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एक शाम

आज मिलना हैना?
एक प्यारा सा मैसेज ,बहुत हरकतों के साथ लिखा गया था।
सुबह से मन खुश बहोत था।
मिलने की ख्वाहिश से बार बार समय देखते हुए प्रवीण ने अपने कार्य को जल्दी से पूरा कर दिया। खाना तो श्रुष्टि साथ ही खाना था उसी के हाथो से ।समय हो चुका था प्रवीण जल्दी से स्कूटर की चाबी लेके निकल गया घर से , स्कूटर चलाते चलाते वो श्रृष्टि के वो आलिंगन में खो गया जहां उसने पहली बार श्रृष्टि को अपने सीने से लगाया था। उसकी बाहों में प्रवीण हमेशा अपनापन महेसुस करता था।

अरे भाई, रास्ता दो जाने का –पीछे से आवाज आई।
प्रवीण जागते हुए भी उसकी यादों में इतना खो गया था की उसको ये नहीं पता था की वो सिग्नल पे खड़ा है और सिग्नल खुल गया है।मुस्कुराते हुए उसने माफी मांगी लेकिन सामने से हल्की सी आवाज सुनाई दी की,कैसे पागल लोग भरे पड़े है यहा ,कहा खड़े है वो भी नही पता।
प्रवीण अनसुना करके वह से निकल जाता है। तय किए हुए समय पर पहुंचना उसको पसंद था ,क्युकी श्रृष्टि हमेशा प्रवीण के आने के बाद आती थी।परंतु प्रवीण को
उसकी राह देखना बहुत अच्छा लगता था।
समय से पहले पहुंचना यही कारण था की उसको आते देखना अच्छा लगता था।
प्रवीण के बारे मे बताया जाए तो वो एक साधारण सा लड़का था।उसे अपनों से ज्यादा प्रेम करता था।और उसको अकेला रहना पहले से ही ज्यादा पसंद था।
प्रवीण का यही स्वभाव उसको लोगो से दूरियां बनाके रखता था।
शरीर के बारे में बताया जाए तो आम लोगो के जैसा था,उम्र कुछ २६ के आसपास होगी। देखाव का भी बहुत ही साधारण सा लड़का।

श्रुष्टि अच्छे घर की लड़की थी,स्वभाव चंचल,भगवान की भक्ति में रहनी वाली असाधारण लड़की,उसकी आंखों में बहुत तेज रहता।
ये चुलबुली लड़की प्रवीण को अपना बना चुकी थी।

–अचानक से श्रुष्टि ने अपना स्कूटर प्रवीण के पास लाकर खड़ा कर दिया।और प्रवीण को अपनी बाहो मे भर लिया।
प्रवीण को इसी का तो इंतजार था,प्रवीण ने श्रृष्टि को कमर से पकड़ के आलिंगन दिया।
प्रवीण हमेशा उसको अपने करीब ही रखना चाहता था क्युकी श्रृष्टि प्रवीण का हमेशा खयाल रखती थी,और बहुत ही ज्यादा प्यार करती थी।श्रृष्टि भी हमेशा प्रवीण के नजदीक रहने से शांत रहती और हमेशा खुश रहती थी।
प्रवीण उसको हमेशा देखता ही रहता। उन दोनो की बाते आंखो ही आंखो में हो जाती थी।
प्रवीण ने कहा: चलो चाय पीते है।
चाय मतलब श्रृष्टि का पहला प्यार,चाय के बगैर उसका दिन ही न हो।
श्रृष्टि ने कहा : जरूर ।चलिए चाय तो पीनी ही है।
चाय वाले को दो चाय बोलके वो दोनो अपनी बातो में मशगूल हो गए।
चाय पीते पीते दोनो ने थोड़ी बाते करी ।
प्रवीण को हमेशा से श्रृष्टि के हाथ से खाना खाने का मन रहता ।प्रवीण ने उसको पूछा की कुछ खाओगे क्या?
उसका जवाब रहता की ’आपको भूख है तो खा लेंगे’।
हालाकि श्रृष्टि को बाहर का खाना पसंद नही था।
नाश्ता ऑर्डर करके प्रवीण श्रृष्टि के साथ बैठ गया।
प्रवीण श्रुष्टि को हमेशा आंखो के सामने देखना चाहता था।
श्रृष्टि प्रवीण के प्यार को बहुत अच्छे से महेसूस कर रही थी,दोनो एक दूसरे के हाथो में हाथ डालकर बैठे हुए थे।
वेटर ने आके खाना रखा । श्रृष्टि ने अपने हाथोंसे प्रवीण को खाना खिलाया। श्रृष्टि हमेशा खाने का बिल पे करती थी।
बहुत ज्यादा समय तो नही दे पाते थे लेकिन दोनो में प्यार बहुत था।
जब समय हुआ जाने का तब शाम हो चुकी थी।लेकिन दोनो के मन में जाने की भावना नहीं थी,
दोनो की आंखो में बस यही दिख रहा था की साथ में काश और साथ में रह पाते!
प्रवीण का मन जाने के समय पे उदास हो जाता था।बेचैनी सी हो जाती थी जब समय होने लगता , एक दूसरे की सामने देखते ऐसे की जैसे एक बच्चा अपनी मां को छोड़ के जाता है।

श्रृष्टि के मन में सहेलाब सा लग जाता था,उसको प्रवीण से दूर जाने का मन ही नही करता। एक दुखभरी नजर से दोनो एक दूसरे को देखते,और कहते की ये शाम क्यू होती है,
ये बिछड़ना क्यू पड़ता है।
ये वो समय होता था जो वो दोनो अपने जीवन में लाना ही नही चाहते थे! साथ में बिताए पल उस समय एक शाम के सूरज की तरहां ढलते दिखाई देते थे।मायूस से चेहरे के साथ वो न चाहते हुए भी अपने घर जाने के लिए निकल पड़ते थे।
वो शाम दो मिलने वाले दिलो की प्यार की जुबानी देते हुए नजर आती थी!
स्कूटर से जाते जाते श्रृष्टि को प्रवीण जबतक आंखो से ओझल न हो जाए तबातक देखता रहता।श्रृष्टि भी पीछे देखती थी उसे पता होता था की प्रवीण उसे देख रहा होगा।
श्रृष्टि के चले जाने के बाद प्रवीण भी घर की और निकल पड़ता।
वही नई सुबह के इंतजार में,
वही मैसेज के इंतजार में,
वही मिलने की ख्वाहिश में,
वही एक शाम तक साथ रहने की तमन्ना में!
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