीं है।" माही बोली तो अबीर ने गहरी सांस ली?


" हां मै मानती हुं कि जब बचपना था तो नाराजगी थी पर जैसे जैसे मैं बड़ी हुइ हूं आप की परिस्थितियां भी समझ रही हूं और मॉम की जरूरतें भी। और ठीक है आपकी परिस्थिति और मॉम की जरूरतों के हिसाब से मैं काम आ गई और मुझे अब इस बात की कोई भी तकलीफ नहीं है और ना ही आप लोगों से कोई नाराजगी।" माही बोली।


"मालिनी बता रही थी कि तुम पोस्ट ग्रेजुएशन दिल्ली से करने का सोच रही हो?" अबीर बोले।

" हां पापा एक्चुअली में अब मॉम का रिटायरमेंट भी होने वाला है और मॉम और मैं हम दोनों ही चाहते हैं कि हम लोग दिल्ली आ कर रहे वैसे तो मैं आकर अलग घर लेकर रहना चाहती थी पर अब मेरा मन और आप लोगों का मन देखकर उन्होने तय किया है कि हम दोनों आपके साथ वही उसी घर में रहेंगे ताकि कुछ समय मैं अपने पेरेंट्स के साथ बिता सकूं और फिर इस उम्र में मॉम भी अकेले नहीं रहना चाहती।" माही बोली।

" बहुत अच्छा फैसला लिया है मीनाक्षी ने। बहुत अच्छा लगा मुझे और मैं बहुत खुश हुं। मै खुद उससे कह रहा था अब रिटायरमेंट ले ले। शिमला से यहां शिफ्ट हो जाए। अब तुम दोनों ने ही हम लोगों के बारे में सोचा खासकर दिल्ली आकर रहने के बारे में सोचा तो बडा अच्छा लगा।" अबीर बोले।

" पर अभी टाइम है पापा..! अभी मेरा ग्रेजुएशन होने में काफी समय है जब हो जाएगा उसके बाद मैं सोच रहे हैं कि दिल्ली से पीजी करूंगी।" माहि ने कहा।

" बहुत अच्छी बात है ।" अबीर बोले थोड़ी उन्होंने मीनाक्षी से भी बात की और उसके बाद कॉल कट कर दिया।


मालिनी जोकि बहुत देर से उनकी बातें सुन रही थी उसने आकर अबीर के कंधे पर हाथ रखा तो अबीर ने भरी आंखों के साथ मालिनी की तरफ देखा।

" आखिर फाइनली हमारी बेटी ने हमें माफ कर दिया..! बहुत छोटी थी वह 5 साल की थी तब मैंने उसे मीनाक्षी को दे दिया था। इतने छोटे बच्चे के मन में मैं गांठ बनना नार्मल है। जब उसे समझदारी नहीं होती तो वह जो सोच लेता है वही सही मानने लगता है ,और उसके मन में यह बात बैठ गई कि हम लोग उसे प्यार नहीं करते इसलिए हमने उसे मीनाक्षी को दे दिया है।आज जब बड़ी हो गई है और सारी बातें समझने लगी है तो उसमें हम लोगों को माफ कर दिया है और अब वो हमसे मिलने भी लगी है और वह हमारे साथ आकर रहने के लिए तैयार है। मैं बता नहीं सकता मालिनी मैं कितना खुश हूं।" अबीर बोले।

"मैं तो आपसे पहले ही कहती थी कि थोड़ा समय दीजिए..! बच्ची है अभी वह सही गलत नहीं समझती। नाराज हो रही है पर जल्दी सब समझ जाएगी और जल्दी ही हमारे पास वापस आएगी और देखिए अब जल्दी ही वह समय आएगा। हां पर अभी भी थोड़ा इंतजार बाकी है। उसका ग्रेजुएशन होने में अभी अभी तो काफी समय है।"मालिनी बोली।

" जेसे ये साल बीते बचे साल जल्दी से बीत जायेंगे और फिर हमारी बच्ची वापस से हमारे पास आ कर रहेगी ।भले कुछ ही साल फिर वह ब्याह होकर अपने ससुराल चली जाएगी पर जितना भी समय बिताएगी उन कुछ सालों में मैं उन सारी सालों की कसर पूरी कर दुंगा जो हमने उसके बिना बिताए हैं।"अबीर भावुक होकर बोले।

मालिनी ने मुस्कुराकर गर्दन हिला दी।


अबीर उठकर अपने कमरे में चले गए और मालिनी शाम के खाने की तैयारी है देखने लगी।


उधर गांव मे नियति ने कॉलेज जाना शुरू कर दिया था । गजेंद्र और निशांत ने उसे कॉलेज जाने की परमिशन दे दी थी पर उसे शहर में रहने की इजाजत नहीं थी। वह रोज गांव से ही जो बस जाती थी शहर के लिए उस में बैठकर जाति और शाम को वापस आ जाती थी। रोज अप डाउन कर रही थी पर नियति का पढ़ने में मन था तो इस बात कि उसे कोई भी आपत्ति नहीं थी और वह बिना किसी परेशानी के रोज कॉलेज जाने लगी। और पूरे मन लगाकर पढ़ाई करने लगी।

जैसा कि उसके भैया निशांत और मां ने समझाया था वह पढ़ाई के अलावा कभी इधर उधर किसी की तरफ भी नजर उठाकर नहीं देखती थी क्योंकि वह जानती थी कि उसकी नजर अगर उलझी तो तूफान आ जाएगा एक ऐसा तोहफा जो न जाने क्या क्या उड़ाकर ले जाएगा।
पर कहते हैं ना कि तूफान को जब आना होता है तो वह आकर रहता है और उसे कोई भी नहीं रोक पाता।

ओर नियति की जिंदगी में तूफान ने कदम रखा सार्थक के रूप में।

सार्थक भी पास ही के गांव से शहर में पढ़ने के लिए आया था। गरीब परिवार से ताल्लुक रखता था और उसके पिता ने बड़ी मुश्किल और मेहनत से पैसे जोड़कर उसे कॉलेज में दाखिला दिलाया था और साथ ही साथ उसका रहने का इंतजाम हॉस्टल में कर दिया था ताकि वह अच्छे से पढ़ाई कर सकें।

सार्थक भी कॉलेज में आकर जी तोड़ मेहनत में लग गया इस बार से अनजान की आगे किस्मत ने उसकी जिंदगी में क्या लिखा है उसका ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपनी पढ़ाई पर था।

इसके अलावा उसका एक और शौक था और वह फुटबॉल खेलना। इसलिए जब भी उसके पास समय होता वो ग्राउंड में आकर फुटबॉल खेलने लगता। जब फुटबॉल कोच की नजर उस पर पड़ी तो उन्होंने उसे कॉलेज की फुटबॉल टीम में ले लिया और अब सार्थक रोज पढ़ाई के बाद कुछ समय फुटबॉल को देने लगा और अपने साथियों के साथ फुटबॉल की प्रैक्टिस करने लगा।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव।