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भय के भूत

बाल कहानी

भय का भूत

परीक्षा की घड़ी नजदीक आती जा रही है।एक एक दिन बीतने के साथ सार्थक के मन में परीक्षा का डर समाता जा रहा है।वह एक्जाम की तैयारी में जी जान से जूता था ।उसे लग रहा था कि जो वह पढ़ रहा है उसे याद नहीं हो पा रहा।

हर रात उसे एक ही सपना दिखता कि कि परीक्षा रूम में बैठा ,पेपर सामने है लेकिन वह कॉपी पर कुछ भी लिख नहीं पा रहा।उसे लगता कि किसी अदृश्य ताकत ने उसका हाथ जकड़ लिया है।

सपना देखते हुए वह डर जाता। उसका शरीर पसीने में तरबतर हो जाता।नींद से जागता तो पता लगता –अरे यह तो सिर्फ सपना था।वह खुद को दिलासा देता –धत्त यह तो सपना था। सपने से क्या डरना। उसके मन में भय की नागफनी फैलती जा रही थी।

सार्थक हमेशा परीक्षा में अव्वल आता रहा था। ऐसा पहली बार हो रहा था कि वह इस बार अव्वल आना तो दूर दो सब्जेक्ट में पासिंग मार्क्स भी पाने में असफल रहा था।उसकी मार्कशीट देख मम्मी एकदम रुआंसी हो गयी थी।

वह अपनी मम्मी से बहुत प्यार करता है । वह उनका ऐसा चेहरा देख कर सहम गया। छमाही परीक्षा के लिए वह पढाई में पूरे मनोयोग से लगा था।वह चाहता था कि इस बार वह मार्क्स पाने में क्लास के सारे बच्चों को पछाड़ दे और मम्मी के उदास चेहरे पर खुशियों के गुलाब खिल उठें।

तमाम कोशिशों के बावजूद क्यों उसके भीतर का विश्वास डगमगाया हुआ था।सपने वाला अदृश्य हाथ उसे बहुत भयभीत किये था। उसे हरदम यही लगता कि यदि इस बार भी वह अच्छे मार्क्स न ला पाया तो मम्मी को अपना मुहं कैसे दिखा पायेग। अपने पापा का सामना कैसे करेगा।

एक दिन जब वह स्कूल से वापस आकर घर में बैठा न्यूजपेपर के पन्ने पलट रहा था तो उसकी नजर एक खबर पर अटक गयी। यह एक बारह साल के लडके की आत्महत्या का समाचार था जिसने एक्जाम में अच्छे नम्बर न मिल पाने पर आत्महत्या कर ली थी।

वह सोचने लगा कि यदि वह अबकी बार अच्छे नम्बर न ला पाया तो क्या उसे भी यही सब करना पड़ेगा।वह मन ही मन काँप उठा। अनमने भाव से बैठा अखबार के पन्ने उलटता रहा। तभी उसका ध्यान ज्योतिष सम्बन्धी एक लेख पर पड़ा । उसमें लिखा था कि हर किसी का मुकद्दर उनकी हथेली की लकीरों में लिखा होता है।होता वही है जो विधाता ने उनके लिए निर्धारित किया होता है।

इसे पढ़ते हुए वह सोचने लगा कि काश ,कोई ऐसा मिल जाए जो बता दे कि उसके भविष्य में क्या बदा है। उसे इस बार अच्छे मार्क्स मिलेंगे या नहीं।

तभी उसे याद आया कि कालोनी के बहार एक मन्दिर है जिसमें एक महात्मा रहते हैं । उसने अपनी मम्मी को एकबार किसी से कहते सुना था कि महात्मा जी बड़े विद्वान् हैं ।किसी का पास्ट फ्यूचर सब ठीक ठीक बता देते हैं ।

सार्थक तुरंत घर से बाहर आया और मन्दिर की ओर चल पड़ा।वहां पहुँच कर देखा कि सफ़ेद कपड़े पहने कोई आदमी आराम से सो रहा है। उसने अनुमान लगाया कि वह महात्माजी ही हैं। वह उन्हें कैसे जगाये ,वह असमंजस में था। वह सोच ही रहा था कि महात्मा जी ने आँखें खोलीं।।उसे सामने खड़ा देख बड़े स्नेह से अपने पास बुलाया। वह झिझकता हुआ समीप आया तो उन्होंने पुछा –बेटा बताओ कैसे आये ?

-जी ..जी ...मैं सार्थक....उसे समझ नहीं आया कि अपनी बात कैसे कहना शुरू करे।

-सच बताना ,भूत से डर कर आये हो ? उन्होंने कहा।

यह सुनकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि महात्माजी कैसी घिसीपिटी बात कर रहे हैं ।मम्मी तो कहती थी कि वह विद्वान् हैं। सबके दिल का हाल खुद जान लेते हैं।

वह अपने ऐसे ही विचारों में खोया था कि महात्मा जी ने कहा –बोलो ,भूत की वजह से आये हो न ?

-भूत तो मुझसे कभी नहीं मिला। उसने साहस जुटा कर कहा।

-भूत क्या होता है ,जानते हो बेटा। महात्मा जी ने पुछा।

-जी मैंने सच कहा कि मुझे नहीं पता कि ये भूत क्या होता है। उसने जवाब दिया।

-बेटा, भूत होता है हमारा अतीत यानि बीता हुआ कल।अतीत ही भूत बन कर हमें डराता है। खैर तुम अपनी बात कहो सार्थक।उन्होंने कहा।।

उसने संक्षेप में अपनी सारी बात कह डाली और महात्मा जी से कहा कि वह उसकी हथेलियों की रेखाएं देख कर यह बता दें कि उसके फ्यूचर में क्या बदा है।

उसकी यह बात सुन महात्माजी खिलखिला कर हंस पड़े।,बोले –भविष्य हर आदमी के हाथ की रेखाओं में लिखा होता है ।लेकिन यह लकीरें बनती हैं मेहनत से।तुम्हारा काम पढना है ,मन लगा कर पढो।हाथ की लकीरों में तुम्हारा भविष्य खुद चमक उठेगा।

-लेकिन बाबाजी ,मैं पढता तो खूब हूँ पर याद कुछ नहीं रहता।उसने कहा।

-बेटा ,तुम अपनी पहली नाकामयाबी से डरे हुए हो।। यह तुम्हारा अतीत है और यही वह भूत है जो डराता है।। और इस भूत से क्या डरना। इससे तो केवल सबक लिया जा सकता है। उन्होंने कहा।

सार्थक को महात्मा जी की बात समझ में आई। उसके मन के अँधेरे में बैठा परीक्षा के डर का भूत नदारद हो गया। उसने अपनी हथेलियों की रेखाओं को निहारा तो लगा कि वहां सुंदर भविष्य और मम्मी का मुस्कराता हुआ चेहरा उभर आया है।